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चार सालों से परिनियमावली की बाट जोह रहा तकनीकी विश्वविद्यालय

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उत्तराखंड सरकार लगातार शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ाने के दावे तो करती रही है, लेकिन हकीकत की जमीन पर सभी दावे और वादे धूल फांकते दिखाई देते हैं। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि चार साल से उत्तराखंड टेक्निकल यूनिवर्सिटी (यूटीयू) की परिनियमावली शासन में अटकी है। शासन की इस सुस्ती के चलते यूनिवर्सिटी में तमाम अव्यवस्थाएं फैली हैं, इस कारण यूनिवर्सिटी की पूरी कार्यप्रणाली बेहाल हैं।

यूनिवर्सिटी में कर्मचारियों को भारी टोटा है, अधिकारियों की गिनती भी नाम की है। आलम यह है कि यूनिवर्सिटी में नाम मात्र के अधिकारी ही काम काज को संभाल रहे हैं। दरअसल यूनिवर्सिटी स्थापना के वक्त यूनिवर्सिटी का एक्ट तो तैयार कर दिया गया, लेकिन परिनियमावली तय न होने के कारण एक्ट लागू करने में भी परेशानियां आ रही है। विशेषज्ञों की मानें तो यूनिवर्सिटी का एक्ट जहां नीति निर्देशक का काम करता है, वहीं एक्ट काम कैसे करेगा यह परिनियमावली तय करती है। इसके अलावा यूटीयू में अभी तक केवल वाइस चांसलर, रजिस्ट्रार और फाइनेंस कंट्रोलर ही नियुक्त हो पाए हैं। जब तक परिनियमावली तय नहीं होगी अन्य पदों पर नियुक्ति संभव नहीं होगी। परिनियमावली के न होने से यूनिवर्सिटी के आंतरिक कार्यो में बाधा आना स्वभाविक है। यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रो. पीके गर्ग का कहना है कि यूनिवर्सिटी की ओर से तीन साल पहले ही परिनियमावली तैयार कर शासन को भेज दी गई थी, लेकिन शासन स्तर पर अभी तक इस पर कोई संज्ञान नहीं लिया गया है। परिनियमावली तय हो जाएगी तो यूनिवर्सिटी को आ रही तमाम परेशानियों को दूर किया जा सकेगा।

परिनियमावली नहीं होने से आने वाली दिक्कतें-
– यूनिवर्सिटी के डिपार्टमेंट्स का स्वरूप कैसा हो।
– कॉलेजों को संबद्धता देने का कार्य।
– बोर्ड ऑफ स्टडीज का स्वरुप कैसा हो।
– नई डिग्री या पाठ्यक्रम को कैसा होना चाहिए।
– यूनिवर्सिटी में ग्रुप बी और सी की नियुक्ति प्रक्रिया।
– विभागों को सुविधाओं से संपन्न करना।
– यूनिवर्सिटी में एचओडी और डीन आदि का कार्यकाल।

उत्तराखंड में पहली बार फास्ट ट्रैक बाईपास सर्जरी 

उत्तराखंड के लोगों को मैक्स सुपर स्पेशलिटी अस्पताल जल्द ही सस्ते में फास्ट ट्रैक बाईपास सर्जरी की सहूलियत देने जा रहा है जिसमे दिल के मरीजों को कम समय मे बेहतर ईलाज मिल सकेगा।

ऋषिकेष स्तिथ एक निजी होटल में मैक्स अस्पताल के सिनियर कंसल्टेंट डॉ मनीष मेसवानी ने इस बारे में मीडिया को जानकारी दी। मीडिया से बात करते हुए डॉ मनीष मेसवानी ने बताया कि मैक्स अस्पताल की पहल से फास्ट ट्रैक बाईपास सर्जरी शुरू किया है जिसमें प्रदेश के लोगों को कम खर्चे में बाईपास सर्जरी की सुविधा मिल सकेगी।

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उन्होंने बताया की अभी तक बाईपास सर्जरी के ईलाज में कई दिन लग जाते थे लेकिन अब फास्ट ट्रैक बाईपास सर्जरी के जरिये कुछ घंटों में ही मुमकिन हो सकेगा, साथ ही साथ जरूरतमंदों को 25 से 35 हजार तक की मेडिकल सुविधा की दी जाएगी।

 

 

