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अब दफ्तर छोड़ जंगलों में जायेंगे राज्य के वन अधिकारी

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उत्तराखंड के वन अधिकारियों को अब अपने फील्ड क्षेत्रों में ज्यादा समय बिताना होगा। ये आदेश प्रमुख मुख्य वन संरक्षक जयराज के यहां से जारी हुआ है, ये आदेश ऐसे समय में खास हो जाता है जब आला अधिकारियों में अपने दफ्तरों से बाहर न निकलने के आदत बढ़ती देखी जा रही है।

1 फरवरी को खत्म होने के तुरंत बाद जयराज ने राज्य के सभी वन अधिकारियों को क्षेत्र में अधिक समय बिताने के लिए कहा है, और अपने इलाकों के मु्द्दों और चुनौतियों को समझने में उन्हें मदद मिलेगी। डिवीजनल वन स्तर से शुरू होने के बाद, उन्होंने विभागीय वन अधिकारियों से क्षेत्रों में कम से कम 15 दिनों का समय बिताने को कहा है।

इसी प्रकार, वन संरक्षक स्तर के अधिकारियों को क्षेत्रों में न्यूनतम 13 दिन बिताने को कहा गया है। इसके अलावा, वनों के मुख्य संरक्षक और वनों के अतिरिक्त प्रधान मुख्य संरक्षकों को क्षेत्र में कम से कम 12 दिन बिताने के लिए कहा गया है। मुख्य वन्यजीव वार्डन और प्रिंसिपल चीफ कंज़र्वेटर को क्षेत्र के क्षेत्रों में एक महीने में कम से कम आठ दिन और छह दिन बिताने के लिए कहा गया है।

जंगलों में आग से सुरक्षा पर आयोजित हुई गोष्ठी

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विकासनगर, चकराता वन विभाग की तिमली रेंज अंतर्गत धौला तप्पड़ में वन अग्नि सुरक्षा विषय पर गोष्ठी का आयोजन किया गया। वन क्षेत्राधिकारी पूजा रावल की अगुवाई में आयोजित इस बैठक में लोगों को वनों में लगने वाली आग से होने वाले नुकसान के बारे में जानकारी दी गई।

वन दरोगा मुकेश बहुगुण ने कहा कि हर साल सैकड़ों हेक्टेयर में खड़े जंगल आग से खाक हो जाते हैं। इससे न सिर्फ पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है बल्कि, जानवरों के लिए भी चारा-पत्ति का संकट खड़ा हो जाता है। बैठक में वन अग्नि सुरक्षा समिति का गठन किया गया।

उधर, राजकीय उच्चतर ‌माध्यमिक विद्यालय कांडोईधार के छात्रों ने भी रैली निकाल लोगों को वनों का महत्व समझाया। वन दरोगा मायाराम पांडेय ने कहा कि पर्यावरण संतुलन के लिए वन बेहद जरूरी है। 

स्वच्छता में इस ज़िला अस्पताल ने मारी बाज़ी, बना नंबर 1

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रुद्रपुर, ‘कायाकल्प’ योजना के तहत स्वच्छता और मरीजों को मूलभूत सुविधा मुहैया कराने पर जवाहर लाल नेहरू जिला अस्पताल रुद्रपुर को प्रदेश में नंबर वन रैंकिंग मिली है। जिला अस्पताल को 84.50 प्रतिशत अंक प्राप्त हुए हैं इससे जिले के स्वास्थ्य विभाग अस्पताल के अधिकारी और कर्मचारियों में खुशी की माहौल है ।
योजना के तहत प्रथम स्थान आये अस्पताल को पचास लाख रुपए मिलते हैं। स्वच्छ भारत अभियान के तहत ‘कायाकल्प’ योजना की अल्मोड़ा से पहुंची स्वास्थ्य विभाग क्षेत्रीय टीम ने रुद्रपुर स्थित जवाहर लाल नेहरू जिला अस्पताल का करीब 2 माह पहले सर्वेक्षण किया था। इसके बाद राज्य स्तरीय टीम ने पिछले माह अस्पताल की व्यवस्थाओं का जायजा लिया था। सर्वेक्षण में अस्पताल के सफाई व्यवस्था के साथ ही मरीजों को मिलने वाली मूलभूत सुविधाओं को भी परखा गया था।

