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आपदा के दर्द से आगे बढ़ ये युवा आबाद कर रहे हैं पहाड़ के घोस्ट विलेज

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उत्तराखंड युवाओं ने राज्य में पर्यटन को बढ़ाने और आमदनी के स्रोत बनाने के लिये होम-स्टे के मॉडल पर एक नायाब प्रयास किया है। हम बात कर रहे हैं “पहाड़ी हाउस होमस्टे” की जो उत्तराखंड में होमस्टे का पुराना नाम है। अगर आप अपने शहर की भागदौड़ की जिंदगी से थक चुके हैं और पहाड़ों की वादियों में खोना चाहते हैं तो पहाड़ी हाउस होमस्टे आपके लिए एक मुफीद डेस्टिनेशन है।

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इसकी सबसे खास बात है यह आपको हर वो अनुभव देगा जो अब तक शायद आप अपने मन में सोचते थे, जैसे कि पेड़ों पर चढ़ कर खुद फल तोड़ना, खेत से अपनी पसंद की सब्जी तोड़ना जो कि सौ प्रतिशत ऑर्गेनिक है। इसके अलावा जो लोग एडवेंचर में रुचि रखते हैं उनके लिए ट्रैकिंग और दूसरे लुभावने एक्टिविटी भी हैं।साल 2015 से शुरु हुए पहाड़ी होमस्टे को दो युवा अभय शर्मा और बिपेंद्र भंडारी मिलकर चला रहे हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि इनके होमस्टे में अबतक लगभग 1500-2000 लोगों ने स्टे किया है जो देश और दुनिया के कोने-कोने से आए हैं।

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पहाड़ी होमस्टे के बारे में न्यूजपोस्ट से बात करते हुए अभय शर्मा बताते हैं कि, ”साल 2013 में आई आपदा में बहुत से लोगों का नुकसान हुआ था और उसी वक्त हमारा राफ्टिंग का छोटा सा बिजनेस भी खत्म हो गया। लेकिन हार ना मानते हुए हम दोनों ने एक बार फिर शुरुआत करने की सोची और तब हमने पहाड़ी हाउस होमस्टे शुरु किया। जैसा कि नाम से पता चलता है पहाड़ी हाउस एक इको-फ्रेंडली होमस्टे है और इसकी खास बात ये है कि यह उन घरों से बनाया गया है जिसे छोड़ कर लोग पलायन कर चुके हैं। अभय बताते हैं कि हमने पुराने घरों को रिपेयरिंग करने के बाद उसको सभी सुविधाओं से लैस किया जिससे लोगों को स्टे में किसी भी तरह की कमी ना महसूस हो।”

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पहाड़ी होमस्टे के घरों की दीवारें कीचड़, गाय के गोबर और लकड़ियों से बनी हैं और इसको बनाने के पीछे सबसे बड़ा कारण था देवभूमि को एक अलग पहचान दिलाना जो पहाड़ी होमस्टे पिछले तीन सालों से कर रहा है। इस समय पहाड़ी होमस्टे तीन जगह कानाताल, ऋषिकेश और हाथीपांव में है जिसके माध्यम से क्षेत्रीय लोगों को भी रोज़गार के अवसर तो मिल ही रहे हैं साथ ही ऑर्गेनिक फार्मिंग को भी एक नई पहचान भी मिल रही है। पहाड़ी हाउस में आपको बहुत से नये आयाम मिलेगें जिनमे बर्ड वाचिंग, स्टार गेज़िंग और आसापास के इलाकों की लोकल कहानियां उन्ही लोगों की जुबानी सुनने को मिलेंगी।

तो अगर आप पहाड़ों की सर्द हवाओं को महसूस करना चाहते हैं और अपनी व्यस्त ज़िंदगी से कुछ पल सुकून के चाहते हैं तो पहाड़ी होमस्टे आपका बाहें खोले इंतजार कर रहा है।