केदारनाथ के पास जल्द शुरु होंगे जंगल सफारी और होमस्टे

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केदारनाथ मंदिर में आने वाले पर्यटकों को क्षेत्र में स्थानीय लोगों के जीवन का अनुभव कराने के साथ-साथ आस-पास के घने जंगलों के अलग-अलग वनस्पतियों और जीवों से परिचित होने के अवसर प्रदान करने के लिए, जिला प्रशासन जंगल सफारी को शुरू करने की प्रक्रिया में है। जल्द ही केदारनाथ जाने वाले यात्रियों को जंगल सफारी और ‘रुरल एक्सपिरियेंस पैकेज को अनुभव करने का मौका मिलेगा।

रुद्रप्रयाग डीएम मंगेश घिल्डियाल के अनुसार, जिसके क्षेत्राधिकार में केदारनाथ क्षेत्र आता है, ने कहा कि, ‘यह कदम पर्यटक संख्या में आ रही तेज गिरावट को कम करेगा जो बरसात के मौसम में केदारनाथ में देखा गया है। इतना ही नहीं यह स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी बनाए रखेगा, जो पूरी तरह से पर्यटन पर निर्भर है।’ उन्होंने कहा कि, ‘इस कदम से उन जगहों को बढ़ावा मिलेगा जो आज तक लोगों ने देखी भी नहीं हैं और जो पहाड़ों की खुबसूरती से लकदक है, इस पहल से टूरिस्ट का फुटफाल भी अच्छा होगा।’

घिल्डियाल ने कहा, “हम केदारनाथ के आसपास के क्षेत्रों की पहचान करने की प्रक्रिया में हैं जहां जंगल सफारी और ग्रामीण पर्यटन की पहल की जा सकती है।” उन्होंने कहा कि, ‘रात में सफारी करने के लिए पर्यटकों के लिए चुनिंदा स्थानों पर मचान बनाने की योजना भी है, जिससे रात को पर्यटक तेंदुए, नीलगाय और जंगली सूअर जैसे जानवरों को देखा सकते हैं। इसके अलावा विलेज होमस्टे के जरिए पर्यटक गांववालों के साथ मधुमक्खी पालन और पहाड़ी खेती जैसी गतिविधियों में भागीदारी करके हिमालयी गांवों में जीवन का अनुभव करने में सक्षम होगें।’ घिल्डियाल का मानना हैं कि, “खेतों में बैलों की खेती करके, पारंपरिक व्यंजनों की बनाने में मदद करने और गांव की रोजमर्रा के कामों में भाग लेने से पर्यटकों को एक अलग तरह का अपना अनुभव मिल सकता है जो किसी भी टूरिस्ट डेस्टिनेशन में शायद ही मिलता है। ‘

उत्तराखंड पर्यटन विकास बोर्ड के वरिष्ठ अधिकारी सतीश बहुगुणा ने कहा कि, ‘इस पहल से बड़ी संख्या में पर्यटकों का आर्कषण मिलेगा, यह सोच अपने आप में बिल्कुल सटीक है क्योंकि आजकल कई पर्यटकों को होटल के बजाय घरों में रहना पसंद हैं और उस जगह की संस्कृति के बारे में जानने और एक परिवारिक माहौल में रहना पसंद हैं।’

स्थानीय एनजीओ की गायत्री देवी ने कहा कि, ‘कई अनुभव हैं जो पर्यटकों के गांवों में हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, कई गांववाले मधुमक्खी पालन कर रहें हैं जिसके बारे में वे पर्यटकों को बता सकते हैं और उन्हें अपने मधुमक्खी पालन के ओरिजिनल शहद बेच सकते हैं।’

यहां जाने के लिए रखनी पडती है जान हथेली पर

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देश की नेपाल और चीन सीमा से लगे सीमांत क्षेत्र जैसे पिथौरागढ़ में कागजी विकास के लंबे-चौड़े दावे होते हैं। इन दावों की हकीकत गोरी नदी घाटी में देखने को मिलती है। जहां आज भी गोरी सहित उसकी सहायक नदियों को पार करने के लिए कच्चे झूलापुल और जानलेवा गरारियां ही बनी हैं। सचाई तो यह है कि डोलने वाले झूला पुल और जानलेवा गरारिया दर्जनों गांवों की लाइफ लाइन हैं।

