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घर में लगी आग,अंदर फंसे 3 व्यक्तियों को सकुशल निकाला

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पुलिस कंट्रोल रूम से सूचना प्राप्त हुई कि थाना पटेल नगर में संजय  कॉलोनी में एक घर में आग लग गई है। उक्त सूचना पर थाना हाजा से पर्याप्त पुलिस बल मौके पर रवाना किया गया तथा मौके पर फायर सर्विस की गाड़ी बुलाई गई।

मौके पर पुलिस बल व फायर सर्विस द्वारा घर में लगी आग बुझाते हुए, घर के अंदर फंसे 3 व्यक्तियों को सकुशल निकालकर उपचार हेतु अस्पताल भेजा गया।

आग लगने के संबंध में गया था कि मकान मालिक श्री सुखदेव सिंह पुत्र अजीत सिंह निवासी संजय कॉलोनी पटेल नगर का घर के पीछे भैंसों का तबेला है तथा किचन के बगल में भूसा स्टोर  बना रखा है । किचन में गैस रिसाव होने कारण आग भूसे में लग गई थी जिस कारण आज पूरे घर में फैल गई थी ।

चाइल्ड हेल्पलाइन सेवा की हुई बैठक

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गोपेश्वर। चमोली जिले की हिमाद समिति के तत्वावधान में चाइल्ड हेल्पलाइन सेवा 1098 की बैठक सम्पन्न हुई, जिसमें समुदाय में चाइल्ड हेल्पलाइन सेवा 1098 के बारे में लोगों को अधिक से अधिक जानकारी उपलब्ध करवाने के साथ ही बच्चों के स्वास्थ्य पर विपरित प्रभाव डालने वाले मादक पदार्थों की बिक्री पर प्रतिबंध लगवाने के लिए सरकार से मांग करने की बात कही गई।

बैठक में सिगरेट और तंबाकू उत्पाद के व्यापार एवं उत्पादों का प्रदर्शन व 18 वर्ष से कम आयु वर्ग के बच्चों को मादक द्रव्य या पदार्थ बेचना व मंगवाने के प्रति लोगों को जागरूक किये जाने की बात कही गई। बैठक में वक्ताओं ने कहा कि बच्चों की सुरक्षा एवं देखभाल प्रत्येक व्यक्ति की जिम्मेदारी है और इसके लिए सभी के द्वारा सामूहिक प्रयास किये जाने अति आवश्यक है। बैठक के बाद नगर क्षेत्र के विभिन्न हिस्सों में चाइल्ड हेल्पलाइन के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए रैली भी निकाली गई। बैठक में हिमाद के उमाशंकर बिष्ट, चाइल्ड हेल्पलाइन की प्रभा रावत, नीरज नेगी, दीपक रावत, विक्रम रावत, सुभाष, भागीरथी आदि ने अपने विचार रखे। 

छात्रों ने किया चक्का जाम, सड़क पर टायर जलाकर रोके वाहन

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गोपेश्वर। चमोली जिले के जोशीमठ महाविद्यालय के छात्रों द्वारा प्रवक्ताओं की मांग को लेकर किया जा रहा आंदोलन उग्र रूप लेता जा रहा है। शुक्रवार को छात्रों ने नटराज चैक पर चक्का जाम किया और टायरों को जलाकर सड़क के बीच में बैठकर सरकार के विरोध में नारेबाजी करते रहे।
महाविद्यालय जोशीमठ के छात्रों द्वारा महाविद्यालय में प्रवक्ताओं की मांग को लेकर बीते मंगलवार से महाविद्यालय पर तालाबंदी कर हड़ताल की जा रही है। शुक्रवार को छात्रों ने महाविद्यालय से जुलूस निकाल पर नटराज चैक पर पहुंचे जहां पर वाहनों के पुराने टायर एकत्र कर सड़क पर आग लगा दी और स्वयं भी सड़क पर बैठकर वाहनों को आने-जाने नहीं दिया। जिससे कि बद्रीनाथ धाम को जाने वाले व आने वाले यात्रा वाहनों को भी भारी परेशानियों का सामना करना पड़ा बाद में मौके पर पहुंची पुलिस टीम ने किसी तरह छात्रों को मनाकर जाम खोला।
छात्र संघ अध्यक्ष राहुल पंत का कहना है कि महाविद्यालय में प्रवक्ताओं के अभाव में पठन-पाठन चैपट होता जा रहा है। उन्होंने कहा कि यदि सरकार प्रवक्ता नहीं भेज सकती है तो महाविद्यालय को चलाने का क्या औचित्य। यदि सरकार ने शीघ्र ही उनकी मांगों का समाधान नहीं किया तो आंदोलन को और अधिक उग्र रूप दिया जाएगा। प्रदर्शन करने वालों में प्रेरणाा सकलानी, शिवानी शाह, आरती कवांण, प्रियंका, सोनी, जयदीप रावत, योगेंद्र पंवार, महिला भट्ट, लक्ष्मण बुटोला, दर्शन रावत, अजीत कुंवर आदि शामिल रहे।

