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सड़क हादसों के लिहाज से उत्तराखंड के जानलेवा इलाकों की हुई पहचान

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उत्तराखंड यातायात निदेशालय ने राज्य में करीब 53 ऐसे बलाइंड स्पॉट चिन्हित किये हैं जहां पिछले तीन सालों में सड़क हादसों की संख्या करीब 40 प्रतिशत बढ़ी है। इन जगहों में 26 ऐसी जगहों के साथ उधमसिंह नगर सबसे आगे है। इसके बाद नैनीताल का नंबर है जहां ऐसे 10 बालाइंड स्पॉट देखे गये हैं। देहरादून में पुलिस ने 4 जगहों की पहचान की है।

यातायात निदेशालय के निदेशक केवल खुराना का कहना है कि “हमारे पास पहले से करीब 124 ऐसे जगहों की लिस्ट थी। इसके अलावा हमने सभी जिलों से इन जगहों पर पिछले तीन साल में हुए हादसों की जानकारी जुटाई औऱ इसके चलते हम इन 53 जगहों की पहचान कर सके, इन सभी जगहों पर पिछले तीन सालों में हादसों की संख्या करीब 40% बढ़ गई है।”

विभाग के पास मौजूद आंकड़ों के हिसाब से इन जगहों पर इस साल 361 सड़क हादसों में 189 लोगों ने अपनी जान गवांई है। उधमसिंह नगर जिले में ही 91 लोग हादसों का शिकार हुए हैं। यहीं आंकड़ा 2015 में 161 और 2016 में 134 था।
खुराना का कहना है कि “इन सभी जगहों पर अब हम ओवर लोडिंग करने वाले वाहनों पर कड़ी सख्ती बरतेंगे। आने वाले दिनों हम न सिर्फ सवारी गाड़ियों बल्कि मालवाहक गाड़ियों में होने वाली ओवर लोडींग पर शिकंजा कसने वाले हैं।”
उत्तराखंड पहाड़ी इलका होने और पर्यटक स्थल होने के कारण सड़क हादसों के लिये संवेदनशील है। ऐसे में ये जरूरी है कि पुलिस राज्य के साथ साथ बाहर से आने वाले वाहनों पर भी नियमों की सख्ती लागू करे।

संस्कृत डिग्रीधारकों को योग शिक्षक नियुक्त करने के प्रस्ताव पर योग प्रशिक्षितों के तेवर तीखे

