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बागियों पर पार्टी की सख्त़ नज़र: श्याम जाजू

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ऋषिकेश पहुंचे उत्तराखंड बीजेपी प्रभारी श्याम जाजू ने भाजपा प्रत्याशी प्रेम चंद्र अग्रवाल के चुनावी कार्यालय का उद्धघाटन किया। दो बार के विधायक रहे प्रेम चंद्र तीसरी बार चुनावी मैदान में है , लेकिन इस बार भाजपा को अपने गढ़ में ही भाजपा के बागियों से चुनौती मिल रही है। श्याम जाजू ने ऋषिकेश पहुंचकर कार्यालय का उद्धघाटन किया और कहा कि “भाजपा एक अनुशासित पार्टी है जो भी भाजपा के अनुशासित कार्यकर्त्ता रहे है उन्हें भजपा ने टिकट दिया”।

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वहीँ श्याम जाजू ने बीजेपी के बागियों को चेतावनी दी है की भाजपा के किसी भी निशान और चेहरो का अगर ये बागी प्रत्याशी प्रयोग करते है तो इनके खिलाफ सख्त कार्यवाही की जायेगी और भाजपा इस तरह के कार्यो की चुनाव आयोग से शिकायत करेगी। गौरतलब है की भाजपा के पूर्व राज्य मंत्री समेत पिछली जिला कार्यकारणी के सदस्यो और पदाधिकारियों ने भाजपा को छोड़कर कर निर्दलीय प्रत्याशी संदीप गुप्ता को समर्थन दिया है।

बीजेपी को ऋषिकेश में झटका, संदीप गुप्ता सहित कई सदस्यों ने खून से लिख कर सौंपा इस्तीफा

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उत्तराखंड में रूठो को मानाने और  डेमेज कंट्रोल की कोशिशों में लगी भाजपा को  ऋषिकेश में बड़ा झटका लगा , भाजपा के बागी उम्मीदवार सहित  भाजपा के पूर्व जिला अध्यक्ष ,उपाध्यक्ष और कई कार्यकारिणी सदस्यो ने खून से लिख कर अपना  इस्तीफा आलाकमान को भेज दिया है। ऋषिकेश से टिकट बंटवारे को लेकर नाराज चल रहे संदीप गुप्ता का आरोप है कि “लगातार इस विधानसभा छेत्र में भाजपा के कार्यकर्ताओ की अनदेखी हो रही है जिसके चलते निवर्तमान विधायक से सभी कार्यकत्र्ताओ में नाराजगी बनी हुयी है,पिछली बार भी मेरे टिकट की घोषणा के बाद भाजपा संगठन मंत्री के कहने पर मेरा टिकट काट दिया गया इस बार का वादा कर के फिर से संगठन मुकर गया , और एक बारी व्यक्ति को तीसरी बार ऋषिकेश विधान सभा से टिकट दिया जा रहा है जो यहाँ के छेत्र के सभी कार्यकर्ताओ की अनदेखी करता है पार्टी की कार्यकर्ताओ की विरोध की नीति के चलते मेरे साथ कई बीजेपी नेताओ ने खून से त्याग पत्र लिखकर आलाकमान को  इस्तीफा दे दिया”।

गौरतलब है टिकट बंटवारे को लेकर यहाँ बीजेपी के नेतओं में नाराजगी थी जिसके चलते संदीप गुप्ता पहले ही ऋषिकेश से निर्दलीय नामांकन कर चुके है, कई बड़े नेताओ के समझने के बाद भी वो अभी तक मैदान में डटे हुए  । 

