बाघों की मौत पर चिंताजनक आंकडे़

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यूं तो कॉर्बेट पार्क व उससे सटे इलाके बाघों की तादाद के हिसाब से सुखद अहसास कराते हैं। इसीलिए पर्यटक देश-विदेश से यहां घूमने आते हैं लेकिन पिछले छह माह में यहां हर महीने औसतन दो बाघों की मौत हो रही है। अब तक 11 बाघ मौत की नींद सो चुके हैं। इससे कॉर्बेट प्रशासन भी सवालों के घेरे में आ गया है। लगातार हो रही बाघों की मौत के बाद बाघों के संरक्षण पर सवाल खड़े होने लगे हैं।

रामनगर को बाघों की राजधानी कहा जाता है। इनकी अच्छी तादाद के चलते यह क्षेत्र मशहूर है। बाघों के कारण ही साल दर साल सरकार को करोड़ों राजस्व मिलता है। बाघों की सुरक्षा के नाम पर करोड़ों रुपये का बजट हर साल आता है लेकिन पिछले कुछ समय से बाघों की मौत ने रामनगर को सुर्खियों में ला दिया है। कभी आपसी संघर्ष में बाघ जान गंवा रहे हैं तो कभी संदिग्ध परिस्थितियों में बाघ के सड़े-गले शव बरामद हो रहे हैं। भले ही बाघों की मौत की वजह अलग-अलग हों लेकिन बाघों का लगातार मरना कई सवाल खड़े कर रहा है। हालांकि कॉर्बेट के अधिकारी बाघों की मौत एक इत्तफाक ही मानते हैं।

सेही के हमले में बाघ की मौत की यह पहली घटना नहीं है। इससे पूर्व भी कॉर्बेट में सही के हमले में बाघ मारे जा चुके हैं। वन अधिकारियों के मुताबिक, जंगल में सेही अचानक बाघिन के सामने आ गई होगी या बाघिन ने उसे अपना शिकार बनाने का प्रयास किया होगा। इसी वजह से उसने खतरा भांपकर बचाव में अपने शरीर पर लगे तीरनुमा कांटे छोड़ दिए। यही कांटे बाघिन के शरीर पर जगह-जगह घुस गए जिससे घाव बनने के बाद संक्रमण हो गया। अधिक रक्तस्राव बाघिन की मौत की वजह बन गया। सेही के कांटे छह इंच से एक फीट तक होते हैं।

छह माह में कहां-कहां मरे बाघ

1 जनवरी- कालाढूंगी रेंज रामनगर वन प्रभाग।

19 जनवरी-देचौरी रेंज-रामनगर वन प्रभाग।

16 फरवरी-बैलपड़ाव रेंज रामनगर वन प्रभाग।

22 फरवरी-बैलपड़ाव रेंज-रामनगर वन प्रभाग।

16 मार्च- बैलपड़ाव रेंज- तराई पश्चिमी वन प्रभाग।

31 मार्च- सर्पदुली रेंज-कॉर्बेट टाइगर रिजर्व।

14 अपै्रल-देचौरी रेंज-रामनगर वन प्रभाग।

01 मई-बैलपड़ाव रेंज-रामनगर वन प्रभाग।

02 मई- बिजरानी रेंज- कॉर्बेट टाइगर रिजर्व।

23 मई-कालागढ़ रेंज- कॉर्बेट टाइगर रिजर्व।

17 जून-सर्पदुली रेंज-कॉर्बेट टाइगर रिजर्व।