सर्वेक्षण के परिणाम घोषित कर दिए गए हैं परिणाम में जवाहरलाल नेहरू जिला अस्पताल को 84.50 प्रतिशत अंकों के साथ प्रदेश में नंबर वन की रैंक मिली है, जबकि चैन राय जिला महिला अस्पताल हरिद्वार को 81.30 प्रतिशत अंकों के साथ दूसरा स्थान और बीड़ी पांडे जिला अस्पताल नैनीताल को 78 प्रतिशत अंकों के साथ तीसरा स्थान प्राप्त हुआ है।

जिला अस्पताल रुद्रपुर की प्रमुख चिकित्सक डॉक्टर अमिता उप्रेती और जिला अस्पताल की एएनएम दीपा जोशी ने बताया कि, “यह जिले के लिए बड़ी उपलब्धि है उन्होंने इसके लिए जिला अस्पताल की पूरी टीम का सहयोग बतादे हुए सभी को बधाई दी इसके साथ ही जिला अस्पताल आने वाले मरीजो और उनके तीमारदारों से भी स्वच्छता के प्रति जागरूक होने की अपील की।”

 

बिचौलियों का काम खत्म, फसलों की ऑनलाईन बिक्री से जुड़ेंगे किसान

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(रुद्रपुर), केंद्र सरकार द्वारा 2022 तक किसानों की आय को दुगनी करने के लिए इनाम योजना लांच कर किसानों को राहत दी है। इस योजना के बाद अब किसान को बिचोलियों के पास जाने की जरूरत नही है, साथ ही फसल के अच्छे दामो में बचे जाने पर किसानों की आय को दुगना किया जा सकता है।

किसानों को अब अपनी फसल को बेचने ओर अच्छे मुनाफे के लिए दर दर की ठोकरे नही खानी पड़ेंगी, केंद्र सरकार द्वारा चलाई जा रही इनाम योजना के तहत जल्द ही किसान राज्यस्तरीय अौर राष्ट्रस्तरीय लेबल पर अपनी फसल को आसानी से बेच सकता है। अब तक किसान अपनी फसलों को दलालों को बेचा करते थे जिसका फायदा किसानों को कम, बिचोलियों को ज्यादा होता था।

केंद्र सरकार द्वारा लांच की गई योजना के तहत किसानों को एक छोटी सी प्रक्रिया से गुजरना होगा और उसके बाद ऑन-लाइन उसकी फसलों की नीलामी की जायेगी, जिसका पैसा किसान के खाते में दिया जाएगा ।उत्तराखण्ड के दो जिलो हरिद्वार व उधमसिंह नगर की मंडियों में इस योजना को अमली जामा पहनाया गया है।

हरिद्वार, काशीपुर, गदरपुर, किच्छा ओर सितारगंज की मंडियों में इनाम योजना को लांच किया जा चुका है। अधिकारियों की माने तो अब तक किसानों को मिलने वाले दामो को बिचोलिये डकार जाते थे, लेकिन इनाम योजना के तहत किसानों की फसलों की गुणवत्ता तय कर उनकी फसलों के दामों को रखा जाता है इसके बाद ऑन-लाइन बोली लगा कर उसे बेचा जाता है, साथ ही बेची गयी फसल के दामो को किसानों के खातों में डालने का काम किया जाता है, ताकि बिचोलियों से किसानों को बचाया जा सके।

