अक्सर आपने पुलिस को होली के दूसरे दिन होली का जश्न मनाते हुए देखा होगा, लेकिन इस बार दून पुलिस ने एक अनोखी पहल शुरू की है। सोमवार को आम जनता की होली निपटने के बाद पुलिस कर्मी ने दोपहर से होली खेलना शुरू किया। देहरादून में आम जनता के साथ ही पुलिस की होली का जश्न अपने आप में पहला मौका होगा।आम जनता की होली के बाद आज पुलिस ने भी बड़े ही उत्साह और उमंग के साथ खेला होली का त्यौहार।सभी ने कोतवाली में इकठ्ठा होकर खेली होली।अधिकारीयों और कर्मचारियों ने एक दूसरे को रंग लगाकर दी होली की बधाई।होली के रंग में थिरकते दिखे पुलिस कर्मी।
आम जनता की होली के बाद पुलिस कर्मियों ने मनाई होली
बिहार का बहुचर्चित रेप कांड मामला,निखिल प्रियदर्शी और कृष्ण बिहारी की हुई गिरफ्तारी
बिहार के पूर्व मंत्री की बेटी के साथ यौन शोषण के आरोप में फरार चल रहे मुख्य आरोपी निखिल प्रियदर्शी को उत्तराखंड पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। आरोपी बिहार कैडर के पूर्व आईएएस के पुत्र है जिसे जनपद पौड़ी की लक्ष्मण झूला पुलिस ने चिला के पास गिरफ्तार कर लिया है। मुख्य आरोपी निखिल प्रियदर्शी की गिरफ्तारी की पुष्टि करते हुए वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक एम मोहसिन ने बताया कि योनाचार के मामले में वो पिछले 2 माह से फरार चल रहे थे, फिलहाल आरोपी को पौड़ी कोर्ट में पेश किया गया है और पूछताछ चल रही है।
फुल देेई,फूल-फूल माईः उत्तराखंड की बेजोड़ परंपरा
फुल देई का त्यौहार हर वर्ष मार्च महीने के मध्य में और चैत्र के शुरुआत में मनाया जाता है।इस दिन छोटी-छोटी लड़कियां तैयार होकर हाथ में फूलों की टोकरी लेकर अपने आस पास के घरों की दहलीज पर फूल सजाती हैं।इस दिन ज्यादातर प्रथाएं लड़कियां और महिलाएं निभाती हैं।उत्तराखंड के कुछ इलाकों में यह उत्सव वसंत ऋतु के आने की खुशी में पूरे महीने भी मनाया जाता है।
इस त्यौहार में बच्चे मौहल्ले के हर घर में थाली लेकर जाते हैं जिसमें चावल,गुण,नारियल,हरी पत्तियां और फूल होते हैं।बच्चे हर घर की दहलीज पर जाते हैं और फूल सजाते हैं जिसके बदले में उन्हें घर के मालिकों से आर्शीवाद के साथ मिठाईयां और उपहार मिलते हैं।
आज के समय में भी कहीं कहीं इस प्रथा को उतने ही धूमधाम से मनाया जाता है जितना पहले मनाया जाता था।कहीं कहीं यह बच्चे घरों की दहलीज पर फूल और चावल बिखराते हैं और यह गाना गाते हैः
“फूल दैई,छम्मा दैई, देनो द्वार,भूर भकार, यो देई से नमस्कार,पूजे द्वार”
सेई एक प्रकार का हलवा(चावल,दही और गुण का हलवा) है जो इस उत्सव के लिए खासकर पकाया जाता है।उत्तराखंड के लोक गायक इस दिन अलग अलग राग जैसे कि ऋतुरैन, चैतु और तरह तरह के गाने गाते है जिसके बदले में उन्हें घरों से अनाज,उपहार और पैसे मिलते हैं।
‘सर्वे भवन्तु सुखिन:’ का संदेश देती है यह परंपरा
‘‘फूल देई, फूल-फूल माई उत्तरखंडी परम्परा और प्रकृति से जुड़ा सामाजिक, सांस्कृतिक और लोक-पारंपरिक त्योहार है, जो कि पर्वतीय संस्कृति की त्रिवेणी है।’