“विकास” की भेंट चढ़ता देहरादून

उत्तराखंड राज्य बनते ही देहरादून को कामचलाऊ राजधानी बना दिया गया। कुछ लोगों ने इसका विरोध किया और आज भी गैरसैंण को राजधानी बनाने की लड़ाई जारी है। राजधानी को देहरादून से हटाने का मुद्दा भी हर अन्य मुद्दे की तरह राजनीतिक ज़्यादा और व्यावहारिकता से दूर हो गया। जो नेता इस पर राजनीतिक रोटियाँ सेक रहे हैं वो तमाम तरह के कॉस्मैटिक मार्केटिंग स्ट्रेटेजी तो कर रहे हैं लेकिन गैरसैंण में राजधानी बनाने को लेकर ज़मीनी तैयारी क्या है इसके बारे में फ़िलहाल कोई जानकारी शायद ही किसी के पास है। ख़ुद मुख्यमंत्री ये कह चुके हैं कि ये काम “शनै शनै” यानि धीरे धीरे ही होते हैं लेकिन ये धीरे कितना धीरे होगा ये शायद चुनावों के नतीजे तय करेंगेँ। वहीं जो लोग राजधानी शिफ़्ट करने के पक्षधर हैं चाहे वो राज्य आंदोलनकर्मी हो या बेतरतीबविकाससे परेशान हो चुके देहरादून के लोग वो भी ये समझ पा रहे हैं समझा  पा रहे हैं कि जिस राज्य को अपने मासिक ख़र्चे चलाने के लिये केन्द्र सरकार पर निर्भर रहना पड़ रहा है उसपर एक नई राजधानी को बनाने का बोझ डालना कितना सही होगा। सिर्फ़ घोषणा करने से गैरसैंण में राजधानी तो नहीं बन पायेगी। एक समाधान इस मुद्दे का ये भी है कि जम्मू कश्मीर की तर्ज पर गैरसैंण को समर कैपिटल (गर्मियों की राजधानी) बना दिया जाये। सुनने में ये बात और मौजूद समाधानों से ज्यादा व्यवहारिक लगती है मगर सवाल फिर वही है कि क्या कर्ज के बोझ तले दबे राज्य पर दो राजधानियों का भार डालना तर्क संगत होगा। ये भी तय है कि अगर ऐसा होता है तो गैरसैंण में लोगों के लिये मूलभूत सुविधायें आये या नहीं लेकिन नेताओं और अधिकारियों के लिये आराम से रहने और काम करने का इंतजाम पहले किया जायेगा। ऐसे में आम लोगों को क्या हासिल होगा राजधानी गैरसैंण ले जा कर।

इन सब राजनीतिक और सामाजिक खिंचातनी के बीच जो हारा है वो है देहरादून शहर। पिछले एक दशक में विकास के नाम पर देहरादून में तक़रीबन सबकुछ बदल गया है। गलियों मे इमारतें खड़ी हो गई हैं, संकरी सड़कों पर देसी विदेशी गाड़ियाँ दौड़ने लगी हैं, डिमांड से ज़्यादा मकानों की सप्लाई बन गई है, किसी ख़ास कारण के चलते यहाँ के निवासी पलायन कर रहे हैं और बाक़ी सब जगह से लोग यहां आकर बस रहे हैं। पलायन भी एक राजनीतिक मसला और सेमिनारों का ज्वलंत मुद्दा बनकर रह गया है लेकिन पहाड़ों से हो रहे पलायन के मूल कारणों और इसे रोकने के लिये कोई भी राजनीतिक दल या सामाजिक संगठन कुछ ठोस कर पाया हो ऐसा नहीं दिखता। किसी भी शहर के लिये ये सब फ़ैक्टर शायद विकास के पैमाने माने जायेंगे, पर यहाँ सवाल ये है कि क्या सही मायनों मे इसे विकास कहेंगे आप?

क्या हम ये भी सोचेंगे कि वास्तविकता में हमें इस तरह हो रहेविकासकी ज़रूरत है? पिछले दस सालों में शहर में सरकारी नौकरियों के अलावा और नौकरियों के कितने मौक़े बनाये गये? सचिवालय में जितनी फाइलें कामों की होती हैं तकरीबन उतनी ही “आर्थिक सहायता” की अर्जियां उन्हें मुकाबला देती दिखती हैं। क्यों ऐसा हो गया है कि हमारे राज्य के हर वर्ग के लोग विकास के अवसरों की जगह मुख्यमंत्री राहत कोश की तरफ ज्यादा देखने लगे हैं। क्या ये अरेंजमेंट हमारे राजनेताओं को भी वोटर मैंनेजमेंट करने में ज्यादा कारगर दिखता है। राज्य बनने के बाद से ज़मीनी और ज़रूरी इंफ़्रास्ट्रक्चर बनाने के लिये क्या क़दम उठाये गये हैं? शहर में गाड़ियाँ तो हो गई हैं लेकिन सड़के नहीं, इमारतें तो बन गई हैं लेकिन सीवेज की लाइनें नहीं, मॉल हैं लेकिन ग्राहक नहीं है।