पलायन एक चिंतन: भराड्सर ताल यात्रा जारी….

दिनांक-11-10-2017

जंगल की पहली बेहद सर्द और खामोश इस रात में स्लीपिंग बैग में खुद को एडजस्टमेंट करना थोड़ा मुश्किल लगा लेकिन थकान से चूर शरीर को मीठी नींद की तलब ने आखिर अपने आगोश में सुला ही दिया।

बगल के टेंट में काबिज सहयात्री मुकेश बहुगुणा, अरविंद धस्माना, दलबीर रावत की आपसी बातचीत के शौर से सुबह जल्दी नींद टूटी। बदन का सार दर्द लंबी नींद से गायब हो चुका था। बाहर निकल कर देखा तो पाला जमने से बर्फ की एक पतली चादर टैंट सहित पूरे जंगल की जमीन पर फ़ैल रखी थी।सुबह की काली चाय के मीठे घूट के बाद टायलेट पेपर लेकर दायें हाथ की ढ़लान पर एक पेड़ की आड़ में मैं निर्वित हो लिया।

वापस लौट फटाफट सामान को समेट खिचड़ी का नाश्ता कर तैयार हुऐ तो ठाकुर साहब का फरमान आया की ऊपर देववासा बुग्याल में सिर्फ घास के मैदान होने की वजह से आज चार में से दो खच्चरों पर यहाँ से रात का भोजन पकाने के लिये सूखी लकड़ी जायेगी। अतः सभी साथी अपना-अपना स्लीपिंग बैग स्वयं ले जायेंगे। टीम लीडर के प्रस्ताव का अनुसरण करते हुऐ स्लीपिंग बैग थोड़ा सुविधाजनक बनाते हुऐ उसे दोनों कंधों पर आरामदायक स्थिति में रख सामने खड़े पहाड़ पर हम सब ने चढाई शुरू कर दी। चलने से पहले घर से साथ लाये भूने हुऐ चनों की एक खेप और खट्टी-मीठी टाफीयों को जेबों में ठूंस कर मैं निकल पड़ा।

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चलते ही खड़ी चढ़ाई ने दम फुला दिया इसलिए चाल को धीमा और सांसों को संयमित करने के लिये मुंह में एक चटपटी टाफी डाल दी जिससे हम मुंह से कम सांस ले सके और चलते हुऐ हांफे नहीं। किसी तरह ऊपर दिख रही चोटी पर पंहुचो तो फिर दूसरी चढ़ाई नजर आ जाती फिर थोड़ा रूकते,सुस्ताते और इसी परिवेश के स्थानीय गीतों के दो मीठे बोल,

“रूपिण-सुपिण नदी, बौहदी आपड़े धारे
“घुमी आंऊदी डांडी कांठियों, बौहदी आपड़े धारे”

..को ऊंचे स्वर में गाते हुऐ फिर आगे बढ़ जाते। जेबों में ठूसे चनों की जुगाली मुंह जरूर सूखा देती लेकिन ऊर्जा की प्रयाप्त आपूर्ति के साथ भूख का एहसास नहीं होने देती।