जानिये कब हैं आपके लिये मानसिक रोगों के लिये मदद लेने का सही समय

हम अक्सर अपने शरीर के उन संकेतोंं को नज़रअंदाज़ कर देते हैं जो हमें बताते हैं कि हमे किसी तरह की मानसिक परेशानी हो रही है। ज्यादातर लोगों के लिये मानसिक बीमारियों के बारे में बात करना आज भी एक सामाजिक छुआछूत का कारण है। इस बीमारी के बारे में बात करने में आज भी शर्म महसूस की जाती है। एक मनौवैज्ञानिक के तौर पर मुझे ऐसे बहुत लोग मिलते हैं जिन्हें अपनी मानसिक बीमारी को पहचानने में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। इसका एक बड़ा कारण है लोगों के बीच इस विषय को लेकर जागरूकता की कमी।

इसलिये सबसे ज़रूरी है ये जानना कि वो कौन से संकेत हैं जिनसे आप मानसिक बीमारियों की पहचान कर सकते हैं।

  • मूड में बदलाव आना। अचानक से उदास या उत्तेजित हो जाना। इस तरह का लक्षण तीन से चार दिन तक रहते हैं और आम दिनों में होने वाले तनाव से अलग होते हैं।
  • लगातार तनाव देने वाले हालात जो किसी भी इंसान के लिये आम दिनों में काम करने में परेशानी पैदा करें।
  • जिन चीज़ों से आपको पहले आनंद आता था वो अब न करने की इच्छा होना।
  • लोगों से पहले की तरह घुलने मिलने की इच्छा न होना।
  • बिना किसी तरह के शारीरिक परिश्रम के जबरदस्त थकावट महसूस करना।
  • छोटी छोटी बातों पर चिड़चिड़ापन और लोगों पर गुस्सा करना।
  • भूख में बदलाव। ये बदलाव कम भूख लगने से लेकर आम दिनों से ज्यादा भूख लगने तक हो सकते हैं।
  • दिमाग का शांत न रहना और लगातार दिमाग में विचार आते रहना। ये हर बार नये विचार भी हो सकते हैं और बार बार पुरानी बातें भी ख्याल में आ सकती हैं।
  • अपने बारे में नकारत्मक विचार आना जिससे हर काम में हार मानने जैसा महसूस हो।
  • काम या निजी जीवन से जुड़ी ऐसी बातें या समस्याऐं जिनके बारे आप न तो समाधान ढ़ूंढ पा रहे हों और न ही किसी से बात कर पा रहे हों।

ऊपर दिये गये संकेत आपको इशारा करते हैं कि आपको किसी पेशेवर मनोवैज्ञानिक से मदद लेने की ज़रूरत है। ये ज़रूरी नहीं कि आपको किसी तरह की कोई मानसिक बीमारी हो पर शुरुआती दौर में इन लक्षणों पर काबू पाने से आप आगे आने वाले दिनों में इन लक्षणों के बिगड़ने से होने वाली मुश्किलों से निजात पा सकते हैं।

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ये जानना भी बहुत ज़रूरी है कि आपको किस तरह के एक्सपर्ट की ज़रूरत है। यानि आपको मनोवैज्ञानिक की ज़रूरत है या मनोचिकत्सक की। मनोचिकित्सकों के पास खास मेडिकल अध्यन्न की डिग्री होती है जिसके चलते इलाज में वो दवाईयों के प्रयोग से आपकी मनोदशा को ठहराव की तरफ लाने में मदद करते हैं। वहीं मनोवैज्ञानिक उन्ही लक्षणों के इलाज के लिये बिना दवाईयों के ऐसी तकनीकों का प्रयोग करते हैं जो कि सालों के शोध के चलते इस तरह की बीमारियों के इलाज के लिये सही पाई गई हैं।इन दोनों ही तरह के इलाजों का अपना महत्व है और इनमेंं से कोई दूसरे का विकल्प नही हो सकता। इन दोनों में से किसके पास आपके लक्षणों का सही इलाज होगा इसका फैसला अगर आप नहीं कर पा रहे हैं तो कोई भी मनोवैज्ञानिक या मनोचिकित्सक सही दिशा में जाने में आपकी मदद कर सकता है।