उत्तराखंड राज्य का निर्माण आंदोलन की राह पर चल कर हुआ था और वो आंदोलन और उसमें दिया गया बलिदान हमारी सांस्कृतिक विरासत का अमिट हिस्सा बन गया है। लेकिन इस समय की ज़रूरत है कि राज्य को धरना प्रदर्शन राज्य की छवि से मुक्त कराया जाये और सब लोग एक साथ आकर राजनीतिक खेल की सबसे पुरानी चाल जात पात, धर्म, भूगौलिक भिन्नता को दरकिनार कर अपने नेताओं की जवाबदेही तय करें। हम कहीं न कहीं इस मानसिकता के शिकार हो गये हैं कि हर राजनेता एक समान है और हमारी मजबूरी है इन्हें चुनना। लेकिन जब हम अपने घर के लिये सामान खरीदते हुए समझौता नहीं करते तो हम अपने राजनेताओं को चुनते समय समझौता कैसे कर सकते हैं। 

शायद अब ये समय गया है कि देहरादून के बाशिंदे अपने हुक्मरानों से सवाल जवाब करने लगें वरना कुछ दिन पहले ही हमने आँख बंदकर हुएविकासके नतीजों का ट्रेलर दिल्ली और एनसीआर की हवा में देख चुके हैं।

वेतन देने को पैसा नही है लेकिन फर्जी घोषणाएं कर मुख्यमंत्री जनता को कर रहे गुमराह: निशंक

हरीश रावत उत्तराखंड के लोगों को गुमराह करने के आलावा कुछ नहीं कर रहे हैं। ये कहना है बीजेपी नेता और पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक का। रविवार को देहरादून में पत्रकारों के साथ बात करते हुए निशंक ने आरोप लगाया कि हरीश रावत घोषणाऐं ही कर रहे हैं और इसके ज़रिये वो लोगों को गुमराह कर रहे हैं। निशंक ने आरोप लगाया कि एक तरफ हरीश रावत नई योजनाओं का शिलन्यास कर रहे हैं वहीं कई महीनों से वो सार्वजनिक तौर पर ये बात करते रहे हैं कि सरकार के पास अपने कर्मचारियों को तनख्व़ाह देने के पैसे नही हैं। ऐसे में क्या रावत सिर्फ लोगों की आंखों में धूल नहीं झों क रहे हैं?

कांग्रेस के बागियों को पार्टी में जगह मिलने और टिकट दिये जाने पर भी निशंक पार्टी के बचाव में सामने आये। उन्होने कहा कि कांग्रेस एक डूबता जहाज़ है और जो लोग पार्टी छोड़ कर बीडजेपा में आ रहे हैं वो सही फैसला कर रहे हैं। विजय बहुगुणा और उनपर कांग्रेस द्वारा लगाये गये भ्रष्टाचार के आरोंपों पर भी निशंक ने बहुगुणा का बचाव किया। निशंक ने कहा कि जब तक बहुगुणा कांग्रेस में थे सब ठीक था लेकिन जैसे ही उन्होने बीजेपी ज्वाइन की वैसे ही कांग्रेस को उनमें सारी खामियां दिखने लगी।

लंबे समय से राजनीतिक गलियारों में ये बात घूम रही थी कि निशंक को उनकी पार्टी ने चुनावों में हाशिये पर डाल दिया है। इस पर बी निशंक ने बोलते हुए कहा कि वो पार्टी के कार्यकर्ता हैं और पार्टी जिस भी रूप में उनका प्रयोग करना चाहेगी वो तैयार हैं।

गौरतलब है कि भले ही पार्टी ने निशंक को चुनावों में कोई अहम भूमिका न दी हो लेकिन कांग्रेसी बागियों को टिकट देने के चलते खुद बीजेपी में दो बगावत पैदा हो गई है निशंक उसे खत्म करने के लिये काम कर रहे हैं। और मौजूदा चुनावी माहौल को देखते हुए ये काफी बड़ी चुनौती है निशंक के लिये भी औऱ बीजेपी के लिये भी।

 