चलते-चलते आखिर हम ट्रीलाइन की सीमा पार कर काफ़ी ऊंचाई के ढ़ालदार बुग्यालों की छोटी-छोटी पहाड़ीयों की धार पर ऊंची-नीची खूबसूरत पत्थरीली पगडंडियों पर चलने लगे। हमारी दांयी तरफ हिमालय की तलहटी पर हमारे सफर को बंया करता सुपिण नदी के किनारे तक का लिवाड़ी, राला, कासला, रैक्चा गाँव तक का पिछे छूट चुक खूबसूरत रास्ता था तो हमारी बांयी तरफ रूपिण नदी के तट पर उत्तराखंड और हिमांचल सिमाओं पर बसे भीतरी, मसरी, डोडरा-कंवार के गांवों की घाटी और उसके ऊपर चांगशील बुग्याल का विहंग्म दृश्य हिमालय दिग्दर्शन के उचित प्लेटफार्म का एहसास करा रहा था। हमारे साथ-साथ स्थानीय ग्रामीणों की भेड़-बकरीयां, घोड़े-खच्चर भी इस मखमली घास में आये-बगाये चरते हुऐ नजर आ जाते। छोटे-छोटे पानी के अधभरे और सूखे ताल काफी समय से यहां बरसात ना होने का संकेत दे रहे थे।

तकरीबन 8 बजे सुबह शूरू हुऐ इस बेहद शांत और धीमे सफर में लगभग 10 बजे तक हम देववासा पंहुच गये। जहाँ पहले से ही कुछ सैलानीयों ने यहाँ अपना तंबू गाड़े हुऐ थे। जब हमने पड़ताल की तो पता चला ये वुडस्टाक स्कूल मंसूरी के छात्र-छात्राओं का छोटा से ग्रुप है जो पिछली रात को ही अपने विदेशी अध्यापकों के साथ भराड़सर ताल की यात्रा में दूसरी तरफ रूपीण नदी घाटी से यहाँ पंहुचे हैं। जिनमें से कुछ भराड़सर ताल के लिये सुबह ही निकल चुके थे। इनके कुछ अन्य साथी अलग-अलग ग्रुप बना कर सांकरी से हरकीदून और केदारकांठा की तरफ भी गये हैं।

हमारे स्थानीय साथी ने इनके ग्रुप के स्थानीय गाइड और पोटरों से परिचित थे तो चाय-पानी का तत्काल प्रबंधन हो गया। आज चलने के लिहाज से हमारे ग्रुप की महिला सदस्य तनु बेहतरीन प्रदर्शन के साथ स्थानीय साथियों और रतन असवाल,अरविंद धस्माना, मनमोहन असवाल,सौरभ असवाल, गणेश काला के समकक्ष पहले पायदान पर रह। मध्यम चाल के मुकेश बहुगुणा, दलबीर रावत, नेत्रपाल यादव, अजय कुकरेती आज थोड़ा धीमी चाल से पिछे रहे। मैं आज सबसे अलग और अकेला कुछ अपनी ही सोच में डूबा हुआ संयमित चाल से मध्यस्थता बनाये चलता रहा।

थोड़ा आराम के उपरांत आगे के कठिन रास्ते बाबत तनु को यहीं रूकने हिदायत देते हुऐ अपना सारा सामान देववासा में छोड़ सिर्फ रैनकोट और कैमरा लेकर हम सभी साथी फटाफट भराड़सर के लिये चल पड़े। आगे कितना चलना है इसका सटीक अंदाजा किसी को भी नहीं था। हमारे स्थानीय साथी जिसे एक किलोमीटर का रास्ता बताते वह असल में तीन किलोमीटर निकलता था। इसलिए सब परवाह छोड़ हम तेजी से आगे बढ़ने लगे।

लगभग एक किलोमीटर की विकट खड़ी चढ़ाई चढ़ने के बाद मेरी सांस फूलने लगी मेरी हालत देख ठाकुर साहब ने सौरभ से पूछा कि क्या वो बैग से आक्सीजन सिलेंडर लाया है जो हमनें इमरजेन्सी सेवा के लिये रखा था तो सौरभ ने असहमति में सिर हिला दिया। मैने मन ही मन वापस लौटने का फैसला करने लगा फिर भी मैं कुछ दूर तक और चलता रहा। अंततः मैंने वापस लौटने का फैसला करते हुऐ लौट जाना ही ठीक समझा। रास्ते में अजय कुकरेती और मुकेश बहुगुणा को जेब में रखा बिस्कुट का पैकेट देते हुऐ मैं तेजी से वापस बेस कैंप देववास में लौट आया।