विभिन्न प्रकार के मनोवैज्ञानिक अपने योग्यता और डिग्री के आधार पर आपको मदद कर सकते हैं। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि आप एक मानसिक स्वास्थ्य के लिये किसी पेशेवर से सहायता प्राप्त करें। एक बार आपको पता है कि आपको मदद की ज़रूरत है तो, किसी भी मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ से मिलें और वो आपकी मदद की प्रक्रिया को सही तरीके से आगे बढ़ा सकता है।आपकी शारीरिक और मानसिक सेहत जीवन का पूरी तरह से आनंद लेने के लिये बहुत ज़रूरी है। इसमें अपनी मानसिक सेहत का ख्याल रखना बेहद ज़रूरी है। इसलिये अपने लक्षणों के बिगड़ने का इंतज़ार न करें और जल्द से जल्द एक सेहत से भरे जीवन की तरफ कदम बढ़ायें।

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(डॉ कामना छिब्बर एक मनोचिकित्सक हैं और फोरटिस हेल्थकेयर के मनोरोग विभाग की निदेशक हैं। डॉ छिब्बर पिछले दस सालों से मनोरोग के क्षेत्र में काम कर रही हैं। इनसे संपर्क करने के लिये [email protected] पर लिखें )

अवैध खनन पर मुख्यमंत्री की सख्ती कितना रंग ला सकेगी?

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त्रिवेंद्र सिंह रावत ने प्रदेश में अवैध खनन को रोकने के लिये अधिकारियों शनिवार को फिर कमर कसकर काम करने के लिये कहा। उन्होंने इसके लिये जिलाधिकारी, खनन विभाग व परिवहन विभाग को आपसी तालमेल बनाकर काम करने के आदेश दिये। अवैध खनन का कारोबार प्रदेश में बन्द हो इसकी सीधी जिम्मेदारी सीएम ने अधिकारियों पर डाली।

शनिवार को सचिवालय में खनन से सम्बंधित बैठक में मुख्यमंत्री ने निर्देश दिये कि

  • खनन से सम्बंधित लाॅटो की ई-टेन्डरिंग में शीघ्रता की जाए। इनमें सभी नये लाॅटो को सम्मिलित किया जाए।
  • जिन क्षेत्रों में जीएमवीएन, केएमवीएन व वन निगम द्वारा खनन की कार्यवाही करने में असमर्थता जतायी जा रही है, उन्हें भी ई-टेन्डरिंग की प्रक्रिया में शामिल किया जाए।
  • मच्छली तालाबों के निरीक्षण के साथ ही तालाबों का पिछले 5 साल का विवरण तैयार किया जाये ताकि यह पता चस सके कि इन तालाबों में कितना मच्छली पालन हुआ। ऐसे तालाबों के आस-पास जमा शील्ड को भी ई-टेन्डरिंग से ही निस्तारण किया जाये। 
  • जमीन समतलीकरण के नाम पर किये जा रहे अवैध खनन पर भी नजर रखी जाए तथा इसमें भी राॅयल्टी की व्यवस्था सुनिश्चित की जाए।

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मुख्यमंत्री ने प्रदेश के विभिन्न इलाकों में चल रहे स्टोन क्रशर की भी माॅनिटरिंग करने को कहा।

  • नदियों में 500 मीटर डाउनस्ट्रीम में कार्य शुरू करने की प्रक्रिया जल्दी शुरू की जाये। 
  • जो पुल अथवा झूला पुल हार्डराॅक पर नदी की सतह से ऊपर बने है, उनके दोनो तरफ 1 कि.मी. में जमे शील्ड हटाने के लिये अलग से कोई रास्ता निकाला जाए। 
  • प्रदेश में राष्ट्रीय राजमार्गों व आॅलवेदर रोड के लिये निर्माण सामग्री की उपलब्धता सुनिश्चित हो इसका भी ध्यान रखा जाए, ताकि निर्माण कार्य बाधित न हों। 