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(देहरादून) लंबे अरसे सरकारी स्कूलों में योग शिक्षकों की नियुक्ति किए जाने की मांग को लेकर आंदोलनरत योग प्रशिक्षक महासंघ उत्तराखंड एक बार फिर आंदोलन करने की तैयारी में है। महासंघ ने प्रदेश सरकार के संस्कृत डिग्री धारक अभ्यार्थियों को योग शिक्षक के पदों पर तैनाती देने के प्रस्ताव का कड़ा विरोध किया है। इसे लेकर महासंघ की ओर से प्रदेश के शिक्षा मंत्री को ज्ञापन भी भेजा गया है। साथ ही स्कूलों में योग शिक्षकों की जल्द नियुक्ति को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी पत्र लिखकर मामले का संज्ञान लेने की आग्रह किया गया है।
उत्तराखंड में योग प्रशिक्षित बेरोजगारों ने स्कूलों में जल्द नियुक्ति के संबंध में शिक्षा मंत्री पर देश के प्रधानमंत्री को पत्र लिखा। महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष डा. राकेश सेमवाल ने कहा कि उत्तराखंड योग की जन्मभूमि रही है। लेकिन अभी तक यहां प्राथमिक स्तर की शिक्षा में योग शिक्षा शामिल नहीं है। किताबें 2010 से लगातार बढ़ती जा रही है पर पढ़ाने के लिए शिक्षकों की कमी अभी तक पूरी नहीं हुई है। जबकि योग प्रशिक्षित बेरोजगार 2007 से लगातार आंदोलनरत हैं। साथ ही योग शिक्षा को शिक्षा में शामिल करने के संबंध में 2010, 2014 और 2016 में कैबिनेट की बैठक में प्रस्ताव पास हो चुका है। लेकिन अभी तक कोई नियुक्ति नहीं हुई है। भारतीय जनता पार्टी की सरकार इसकी पक्षधर होते हुए भी मुख्यमंत्री द्वारा बार-बार आश्वासन दिए जा रहे हैं। जबकि दूसरी ओर उत्तराखंड के हजारों योग प्रशिक्षित युवा बेरोजगार बैठे हैं। आलम यह है कि उत्तराखंड सरकार के मानकों के आधार पर उनकी अधिकतम आयु सीमा भी समाप्त होने लगी है। उन्होंने पीएम से स्वास्थ्य एवं शिक्षा दोनों को विशेष ध्यान में रखते हुए व हजारों योग डिप्लोमा या डिग्री धारकों के भविष्य को ध्यान में रखते हुए उत्तराखंड शिक्षा विभाग में योग को अनिवार्य विषय के रूप में लागू किए जाने की मांग की।
सरकार के प्रस्ताव पर तीखे तेवर
वहीं दूसरी ओर योग प्रषिक्षित महासंघ ने प्रदेश सरकार के संस्कृत शिक्षकों को योग शिक्षकों के रूप में नियुक्त करने के प्रस्ताव का विरोध किया। प्रदेश अध्यक्ष डा. राकेश सेमवाल ने शिक्षा मंत्री को ज्ञापन भेजते हुए कहा कि उत्तराखंड में संस्कृत डिग्री या डिग्री धारकों को योग शिक्षक के रूप में नियुक्ति का प्रस्ताव तैयार किया जा रहा है। इससे ना सिर्फ योगी डिग्री धारकों के भविष्य के साथ खिलवाड़ होगा, बल्कि योग शिक्षा व्यवस्था का भविष्य भी अधर में होगा। साथ ही हजारों योग डिग्री एवं डिप्लोमाधारी को धारियों के भविष्य को सरकार द्वारा अधर में लटकाया जा रहा है। उन्होंने शिक्षा मंत्री से अनुरोध किया कि हजारों योग डिग्री व डिपलोमा धारकों के भविष्य को ध्यान में रखते हुए योग जन्म भूमि उत्तराखंड में योग शिक्षा को लागू कर शिक्षा एवं स्वास्थ्य दोनों में सुधार करने की मांग की। उन्होंने कहा कि यदि इसके बाद भी मांग पर सकरात्मक कार्रवाई नहीं की जाती है तो मजबूरन उन्हें एक बार फिर आंदोलन के लिए बाध्या होना होगा। 