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देववासा में नेत्रपाल यादव और तनु जोशी वुडस्टाक स्कूल के किचन टैंट में उनके स्थानीय किचन स्टाफ के साथ बैठकर अपने टैंट लगने का इंतजार कर रहे थे। मेरे आने पर उन्होंने मेरे लौटने का कारण पूछा तो मैंने अपनी वस्तु स्थिति से उन्हें अवगत कराया। मेरे फैसले का समर्थन करते हुऐ नेत्रपाल यादव ने मुझे इशारे से भराड़सर की चोटी दिखाई जहाँ घने बादलों को डेरा था। उन्होंने हिमालय पर अपनी समझ और अनुभवों को साझा करते हुऐ कहा की वहां जाने के लिये अब मौसम अनुकूल नहीं है इसलिए मैंने वापस लौट कर समझदारी का काम किया है।

खैर वुडस्टाक स्कूल के इस कैंप के किचन में हमें अदरक और काली मिर्च की बेहद शानदारी दूध वाली चाय नसीब हुई और थोड़ी देर के बाद बेहतरीन मटर-पुलाव भी परोसा गया। सम्मानजनक इस मेहमान नवाजी की समय सीमा और सामर्थ्य के अनरूप हम यथासमय अपने टैंटों में शिफ्ट हो गये। आज हमारे टैंट थोड़ा ज्यादा ढ़लान पर लगाये गये थे जो थोड़ा असहज महसूस हो रहे थे। थोड़ा आराम के बाद इस खूबसूरत प्राकृतिक छटा में हम एक दूसरे की फोटो खिंचने में मशगूल हो गये। फिर चूल्हा जला कर शाम के खाने की तैयारी में अपने गाइड सुरेन्द्र, पोटर जुनैल सिंह और खच्चर वाले किर्तम मामटी के साथ गप्पें मारने लगे। जिसमें किर्तम मामटी ने अपनी पैदल यात्रा के विभिन्न पहलुओं को साझा किया जिसमें उसने बताया की वो एक बार हर्षिल से पिछे बकरीयों के साथ चीनी सेना के डेरे तक चला गया था। जहाँ चीनी सैनिकों ने उसे खाना खिलाकर ससम्मान वापस भेज दिया था। तब मुझे लगा की हिमालय घूमने का उसका अनुभव हम सबसे कितना विस्तृत है काश ये सब वो लिख पाता तो दुनिया का महान लेखक बन जाता।

धीरे-धीरे शाम ढ़ली तो रतन भाई और बाकी टीम सदस्य लौटे तो पता चला वे बेहद खराब मौसम और ओलावृष्टी तथा गहरे कोहरे के कारण आगे का रास्ता भटक गये और भराड्सर के बेहद नजदीक होने के बावजूद वापस लौट आये। लेकिन हमारे स्थानीय साथीयों के साथ मनमोहन असवाल और अरविंद धस्माना भराड्सर तक पंहुच गये थे। जिनके वापस लौटने में अभी काफी समय बाकी था। अजय कुकरेती ने बताया की वे सबसे काफी पिछे छूट कर रास्ता भटक गये थे वो तो भला हो कोई अंग्रेज उनको मिल गये जो शायद वुडस्टाक स्कूल के टीचर थे जिन्होंने उन्हें वापस सही रास्ते तक ले आया। उन्होंने अजय कुकरेती को बताया की सुबह 6 बजे तक भराड़सर के लिये निकलने का सबसे बेहतरीन टाइम है तभी आप यथा समय वापस बेस कैंप देववासा तक लौट सकते हो।

थोड़ी देर बाद शौरगुल के साथ हमारे बाक़ी साथी प्रहलाद रावत ,मनमोहन असवाल, अरविंद धस्माना,राजपाल रावत,जयमोहन और रोजी राणा लौट आये जिन्होंने भराड्सर ताल की यात्रा पूरी करी थी वे वहां भराड्सर देवता की पूजा कर वहां से झील का जल और प्रसाद भी लाये थे। हमें अब संतोष था की हमारे साथियों ने तो इस यात्रा को पूरा किया तथा उन्होंने पलायन एक चिंतन के बैनर के साथ वहां के काफी खूबसूरत फोटो भी खिंच लाये थे। उनके हाथों में ब्रह्मकमल और भेड़गद्दा के दुर्लभ फूल भी थे जो इस उच्च हिमालय क्षेत्र का अनमोल उपहार था। इस पूरी यात्रा से यह अहसास हुआ की हिमालय के अपने नियम कानून है यहाँ कोई भी जब मर्जी मुंह उठाकर नहीं जा सकता। हिमालय ही यहाँ आने का मौसम और समय तय करता है और एक निश्चित अवधि के बाद आपको इस प्राकृतिक रूप से प्रतिबंधित क्षेत्र से वापस लौटना होता है। यह हिमालय का अपना कानून है।