गौरतलब है कि समय समय पर शासन के स्तर से अवैध खनन को रोकने के लिये आदेश और दिशानिर्देश तो जारी होते हैं लेकिन इसे विडंबना ही कहेंगे कि फिर भी राज्य के अलग एलग हिस्सों से अवैध खनन की खबरें आना बंद नहीं हो रही हैं। देखना ये होगा कि उत्तराखंड में काली कमाई का सबसे बड़ा ज़रिया बन चुके अवैध खनन पर सरकार और प्रशासन की कथनी और करनी का ये फर्क कब खत्म होगा।

नही थम रही कन्या भ्रूण हत्याएं

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ऋषिकेश। तीर्थ नगरी में एक नवजात बच्ची का शहर के गोविंद नगर क्षेत्र से शव मिलने के कारण यहां सनसनी फैल गई। भ्रूण परीक्षण और कोख में कन्याओं की हत्याओं को लेकर एक बार फिर चर्चाओं का बाजार गर्म है।

पुलिस मामले की जांच कर आरोपियों को दबोचने की कोशिश में जुटी हुई है। लेकिन कड़वी सच्चाई बेटा और बेटियों में आज भी देखने को मिल रहा है जबकि भूण हत्या रोकने के लिए केन्द्र और राज्य सरकार अनेकों योजनाएं चला रही है फिर भी घटनाए रूकने का नाम नही ले रही है। ऋषिकेश में नवजात बच्ची के शव मिलने के बाद इसकी पुष्टि की जा सकती है। यहां के प्रबुद्ध समाज का कहना है कि भ्रूण हत्या पर रोक तभी संभव है जब इस संदर्भ में कानून को और सख्त बनाया जाए। इन सबके बीच बड़ा सवाल यह भी है कि कन्या भ्रूण हत्या के मामले आखिरकार कब और कैसे थमेंगे। हालांकि प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने जो ऋषिकेश में वार्ता के दौरान प्रदेश में हो रही भ्रूण हत्या के साथ असंतुलित होते लड़कियों के जन्म की जनसंख्या पर चिंता जाहिर इसे दूर करने की बात भी कही है। 

केदारनाथ में बर्फबारी, बढ़ी ठंड

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रुद्रप्रयाग। केदारनाथ धाम में शनिवार को हुई बर्फबारी से चोटियों ने सफेद चादर ओढ़ ली है। बर्फबारी कम होने से धाम में बर्फ जमा नहीं हो सकी। हल्की बर्फबारी से मौसम में भी ठंडक महसूस की गई।

शनिवार को दोपहर डेढ़ बजे से ढाई बजे तक केदारनाथ में बर्फबारी होने से ठंडक बढ़ गई। यहां कुछ देर काम में लगे मजदूर छतों के नीचे खड़े होने लगे किंतु बाद में बर्फबारी होते ही काम शुरू किया गया। हल्की बर्फबारी होने से धाम में बर्फ रुक नहीं सकी। देर शाम तक भी मौसम चारों ओर बादलों से घिरा रहा।