दून काठगोदाम एक्सप्रेस के परिचालन से उलझन में यात्री

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देहरादून। उत्तराखण्ड राज्य निर्माण के बाद जिस गति से रेलवे का विस्तर होना चाहिए, वह आज भी सुदुर पर्वतीय क्षेत्र के लोगों के लिए चुनौती बना हुआ है। प्रदेश के गढ़वाल और कुमाऊं दोनों मण्डलों मेें राजधानी दून से ट्रेन की यात्रा वर्तमान में सुलभ नहीं है। हालांकि कुमाऊं मण्डल के मुख्यद्वार काठगोदाम तक दून काठगोदाम चलती है, लेकिन ट्रेन की लेटलतीफी के कारण यात्रियों को फजीहत झेलनी पड़ती है। इससे यात्रियों को आज भी देहरादून की यात्रा कठिन बनी हुई है।
इलाहाबाद से चलने वाली लिंक एक्सप्रेस को लगभग दस घंटें बाद देहरादून से काठगोदाम रवाना करना यात्रियों के लिए आज भी अव्यवहारिक है। इससे लगता है कि यात्रियों की नहीं बल्कि रेलवे अपनी सुविधानुसार इस ट्रेन को चला रहा है। इन परिस्थितियों में शायद ही कोई यात्री इलाहाबाद से देहरादून होते हुए काठगोदाम जाना चाहता है। उसका पैसा और समय दोनों का व्यय उसके उपर भारी पड़ता है। इससे यात्री स्वयं को ठगा महसूस करता है।
यात्री डा. गणेश ने बताया कि काठगोदाम गाड़ी विलंब से चलने कारण आज भी हमलोगों के लिए देहरादून से दिल्ली की पहुंच नजदीक है। अल्मोड़ा से दिल्ली की दूरी 350 किलोमीटर है, जबकि अल्मोड़ा से देहरादून की दूरी 365 किलोमीटर है। ऐस में सुदुर पर्वतीय क्षेत्र के लोगों के लिए यात्रा को सुलभ बनाने के लिए रेलवे को खास प्रयास करना होगा, तभी क्षेत्र के लोग आसानी से देहरादून की यात्रा कर सकते हैं।
ईट्रेन इनफो के आंकड़ों की मानें तो काठगोदाम 20 नवम्बर से 20 दिसम्बर के बीच 14 दिन लेट रवाना हुई। इस माह में औसतन 250 मिनट यानी 4:40 मिनट की देरी से रवाना हुई है। इसमे से 08 दिन एक घंटे की देरी से और 6 दिन एक घंटे की कम समय में दून से प्रस्थान की है। जबकि 16 दिन ही अपने तय समय से रवाना हुई है। वहीं 2016 नवम्बर से 20 दिसम्बर 2017 तक 365 दिन में 244 दिन राइट समय से चली है, जबकि 121 दिन विलंब से रवाना हुई। यानी 35 दिन एक घंटे से कम समय की देरी से चली है। जबकि 86 दिन एक घंटे से अधिक की देरी से रवाना हुई है। इस वर्ष फरवरी माह में भी जब कोहरे नहीं पड़ते है, उस समय भी औसतन लेट ही चली है।
काठगोदाम से देहरादून 365 दिन में 342 दिन सही समय पर आई है। जबकि 6 दिन एक घंटे से कम और 17 दिन एक घंटे की देरी से दून पहुंची है। वहीं देहरादून देश के सभी प्रमुख स्टेशनों दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, लखनऊ, वाराणसी समेत सभी बड़े शहरों से जुड़ा हुआ है। यहां आने के लिए शताब्दी, मसूरी एक्सप्रेस, दून एक्सप्रेस जैसी तीव्र गति की रेलगाड़ियां उपलब्ध हैं। लेकिन पहाड़ों से देहरादून की कनेक्टिविटी को लेकर आज भी लोगों के लिए समस्याएं बनी हुई हैं।
रेलवे यात्री सुविधा समिति के सदस्य लक्ष्मी प्रसाद जायसवाल ने हिन्दुस्थान समाचार से बताया कि यात्रियों की सुविधा के लिए हर संभव प्रयास किये जा रहे हैं। इलाहाबाद से देहरादून और फिर वही दून काठगोदाम बनकर घंटों देर से रवाना करना कोई औचित्य नहीं है। इतनी देर तक इस ट्रेन के ठहराव में इसे रेक के रूप में उपयोग करना चाहिए। इस संबंध में रेलवे की बैठक में बातें रखी जाएंगी, ताकि पर्वतीय क्षेत्र के यात्रियों को रेल यात्रा में किसी प्रकार की असुविधा का सामना न करना पड़े।
देहरादून स्टेशन अधीक्षक करतार सिंह के मुताबिक, लिंक एक्सप्रेस जब काफी विलंब से आती है तो इसे देर से रवाना किया जाता है। जब वह समय से आती है तो उसे यहां से निर्धारित समय से रवाना किया जाता है। अन्य बाकी गाड़ियां जो यहां से चलती हैं उसमें से अधिकतर को समय पर रवाना किया जाता है। उज्जैयनी एक्सप्रेस अप-डाउन 5 दिसम्बर से 14 फरवरी के बीच दून तक नहीं चलेगी। इस ट्रेन को रेलवे ने हरिद्वार तक चलाने का फैसला लिया है। सप्ताह में यह दो दिन मंगलवार और बुधवार को देहरादून से जाती है, जबकि बृहस्पतिवार और शुक्रवार को दून आती है।
उन्होंने बताया कि राजधानी देहरादून मौजूदा समय 23 ट्रेनें आती हैं। 17 ट्रेनें हर रोज चलने वाली हैं। स्टेशन की क्षमता बढ़ने और नया प्लेटफार्म तैयार होने के बाद यहां ट्रेनों की संख्या बढ़ने की भी संभावना है। इससे यात्रियों को सुविधा मिलेगी। यह काम अगले साल यानी 2018 में पूरा होने की उम्मीद है।