आज की रात सभी के लिये दाल-भात बना था। जिसे खाकर हम सब थोड़ी देर आग के पास बैठ गये। ढलानदार टैंट में सभी असहज महसूस करने लगे खासकर नेत्रपाल यादव लेटते ही निचे फिसल जाते तो उनका प्रचलित डायलाग “पूरा नरक कर रखा है” सुनकर मेरे हंसी नहीं रूकती। तनु भी अपने टेंट में काफी असहज थी तो उनका छोटा सा टेंट उखाड़ कर पुनः उपयुक्त और सपाट स्थान पर लगा दिया गया।

आज की गहरी थकान और बेहद सर्द रात के आगोश में कल के सफर की नयी शुरुआत की उत्सुकता को लेकर हम जैसे-तैसे सो गये।

मानव तस्करी का गढ़ बना उत्तराखंड

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देहरादून। उत्तराखंड मानव तस्करी का गढ़ बनता जा रहा है, इसका कारण अन्तर्राष्ट्रीय तथा अन्तर्राज्यीय सीमाओं से जुड़ा होना है। मानव तस्करी का शिकार कमजोर वर्ग तथा आर्थिक रूप से विपन्न क्षेत्रों की बालिकाएं हो रही हैं, जहां थोड़ा बहुत खर्च करके मानव तस्कर इन परिवारों को अपना शिकार बना रहे हैं और बालिकाओं को मानव तस्करी का माध्यम।