किच्छा मंडी में अब तक इनाम योजना के तहत 1289 किसानों को पंजीकृत किया गया है जब कि 227 व्यपारियो ओर 297 कमिशन एजेंटो ने अपना पंजीकरण कराया है। इनाम योजना के कर्मचारियों के अनुसार इस योजना के तहत किसानों को जोड़ने का काम लगातार चल रहा है, साथ ही किसानों को इस योजना के बारे में जागरूक किया जा रहा है, ताकि किसानों की फसलो के दाम उन्हें आसानी से प्राप्त हो सके।

देश की लगभग सात हजार मंडियों के पहले चरण में अब तक 585 मंडियों में 470 मंडियों को इनाम योजना के तहत ऑन लाइन किया जा चुका है। उत्तराखंड में 11 ओर मंडियों को फरवरी अंत तक ऑन लाइन करने की रूपरेखा तैयार की जा चुकी है। इस के साथ-साथ देश की सभी मंडियों को ऑन लाइन एक दूसरे को जोड़ने के लिए बड़े पैमाने में सरकार द्वारा काम किया जा रहा है ताकि ऑन लाइन किसान अपनी फसल का दाम गुणवत्ता के अनुसार प्राप्त कर सके।

कुछ अलग करने के जज्बे से बनी दुनिया की सबसे छोटी पेंसील

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हल्द्वानी, कुछ अलग कर गुजरने का जज्बा और बुलंद हौसलों से आर्टिस्ट प्रकाश उपाध्याय ने एक और कारनामा कर दिखाया है। उपाध्याय की विश्व की सबसे छोटी हस्त-निर्मित पेंसिल को असिस्ट वर्ल्‍ड रिकॉर्ड में दर्ज कर लिया गया है। जबकि इससे पहले भी उपाध्याय ने कुछ हटकर किया है तो उनको काफी ख्याती भी मिली है।

हल्द्वानी के डॉ. सुशीला तिवारी मेडिकल कॉलेज में बतौर आर्टिस्ट कार्यरत 45 वर्षीय प्रकाश उपाध्याय की लगन और मेहनत के साथ ही औरों से कुछ अलग करने की ललक ने उनकों प्रेरणा दी और उन्होने 0.5 गुणा 0.5 गुणा 5 मिमी साइज की एचबी पेंसिल तैयार की थी। पिछले साल इसे उन्होंने असिस्ट वर्ल्‍ड रिकॉडर्स रिसर्च फाउंडेशन को भेजा था। जिसे 2017-18 के रिकॉर्ड में दर्ज कर लिया गया है। फाउंडेशन ने उपाध्याय को सर्टिफिकेट और अवार्ड देकर सम्मानित किया है।
मूल रूप से अल्मोड़ा जिले के उपाध्याय का कहना है कि, “पुरस्कार भविष्य में कुछ और बेहतर करने की दिशा में प्रेरित करेगा। प्रकाश उपाध्याय के नाम विश्व की सबसे छोटी (3 गुणा 4 गुणा 4 मिमी) हस्त निर्मित पुस्तक लिखने का रिकॉर्ड इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज है। विश्व की सबसे छोटी हस्त निर्मित धार्मिक पुस्तक ‘हनुमान चालीसा’ (3 गुणा 4 गुणा 4 मिमी) यूनिक बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज है।” 

मुख्य सचिव ने केदारनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण कार्यों का लिया जायज़ा