टिकट को लेकर मल्ल ने कांग्रेस को दी कोर्ट जाने की चेतावनी

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बीते शुक्रवार को धनौल्टी सीट पर पार्टी हाईकमान ने अपना फैसला बदल कर प्रीतम पंवार को सर्मथन करने की घोषणा कर दी थी।इस घोषणा के बाद धनौल्टी सीट के प्रत्याशी मनमोहन सिंह मल्ल के अंदर कांग्रेस के खिलाफ गुस्सा तो था ही इसी गुस्से में उन्होंने पार्टी सिंबल पर चुनाव लड़ने की जिद ठान ली है और मनमोहन मल्ल ने कांग्रेस को अदालत में जाने की चेतावनी भी दी है।

साथ ही मीडिया से बातचीत में उन्होंने कहा है कि पीडीएफ में तो बीएसपी समेत आधा दर्जन लोग सरकार के सहयोगी रहे हैं। ऐसे मे सिर्फ धनौल्टी क्षेत्र में मेरा टिकट काट कर कांग्रेसी के कार्यकर्ताओं का मनोबल क्यों तोड़ा जा रहा है। मल्ल की माने तो वे कांग्रेस के सिंबल पर ही धनोल्टी से चुनाव लड़ेगे।

गौरतलब है कि इस सीट पर कांग्रेस ने मसूरी नगर पालिका चेयरमैन मनमोहन सिंह मल्ल को टिकट दिया था लेकिन अब पार्टी प्रीतम पंवार को समर्थन देगी।पार्टी के इस फैसले को सही ठहराते हुए पार्टी प्रवक्ता आर.पी.रतूड़ी ने कहा था कि मल्ल कांग्रेस के समर्पित और पुराने प्रत्याशी है और वह पार्टी के इस फैसले को समझेंगें।लेकिन मल्ल की जिद्द तो कुछ और ही करने की है।देखना यह होगा कि क्या पार्टी गुलजार अहमद की तरह मल्ल को अपने साथ कर लेगी या आर्येंद्र की तरह मल्ल भी अपना चुनाव लड़ेंगें।

विजया और विजय मिलकर दिलाऐंगें भाजपा को जीत

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भाजपा ने शनिवार को देहरादून कार्यलय पर प्रेस कांफ्रेस का आयोजन किया। कांफ्रेस में श्याम जाजू ने कहा कि अब विजया बर्थवाल को पार्टी से कोई शिकायत या मनमुटाव नहीं है और अब विजया  पार्टी का प्रदेश भर में प्रचार करेंगी।इसके साथ ही कांग्रेस उपाध्यक्ष रहे रवींद्र सिंह बिष्ट ने शनिवार को भाजपा में शामिल होने का फैसला लिया। बिष्ट कांग्रेस उपाध्यक्ष रह चुके हैं और कुमाऊँ का एक बड़ा नाम है। इसके साथ ही नरेन्द्र सिंह बिष्ट आल इंडिया कांग्रेस कमेटी के सदस्य थे लेकिन विधानसभा चुनाव से पहले इन्होंने भी बीजेपी का हाथ थाम लिया है।

कांफ्रेस में विजया ने कहा कि उन्होंने कार्यकर्ताओं की मांग पर भरा था अपना निर्दलीय नामांकन और अब उन्होंने अपना नामांकन वापस ले लिया है।य़मकेश्वर की तीन बार विधायक रह चुकी है विजया बर्थवाल, टिकट ना मिलने से भाजपा से थी बहुत नाखुश और उन्होंने ऋतु खंडूरी के ख़िलाफ़ निर्दलीय नामांकन किया था। विजया के नामांकन वापस लेने से शायद यमकेश्वर सीट पर ऋतू खंडूरी को थोड़ा आराम मिलेगा। विजया की पकड़ यमकेश्वर क्षेत्र में ज्यादा होने की वजह से पार्टी ने उन्हें मना कर उनको नामांकन वापस लेने के लिए कर लिया तैयार।

नामांकन वापस लेने के साथ साथ विजया बर्थवाल ने कहा कि मैं पार्टी से अपेक्षा रखती हूं कि पार्टी मेरे विधानसभा क्षेत्र के विकास कार्यों को ध्यान मे रखेगी औऱ मैं अपना पुरा समर्थन रितु खंडूडी को देती हूं।