विश्व प्रसिद्ध मिलम ग्लेशियर से निकलने वाली विशाल गोरी नदी और उसकी सहायक नदियां तिब्बत सीमा से लगे क्षेत्र में जनजीवन को थर्राती रहती हैं। ग्रीष्मकाल में जब बर्फ पिघलती है तो सभी नदियों का जल स्तर बढ़ जाता है। मानसून काल में तो ये नदियां विकराल रूप धारण कर लेती हैं। मिलम से लेकर जौलजीवी तक लगभग 132 किमी तक गोरी नदी के किनारे घनी बसासत है। नदी के पूर्वी छोर की तरफ जहां बाजार, विद्यालय सहित अन्य उपक्रम हैं तो पश्चिमी छोर पर बड़े-बड़े गांव हैं। कुछ गांवों की तो स्थिति यह है कि खेत भी नदी के दूसरी तरफ हैं। इसके चलते ग्रामीणों को रोज नदी के दूसरी तरफ जाना पड़ता है।

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विकास का सच यह है कि जौलजीवी से लेकर मिलम तक 132 किमी की दूरी पर मात्र तीन मोटर पुल जौलजीवी, कौली और मदकोट में हैं। जौलजीवी से कौली की दूरी 15 किमी जबकि कौली से मदकोट की दूरी 30 किमी है। इसके अलावा गर्जिया में सौ साल पुराना झूला पुल, चामी, बंगापानी में झूला पुल हैं। हुड़की, आलम, फगुवा और बसंतकोट के पास गरारी हैं। जो सभी क्षतिग्रस्त हैं। इन गरारियों से आर-पार करने में प्रतिवर्ष कई लोग जानें चली जाती हैं। इसके अलावा उच्च हिमालय में भी गोरी नदी पर कच्चे पुल हैं, जो प्रतिवर्ष शीतकाल में हिमपात से तो मानसून काल में नदी के प्रवाह से बह जाते हैं।

मानसून के चार माह में गोरी नदी घाटी के दर्जनों गांवों का शेष जगत से संपर्क भंग हो जाता है। स्कूली बच्चों का विद्यालय जाना बंद हो जाता है। इन गांवों के लिए बनी लाइफ लाइन खुद ही बीमार है।

ट्रांसफर के ल‌िए शिक्षकों ने पार की हदें, मंत्री ने भी पकड़ लिया सर

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पहाड़ों में शिक्षकों की बहाली और वहां शिक्षकों का रुके रहना शिक्षा विभाग के लिये एक बड़ा मसला बन गया है। विभाग लगातार नये तरीके निकाल रहा है स्कूलों में शिक्षकों को पहुंचाने की लेकिन वहीं शिक्षक भी विभाग के नहले पर दहले मार रहे हैं। शिक्षा विभाग के नियमों के तोड़ने के मामले सामने आये हैं। इनकी पुष्टि होने के बाद ही शिक्षा मंत्री अरविंद पांडेय ने अनुरोध के आधार पर तबादलों की प्रक्रिया पर रोक लगाई है।

तबादला पाने के लिए कई शिक्षिकाओं ने अपने पति से फर्जी तलाक लिया है, घर पर भले ही सब कुछ सामान्य हो, लेकिन कागजों में पति और पत्नी एक-दूसरे से तलाक ले चुके हैं। विधवा और तलाकशुदा शिक्षिकाओं की सहायता के लिए उन्हें अनुरोध के आधार पर तबादले का लाभ दिया जाता है। लेकिन कई शिक्षिकाओं ने इसका दुरुपयोग किया है, उन्होंने कागजों में अपने पति से तलाक ले लिया और खुद को तलाकशुदा दिखाते हुए अनुरोध के आधार पर तबादले का लाभ लिया है जबकि, आज भी वह अपने पति के साथ ही रह रही हैं। इस बार की तबादला प्रक्रिया में भी ऐसे कई मामले सामने आए हैं। उन्होंने कहा कि तबादलों के लिए फर्जी मृत्यु प्रमाण-पत्र तक बनाए गए हैं।

शिक्षा मंत्री ने बताया कि टीचरों ने स्टेट मेडिकल बोर्ड से फर्जी प्रमाण-पत्र भी बनवाए हैं। प्रमाण-पत्र में टीचरों को ‘सुनने में असमर्थ’, ‘चलने-फिरने में असमर्थ’, ‘बोलने में असमर्थ’ बताया गया है। लेकिन अंत में नोट देकर ‘पढ़ाने में समर्थ’ लिखा गया है।
गंभीर बीमार शिक्षकों के होंगे तबादले
 