बीते दिनों किडनी निकालने का एक मुद्दा जोर-शोर से उठा था। उत्तरांचल डेंटल कॉलेज लालतप्पड़ के साथ-साथ उत्तराखंड सरकार की एक मंत्री का पति पर भी इस तरह के गंभीर आरोप लगा है। जिसकी सफाई प्रदेश सरकार की राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार रेखा आर्या ने अपने आवास पर पत्रकारों को दी लेकिन यह इस बात का प्रतीक है कि कहीं न कहीं किडनी कांड से उनके दामन के दाग नहीं धुल पाए हैं।
ठीक यही स्थिति उत्तरांचल डेंटल मेडिकल कॉलेज की भी रही है, जहां डॉ अक्षत के खाते में जुलाई में लाखों की राशि जमा हुई। इसी प्रकार डॉ अक्षत, संतोष राऊत के साथ-साथ बिचौलिए का काम करने वाले राजीव चौधरी और उनकी पत्नी अनुपमा के खाते में भी राशियां जमा हुई हैं, जो पुलिस ने छानबीन के दौरान निकाला है। यह मानव अंगों के तस्करी से जुड़ा मामला है, यह मामला और गंभीर तब हो जाता है कि जब मंत्री के परिजनों पर आरोप लगता है।
इसी प्रकार प्रत्यक्ष मानव तस्करी की लगभग चार से पांच हजार की घटनाएं उत्तराखंड में हो चुकी हैं, जिनमें अधिकांश मामलों में लड़कियां ही गायब हुई हैं। इस तरह के अपराधों में उत्तरकाशी जिले के बड़कोट थाना क्षेत्र से दो नाबालिग बच्चियां गायब हो गई थी। निर्धन परिवार की इन मासूम बच्चियों को क्षेत्र में मानव तस्करी का गिरोह चलाने वाली शीला नामक महिला ने हरियाणा के झज्जर में बेच दिया था, जहां इन्हें कई दिन वहशी दरिंदो ने अपना हवस का शिकार बनाया। पुलिस के अथक परिश्रम के बाद आखिकार सफलता मिली और दोनों बहनों को इस गिरोह के चंगुल से मुक्त कराया गया। आरोपियों के विरुद्ध संगीन धाराओं में मुकदमा दर्ज किया गया। तत्कालीन थानाध्यक्ष संतोष कुंवर और उनके साथियों को जिन्होंने इन बच्चियों को बचाया।
उत्तराखंड का यह क्षेत्र लंबे समय से मानव तस्करी के लिए कुख्यात है। इस क्षेत्र में एक पूरा गिरोह इस घिनौने काम को अंजाम देता है जो इन निर्धन बच्चियों के परिजनों को पैसा का लालच दे मात्र चंद हजार रुपये में इन बच्चियों को जिस्म की मंडी में बेच देते हैं, जहां से आज तक ही शायद कोई बच्ची वापस लौटी हो। आंकड़ा 100 से 200 नहीं अपितु 4000 से 5000 उत्तराखंड से लापता बच्चियों का है। पिछले दिनों मंत्री रेखा आर्या ने भी मानव तस्करी पर चिंता व्यक्त की थी तथा विशेष कदम उठाए जाने का आग्रह किया था लेकिन उन्हीं को पति गिरधारी लाल साहू पर उनके ही कर्मचारी नरेश चन्द्र द्वारा किडनी निकलवाने का आरोप लगाया है।
आरोप के अनुसार मंत्री रेखा आर्य के पति गिरधारी लाल साहू के घर पर काम करने वाले नौकर नरेशचन्द्र की पत्नी वैजंती की दोनों किडनियां खराब हो गई थी। गिरधारी लाल ने उसका इलाज पहले दिल्ली और बाद में श्रीलंका के एक अस्पताल में करवाया। पत्नी की देखरेख के लिए श्रीलंका गए नरेशचंद्र का आरोप है कि खून जांच के बहाने उसे बेहोश कर उसकी किडनी निकालकर उसकी पत्नी को ट्रांसप्लांट कर दी गई। अब पीड़ित की शिकायत के बाद उत्तराखंड पुलिस ने मामले की जांच शुरू कर दी है। जांच के बाद साहू के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया जाएगा। पति के इस काम से मंत्री रेखा आर्य का कोई लेना-देना नहीं है लेकिन विपक्ष उन्हें भी घेरने की तैयारी में जुटा है।
खबरों के अनुसार इसमें भाजपा के कई नेता भी चुपके-चुपके रेखा आर्य की घेराबंदी में जुट गए हैं। हालांकि रेखा आर्य पहले ही कह चुकी हैं कि मामले में जो भी दोषी हो उसके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए। राज्य की मंत्री से जुड़े इस मामले की जानकारी केंद्र को भी मिल चुकी है। केंद्र सरकार का रुख मानव अंग तस्करी के मामलों में अब तक बेहद कड़ा रहा है। ऐसे में मंत्री के पति पर आरोप लगना काफी गंभीर है। 

मार्च में होगीं सीबीएसई की बोर्ड परीक्षाएं

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हल्द्वानी – सीबीएसई ने वर्ष 2018 में होने वाली 10वीं और 12वीं की परीक्षाएं फरवरी में कराने का इरादा टाल दिया गया है। फिलहाल पिछले सत्र के परीक्षा कार्यक्रम के तहत इस बार भी मार्च में ही परीक्षाएं कराई जाएंगी। बोर्ड के अधिकारियों का तर्क है कि जल्दबाजी में मूल्यांकन पर असर न पड़े, इसलिए यह फैसला दिया गया है। अधिकारियों के अनुसार नैनीताल जिले में करीब 20 हजार बच्चे बोर्ड परीक्षा में शामिल होंगे।

सीबीएसई ने मानव संसाधन विकास मंत्रालय को पत्र लिखा था कि बोर्ड परीक्षाएं फरवरी में ही कराई जाए, जिससे जल्दी रिजल्ट आ जाए और छात्र-छात्राएं विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में शामिल हो सकें। ऐसे में अंदाजा लगाया जा रहा था कि इस बार बोर्ड परीक्षाएं फरवरी में कराई जा सकती हैं। सूत्रों के अनुसार कई दौर की मीटिंग के बाद बोर्ड ने अपना फैसला बदल दिया है। हालांकि परीक्षाएं जल्दी पूरी करवाने के लिए दो पालियों में परीक्षाएं कराने का फैसला अमल में लाया जा सकता है।