यह एक सच्चाई है कि आधुनिक जीवन की भागदौड़ और आपाधापी में हम न जाने कितनी अच्छी परंपराओं और रिवाजों को भूल चुके हैं। लेकिन ऐसे अनेक परंपराएं थी जो निस्वार्थ थी, वे “वसुधैव कटुम्बकम” और “सर्वे भवन्तु सुखिन:” का संदेश देती थीं। “फूल देई, फूल-फूल माई” उत्तराखंड की ऐसी ही एक बेजोड़ परंपरा है।
चुनावी दंगल में महिलाओं ने भी रचा इतिहास
उत्तराखंड चुनाव के नतीजे सबके सामने हैं और बीजेपी खेमे में इस वक्त खुशी का माहौल है,और खुशियां मनाने की वजह है उनकी शानदार जीत।
इस जीत से एक बात तो साफ हो गई इस विधानसभा चुनाव में युवा और महिला मतदाताओं ने जमकर वोटिंग की हैं। 70 सीटों के चुनाव में कुल 5 महिलाओं ने जीत हासिल की है जिसमें से 3 बीजेपी प्रत्याशी हैं और 2 कांग्रेस की।आपको बता दें कि प्रदेश में कुल 637 उम्मीदवारों ने मैदान में अपना भाग्य अजमाया जिसमें से 62 महिला भी चुनाव लड़ रही थी।इस विधानसभा चुनाव में महिलाएं इतनी कम संख्या में चुनाव मैदान में थी।
जीतने वाली महिला प्रत्याशियों मेः
- सोमेश्वर रेखा आर्य (बीजेपी)
- मीना गंगोला गंगोलीहाट (बीजेपी)
- रितु खंडूरी यमकेश्वर (बीजेपी)
- इंदिरा हृदयेश हल्द्वानी (कांग्रेस)
- ममता राकेश भगवानपुर (कांग्रेस)
कांग्रेस विधायक एवम् पूर्व कैबिनेट मंत्री इंदिरा हृदयेश ने चुनाव जीतने के बाद कहा कि वह खुश है कि वह जीती लेकिन अपनी जीत के कम अंतर से वो नाखुश है,इसके साथ ही हृदयेश ने कहा जीत के मायने नही होते है विकास कार्य के होते हैं।पार्टी की बड़ी हार पर उन्होंने कहा कि विकास और भ्रम की लड़ाई में भ्रम की जीत हुई है,लेकिन जनता का जनादेश सर्वमान्य है और पार्टी की हार की समीक्षा की जाएगी।
इसके अलावा हरिद्वार की भगवानपुर प्रत्याशी दो मैदान में लड़ाई लड़ रही थी,एक चुनावी मैदान और दूसरा पारिवारिक मैदान।गौरतलब है कि ममता राकेश अपने देवर सुबोध राकेश(बीजेपी) के खिलाफ भगवानपुर से चुनावी मैदान में लड़ाई लड़ रहीं थी।ममता राकेश चुनावी मैदान में तो विजय का बिगुल बजा चुकी ही हैं साथ ही कांग्रेस से जीतने वाले दो प्रत्याशियों में भी इंदिरा हृद्येश के साथ ममता ने अपना नाम भी जोड़ लिया है।
इसके साथ ही यमकेश्वर सीट पर टिकट बंटवारे को लेकर जो जंग छिड़ी थी उसको लेकर कहीं ना कहीं अब पार्टी में सुकुन का माहौल होगा,रितु खंडूड़ी ने अपने राजनितिक कैरियर की शुरुआत कर दी है और शुरुआत में ही मिली जीत से भाजपा के साथ साथ रितु का कांफिडेन्स भी सातवें आसमान पर होगा।
जन्म के बाद नवोदित राज्य में जनादेश के खास मायने,अस्थिरता को जनता का तमाचा
अपने जन्म से ही इस प्रदेश ने इन 17 सालो में बहुत कुछ देखा है छोटे राज्य में नेतृत्व और दूदर्शिता की कमी ने रोज सत्ता के सौदेगारो की पौबारह की है जनता हमेशा हाशिये पर रही और जनप्रतिनिधधियों की कई पुश्ते सत्ता की मलाई से तर गयी चाहे बीजेपी या कांग्रेस और इन इ ज्यादा दोषी वो निर्दलीय जनप्रतिनिधि जिनको राज्य की जनता ने अपने बीच से विधानसभा में आवाज़ उठाने के लिए पहुचाया ,सब के सब सत्ता सुख में ऐसे डूबे की पहाड़ से क्या