चमोली के खिलाड़ियों ने जीता स्वर्ण पदक

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गोपेश्वर। दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम में प्रधानमंत्री के ‘खेलो इंडिया योजना’ के अंतर्गत वाॅक रेस में सुदरवर्ती चमोली जिले की एक बेटी व एक बेटे ने स्वर्ण पदक जीत कर राष्ट्रीय रिकॉर्ड कायम किया है। दोनों की इस उपलब्धि से उत्तराखंड का मान तो बढ़ा ही है। खिलाड़ियों के परिजन, कोच तथा विजेता खिलाड़ी कहते है कि प्रधानमंत्री के खेलों इंडिया सोच ने प्रोत्साहन और ताकत का काम किया है। खेलो इंडिया के अंतर्गत पांच किमी की अंडर-17 आयुवर्ग की वाॅक रेस में चमोली जिले के खल्ला मंडल गांव के परमजीत ने 21 मिनट 17 सेकेंड का समय लेकर न सिर्फ स्वर्ण पदक जीता बल्कि गत वर्ष के पूर्व सयम 21 मिनट 36 सैकेंड के रिकॉर्ड को भी ध्वस्त किया। चमोली जिले की ही गोपेश्वर की मानसी नेगी ने भी अंडर-17 आयु वर्ग में 3 किमी की वाॅक रेस में 14 मिनट 44 सैकेंड का समय लेकर स्वर्ण पदक जीता और पिछले राष्ट्रीय रिकॉर्ड 14 मिनट 46 सेकेंड को भी ध्वस्त किया है। इससे पूर्व भी दोनों ने अलग-अलग स्पर्धाओं में रजत पदक जीते हैं। परमजीत ने वडोदरा और भोपाल में इसी प्रतियोगिता में रजत पदक तथा मानसी भी अपने आयुवर्ग में रजत पदक जीती हैं।

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मानसी के पिता नहीं है, परमजीत के पिता तंग हाल
इन प्रतिभाओं को आगे आने में निसंदेह उनके अंदर छिपी प्रतिभा, साहस और कुछ नया करने और रचने की शक्ति ही है। परमजीत के पिता जगमोहन खल्ला गांव में एक छोटी सी दुकान चलाकर परिवार का भरण पोषण करते हैं। कहते है कि बेटी की इच्छा रही कि वह निरंतर दौड़े। परमजीत और उसके पिता इस सफलता का श्रेय कोच गोपाल बिष्ट को देते हैं। कहते है कि हमारे लिए यही द्रोणाचार्य हैं। मानसी के पिता नहीं है। कुछ वर्ष पूर्व उनका देहावसान हो गया था। मानसी मझोठी गांव की रहने वाली है। गोपेश्वर में अपने परिजनों के साथ रह कर शिक्षा ग्रहण कर रही है। ये भी अपनी सफलता का श्रेय अपने कोच गोपाल बिष्ट को ही देती है।

खेल और मैदान की सुविधा हो तो और अच्छा प्रदर्शन हो सकता है
दिल्ली से फोन पर बातचीत करते हुए परमजीत और मानसी कहती है कि खेल मैदान अच्छा हो और सुविधा मिले तो और अधिक बेहतरीन प्रदर्शन हो सकता है। स्वर्ण पदक मिलने और राष्ट्रीय रिकार्ड बनाने पर भावुक हो दोनों ने कहा कि आज हम जहां पहुंचे है उसका श्रेय केवल और केवल हमारे कोच गोपाल बिष्ट को ही दिया जाता है। कोच गोपाल बिष्ट कहते है कि इन बच्चों में गजब की प्रतिभा है। बताते चले कि औलंपिक एथलेटिक मनीष रावत को भी प्रारंभिक दौर में गोपाल बिष्ट ने ही प्रोत्साहित किया था।

हावड़ा दून पांच घंटे पहुंची लेट, राप्ती रिशेड्यूल

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देहरादून। राजधनी देहरादून से आने वाली लंबी दूरी की गई गाड़ियां शनिवार को अपने निर्धारित समय से घंटों लेट पहुंची। जिस कारण देहरादून मुजफ्फरपुर राप्ती गंगा एक्सप्रेस को रिशेडयूल किया है।

शनिवार को हावड़ा से चलकर देहरादून आने वाली हावड़ा दून एक्सप्रेस अपने तय समय 7:35 मिनट से पांच घंटे विलंब पहुंची। जबकि मदुरई देहरादून चेन्नई एक्सप्रेस व इलाहाबाद लिंक एक्स्रपेस दो—दो की देरी से आई। गोरखपुर देहरादून राप्ती गंगा एक्सप्रेस चार घंटे लेट आई।
स्टेशन अधीक्षक करतार सिंह ने बताया कि रेलवे ट्रैक पर चल रहे निर्माण कार्य व कोहरे के कारण ट्रनें विलंब से दून आ रही है। जिस कारण देहरादून मुजफ्फरपुर राप्ती गंगा एक्सप्रेस को रिशेडयूल किया गया है जो अब 20:30 मिनट पर रवाना होगी। बाकि अन्य गाड़ियों को समय से रवाना किया जा रहा है। 