वहीं शिक्षा मंत्री के सामने ब्रेन हैमरेज से पीड़ित चमोली निवासी शिक्षक लक्ष्मण सिंह रावत का मामला भी उठा। लक्ष्मण सिंह को कुछ समय पहले ब्रेन हैमरेज हो गया था, इसके बाद जौलीग्रांट में उनका उपचार हुआ। उन्हें लगातार जांच के लिए दून आना पड़ता है। उन्होंने अनुरोध के आधार पर तबादले के लिए आवेदन करना चाहा तो पोर्टल में बीमारियों की कैटेगरी में ब्रेन हैमरेज नहीं मिला। स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि लक्ष्मण जैसे वास्तविक बीमार शिक्षकों का तबादला किया जाएगा।

अब छुट्टी लेने के लिए टीचरों को दफ्तरों और बाबू के चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे। इसके लिए शिक्षा विभाग ने ‘उज्ज्वल सेवा’ मोबाइल एप तैयार किया है, इस एप में शिक्षकों को छुट्टी के लिए एप्लीकेशन अपलोड करना होगा। शिक्षा मंत्री ने बताया कि एक अगस्त से एप काम करने लगेगा, जिसका टीचर लाभ उठा सकते हैं।

उत्तर प्रदेश का विकल्प भरने वाले कई टीचरों ने एनओसी हासिल करने के लिए अधिकारियों को रिश्वत दी। इसकी जानकारी मिलने के बाद ऐसे सभी मामलों की फाइल रोक दी गई है। शिक्षा मंत्री ने बताया कि उन्होंने रिश्वत लेने वाले सभी अधिकारियों को उनके पदों से हटा दिया गया है।

डीम्ड संस्थानों के नाम में शामिल नहीं होगा यूनिवर्सिटी शब्द

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देश भर के डीम्ड संस्थान अब अपने नाम के आगे यूनिवर्सिटी शब्द को प्रयोग नहीं कर सकेंगे। इतना ही नहीं इंडियन, नेशनल या इंटरनेशनल जैसे शब्द भी वर्जित होंगे, यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन (यूजीसी) के नए रेगूलेशन में डीम्ड संस्थानों को इस शब्द के उपयोग करने पर रोक लगा दी गई है।

नए नियम के मुताबिक, अब संस्थान अपने नाम के आगे विश्वविद्यालय के समकक्ष या श्बराबरश् जैसे शब्दों का उपयोग करेंगे। यूजीसी द्वारा प्रस्तुत किए गए ड्रॉफ्ट में यह तमाम जानकारी दी गई है। आयोग के डीम्ड विश्वविद्यालयों के लिए तैयार किए गए नए रेगूलेशन पर गौर करें तो कोई भी डीम्ड संस्थान अब यूनिवर्सिटी शब्द का प्रयोग नहीं करेगा। इसके स्थान पर उसे अपने नाम के साथ समकक्ष या फिर यूनिवर्सिटी के बराबर जैसे शब्दों का प्रयोग करना होगा।

उत्तराखंड की बात करें तो यहां प्रदेश भर में तीन डीम्ड विश्वविद्यालय हैं। इनमें हरिद्वार के गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय, देहरादून के एफआरआई और निजी विश्वविद्यालय ग्राफिक एरा शामिल हैं। नए नियम के मुताबिक, इन सभी के नाम से यूनिवर्सिटी हटाया जाना तय है, इसके अलावा देशभर के अन्य राज्यों में संचालित होने वाली डीम्ड यूनिवर्सिटी भी अपने नाम से यूनिवर्सिटी शब्द को हटाकर समकक्ष यूनिवर्सिटी शब्द का उपयोग करेंगी।

इंडियन, नेशनल या इंटरनेशनल शब्द भी नहीं होगा उपयोग:
डीम्ड संस्थानों को यूनिवर्सिटी शब्द से अलग अपने नाम में इंडियन, नेशनल या फिर इंटरनेशनल शब्द को भी उपयोग न किए जाने के निर्देश आयोग ने दिए हैं। आयोग ने साफ किया कि रेगूलेशन के तहत संस्थानों को विभिन्न कसौटियों पर तभी परखा जाएगा जब वे रेगूलेशन के अंतर्गत मानकों को पालन कर रहे होंगे। आयोग ने यह भी कहा कि कोई भी डीम्ड टू बी यूनिवर्सिटी एक से ज्यादा कैंपस संचालित नहीं कर सकेंगी। इतना ही नहीं, कोई भी नया डीम्ड संस्थान डिस्टेंस मोड यानि दूरस्थ माध्यम से डिग्री कोर्स भी संचालित नहीं कर सकेगा। आयोग ने इसे पूरी तरह से नए संस्थानों के लिए वर्जित रखा है।