उतरे पहाड़ को ही भूल गए ,जनता पहाड़ो पर विपरीत परिस्थितियों में पहाड़ सा जीवन जीती रही लेकिन पब्लिक के नुमाइंदे अपने भोगविलास में पहाड़ की आवाज़ को हमेशा अनसुना करते रहे 16 सालो में सभी नेता पलायन कर गए ,नेताओ की देखादेखी में उनके पिछलगू भी राजधानी के आसपास बस गए ,गरीब -बेशहारा जनता रोजगार ,शिक्षा -चिकित्सा और उजडती खेती से निराश होकर अपने पुश्तों की जमींन मोह त्याग कर मैदानों में भविष्य की तलाश में बोरी बिस्तरा लेकर निकल पड़ी ,क्या करते से नवर खाने के लिए फसलो को नहीं छोड़ते और नेता विकास पर कुंडली मार कर सिर्फ लुभावने वाडे की चाशनी पिलाते रहे आज हालात इतने बिगड़ गए कि गाव के गाव खाली और सुनसान पड़े है ऐसे में सवाल उठता है कि इसका असली जिम्मेदार कौन है यहाँ कि जनता या यंहा के जनप्रतिनिधि ??? 2017 का जनादेश कई कसौटियों पर नेताओ को कसेगा और एक सबक सिखाएगा उन निर्दलीय ,छेत्रिय दल और ताकत के घमंड में मदमस्त राष्ट्रीय दलो को जिनको राज्य में कमान समालने के बाद अपनी जनता की याद तक नहीं आती उड़ने को पंख तो लग जाते है पर चलने के लिए सडक तक नहीं बन पाती ये जनादेश भाजपा के लिए भी बड़ा सबक है डबल इंजन की चाह में उत्तराखंड के युवाओ-महिलाओ -बुजुर्गो ने सिर्फ विकास को चुना है रोज़गार और राज्य की उन्नति को चुन कर मोदी पर भरोसा किया न की यहाँ के जनप्रतिनिधियो पर ,जनादेश की इस प्रचण्ड लहर में सबको तार दिया ,सिर्फ और सिर्फ केंद्र के डबल इंजन की सवारी की आस में ,अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को जो कहा वो कर दिखाना होगा नहीं तो राज्य कभी माफ़ नहीं करेगा ,युवा पढ़ा लिखा है और राज्य की भोली-भाली जनता हर बार नेताओ से ठगी से ठोकरे खा कर मजबूत और समझदार बन गयी है जिसका परिणाम इस जनादेश में देखने को साफ़ मिला है सभी जनप्रतिनिधियो को सबक है जो जीते है उनको भी जो हारे है उनको भी काम करो या घर बैठो यही उत्तराखंड के २०१७ के नतीजे 56 सीटों पर एक नयी उम्मीद में सिर्फ विकास -विकास और विकास की मांग कर रतह जो भाजपा के लिए अग्नि परीक्षा जैसा होगा।
एक नजर छेत्रिय दलो की स्तिति पे —
- 54 में से सिर्फ 6 प्रत्याशी ही छू पाए हजार का आंकड़ा –
- द्धाराहाट से प्रत्याशी पुष्पेश त्रिपाठी को 6581 वोट मिले
- नरेंद्र नगर से सरदार सिंह को 3273 ,
- डीडीहाट से कशी सिंह ऐरी को 2896 और प्रतापनगर से पंकज व्यास को 1078 वोट मिले।
जहाँ 2002 और 2007 चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन ठीक-ठाक दिखा था तो इस साल 2017 चुनाव में UKD को एक भी सीट पर जीत नहीं मिली।
सालों बाद मार्च में मसूरी ने देखी बर्फ की सफेदी
मसूरी की पहाड़ियां कई सालों के बाद मध्य मार्च में हिमपात से लदकद हुई हैं तो मसूरीवासियों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। इस साल की पूरी सर्दियां खत्म हो चुकी थीं और मसूरी के समीपवर्ती पहाड़ियां में कई बार बर्फबारी हुई मगर मसूरी हर बार हिमपात के लिए तरसती रही। शनिवार देर रात्रि को मसूरी में बारिश के साथ बर्फ गिरने लगीं तो लोग हिमपात की संभावनाएं को लेकर उत्सुक थे और सुबह उठे तो पूरी मसूरी बर्फ की सफेद चादर से लदकद हो चुकी थीं।
