कैलाश कुमार, धरोहर के रखवाले

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हिलजात्राए यानि की किचड़ में किया जाने वाला समूह नृत्य, जो केवल पिथौरागढ़ में मनाये जाने वाला कृषक नृत्य हैं,  ये कला का आयोजन सबसे पहले ग्राम कुमौड़ में किया गया था जिसका प्रसार अौर प्रचार अाज कैलाश कुमार पूरे देश में कर रहें हैं।

कैलाश हमें बतातें है कि, ‘ऐसा कहा जाता है कि भादौ मास मे जब बरसात होती है तो किसान अपने बैलों के साथ धान की रोपाई करने का कार्य करते हैं। हिलयात्रा में जो पात्र ढो़ल-नगाड़ो के साथ विभिन्न प्रकार की अभिव्यक्तियों से ऐसा प्रदर्शित होता है कि मानों खेतों में रुपाई का कार्य चल रहा होंए जैसे बैलों की जोड़ी, हलिया, हुक्के वाला, पुतारी (महिलायें),घासवाला, हुड़क्या बोल गाने वाला इनके अलावा हमारे क्षेत्रीय देवी-देवताओं को भी इसमें प्रदर्शित किया जाता है।’

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पिथौरागड़ में पैदा हुए और दिल्ली में पले-बढ़े कैलाश एक बैंकर कि नौकरी कर रहें थे।लेकिन 3-4 महीने आफिस में नौकरी करने के बाद उन्होंने जयपुर नाट्यकुलम से डिप्लोमा किया और बताते है कि वह उनकी जिंदगी का टर्निंग पाइंट था। फिर उन्होंने 2 साल की छात्रवृत्ति नाट्यशास्त्र की पढ़ाई के लिए मिली और फिर कभी पीछे मुड़ कर वापस नहीं देखा और फुल टाईम थियेटर से जुड़ गए।

2011-12 में पिथौरागड़ आकर हिलजात्रा का एक प्रोडक्शन किया और फिर 2015 से, ‘मैं यहां पूर्ण रुप से शिफ्ट हो गया, मुझे लगा कि अगर मुझे अपनी जगह काम करना है तो मुझे पिथौरागड़ को घर बनाना है।आज हमारी टीम में 20-25 लोग है जो कि 15 साल से लेकर 83 साल के बुजुर्ग है, पिछले साल अकेले हमने लगभग पूरे भारत में 14 प्रोडक्शन किए थे।’

अपने क्षेत्र में काम करने के लिए कैलाश कुमार को इस साल ‘लोकनाट्य रत्न सम्मान’ से भी नवाजा गया।कैलाश कुमार जैसे अनगिनत लोग उत्तराखंड की विलुप्त होती धरोहर को संभाल रहे हैं, आज जब वह अपनी नाटक मंडली में युवाओं को बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते देखते हैं तो एक सुकून सा मिलता है कि, ‘हमारे पहाड़ों की यह समृद्धि संस्कृति की डोर मजबूत हाथों में है जिसे आने वाली पीढ़ी भी संजो कर रखेगी।’