रुद्रप्रयाग के स्कूल में शुरु हुआ फिल्म मेकिंग और एक्टिग प्रशिक्षण

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रूद्रप्रयाग। जवाहर नवोदय विद्यालय जाखधार में 02 फरवरी से 11 फरवरी 2018 तक आयोजित दस दिवसीय फिल्म मेंकिग, एक्टिग प्रशिक्षण कार्यक्रम का शुभारम्भ अपर जिलाधिकारी जी0सी0 गुणवन्त ने किया। इस अवसर पर अपर जिलाधिकारी ने कहा कि जिलाधिकारी के प्रयासों से यह कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा हैं। कहा कि जिलाधिकारी द्वारा गांव के बच्चों को शिक्षा के साथ रचनात्मक गतिविधियों में आगे लाने के लिए यह कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है, जिससे बच्चें वर्तमान प्रतिस्पद्र्धी युग में प्रतिभाग कर सके व उनका सर्वागीण विकास हो सके। अपर जिलाधिकारी कहा कि कार्यशाला के दौरान प्रशिक्षक द्वारा जो भी सिखाया जाएगा उसे प्रत्येक विद्यार्थी पूर्ण लग्न से सीखे। विद्यार्थियों को कैरियर के विषय में बताते हुए कहा कि अभी से लक्ष्य का चुनाव कर परिश्रम करे, जिससे ससमय लक्ष्य प्राप्त हो सके।

इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि भारतीय फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान पुणे से आए सीनियर फैकल्टी डाॅ0 जे0बी0सिंह ने कहा कि माता-पिता सोचते है उनका बच्चा आगे बढे, किन्तु अध्यापक की सोच व कर्तव्य होता है कि वह विद्यार्थी को स्वयं से भी आगे सही दिशा में ले जाए। उन्होने कहा कि प्रशिक्षण में भारतीय फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान पुणे के कोर्स निदेशक ऋृतेश तांगसडे व फोनसोक लद्दाखी द्वारा क्रमशः फिल्म मेंकिग व एक्टिग की टेªनिंग दी जाएगी।

इस अवसर विद्यालय के प्रधानाचार्य संजीव झाझरिया ने कार्यक्रम में अपर जिलाधिकारी द्वारा बहुमूल्य समय देने के लिए व दूर-दराज क्षेत्रों से आए अभिभावकों का धन्यवाद ज्ञापित किया। कहा कि सन् 1980 के दशक में विद्यालय की स्थापना की गई थी जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में अच्छी शिक्षा में सुलभता हो। कार्यशाला के विषय में प्रधानाचार्य ने बताया कि विद्यालय के 34 बच्चों द्वारा प्रशिक्षण कार्यक्रम में प्रतिभाग किया जा रहा है।

विश्व कप का खिताब जीतने वाले सबसे युवा कप्तान बने पृथ्वी शॉ

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नई दिल्ली, भारत को अंडर-19 विश्व कप का खिताब दिलाने वाले पृथ्वी शॉ सबसे युवा कप्तान बन गए हैं। इस मामले में पृथ्वी ने ऑस्ट्रेलिया के मिशेल मार्श को पीछे छोड़ दिया है। मार्श ने वर्ष 2010 में ऑस्ट्रेलियाई टीम को विश्व कप का खिताब दिलाया था। उस समय उनकी आयु 18 साल 102 दिन थी। वहीं,पृथ्वी की आयु अभी 18 साल 86 दिन हैं।

इसके अलावा बाएं हाथ के सलामी बल्लेबाज मनजोत कालरा (नाबाद 101 ) खिताबी मुकाबले में शतक जड़ने वाले दूसरे बल्लेबाज बन गए हैं। मनजोत से पहले वर्ष 2012 में उन्मुक्त चंद (नाबाद 111) ने खिताबी मुकाबले में शतक लगाया था।