विजय बहुगुणा ने हरीश रावत के सवालों का जवाब देते हुए कहा कि चुनाव आयोग के निर्णय का सम्मान कितना करते है सीएम यह जनता देख चुकी है,हरीश रावत के काम और हरीश रावत के बिना बजट और प्रस्ताव के घोषणाएं भी जनता देख रही है।पार्टी ने कहा कि शायद हरीश रावत डरे हुए है इसलिए उन्होंने आखिरी में 2 जगह से चुनाव लड़ने का फैसला किया है,एक नहीं एक सही वाला हिसाब बना कर चल रहें हैं सीएम रावत।बहुगुणा ने कांग्रेस के लिए कहा कि यह वही पार्टी है जिसमें मैने अपना समय दिया है और जब तक बहुगुणा कांग्रेस में थे तब तक वह पाक व साफ थे और जैसे ही बहुगुणा ने अपने कदम बीजेपी में रखे तो वे भ्रष्टाचारी हो गए,।बहुगुणा ने कहा कि मुझे यकीन है कि भाजपा कि सरकार आएगी और ऐसा हुआ तो बहुगुणा जांच बिठाएंगें।

कांग्रेस ने संकल्प पत्र में गिनाई पार्टी की उपलब्धियां और भाजपा की अपूर्ण घोषणाएं

शनिवार को मुख्यमंत्री हरीश रावत ने देहरादून में बीजेपी पर आँकड़ों और संकल्प पत्रों से हमला बोला। राज्य में कांग्रेस सरकार बनने पर उन्होंने साल 2020 तक के लिये संकल्प पत्र जारी किया।

इस पत्र के मुताबिक़ः

  • मलिन बस्तियों का नियमितीकरण का कानून बना के लोगो को मालिकाना हक़,साथ ही साथ 2017 मे मलिन बस्तियों का अधिकार पत्र दिया जाएगा।
  • उन युवाओं को जिनको सरकार रोज़गार देने में नाकामयाब रही उनको 2500 रुपये का बेरोजगार भत्ता जब तक  उन्हें नौकरी नहीं मिलती।
  • उत्तराखंड के प्रत्येक घर से सरकारी या अर्धसरकारी नौकरी, 2020 तक सरकार का हर परिवार में एक कमाऊ सदस्य देने का वादा
  • महिलाओं को सरकारी नौकरी में 33% का आरक्षण
  • आपदा के खिलाफ मजबूत ढाल बनेगा प्रदेश
  • बिजली,पानी और सड़कों पर होगा काम
  • 2022 तक का रोड मैप भी हुआ तैयार
वहीं मुख्यमंत्री ने राज्य में अब तक रही तमाम बीजेपी सरकारों को भी निकम्मा बताया। इसके लिये रावत ने आँकड़े जारी किये। इन आँकड़ों के मुताबिक़
  • राज्य स्थापना के बाद बाद बीजेपी ने 6 साल 3 महीने के कार्यकाल में लगभग 2554 घोषणाएं की लेकिन सीएम रावत ने पौने तीन साल में कुल 3823 घोषणाएं की और उनपर काम भी किया
  • सीएम रावत की घोषणाएं सिर्फ कागज पर नहीं हुई,2170 घोषणाएं पूरी भी हो गई।
  • पूर्व मुख्यमंत्री निशंक के कार्यकाल में कुल 1245 घोषणाएं ऐसी रही जिनपर कोई काम नहीं हुआ
  • बीजेपी के पूर्व मुख्यमंत्रियों के कार्यकाल में लगभग 48.75 प्रतिशत घोषणाएं अपूर्ण रहीं और सीएम रावत के कार्यकाल में केवल 7.06 प्रतिशत घोषणाएं अपूर्ण रही।
कांग्रेस ने संकल्प पत्र में अपनी उपलब्पधियां गिनाने के साथ ही बीजेपी के पिछले सभी घोषणाओं का काला चिट्ठा खोल दिया है।बहरहाल आँकडें और संकल्प लोगों के बीच कितना जगह बना पाते हैं इसका पता तो आने वाले चुनावों में चल ही जायेगा।