दून के कामिनी साड़ी सहित कई शोरुमों में लगी आग

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देहरादून के राजपुर रोड स्थित फ़ूड स्टोर- केएफसी,ङौमिनो और कामिनी साड़ी सहित 7 शोरूम में कल रात भयंकर आग लगी।इस आग से सब कुछ जल कर ख़ाक हो गया जबकि सबसे ज्यादा नुकसान कामिनी साड़ी शोरूम को हुआ। इस घटना से कई लाखों का नुकसान का अनुमान लगाया जा रहा है।

आज सुबह 3 बजकर 58 मिनट पर कोतवाली पुलिस को आग लगने की सूचना मिली जिसपर फायर सर्विस कर्मियों ने आयरन कटर से शटर काटा एवं अन्दर दाखिल हुए । सिन्थेटिक एवं ज्वलनशील कपड़े के इस शोरूम में आग थोड़े समय में ही चारों तरफ भीषण रूप से फैल गई । शटर काटने पर आग एवं धुएँ का गुब्बार आया जिससे वेन्टीलेशन हुआ , संकुचित स्थान होने के कारण अग्निशमन दल को आग बुझाने में काफी परेशानी का सामना करना पड़ा । अपनी जान जोखिम में डालकर लगभग 4 घण्टे लगातार अथक परिश्रम करने पर आग को बुझाया जा सका । अग्निशमन यूनिटों के त्वरित रिस्पांस के कारण आग को अन्य दुकानों तक फैलने से रोका जा सका । मुख्य अग्निशमन अधिकारी सीएफओ  द्वारा बताया गया कि आग लगने के कारणों की जांच की जा रही है । मौके पर दुकान के स्वामी अवलोक जैन ने बताया कि आग से लाखों की क्षति हुई है।

फिलहाल 95 प्रतिशत आग पर काबू पा लिया गया है। आग लगने का कारण अभी स्पष्ठ नहीं हो पा रहा है, लेकिन पुलिस पूछताछ मे लगी है। आग की घटना में कामिनी साड़ी का शोरूम पूरी तरह जलकर ख़ाक हो गया।

यहां देखें विडियोः

मसूरी विंटरलाईन कार्निवाल की तैयारियां तेज

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देहरादून। मसूरी विंटर कार्निवाल की तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं। इसमें कर्इ खास कार्यक्रमों को जगह देने के साथ ही पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए कई महत्वपूर्ण कार्यक्रम भी आयोजित किए जाएंगे। ताकि उत्तराखंड पर्यटन का विकास तेजी से हो। विंटर कार्निवल 25 से 30 दिसम्बर तक चलेगा, जिसका शुभारंभ सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत करेंगे।