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मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह ने केदारनाथ धाम पहुंचकर वहां चल रहे पुनर्निर्माण कार्यों का जायजा लिया। मुख्य सचिव ने चल रहे निर्माण कार्यों पर संतोष जताया, व लिंचैली तक पैदल चलकर मार्ग का स्थलीय निरीक्षण किया, साथ ही निर्देश दिए कि यात्रा शुरू होने से पूर्व निर्माण कार्य पूर्ण किए जाये, ताकि यात्रा के दौरान श्रद्वालुओं को किसी भी प्रकार की असुविधा का सामना न करना पडे।
केदारनाथ धाम में मुख्य सचिव ने मंदिर से संगम स्थल तक बन रहे नये मार्ग का निरीक्षण किया। उन्होंने अधीक्षण अभियंता लोनिवि को हिदायत दी कि इस मार्ग पर पत्थरों से किये जाने वाले कार्य समय से पूर्ण किये जाए। इसके लिए स्थानीय कारीगर या मजदूरों को भी इस कार्य में शामिल किया जाए, ताकि जल्द से जल्द रास्ता तैयार हो सके।
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सिंचाई विभाग के कार्यों के निरीक्षण के दौरान मुख्य सचिव ने विभागीय अभियंता को निर्देशित किया कि घाट निर्माण व बाढ सुरक्षा के कार्य को जल्द पूरा करने के लिए अधिक से अधिक मजदूरों को काम पर लगाया जाये, कहा कि बर्फवारी होने पर कार्य बाधित हो रहे हैं, ऐसे में साफ मौसम के दौरान अधिक से अधिक कार्य पूर्ण कर लिये जाय।
केदारनाथ मंदिर के पीछे किए जा रहे कार्यों का भी जायजा लिया व निम को तत्काल मंदिर के पीछे लैंडस्केपिंग का कार्य पूर्ण करने को कहा, “ब्रहम कमल और ब्लू पाॅपी की प्रजाति के पौधों का बगीचा तैयार किया जाय, जो श्रद्वालुओं के लिए आकर्षण का केन्द्र भी रहेगा।”  इसके साथ ही मुख्य सचिव ने एमआई-26 हेलीपैड से संगम तक पैदल मार्ग का निरीक्षण कर निम एवं लोनिवि के अधिकारियों को निर्देशित किया कि हर हाल में यात्रा शुरू होने से पूर्व मार्ग को तैयार कर लिया जाये।
उन्होंने जिलाधिकारी को निर्देशित किया कि तीर्थ पुरोहितों के घरों की मरम्मत आगामी माह मई तक पूर्ण करवाना सुनिश्चित करें। साथ ही तीर्थ पुरोहितों के जिन दो घरों के अग्र भाग का निर्माण पहाडी शैली के पत्थरों से किया जाना है, उस कार्य को भी अप्रैल माह तक पूर्ण कर लिया जाये।

जोशीमठ में कच्ची शराब बनाने के सामान के साथ पकड़ी गई महिलाऐं

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(गोपेश्वर) चमोली जिले के जोशीमठ कोतवाली पुलिस ने जोशीमठ क्षेत्र के झोपडी बाजार में छापामार कर अवैघ कच्ची शराब बनाने के उपकरणों के साथ 15 लीटर अवैध कच्ची शराब के साथ दो महिलाओं को गिरफ्तार किया है। साथ ही कच्ची शराब बनाने में प्रयुक्त होने वाले 500 लीटर लाहन को भी मौके पर ही नष्ट किया गया।

कोतवाली जोशीमठ से मिली जानकारी के अनुसार जोशीमठ कोतवाली पुलिस ने झोपडी बाजार कस्बे में छापा मारी कर अवैध कच्ची शराब बनाने की दो भट्टियों व अन्य उपकरणों तथा 15 लीटर कच्ची शराब के साथ दो महिलाओं को गिरफ्तार किया गया। 500 लीटर लाहन को भी मौके पर नष्ट किया गया। पकड़ी गई महिलाओं पर आबकारी अधिनियम के तहत मामला पंजीकृत किया गया है। 

आपदा के दर्द से आगे बढ़ ये युवा आबाद कर रहे हैं पहाड़ के घोस्ट विलेज

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उत्तराखंड युवाओं ने राज्य में पर्यटन को बढ़ाने और आमदनी के स्रोत बनाने के लिये होम-स्टे के मॉडल पर एक नायाब प्रयास किया है। हम बात कर रहे हैं “पहाड़ी हाउस होमस्टे” की जो उत्तराखंड में होमस्टे का पुराना नाम है। अगर आप अपने शहर की भागदौड़ की जिंदगी से थक चुके हैं और पहाड़ों की वादियों में खोना चाहते हैं तो पहाड़ी हाउस होमस्टे आपके लिए एक मुफीद डेस्टिनेशन है।

