सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को ठेंगा दिखा रहे 400 से अधिक आंगनबाड़ी केंद्र

    0
    538

    (देहरादून)  विभिन्न मांगों को लेकर हड़ताल में मशगूल आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं ने पिछले वर्ष सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को भी तवज्जो नहीं दी। वर्ष में निर्धारित 300 दिन पात्रों को पोषक आहार मुहैया कराने के बजाय आंगनबाड़ी कार्यकर्ता आंदोलन को परवान चढ़ाने में जुटी रहीं। हालांकि, अब विभाग ने इसे गंभीरता से लेते हुए उनका दो माह का मानदेय रोक दिया है, लेकिन पिछले साल निर्धारित पोषक आहार से वंचित रहे नौनिहालों की सुध विभाग कब और कैसे लेगा पता नहीं।
    दरअसल, सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट आदेश है कि सभी प्रदेशों में आंगनबाड़ी केंद्रों के लिए बच्चों को साल में 300 दिन पोषण आहार वितरित करना अनिवार्य है। लेकिन बीते वर्ष 2016-17 में 400 से अधिक आंगनबाड़ी केंद्रों में 300 दिन पोषण आहार वितरित नहीं हुआ है। बाल एवं महिला विकास विभाग इसके लिए आंगनबाड़ी संगठनों के पिछले वर्ष अक्टूबर, नवंबर में हुए आंदोलन को जिम्मेदार ठहरा रहा है। विभाग की मानें तो साल में करीब दो माह हड़ताल आदि पर रहने के कारण आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं ने अपने कर्तव्य का निर्वहन नहीं किया। जिसके चलते पिछले साल का लक्ष्य पूरा नहीं हो सका। बहरहाल, कारण जो भी हो सुप्रीम कोर्ट के 300 दिन आहार देने के आदेशों को तो हवा में उड़ा दिया गया। साथ ही प्रदेशभर के नौनिहालों की सेहत भी प्रभावित हुई। हालांकि आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के साथ-साथ संबंधित विभाग भी इसके लिए बराबर का जिम्मेदार है। सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन कराना विभाग की ही जिम्मेदारी थी, मगर ऐसा नहीं किया जा सका।
    14 हजार कार्यकर्ता का मानदेय रोका
    विभाग ने आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के आंदोलन को लक्ष्य पूरा न होने का जिम्मेदार ठहराते हुए प्रदेशभर की करीब 14 हजार से अधिक आंगनबाड़ी कार्यकर्ता/सहायिका/मिनी कार्यकर्ताओं का मानदेय रोका है। बाल एवं महिला विकास विभाग की उप निदेशक सुजाता सिंह ने कहा कि विभिन्न जनपदों की करीब 12 हजार से अधिक आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का मानदेय रोका है।
    कार्रवाई का कर रहे विरोध
    आंगनबाड़ी कार्यकत्री/सहायिका/मिनी कार्यकत्री संगठन उत्तराखंड की अध्यक्ष रेखा नेगी ने उन पर हुई कार्रवाई को अन्याय बताया है। उन्होंने विभाग पर कुछ जनपदों को राहत देने का भी आरोप लगाया। जबकि उत्तरांचल आंगनबाड़ी कर्मचारी संघ की महामंत्री सुशीला खत्री ने कहा कि विभाग कार्रवाई का भय दिखाकर कार्यकर्ताओं की आवाज को दबाने का प्रयास कर रहा है। उन्होंने कहा कि यदि उनके साथ इस प्रकार का सौतेला व्यवहार जारी रहा तो मजबूरन कार्यकताओं को सड़कों पर उतरकर आंदोलन को बाध्य होना होगा।