मंजू जोशी, को-ऑर्डिनेटर, सीबीएसई ने बताया कि पिछले तीन-चार साल से सीबीएसई में दसवीं का बोर्ड समाप्त कर दिया गया था। इस बार फिर से 10वीं के लिए बोर्ड अनिवार्य कर दिया गया है। ऐसे में बोर्ड में छात्र संख्या बढ़ेगी। उसकी तैयारी के लिए भी सीबीएसई को समय चाहिए। इसकी वजह से बोर्ड परीक्षा मार्च में कराने पर सहमति बनी है।

संदिग्ध परिस्थितियों में वन दारोगा ने की खुदकुशी

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देहरादून के दौड़वाला जंगल में एक वन दारोगा ने संदिग्ध परिस्थितियों में फांसी लगाकर खुदकुशी कर ली। वन दारोगा गब्बर सिंह रावत(58) पुत्र बचन सिंह रावत निवासी नेहरू कॉलोनी बताया गया। खुदकुशी का कारण अभी तक पता नहीं चला है। पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया है।
पुलिस को शुक्रवार को सूचना मिली की लच्छीवाला रेंज के वन दारोगा ने दौड़वाला के जंगल में करीब दो किलोमीटर अंदर जाकर नायलॉन की रस्सी का फंदा बनाकर पेड़ से लटककर खुदकुशी कर ली है। सूचना पर मृतक के परिजनों तथा वन विभाग के कर्मियों के साथ स्थानीय पुलिस ने जंगल के अंदर जाकर मृतक का पंचायत नामा भरवाकर मृतक के शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया है।
पुलिस के मुताबिक, गुरुवार की दोपहर में दवा लाने के लिए अपनी बाइक से घर से निकला था लेकिन जब वह वापस नहीं आया तो उसके परिजनों और स्टाफ वालों ने उसकी खोजबीन की। इस दौरान मृतक की दौड़वाला दूधली के पास बाइक देखी गई। प्रथम दृष्टया मृतक द्वारा खुदकुशी किया माना जाना रहा है लेकिन कारणों का अभी पता नहीं चला है। इस संबंध में पुलिस मृतक के परिजनों तथा स्टाफ वालों से पूछताछ कर रही है।

पद्मावती थ्री-डी में भी होगी रिलीज

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चर्चा गरम है कि संजय लीला भंसाली की फिल्म ‘पद्मावती’ को थ्री डी फारमेट में रिलीज करने की योजना पर काम किया जा रहा है। कहा जा रहा है कि फिल्म के ट्रेलर को मिले शानदार रेस्पांस के बाद टीम ने फिल्म को थ्री डी फारमेट में भी रिलीज करने की योजना पर काम करना शुरु कर दिया है, जो तेजी से आगे बढ़ रहा है।

170 करोड़ से ज्यादा के बजट वाली इस फिल्म का थ्री डी के बाद बजट में 20 करोड़ की वृद्धि हो जाएगी, ऐसा माना जा रहा है। फिल्म की टीम से जुड़े सूत्रों का दावा है कि देश भर के 500 सिनेमाघरों में थ्री डी वर्शन को रिलीज किया जाएगा। भंसाली की ये पहली फिल्म है, जिसे थ्री डी में रिलीज किया जा रहा है।

1 दिसंबर को रिलीज होने जा रही इस फिल्म को लेकर विवाद भी कम नहीं हैं। अभी भी फिल्म के रिलीज के वक्त के करीब आने के साथ इसके विरोध के सुर भी तेजी पकड़ रहे हैं। भंसाली को उम्मीद है कि सरकारी मशीनरी की मदद से फिल्म को बिना किसी बाधा के प्रदर्शन की अनुमति मिलेगी। उन्होंने फिर दावा किया कि उनकी फिल्म में ऐसा कोई भी सीन नहीं है, जिससे महारानी पद्मावती के सम्मान को ठेस पंहुच सकती है।

इस फिल्म के अलावा सुपर स्टार रजनीकांत की आने वाली फिल्म ‘रोबोट 2.0’ को भी थ्री डी फारमेट पर रिलीज किया जाएगा।