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इसकी सबसे खास बात है यह आपको हर वो अनुभव देगा जो अब तक शायद आप अपने मन में सोचते थे, जैसे कि पेड़ों पर चढ़ कर खुद फल तोड़ना, खेत से अपनी पसंद की सब्जी तोड़ना जो कि सौ प्रतिशत ऑर्गेनिक है। इसके अलावा जो लोग एडवेंचर में रुचि रखते हैं उनके लिए ट्रैकिंग और दूसरे लुभावने एक्टिविटी भी हैं।साल 2015 से शुरु हुए पहाड़ी होमस्टे को दो युवा अभय शर्मा और बिपेंद्र भंडारी मिलकर चला रहे हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि इनके होमस्टे में अबतक लगभग 1500-2000 लोगों ने स्टे किया है जो देश और दुनिया के कोने-कोने से आए हैं।

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पहाड़ी होमस्टे के बारे में न्यूजपोस्ट से बात करते हुए अभय शर्मा बताते हैं कि, ”साल 2013 में आई आपदा में बहुत से लोगों का नुकसान हुआ था और उसी वक्त हमारा राफ्टिंग का छोटा सा बिजनेस भी खत्म हो गया। लेकिन हार ना मानते हुए हम दोनों ने एक बार फिर शुरुआत करने की सोची और तब हमने पहाड़ी हाउस होमस्टे शुरु किया। जैसा कि नाम से पता चलता है पहाड़ी हाउस एक इको-फ्रेंडली होमस्टे है और इसकी खास बात ये है कि यह उन घरों से बनाया गया है जिसे छोड़ कर लोग पलायन कर चुके हैं। अभय बताते हैं कि हमने पुराने घरों को रिपेयरिंग करने के बाद उसको सभी सुविधाओं से लैस किया जिससे लोगों को स्टे में किसी भी तरह की कमी ना महसूस हो।”

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पहाड़ी होमस्टे के घरों की दीवारें कीचड़, गाय के गोबर और लकड़ियों से बनी हैं और इसको बनाने के पीछे सबसे बड़ा कारण था देवभूमि को एक अलग पहचान दिलाना जो पहाड़ी होमस्टे पिछले तीन सालों से कर रहा है। इस समय पहाड़ी होमस्टे तीन जगह कानाताल, ऋषिकेश और हाथीपांव में है जिसके माध्यम से क्षेत्रीय लोगों को भी रोज़गार के अवसर तो मिल ही रहे हैं साथ ही ऑर्गेनिक फार्मिंग को भी एक नई पहचान भी मिल रही है। पहाड़ी हाउस में आपको बहुत से नये आयाम मिलेगें जिनमे बर्ड वाचिंग, स्टार गेज़िंग और आसापास के इलाकों की लोकल कहानियां उन्ही लोगों की जुबानी सुनने को मिलेंगी।

तो अगर आप पहाड़ों की सर्द हवाओं को महसूस करना चाहते हैं और अपनी व्यस्त ज़िंदगी से कुछ पल सुकून के चाहते हैं तो पहाड़ी होमस्टे आपका बाहें खोले इंतजार कर रहा है।

जानिये कब हैं आपके लिये मानसिक रोगों के लिये मदद लेने का सही समय

हम अक्सर अपने शरीर के उन संकेतोंं को नज़रअंदाज़ कर देते हैं जो हमें बताते हैं कि हमे किसी तरह की मानसिक परेशानी हो रही है। ज्यादातर लोगों के लिये मानसिक बीमारियों के बारे में बात करना आज भी एक सामाजिक छुआछूत का कारण है। इस बीमारी के बारे में बात करने में आज भी शर्म महसूस की जाती है। एक मनौवैज्ञानिक के तौर पर मुझे ऐसे बहुत लोग मिलते हैं जिन्हें अपनी मानसिक बीमारी को पहचानने में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। इसका एक बड़ा कारण है लोगों के बीच इस विषय को लेकर जागरूकता की कमी।