जानकारी देते हुए जिला साहसिक खेल अधिकारी सीमा नौटियाल ने बताया कि इस विंटर कार्निवाल में रात और दिन में अलग-अलग कार्यक्रम चलेंगे। कवि सम्मेलन और लोक संस्कृति से जुड़े कार्यक्रमों के साथ ही मशहूर गायक हंस राज हंस भी आकर्षण का केंद्र रहेंगे। आयोजन के तहत पहले दिन 25 दिसम्बर को सर्वे ग्राउंड लंढौर से शोभा यात्रा शुरू होगी, जो लाइब्रेरी चौक पर जाकर समाप्त होगी। उन्होंने बताया कि 26 से 30 दिसम्बर तक अभिनेता टॉम आल्टर की स्मृति में 21 किमी हाफ मैराथन, पर्यटकों के लिए नेचर वॉक, बार्ड वाचिंग, स्केटिंग, जूडो-कराटे, बच्चों के लिए गेंम्स, फैंसी ड्रेस वहीं प्रतियोगिता 200 साल पुराने इतिहास की तस्वीर प्रदर्शनी, नुक्कड़ नाटक का आदि का आयोजन किया जाएगा। उन्होंने बताया कि रात्रि में होने आयोजनों में पद्मश्री बसंती बिष्ट की जागर की प्रस्तुति, लोक नाटक वीरभद्र माधो सिंह भंडारी का मंचन, उत्तराखंडी रामछौल नाइट, कव्वाली नाइट और मैजिक शो आदि आकर्षण का केंद्र होंगे। कवि अशोक चक्रधर का कवि सम्मेलन और हंसराज हंस की स्टार नाइट भी दर्शकों को लुभाएंगी। साथ ही 28 से 30 दिसम्बर तक फूड फेस्टिवल आयोजित किया जाएगा, इसमें पहाड़ी व्यंजन के स्टाल्स लगाए जाएंगे। 29 दिसम्बर को खाना-खजाना के चर्चित शेफ संजीव कपूर इसमें भाग लेंगे।

बिना पद और पगार के काम कर रहे चिकित्सक

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देहरादून। आयुर्वेद विश्वविद्यालय में अव्यवस्थाओं का आलम यह है कि यहां न तो शिक्षक हैं और न ही सुविधाएं। इन सबसे बढ़कर जिन चिकित्सकों को संबद्ध कर फैकल्टी के रूप में उपयोग किया जा रहा है। उनकी संबद्धता भी प्रभारी सचिव आशुष शिक्षा ने समाप्त कर दी, लेकिन इसके बाद भी विवि उन्हें कार्यमुक्त नहीं कर रहा। हालात यह है कि बीते एक माह से संबद्ध चिकित्सकों को वेतन तक नहीं मिल पाया है।

उत्तराखंड आयुर्वेद विश्विद्यालय के तीनों परिसर के हर विभाग में नियमानुसार एक प्रोफेसर दो एसोसिएट प्रोफेसर और तीन असिस्टेंट प्रोफेसर होने चाहिए। मुख्य परिसर हर्रावाला में केवल एक नियमित प्रोफेसर है बाकी दो अन्य परिसरों से संबद्ध संवद्ध हैं। मुख्य परिसर में बीएएमएस के 120 छात्र छात्राएं पढ़ रहे हैं। इनके प्रवेश हेतु सीसीआईएम को भेजे फेकल्टी डाटा में जो जानकारी मुहैया कराई गई है वो असिस्टेंट व एसोसिएट प्रोफेसर के रूप में संबद्ध चिकित्साधिकारी हैं, जिनकी सम्बद्धता बीते माह ही प्रभारी सचिव आयुष शिक्षा हरवंश चुघ के आदेश से संमाप्त हो गई है। लेकिन, विवि के पूर्व कुलपति ने इन्हें कार्यमुक्त होने से रोक लिया है, जिसके बाद चिकित्सकों को न तो मूल तैनाती मिली और न ही विवि में कार्य का वेतन। संबद्धता समाप्त होने के कारण बीते माह से वेतन भी अटक गया है। जबकि, सीसीआईएम को कागजों में फैकल्टी की पगार दिखाई जा रही है।
कुछ ऐसा ही हाल विवि के दोनों परिसर गुरुकुल एवं ऋषिकुल हरिद्वार का भी है। गौर करने वाली बात है कि गुरुकुल परिसर में इन्ही संबद्ध चिकित्सकों के सहारे एमडी पाठ्यक्रमों की मान्यता ली गई है और कई के निर्देशन में शोध प्रबंध लिखे जा रहे है। सत्र मध्य में इन चिकित्सकों को हटाने से छात्रों के भविष्य पर भी सवाल खड़े हो गए हैं। हालात यह हैं कि छात्र तो छात्र रोगियों के लिए परेशानी खड़ हो गई है। शासन के इस कदम के बाद छात्रों की सारी कक्षाएं बाधित हो गई है, वहीं अस्पताल परामर्शदाता चिकित्सक विहीन हो गए हैं।
मुख्य परिसर हर्रावाला में बीए एमएस की 60 सीटों के सापेक्ष दो बैच चल रहे हैं, जिनको पढ़ाने के लिए नियमानुसार 17 नियमित शिक्षक व अस्पताल में सात कंसल्टेंट होने चाहिए इसी प्रकार गुरुकुल परिसर में 60 बीएएमएस और 22 एमडी की सीटों में भी कुल 32 शिक्षकों की आवश्यकता है, जो अभी स्नातकोत्तर उपाधिधारक टीचिंग कोड धारित संबद्ध चिकित्साधिकारीयों से पूरी की जा रही है, लेकिन यदि अभी सीसीआईएम का अकस्मात निरीक्षण हो जाए, तो इन तीनों कालेजों की मान्यता चली जाएगी।
विवि के कुलसचिव प्रो. अनूप कुमार गक्खड़ ने बताया कि शासन ने चिकित्साधिकारियों की समबद्धता समाप्त कर दी थी, लेकिन पूर्व कुलपति ने फैकल्टी की कमी का हवाला देते हुए इन्हें बहाल रखने का अनुरोध किया था। वेतन संबंधी प्रकरण संज्ञान में है। इस बाबत शासन को दोबारा पत्र भेजा जा रहा है।