हिंदुस्थान समाचार/अनुज

एक और कानूनी मामले में फंसे संजय दत्त

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इसी साल फरवरी में गैरकानूनी हथियार रखने के मामले में पांच साल की सजा काटकर आजाद हुए संजय दत्त एक और कानूनी मामले में फंसते नजर आ रहे हैं। मिली जानकारी के अनुसार, यूपी के बाराबंकी जिला अदालत की ओर से संजय दत्त के नाम सम्मन जारी किए गए हैं, जिसमें संजय को अदालत में पेश होने का आदेश दिया गया है।

इस सम्मन के मुताबिक, संजय को 16 नवंबर को अदालत में हाजिर होना पड़ेगा। ये सम्मन उस केस को लेकर जारी हुए हैं, जिसमें संजय दत्त ने एक राजनैतिक रैली में भाषण देते हुए बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख और उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती को जादू की झप्पी और पप्पी देने जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया था। संजय दत्त 2009 में राजनीति में कदम रखते हुए मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी में शामिल हुए थे।

2009 में हुए संसदीय चुनावों में सपा का प्रचार करते हुए बाराबंकी की एक चुनावी रैली में आए संजय दत्त ने मायावती को लेकर ये शब्द इस्तेमाल किए थे और मायावती के समर्थकों ने संजय के भाषण को अपनी नेता का अपमान मानते हुए उनके खिलाफ केस दर्ज किया था। इसी केस की सुनवाई करते हुए अदालत ने एक बार फिर संजय के खिलाफ सम्मन जारी किए हैं। इससे पहले भी अदालत दो बार संजय को अदालत में पेश होने के लिए सम्मन भेज चुकी है।

कम उम्र में कर दिखाया कारनामा

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पिथौरागढ़- सबसे कम उम्र में नंदा देवी की ट्रैकिंग पूरी कर चेतन वापस मुनस्यारी लौट आए हैं। उन्होंने सबसे कम उम्र में इस कारनामे को कर दिखाने का रिकॉर्ड बनाया है। चेतन विदेशियों के आठ सदस्यीय एक ग्रुप में बतौर अंग्रेजी ट्रांसलेटर शामिल हुए थे।

दरअसल, मुनस्यारी के विवेकानंद विद्या मंदिर इंटर कॉलेज के छात्र चेतन(13 वर्ष) ने मिलम और नंदा देवी बेस कैंप की 154 किमी ट्रैकिंग 11 दिन में पूरी की है। चेतन ने सबसे कम उम्र में इस ट्रैक को पार करने का रिकॉर्ड बनाया है। आपको बता दें कि ब्रिटेन के आठ सदस्यीय दल के साथ आठवीं के छात्र चेतन बृजवाल ने नंदा देवी और मिलम की दूरी तय कर यह रिकॉर्ड बनाया है। ब्रिटेन के एक्सोडस कंपनी का ट्रैकिंग दल 15 अक्टूबर को नंदा देवी बेस कैंप गया था, जो आज वापस मुनस्यारी लौटा है। इस ट्रैकिंग दल के साथ चेतन बृजवाल को अंग्रेजी ट्रांसलेटर के तौर पर ले जाया गया। जहां चेतन ने विदेशियों का दिल जीत लिया और वह चेतन की तारीफ करते नहीं थक रहे हैं।

वहीं चेतन के वापस आने पर उसके स्कूल विद्यामंदिर में सम्मान समारोह का आयोजन  किया गया। इसमें स्कूल के प्रधानाचार्य भगत सिंह बोरा ने चेतन बृजवाल उनके पिता बीरू बुग्याल, मा नीतू बृजवाल को सम्मानित किया। इस दौरान चेतन ने बताया कि वह रॉक क्लाइम्बिंग, रिवर राफ्टिंग, क्याकिंग की ट्रेनिंग भी राम गंगा नदी पर ले चुके हैं और उनका लक्ष्य पर्वतारोही बनने का है। उन्होंने चेतन के इस साहस के लिए उसको ईनाम भी दिया। इससे पहले 2014 में हुगली पश्चिम बंगाल के तरुण भट्टाचार्य(14 वर्ष) अपने माता-पिता के साथ नंदादेवी बेस कैंप गए थे। नंदा देवी बेस कैंप की ऊंचाई 4100 मीटर है और मिलम नंदा देवी बेस कैंप में ट्रैकिंग के लिए 11 दिन और 154 किमी पैदल चलना पड़ता है।