इसलिये सबसे ज़रूरी है ये जानना कि वो कौन से संकेत हैं जिनसे आप मानसिक बीमारियों की पहचान कर सकते हैं।

  • मूड में बदलाव आना। अचानक से उदास या उत्तेजित हो जाना। इस तरह का लक्षण तीन से चार दिन तक रहते हैं और आम दिनों में होने वाले तनाव से अलग होते हैं।
  • लगातार तनाव देने वाले हालात जो किसी भी इंसान के लिये आम दिनों में काम करने में परेशानी पैदा करें।
  • जिन चीज़ों से आपको पहले आनंद आता था वो अब न करने की इच्छा होना।
  • लोगों से पहले की तरह घुलने मिलने की इच्छा न होना।
  • बिना किसी तरह के शारीरिक परिश्रम के जबरदस्त थकावट महसूस करना।
  • छोटी छोटी बातों पर चिड़चिड़ापन और लोगों पर गुस्सा करना।
  • भूख में बदलाव। ये बदलाव कम भूख लगने से लेकर आम दिनों से ज्यादा भूख लगने तक हो सकते हैं।
  • दिमाग का शांत न रहना और लगातार दिमाग में विचार आते रहना। ये हर बार नये विचार भी हो सकते हैं और बार बार पुरानी बातें भी ख्याल में आ सकती हैं।
  • अपने बारे में नकारत्मक विचार आना जिससे हर काम में हार मानने जैसा महसूस हो।
  • काम या निजी जीवन से जुड़ी ऐसी बातें या समस्याऐं जिनके बारे आप न तो समाधान ढ़ूंढ पा रहे हों और न ही किसी से बात कर पा रहे हों।

ऊपर दिये गये संकेत आपको इशारा करते हैं कि आपको किसी पेशेवर मनोवैज्ञानिक से मदद लेने की ज़रूरत है। ये ज़रूरी नहीं कि आपको किसी तरह की कोई मानसिक बीमारी हो पर शुरुआती दौर में इन लक्षणों पर काबू पाने से आप आगे आने वाले दिनों में इन लक्षणों के बिगड़ने से होने वाली मुश्किलों से निजात पा सकते हैं।

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ये जानना भी बहुत ज़रूरी है कि आपको किस तरह के एक्सपर्ट की ज़रूरत है। यानि आपको मनोवैज्ञानिक की ज़रूरत है या मनोचिकत्सक की। मनोचिकित्सकों के पास खास मेडिकल अध्यन्न की डिग्री होती है जिसके चलते इलाज में वो दवाईयों के प्रयोग से आपकी मनोदशा को ठहराव की तरफ लाने में मदद करते हैं। वहीं मनोवैज्ञानिक उन्ही लक्षणों के इलाज के लिये बिना दवाईयों के ऐसी तकनीकों का प्रयोग करते हैं जो कि सालों के शोध के चलते इस तरह की बीमारियों के इलाज के लिये सही पाई गई हैं।इन दोनों ही तरह के इलाजों का अपना महत्व है और इनमेंं से कोई दूसरे का विकल्प नही हो सकता। इन दोनों में से किसके पास आपके लक्षणों का सही इलाज होगा इसका फैसला अगर आप नहीं कर पा रहे हैं तो कोई भी मनोवैज्ञानिक या मनोचिकित्सक सही दिशा में जाने में आपकी मदद कर सकता है।

विभिन्न प्रकार के मनोवैज्ञानिक अपने योग्यता और डिग्री के आधार पर आपको मदद कर सकते हैं। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि आप एक मानसिक स्वास्थ्य के लिये किसी पेशेवर से सहायता प्राप्त करें। एक बार आपको पता है कि आपको मदद की ज़रूरत है तो, किसी भी मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ से मिलें और वो आपकी मदद की प्रक्रिया को सही तरीके से आगे बढ़ा सकता है।आपकी शारीरिक और मानसिक सेहत जीवन का पूरी तरह से आनंद लेने के लिये बहुत ज़रूरी है। इसमें अपनी मानसिक सेहत का ख्याल रखना बेहद ज़रूरी है। इसलिये अपने लक्षणों के बिगड़ने का इंतज़ार न करें और जल्द से जल्द एक सेहत से भरे जीवन की तरफ कदम बढ़ायें।