उल्लेखनीय है कि भारतीय टीम ने प्रतियोगिता में अजेय रहते हुए खिताब अपने नाम किया है। भारत ने ऑस्ट्रेलिया को 8 विकेट से हराकर चौथी बार आईसीसी अंडर-19 विश्व कप का खिताब जीत लिया है। भारतीय टीम टूर्नामेंट में अजेय रही है। इस जीत के साथ ही भारत चार बार विश्व कप जीतने वाला पहला देश बन गया है।

भारत ने खिताबी मुकाबले में ऑस्ट्रेलिया द्वारा दिये गए 217 रनों के लक्ष्य को मनजोत कालरा के बेहतरीन नाबाद शतकीय पारी 101 रन की बदौलत 38.5 ओवर में 2 विकेट के नुकसान पर 220 रन बनाकर लक्ष्य हासिल कर लिया।

खेलमंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ ने अंडर-19 विश्व कप का खिताब जीतने पर भारतीय टीम को बधाई दी है। खेलमंत्री ने ट्विटर पर दिए अपने बधाई संदेश में कहा, “आपने कर दिखाया! अंडर-19 क्रिकेट विश्व कप का खिताब जीतने पर आप को बधाई। राहुल द्रविड़ के मार्गदर्शन में पूरी टीम ने शानदार काम किया। देश को आप पर गर्व है!” 

देश की प्रगति के लिए बच्चों को विज्ञान की शिक्षा जरूरीः राज्यपाल

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देहरादून, राज्यपाल डाॅ. कृष्ण कांत पाल ने कहा कि, “देश की प्रगति के लिए बच्चों को विज्ञान की शिक्षा देना आवश्यक है। बच्चों में विज्ञान के प्रति रूचि जाग्रत कर उनमें वैज्ञानिक सोच विकसित की जाए।” राज्यपाल झाझरा स्थित आंचलिक विज्ञान केंद्र (विज्ञान धाम) की दूसरी वर्षगांठ पर आयोजित कार्यक्रम को सम्बोधित कर रहे थे। इस अवसर पर विज्ञान धाम में ही राज्यपाल ने जैव विविधता उद्यान का भी उद्घाटन किया।
राज्यपाल ने जैव विविधता उद्यान के शुभारम्भ पर खुश होकर कहा कि, “इससे जड़ी बूटियों व पौधों की विभिन्न प्रजातियों की पहचान एक ही स्थान पर करना सम्भव होगा। इससे छात्रों, शोध छात्रों, वनस्पतिशास्त्रियों व आयुर्वेद से जुड़े लोगों को लाभ होगा, तमाम प्रजातियों के पौधों की पहचान व विस्तृत जानकारी के लिए यह संदर्भ केंद्र के रूप में महत्वपूर्ण सिद्ध होगा।”
 राज्यपाल ने कहा कि देश की तरक्की के लिए वैज्ञानिक सोच विकसित करनी होगी। इसके लिए बच्चों को विज्ञान की शिक्षा के लिए पे्ररित करना आवश्यक है। हमारे संविधान के अनुच्छेद 51(ए) में संवैधानिक कर्तव्यों का उल्लेख किया गया है। इनमें एक संवैधानिक दायित्व यह भी है कि वैज्ञानिक सोच और अनुसंधान व अन्वेषण की भावना विकसित करें।
राज्यपाल ने कहा कि किसी भी देश का विकास, वहां विज्ञान के स्तर पर ही निर्भर करता है। बच्चों में विज्ञान की मानसिकता जाग्रत करने से देश का आने वाला कल सुनहरा होगा। आंचलिक विज्ञान केंद्र इसमें अहम भूमिका निभा सकता है। राज्यपाल ने सुझाव दिया कि आंचलिक विज्ञान केंद्र की वीडियो फिल्म बनाकर इसे विभिन्न स्कूलों में बच्चों को दिखाई जाए।