पर्यटकों के आने से व्यापारियों के खिले चेहरे

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चकराता। चकराता क्षेत्र में पर्यटकों के आने से बाजारों में रौनक लौटने लगी है, जिससें व्यवासाय में बढ़ोत्तरी होने से व्यापारियों के चेहरे खिल उठे हैं।

हिमपात नहीं होने से चकराता क्षेत्र के बाजारों से रोनक गायब हो गई थी, इसके चलते वहां पर्यटकों का आना कम सा हो गया और जिसका सीधा असर उनके व्यवसाय पर होने लगा, लेकिन जैसे ही हिमपात होना शुरू हुई, पर्यटकों आगमन तेजी से शुरू हो गया और छावनी बाजार क्षेत्र के व्यापारियों के चेहरे खिल उठे। पर्यटकों के आने से होटल व्यवसाय से जुड़े लोगों ने राहत की सांस ली। बारिश के चलते क्षेत्र के मार्ग बंद होने के कारण चकराता क्षेत्र में देश के विभिन्न राज्यों से आने वालो पर्यटकों की आमद शून्य हो गई थी, जिससे व्यापारी व होटल व्यापारी बहुत परेशान हो गए थे।
बीते दो दिनों से पर्यटकों का आवागमन बढ़ा है और पर्यटक स्थल गुलजार होने के साथ स्थानीय बाजारों में भी रौनक लौट आई है, जो गुरुवार को छावनी बाजार चकराता में पर्यटकों की काफी संख्या देखने को मिली। पर्यटक स्थल टाइगर फॉल, चुरानी, राम ताल गार्डन, चिलमिरी में चहल पहल देखने को मिल रही है। छावनी बाजार के होटल मालिक विवेक अग्रवाल का कहना है कि लंबे समय बाद पर्यटकों की इतनी संख्या दिखाई दी है। उन्होंने कहा कि तीन माह से क्षेत्र में एक भी पर्यटक नजर नहीं आ रहे थे, जिससे पर्यटन व्यवसाय पूरी तरह ठप था, लेकिन दो दिनों से उनके आने से राहत मिली है। मौसम सुहाना है और पर्वतीय क्षेत्रों का नजारा बहुत ही सुंदर और विहंगम है, जिससे चलते सैलानी भी खुश नजर आ रहे हैं।

सरकार से तीन माह में मांगा शपथ पत्र

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नैनीताल। हाईकोर्ट ने गंगा नदी के उदगम गौमुख में भूस्खलन होने व झील बनने से खतरा होने से संबंधित मामले पर सरकार को तीन सप्ताह में प्रति शपथपत्र जबकि याचिकाकर्ता दिल्ली निवासी अजय गौतम को पूरक शपथ पत्र दाखिल करने के आदेश पारित किए हैं।

मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति केएम जोसफ की अध्यक्षता वाली खंडपीठ के समक्ष सरकार की ओर से मुख्य स्थाई अधुवक्ता परेश त्रिपाठी द्वारा जवाब दाखिल किया गया। जवाब में जिलाधिकारी उत्तरकाशी के सचिव आपदा प्रबंधन को भेजी आधिकारिक रिपोर्ट का हवाला दिया गया है, जिसमें भागीरथी नदी क्षेत्र में किसी तरह का भूस्खलन होने व झील बनने की रिपोर्ट को खारिज किया है। साथ ही कहा है कि भागीरथी ने कोई रास्ता नहीं बदला है। कोर्ट में सर्वे रिपोर्ट व फोटॉग्राफ भी संलग्न किए हैं। याची द्वारा पूरक शपथपत्र पत्र दाखिल करने के लिए समय मांगा तो खंडपीठ ने अगली सुनवाई दस जनवरी नियत कर दी।

एजीबीएएस रखेगा हाजिरी पर नजर

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देहरादून। केंद्रीय आयुष मंत्रालय अब देश भर के आयुष कॉलेजों की निगरानी करेगा। इन कॉलेजों में होने वाले फर्जीवाड़े को रोकने के लिए सेंट्रल काउंसिल ऑफ इंडियन मेडिसिन (सीसीआईएम) ने एजीबीएएस (आधार जीपीएस बायोमेट्रिक अटेंडेंस सिस्टम) लगाने के निर्देश जारी किए हैं।

एजीबीएएस से काम कर रहे कर्मचारी, शिक्षक और डॉक्टर सीधे केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय, सीसीआईएम काउंसिल से जुड़ जाएंगे। अधिकारियों का कहना है कि इस सिस्टम के लागू होने के बाद केंद्रीय अधिकारी कॉलेज पर सीधे नजर रख सकेंगे। अस्पताल में डॉक्टर कब आ रहे हैं, कितने मरीज देख रहे हैं, प्रोफेसर, कर्मचारी समय पर आ रहे हैं या नहीं इसकी निगरानी अब दिल्ली में बैठे अधिकारी करेंगे। आयुष मंत्रालय के निर्देशानुसार उपस्थिति प्रणाली में यह नई व्यवस्था देशभर में शीघ्र अपनाई जाएगी। इसमें सभी आयुर्वेदिक, यूनानी कॉलेजों के शिक्षक व शिक्षणेतर कर्मियों का डाटा आधार से सत्यापित किया जाएगा। सेंट्रल कॉउंसिल आफ इंडियन मेडिसिन के अलावा आयुष मंत्रालय उपस्थिति को नियमित मॉनिटर करेगा। कॉलेज में कार्य करने वाले शिक्षक, नान टीचिंग स्टाफ, चिकित्सक, पैरामेडिकल स्टाफ एवं पीजी छात्र ‘एजीबीएस’ में पंजीकृत रहेंगें। यह एक मोबाइल एप है जो एंड्रॉयड मोबाइल में इंस्टाल होगा। पंजीकरण के समय इन कॉलेजों के प्राचार्य तीन एंड्रॉयड मोबाइल का एप होना सुनिश्चित करेंगे। स्टाफ की समय पर उपस्थिति को संस्था के प्रधान सुनिश्चित करेंगे। मोबाइल एप पर रजिस्ट्रेशन के समय फैकल्टी डाटा के साथ आधार नंबर लिंक करना अनिवार्य होगा। जानकार मानते हैं कि यह आयुष की गिरती शिक्षा प्रणाली को सुधारने की दिशा में उठाया गया कदम है। देखना होगा कि यह सिर्फ कागजों तक ही सीमित रहता है या सही ढंग से क्रियान्वित भी हो पाता है।