दोपहर होते-होते हिमपात का नजारा देखने के लिए मसूरी में पर्यटकों की आमद शुरू हो चुकी थी। दुधली भदराज, क्लाउड एण्ड, जॉर्ज एवरेस्ट, कंपनी गार्डन, विंसेंट हिल, गनहिल, लाईब्रेरी बाजार, मालरोड, लंढौर बाजार, लालटिब्बा और निकटवर्ती नागटिब्बा, बुराशंखण्डा, धनोल्टी, सुरकण्डा आदि पहाड़ियों पर जोरदार बर्फबारी हुई।
मालरोड़ क्षेत्र में दो से तीन इंच और गनहिल एवं लालटिब्बा क्षेत्र में चार से आठ इंच तक हिमपात हुआ है। हिमपात से पूरी नगरी शीतलहर की चपेट में आ गई है और अभी भी हिमपात की संभावनाएं लगातार बनी हुई है।
निकटवर्ती अगलाड़ एवं यमुना घाटी में शुक्रवार रात्रि बारिश होती रही और ऊंचाई वाले क्षेत्रों जैसे पत्थर खोला, त्याड़े भदराज व नागथात में भी हिमपात हुआ है।
मौसम की मार से परेशान देवभूमि
उत्तराखंड में मौसम की दुश्वारियां भारी पड़ रही हैं। चमोली जिले के कनोल गांव में बर्फीले तूफान में 95 बकरियों के दबने की सूचना मिली है। इनमें से 60 की मौत हो गई है जबकि शेष लापता हैं।
यही नहीं, दशोली विकासखंड के कोंज गांव में मकान ढहने से मलबे की चपेट में आकर महिला घायल हो गई, जबकि कुमाऊं मंडल के मदकोट क्षेत्र में आकाशीय बिजली से महिला गंभीर रूप से झुलस गई। दूसरी ओर, बर्फबारी के चलते बंद यमुनोत्री व गंगोत्री राजमार्ग छठवें दिन भी नहीं खुल पाए। उधर, मौसम विभाग की मानें तो अभी दो दिन और सूबे में मौसम शुष्क रहेगा।
बताते चलें कि उत्तराखंड में बीते मंगलवार से मौसम का मिजाज बिगड़ा और इसी के साथ शुरू हो गया बारिश व बर्फबारी का सिलसिला। रविवार को गढ़वाल मंडल में बदरा शांत रहे, लेकिन कुमाऊं के पिथौरागढ़ जिले के उच्च हिमालयी क्षेत्र में बर्फबारी जारी रही।
वहीं, चमोली जिले के घाट ब्लाक के कनोल गांव क्षेत्र में बर्फीला तूफान भी चला। तब कनोल के तोक गठियाणा में चरने गई बकरियां बर्फ में दब गई। बकरियां चरा रहे कनोल गांव के पुष्कर सिंह, गबर सिंह व नारायण सिंह ने जैसे-तैसे जान बचाई। देर रात तक बर्फबारी व बारिश जारी रहने पर सुबह ग्रामीणों ने बकरियों की खोज की। इनमें से 60 मृत मिलीं, जबकि 35 लापता हैं। घटना के संबंध में तहसील प्रशासन को सूचना दे दी गई है।
इसी तरह चमोली में ही विकासखंड दशोली के कोंज गांव में बारिश-बर्फबारी के दौरान बीना देवी का मकान ढह गया। जिला पंचायत सदस्य भागीरथी कुंजवाल के मुताबिक मलबे की चपेट में आकर घायल हुई बीना का जिला चिकित्सालय में उपचार कराया गया। कुमाऊं के मदकोट क्षेत्र के इमला गांव की मोहिनी देवी तब आकाशीय बिजली की चपेट में आकर झुलस गईं, जब वह गांव के नजदीक मवेशियों को चराने गई थीं।
विदेशी सैलानियों ने ऋषिकेश में जमकर खेली होली