उत्तराखंड भाषा विभाग के उपनिदेशक डा. सुशील उपाध्याय ने बताया कि आयोग के रेगूलेशन 2017 को लेकर ड्राफ्ट प्रस्तुत कर दिया गया है। आयोग ने डीम्ड संस्थानों पर कई तरह की बाध्यताएं लगाईं हैं। नए नियमों में संस्थानों को यूनिवर्सिटी शब्द के उपयोग की भी मनाही रहेगी। उन्होंने बताया कि अक्सर देखने में आता है कि यूनिवर्सिटी शब्द का प्रयोग कर संस्थान कई मामलों में न सिर्फ मनमानी करते हैं बल्कि नियमों को भी दरकिनार कर देते हैं। नए नियमों से ऐसे संस्थानों पर लगाम लगेगी। आयोग का मकसद है देशभर में शिक्षा का एक ऐसा माहौल तैयार हो जो शिक्षा क्षेत्र को बेहतर दिशा देने का कार्य करें।

आस्था के सैलाब में डूबी शिव नगरी

उत्तराखंड के  कण-कण में भगवान शिव का वास है। कुछ ऐसा ही है मणिकूट पर्वत के नीलकंठ महादेव में।  हर साल सावन मास में बड़ी संख्या में शिवभक्त जल लेकर नीलकंठ महादेव का जलाभिषेक के लिए निकल पड़ते हैं – नीचे गंगा और उसके सिर पर मणिकूट पर्वत का विद्वान भगवान शिव रहते हैं।

जब समुद्र मंथन में अमृत के साथ विष निकला था तब भगवान शिव ने उसे अपने कंठ में धारण किया था इसलिए इसे नीलकंठ महादेव कहां जाता है, यही वह स्थान है जहां पर भगवान शिव को विश्व की तपस से राहत मिली थी और यहीं पर शिव भगवान समाधी में लीन हो गए थे। तब से लगातार शिवभक्त अपने भोले बाबा के दर्शन करने के लिए नीलकंठ धाम, ऋषिकेश्त पहुंचते हैं और बाबा भोलेनाथ उनकी हर मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।

बड़ी संख्या में शिवभक्त विभिन्न राज्यों से पैदल कावड़ को देकर गंगा से जल भरकर अपने आराध्य भगवान शिव को जलाभिषेक करने के लिए नीलकंठ धाम पहुंचते हैं। ऐसे में प्रशासन के लिए भी इन लाखों भक्तों को कंट्रोल करना चुनौती भरा काम होता है जिसके लिए प्रशासन भी मुस्तैद नजर आ रहा है। कावड़ यात्रा पर आतंकी अलर्ट होने के बावजूद शिव भक्तों की आस्था पर कोई कमी देखने को नहीं मिल रही है, शिवभक्तों की आस्था के आगे आतंकी साया ओझल होता दिख रहा है।

श्रद्धा कपूर की ‘हसीना पारकर’ 18 अगस्त को होगी रिलीज

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श्रद्धा कपूर की चर्चित फिल्म हसीना पारकर की नई रिलीज डेट तय हो गई है। नई डेट के मुताबिक, ये फिल्म आगामी 18 अगस्त को रिलीज होगी। पहले ये फिल्म 14 जुलाई को रिलीज होने जा रही थी। ये फिल्म इंडिया के मोस्ट वांटेड अपराधियों में से एक दाऊद इब्राहिम की बहन हसीना पारकर की जिंदगी पर बनी है।

अपूर्व लखिया ने इसका निर्देशन किया है। इस फिल्म में श्रद्धा कपूर ने हसीना का रोल किया है, जबकि पहली बार श्रद्धा इस फिल्म में अपने सगे भाई सिद्धार्थ कपूर के साथ परदे पर नजर आएंगी। इस फिल्म में भी सिद्धार्थ और श्रद्धा बहन-भाई का रोल ही कर रहे हैं।