भूजल बोर्ड पर पड़ा आवेदनों का बोझ

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देहरादून। एनजीटी के आदेश के मुताबिक 31 दिसम्बर तक भूजल दोहन करने वाले उद्योग, होटल, स्कूल-कॉलेज, शॉपिंग कॉम्पलेक्स, आवासीय परियोजनाओं आदि को केंद्रीय भूजल बोर्ड के क्षेत्रीय कार्यालय में ऑनलाइन आवेदन करना है। ताकि भूजल दोहन नियंत्रित किया जा सके और यह आंकड़ा भी स्पष्ट हो पाए कि भूजल दोहन की स्थिति किस प्रदेश में कैसी है।

वहीं, उत्तराखंड में एनजीटी (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) की डेडलाइन समाप्त होने को है। बावजूद इसके अभी तक महज एक हजार के आसपास ही आवेदन आ पाए हैं। हालांकि, भूजल बोर्ड इन्हीं आवेदनों के बोझ तले दबा नजर आ रहा है। इसकी वजह है आवेदनों के सत्यापन व उन्हें पास करने की जिम्मेदारी का भार महज तीन अधिकारियों पर है।
केंद्रीय भूजल बोर्ड के देहरादून स्थित क्षेत्रीय कार्यालय का ही आकलन मानें तो अभी करीब 35 हजार और आवेदन प्राप्त होने हैं। वहीं, बोर्ड सितम्बर माह में प्राप्त हुए आवेदनों का ही निस्तारण कर पाया है, जबकि अभी अक्टूबर, नवम्बर और दिसम्बर के आवेदनों का निस्तारण किया जाना शेष है, ऐसे में यदि आखिरी समय में आवेदनों की संख्या एकदम से बढ़ी तो बोर्ड अधिकारियों पर बोझ और बढ़ जाएग। भूजल बोर्ड के क्षेत्रीय प्रमुख अनुराग खन्ना का कहना है कि उनके कार्यालय में 22 पद स्वीकृत हैं, जबकि स्थाई रूप से छह कार्मिक ही कार्यरत हैं और भूजल दोहन के आवेदनों के निस्तारण का जिम्मा उनके अलावा सिर्फ अन्य दो अधिकारियों के पास है।
डेडलाइन बढ़ाने के संकेत नहीं
बोर्ड के क्षेत्रीय प्रमुख खन्ना के अनुसार एनजीटी की डेडलाइन अभी 31 दिसम्बर है। फिलहाल इसके आगे बढ़ने के कोई संकेत नहीं मिल रहे। लिहाजा, बेहतर इसी में है कि जो प्रतिष्ठान एनजीटी के आदेश के दायरे में आ रहे हैं, वह भूजल दोहन को लेकर ऑनलाइन आवेदन कर लें।
मैदानी क्षेत्रों में ही प्रतिष्ठानों की संख्या 31 हजार पार
एनजीटी के निर्देश के दायरे में आने वाले प्रतिष्ठानों की संख्या जनगणना 2011 के अनुसार 68 हजार के पार है, जबकि सबसे अधिक भूजल का दोहन देहरादून, हरिद्वार, ऊधमसिंहनगर व नैनीताल जिले में किया जाता है और यहां एनजीटी के निर्देश के दायरे में आने वाले प्रतिष्ठानों की संख्या 31 हजार 500 से अधिक है। मैदानी क्षेत्रों में ही भूजल दोहन की बात स्वीकार की जाए और यह माना जाए कि यहां के कम से कम 25 फीसद प्रतिष्ठान ही भूजल का दोहन कर रहे हैं, तब भी यह आंकड़ा 7800 से अधिक होना चाहिए। हालांकि, भूजल बोर्ड में राज्य से 35 हजार आवेदन मिलने की उम्मीद है।
इस श्रेणी के लिए भूजल दोहन का आवेदन जरूरी
यदि उद्योग (फैक्ट्री, वर्कशॉप आदि) स्कूल, कॉलेज, यूनिवर्सिटी, होटल, लॉज, गेस्ट हाउस आदि भूजल दोहन कर रहे हैं तो उन्हें इससे पहले केंद्रीय भूजल बोर्ड में आवेदन करने की अनिवार्यता की गई है।