जन्म के बाद नवोदित राज्य में जनादेश के खास मायने,अस्थिरता को जनता का तमाचा

अपने जन्म से ही इस प्रदेश ने इन 17 सालो में बहुत कुछ देखा है छोटे राज्य में नेतृत्व और दूदर्शिता की कमी ने रोज सत्ता के सौदेगारो की पौबारह की है जनता हमेशा हाशिये पर रही और जनप्रतिनिधधियों की कई पुश्ते सत्ता की मलाई से तर गयी चाहे बीजेपी या कांग्रेस और इन इ ज्यादा दोषी वो निर्दलीय जनप्रतिनिधि जिनको राज्य की जनता ने अपने बीच से विधानसभा में आवाज़ उठाने के लिए पहुचाया ,सब के सब सत्ता सुख में ऐसे डूबे की पहाड़ से क्या उतरे पहाड़ को ही भूल गए ,जनता पहाड़ो पर विपरीत परिस्थितियों में पहाड़ सा जीवन जीती रही लेकिन पब्लिक के नुमाइंदे अपने भोगविलास में पहाड़ की आवाज़ को हमेशा अनसुना करते रहे 16 सालो में सभी नेता पलायन कर गए ,नेताओ की देखादेखी में उनके पिछलगू भी राजधानी के आसपास बस गए ,गरीब -बेशहारा जनता रोजगार ,शिक्षा -चिकित्सा और उजडती खेती से निराश होकर अपने पुश्तों की जमींन मोह त्याग कर मैदानों में भविष्य की तलाश में बोरी बिस्तरा लेकर निकल पड़ी ,क्या करते से नवर खाने के लिए फसलो को नहीं छोड़ते और नेता विकास पर कुंडली मार कर सिर्फ लुभावने वाडे की चाशनी पिलाते रहे आज हालात इतने बिगड़ गए कि गाव के गाव खाली और सुनसान पड़े है ऐसे में सवाल उठता है कि इसका असली जिम्मेदार कौन है यहाँ कि जनता  या यंहा के जनप्रतिनिधि ??? 2017 का जनादेश कई कसौटियों पर नेताओ को कसेगा और एक सबक सिखाएगा उन निर्दलीय ,छेत्रिय दल और ताकत के घमंड में मदमस्त राष्ट्रीय दलो को जिनको राज्य में कमान समालने के बाद अपनी जनता की याद तक नहीं आती उड़ने को पंख तो लग जाते है पर चलने के लिए सडक तक नहीं बन पाती ये जनादेश भाजपा के लिए भी बड़ा सबक है डबल इंजन की चाह में उत्तराखंड के युवाओ-महिलाओ -बुजुर्गो ने सिर्फ विकास को चुना है रोज़गार और राज्य की उन्नति को चुन कर मोदी पर भरोसा किया न की यहाँ के जनप्रतिनिधियो पर ,जनादेश की इस प्रचण्ड लहर में सबको तार दिया ,सिर्फ और सिर्फ केंद्र के डबल इंजन की सवारी की आस में ,अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को जो कहा वो कर दिखाना होगा नहीं तो राज्य कभी माफ़ नहीं करेगा ,युवा पढ़ा  लिखा है और राज्य की भोली-भाली जनता हर बार नेताओ से ठगी से  ठोकरे खा कर मजबूत और समझदार बन गयी है जिसका परिणाम इस जनादेश में देखने को साफ़ मिला है सभी जनप्रतिनिधियो को सबक है जो जीते है उनको भी जो हारे है उनको भी काम करो या घर बैठो यही उत्तराखंड  के २०१७ के नतीजे 56 सीटों पर एक नयी उम्मीद में सिर्फ विकास -विकास और विकास की मांग कर रतह जो भाजपा के लिए अग्नि परीक्षा जैसा होगा।

एक नजर छेत्रिय दलो की स्तिति पे —

  • 54 में से सिर्फ 6 प्रत्याशी ही छू पाए हजार का आंकड़ा –
  • द्धाराहाट से प्रत्याशी पुष्पेश त्रिपाठी को 6581 वोट मिले
  • नरेंद्र नगर से सरदार सिंह को 3273 ,
  • डीडीहाट से कशी सिंह ऐरी को 2896 और प्रतापनगर से पंकज व्यास को 1078 वोट मिले।

जहाँ 2002 और 2007 चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन ठीक-ठाक दिखा था तो इस साल 2017 चुनाव में UKD को एक भी सीट पर जीत नहीं मिली।