होली का त्यौहार रंगो के साथ साथ आपसी भाई चारे और प्यार का त्यौहार है ,जिसका हर कोई लुफ्त उठाता है। बात करे ऋषिकेश की तो यहाँ भी गंगा किनारे देशी-विदेशी लोगों ने होली खेली और जमकर इस रंगों के त्यौहार का लुफ्त उठाया। सुबह से ही ऋषिकेश के गंगा तट पर होली की मस्ती का खुमार चड़ने लगा। विदेशों से आये पर्यटक भी होली के रंगों की मस्ती में डूब गये। ऋषिकेश के गंगा तट पर रंगो की मस्ती का जादू कुछ अलग ही देखने को मिला। यहाँ विदेशों से आये सैलानियों ने रंगों के त्यौहार होली को बड़े ही धूम धाम से मनाया। होली की मस्ती का खुमार विदेशियों पर कुछ इस तरह चढ़ा कि सब होली की मस्ती में सुबह से ही नाच गाने में डूबे रहे। देशी विदेशी पर्यटक होली के रंग में खूब मस्ती करते दिखे। अलग अलग देशों से आये पर्यटकों ने गंगा किनारे होली का लुफ्त उठाया।
ऋषिकेश चार धाम का प्रवेश द्वार होने के कारण विभिन्न संस्कृति और रीती रिवाज का भी एक केंद्र है। ऐसे में होली का त्यौहार यहाँ आकर बसे पूरब और पछिम के लोगों को एक सूत्र में बांधता है। होली एक ऐसा त्यौहार है जो बच्चे और बुजुर्गों दोनो में जिन्दगी के रंग भर देता है। रंगों के इस त्यौहार में हर कोई फ़ाग की मस्ती में डूबा गया और होली को गुलाल और हर्बल रंगों से सुरक्षित भी बनाया। इजराइल अमेरिका जापान और चीन से आये आना ,रिचर्ड का कहना है कि होली की मस्ती भारत में देखने लायक है। रंगों के इस त्यौहार में एक अलग रंग है यहाँ की परम्परा का जो नये चलन के बाद भी आज भी अपनी संस्कृति को संजोए हुए है। समय की कमी भी होली की मस्ती को रोक नहीं पाती ,हर कोई ढोलक की धाप और रंगों की महक में सराबोर होने के लिए तैयार रहता है।
मोदी के रंग व पिचकारी से बाजार में आई रौनक
युवा और महिला मतदाताओं ने बदल दी कई की किस्मत
राजधानी देहरादून के चुनाव परिणाम में युवा और महिला शक्ति का जमकर सिक्का चला। मतदाताओं के रूप में जहां 64 फीसद से अधिक युवा मतदाताओं का विजन था, तो महिला मतदाताओं ने पुरुषों की अपेक्षा 4.34 फीसद अधिक मतदान कर प्रत्याशियों का भविष्य तय करने में अहम भूमिका निभाई।इस चुनाव के आंकड़े गवाह हैं कि जिस सीट पर महिला मत प्रतिशत जितना अधिक रहा, वहां जीत का अंतर भी उसी अनुपात में ऊपर रहा। रायपुर, डोईवाला, कैंट सीट व सहसपुर सीट इसका बात का जीता जागता उदाहरण हैं। वहीं, महिला-पुरुष मत प्रतिशत में सबसे कम अंतर चकराता सीट पर रहा और इसी सीट पर जीत की सुनामी लाने वाली भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। हालांकि जीत का अंतर मामूली रहा या यूं कहें कि यहां भी महिला मत प्रतिशत अन्य सीट की तरह होता तो शायद परिणाम भी बदले नजर आ सकते थे।
चुनाव में युवा शक्ति की बात करें तो 18 से 39 वर्ष तक के मतदाताओं की संख्या 64.3 फीसद रही। मतदान में भी आबादी का यही हिस्सा वोट डालने में आगे रहा। खास बात यह कि इस वर्ष ने प्रत्याशी या पार्टी को उसकी दूरगामी सोच के आधार पर पसंद या नापसंद किया। इस वर्ग ने बिना प्रलोभन में आए वोट डाला और अपने प्रतिनिधि का चुनाव किया। इस चुनाव में युवाओं और महिलाओं की अधिकतम् सहभागिता के पीछे चुनाव आयोग की जनजागरूकता के लिए कड़ी मेहनत भी जिम्मेदार है जिसने लगातार अभियान चलाकर लोगों को जागरूक किया।