कांग्रेस का हाथ अब नहीं है मल्ल के साथ,धनौल्टी में पार्टी देगी प्रीतम का साथ

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कांग्रेस हाईकमान ने शुक्रवार को दिल्ली में एक बैठक कर अपने धनौल्टी सीट पर उम्मीदवार वापस लेने का फ़ैसला किया। धनौल्टी सीट पर निर्दलीय चुनाव लड़ रहे प्रीतम पंवार को कांग्रेस ने समर्थन करने का फ़ैसला किया है। गौरतलब है कि इस सीट पर कांग्रेस ने मसूरी नगर पालिका चेयरमैन मनमोहन सिंह मल्ल को टिकट दिया था। मुख्यमंत्री हरीश रावत पहले से ही प्रीतम पंवार को बाहर से समर्थन करने और पार्टी का उम्मीदवार की तरह खड़ा करने की वकालत कर रहे थे। इसका साफ़ कारण था कि प्रीतम ने मुश्किल के वक़्त हरीश रावत का साथ दिया था। और ये रावत की तरफ़ से दूरगामी राजनीतिक चाल भी थी। लेकिन पार्टी के अंदर और ख़ासतौर पर प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय इसके पक्ष में नही थे। इसी वजह से पार्टी मे धनौल्टी में अपना उम्मीदवार मैदान में उतारा था। लेकिन अब पार्टी के इस फ़ैसले से ये साफ़ है कि उत्तराखंड कांग्रेस में हरीश रावत खेमा बाक़ी बचे सभी नेताओं के साथ साथ कांग्रेस हाईकमान पर भी भारी पड़ रहा है।
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पार्टी हाईकमान नें धनौल्टी सीट पर प्रीतम पंवार को समर्थन देने का फैसला किया है जिसके कारण नामांकन के आखिरी दिन मनमोहन सिंह मल्ल का टिकट काट दिया गया है।वहीं मामला अब और दिलचस्प हो गया है क्योंकि मनमोहन मल्ल ने शुक्रवार को अपना नामांकन दाख़िल कर दिया। इससे साफ़ है कि इस फ़ैसले पर मल्ल को भरोसे में नही लिया गया है।
कांग्रेस पार्टी प्रवक्ता आर.पी रजूड़ी ने कहा कि मल्ल कांग्रेस के एक अच्छे और मजबूत प्रत्याशी थे और वह पार्टी के इस फैसले को समझेंगें और कांग्रेस का साथ देंगें।उन्होंने कहा कि मल्ल पार्टी के समर्पित प्रत्याशी है और इसके नाते मैं उम्मीद करता हूं कि वह इस फैसले में पार्टी का साथ देंगें।उन्होंने कहा कि मुझे नहीं लगता कि मल्ल इस फैसले से आहत होंगें क्योंकि कांग्रेस ने उन्हें बहुत सम्मान दिया है।और कभी कभी कुछ कारणों से कड़वा घूंट भी लेना पड़ता है क्योंकि कुछ इलाज की दवा कड़वी होती है और मल्ल खुद को इसके मुताबिक ढाल लेंगें।
अब देखने वाली बात यह होगी कि मनमोहन मल्ल का इस फ़ैसले पर क्या प्रतिक्रिया होती है? क्या वो पार्टी के फ़ैसले को मानेंगें या निर्दलीय मैदान में उतरेंगे?

बीजेपी नेता मातवर सिंह कंडारी ने थामा कांग्रेस का हाथ

बीजेपी के वरिष्ठ नेता और पूर्व कैबिनेट मंत्री मातवर सिंह कंडारी ने बीजेपी का दामन छोड़ कर कांग्रेस का हाथ थाम लिया है। शनिवार को मुख्यमंत्री हरीश रावत और पार्टी अध्यक्ष किशोर उपाध्याय की मौजूदगी में उन्होने पार्टी ज्वाइन की। कंडारी ने कहा कि बीजेपी पिछले कुछ सालों में बहुत बदल गई है और सत्ता की लोभी हो गई है। कंडारी के मुताबिक जो हालात राज्य में पिछले साल मार्च में हुए उससे वो काफी आहत हुए और इसके लिये वो पूरी तरह बीजेपी को ही दोशी मानते हैं।कंडारी बीजेपी के वरिष्ठ नेता थे ऐर पूर्व में बीजेपी सरकार में कैबिनेट मंत्री भी रह चुके हैं।