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(डॉ कामना छिब्बर एक मनोचिकित्सक हैं और फोरटिस हेल्थकेयर के मनोरोग विभाग की निदेशक हैं। डॉ छिब्बर पिछले दस सालों से मनोरोग के क्षेत्र में काम कर रही हैं। इनसे संपर्क करने के लिये [email protected] पर लिखें )

अवैध खनन पर मुख्यमंत्री की सख्ती कितना रंग ला सकेगी?

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त्रिवेंद्र सिंह रावत ने प्रदेश में अवैध खनन को रोकने के लिये अधिकारियों शनिवार को फिर कमर कसकर काम करने के लिये कहा। उन्होंने इसके लिये जिलाधिकारी, खनन विभाग व परिवहन विभाग को आपसी तालमेल बनाकर काम करने के आदेश दिये। अवैध खनन का कारोबार प्रदेश में बन्द हो इसकी सीधी जिम्मेदारी सीएम ने अधिकारियों पर डाली।

शनिवार को सचिवालय में खनन से सम्बंधित बैठक में मुख्यमंत्री ने निर्देश दिये कि

  • खनन से सम्बंधित लाॅटो की ई-टेन्डरिंग में शीघ्रता की जाए। इनमें सभी नये लाॅटो को सम्मिलित किया जाए।
  • जिन क्षेत्रों में जीएमवीएन, केएमवीएन व वन निगम द्वारा खनन की कार्यवाही करने में असमर्थता जतायी जा रही है, उन्हें भी ई-टेन्डरिंग की प्रक्रिया में शामिल किया जाए।
  • मच्छली तालाबों के निरीक्षण के साथ ही तालाबों का पिछले 5 साल का विवरण तैयार किया जाये ताकि यह पता चस सके कि इन तालाबों में कितना मच्छली पालन हुआ। ऐसे तालाबों के आस-पास जमा शील्ड को भी ई-टेन्डरिंग से ही निस्तारण किया जाये। 
  • जमीन समतलीकरण के नाम पर किये जा रहे अवैध खनन पर भी नजर रखी जाए तथा इसमें भी राॅयल्टी की व्यवस्था सुनिश्चित की जाए।

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मुख्यमंत्री ने प्रदेश के विभिन्न इलाकों में चल रहे स्टोन क्रशर की भी माॅनिटरिंग करने को कहा।

  • नदियों में 500 मीटर डाउनस्ट्रीम में कार्य शुरू करने की प्रक्रिया जल्दी शुरू की जाये। 
  • जो पुल अथवा झूला पुल हार्डराॅक पर नदी की सतह से ऊपर बने है, उनके दोनो तरफ 1 कि.मी. में जमे शील्ड हटाने के लिये अलग से कोई रास्ता निकाला जाए। 
  • प्रदेश में राष्ट्रीय राजमार्गों व आॅलवेदर रोड के लिये निर्माण सामग्री की उपलब्धता सुनिश्चित हो इसका भी ध्यान रखा जाए, ताकि निर्माण कार्य बाधित न हों। 

गौरतलब है कि समय समय पर शासन के स्तर से अवैध खनन को रोकने के लिये आदेश और दिशानिर्देश तो जारी होते हैं लेकिन इसे विडंबना ही कहेंगे कि फिर भी राज्य के अलग एलग हिस्सों से अवैध खनन की खबरें आना बंद नहीं हो रही हैं। देखना ये होगा कि उत्तराखंड में काली कमाई का सबसे बड़ा ज़रिया बन चुके अवैध खनन पर सरकार और प्रशासन की कथनी और करनी का ये फर्क कब खत्म होगा।