अंकुर भाटिया ने फिल्म में हसीना पारकर के पति का रोल किया है। हाल ही में फिल्म का नया पोस्टर सोशल मीडिया पर जारी हुआ, जिसमें हसीना पहली बार अपने पूरे परिवार, पति तथा बच्चों के साथ नजर आ रही हैं। फिल्म का नया ट्रेलर मंगलवार 18 जुलाई को रिलीज होने जा रहा है। हसीना पारकर के लिए माना जाता है कि 1993 में मुंबई में बम धमाके के बाद दाऊद के दुबई भाग जाने के बाद मुंबई में डी कंपनी का सारा कारोबार हसीना ने खुद संभाला था।

कौन लगा रहा निगम को चूना

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नगर निगम काशीपुर, ने दुकानों का सर्वे किया तो चौंकाने वाला तथ्य सामने आए हैं। सर्वे में अभी तक तीन हजार से अधिक दुकानें चिह्नित हो चुकी हैं, जबकि वर्तमान में करीब 927 दुकानों से ही टैक्स वसूला जा रहा है। इससे साबित हो गया है कि टैक्स विभाग नगर निगम को राजस्व का चूना लगा रहा था।

नगर निगम के दायरे में 20 वार्ड हैं। इसमें ड्राइक्लीनर्स, लॉजिंग हाउस, प्रिटिंग प्रेस, पेट्रोल पंप, आटा, मसाला चक्की, चाय की दुकान, घी की डेरी, रेस्टोरेंट, ढाबा आदि दुकानें हैं। सैकड़ों कॉमर्शियल भवन भी हैं। फिर भी निगम का टैक्स विभाग के मुताबिक करीब 927 दुकानों से टैक्स वसूला जा रहा है। 20 हजार से ढाई लाख रुपये वार्षिक शुल्क वसूलने का प्रावधान है।

टैक्स विभाग की मिलीभगत से कम दुकानों को पंजीकृत किया गया, इससे निगम को राजस्व का नुकसान हो रहा था। दुकानों की संख्या कम पंजीकृत होने पर अफसर हैरत में थे। नगर आयुक्त ने इसे गंभीरता से लिया। उन्होंने दुकानों का सर्वे करने के लिए एक टीम गठित कर दी है। सर्वे में चौंकाने वाले तथ्य सामने आया है कि अभी तक तीन हजार से अधिक दुकानें चिह्नित किए गए हैं। सर्वे का कार्य चल रहा है, जिन दुकानों से टैक्स वसूला नहीं जाता है, उन दुकानों से टैक्स वसूला जाएगा। जो लोग सेटिंग से टैक्स नहीं देते हैं, वे अब टैक्स देने से नहीं बच पाएंगे

राष्ट्रपति चुनाव: विधानसभ में चुनाव प्रक्रिया प्रारंभ

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उत्तराखंड विधानसभा में राष्ट्रपति पद के चुनाव के लिए प्रक्रिया अपने निर्धारित समय पर प्रारंभ हो गई है। मतदान प्रक्रिया सुबह दस बजे से प्रारंभ होकर सांय पांच बजे तक चलेगी। विधानसभा में 71 विधायक अपने मत का प्रयोग करेंगे। इनमें 70 विधायक उत्तराखंड के और एक विधायक बिहार के हैं। प्रदेश के पांच लोकसभा सांसद और तीन राज्यसभा सांसद दिल्ली में मतदान करेंगे।

राष्ट्रपति पद के लिए होने वाले चुनाव के लिए विधानसभा में सारी तैयारियां पूरी हो चुकी हैं। भारत निर्वाचन आयोग की ओर से बनाए गए पर्यवेक्षक निकुंज किशोर सुंदरे मतदान के दौरान पूरी गतिविधियों पर नजर रखेंगे। सचिव विधानसभा जगदीश चंद्र रिटर्निंग ऑफिसर की भूमिका में रहेंगे। मतदान में भारत निर्वाचन आयोग की ओर से उपलब्ध कराए गए विशेष पेन का ही इस्तेमाल किया जाएगा। अपर मुख्य निर्वाचन अधिकारी मस्तूदास ने बताया कि मतदान के बाद मतपेटी सील कर दी जाएगी। इसके बाद इसे मंगलवार को फ्लाइट से दिल्ली भेजा जाएगा।