कंडारी के साथ रुद्रप्रयाग के जिला अध्यक्ष आनंद बोहरा ने भी बीजेपी छोड़ कांग्रेस का हाथ थाम लिया। इनके अलावा राजीव कंडारी और किसान मोर्चा के अध्यक्ष दरमियान सिंह रावत ने भी कांग्रेस का साथ पा लिया है।

प्रेस कांफ्रेंस में मुख्यमंत्री हरीश रावत और प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय के साथ मनमोहन मल्ल भी मौजूद थे। गौरतलब है कि मल्ल धनौल्टी सीट से कांग्रेस के उम्मीदवार थे लेकिन शुक्रवार को अचानक पार्टी ने धनौल्टी सीट से अपना उम्मीदवार वापस लेने और प्रीतम सिंह पंवार को समर्थन देने का फैसला कर लिया। मल्ल तब तक अपना नामांकन दाखिल कर चुके थे। मल्ल के यहां मौजूद रहने से ये कयास लग रहे हैं कि क्या मल्ल् को मनाने में पार्टी कामयाब रही है। हांलाकि मल्ल फिलहाल पार्टी केफैसले से नाराज़ दिख रहे हैं।

 

यमकेश्वर में ऋतु खंडूरी का मुक़ाबला बीजेपी बनाम बीजेपी

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यमकेश्वर से मैदान में उतरी पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूरी की बेटा ऋतु खंडूरी के लिये चुनाव काफ़ी चुनौती पूर्ण हो गया है। ये चुनौती अन्य उम्मीदवारों से कम और पार्टी के बाग़ी और असंतुष्ट पूर्व नेताओं से ज़्यादा है। बीजेपी के दोनों बाग़ी नेता शैलेंन्द्र सिंह रावत जिन्होंने कुछ दिनों पहले ही कांग्रेस का दामन थामा और यमकेश्वर से बीजेपी की मौजूदा विधायक विजया बर्थवाल ऋतु खंडूरी के लिये परेशानी का सबब बन सकते हैं। रावत और बर्थवाल दोनों को ही ज़मीन से जुड़ा नेता माना जाता हैं और क्षेत्र में उनकी अच्छी पकड़ भी है। ऋतु खंडूरी जो कि एक एनजीओ चलाती हैं चुनावों में अपने पिता की साफ़ छवि को कैश कराने की कोशिश करेंगी। वहीं रावत और बर्थवाल दोनों ही ऋतु को बाहरी और अपने को वंशवाद की राजनीति का शिकार बता कर चुनावी माहौल अपनी तरफ़ करने की कोशिश करेंगे।  लेकिन इस मुक़ाबले को रोचक ये बात बनाती है कि ये तीनों ही उम्मीदवार उसी वोटर बेस को अपनी ओर खींचने का प्रयास करेंगे जो पारंपरिक तौर पर बीजेपी को मानता है।

तकरीबन 83000 वोटरों वाली इस सीट में 230 गाँव आते हैं जिनमें अधिकतर ठाकुर और ब्राह्मण समुदाय हैं। पिछले चुनावों में विजया बर्थवाल ने इस सीट पर तक़रीबन 13842 वोट हासिल किये थे। शैलेंद्र रावत का भी इस सीट पर खास दबदबा रहा है और वो भुवन चंद्र खंडूरी लंबे समय से विरोधी रहे हैं।

ऋतु खंडूरी पिछले कुछ समय से अपना एनजीओ के जरिये इस इलाके में सामाजिक सरोकार से जुड़े कामों में सक्रिय रही हैं। उनका मानना है कि लोग आजकल उस उम्मीदवार को पसंद करते हैं जो उन्हें विकास दे सके। जात औहर बाहरी जैसे मुद्दे बेमानी हो जाते हैं।

कहते हैं इश्क और जंग में सब जायज़ होता है। बीजेपी ने कांग्रेस के सभी बागियों को टिकट के तोहफे से नवाज़ा औऱ प्रदेश प्रभारी मंत्री जे पी नड्डा ने भी साफ कर दिया कि हमने चुनाव जीतना है और इसलिये जीतने वाले उम्मीदवारों को टिकट दिया है।इससे एक बात तो साफ है कि बीजेपी उत्तराखंड में इसी फार्मूले पर काम कर रही है।