हर घर-आंगन, बाग-बगीचे में फूलों पर भिनभिनाते हुए दिख जाने वाली मधुमक्खियां अब नजर नहीं आतीं। मधुमक्खियों का यूं गुम हो जाना, हमारे लिए शुभ संकेत नहीं है। इस लिहाज से मधुमक्खी पालन को बढ़ावा देने वाली हर खबर हमारे लिए शुभ समाचार से कम नहीं होनी चाहिए। ऐसी ही एक खबर है उत्तराखंड से, पंतनगर विश्वविद्यालयसे जहां अथक परिश्रम के बाद डंकरहित मधुमक्खी को पालने की नई तकनीक विकसित करने में सफलता मिल पाई है। इसे अपने तरह की एक बड़ी कामयाबी माना जा रहा है।
दरअसल ‘डामर’ नामक मधुमक्खी की एक खूबी यह है कि यह डंकरहित होती है। लेकिन इसकी सबसे बड़ी खूबी यह है कि यह सामान्य मधुमक्खियों से हर लिहाज में दस गुना ज्यादा दमदार है। इसके द्वारा बनाया जाने वाला शहद भी सामान्य शहद से 10 गुना बेहतर आंका गया है। शहद अधिक गुणवत्तापूर्ण तो है ही, इसका दाम भी सामान्य शहद की तुलना में करीब 10 गुना अधिक है। मधुमक्खी पालन को बढ़ावा देने और इसके जरिये किसानों को बेहतरी का विकल्प मुहैया कराने की दिशा में शोध को खास माना जा रहा है।
डामर का बायोलॉजिकल नाम टेटरागोनुला इरीडीपेनिस है। डंक रहित होने का साथ ही इसकी एक खूबी यह भी है कि यह एक सामाजिक कीट है। इन्हीं दो कारणों से इसे आसानी से पाला जा सकता है। बस विशेष तापमान की आवश्यकता होती है, जिसके लिए विवि के कीट विज्ञान विभाग ने खास पेटियां विकसित की हैं। डामर मुख्य रूप से पुराने पेड़ों की खोखलों और बस्तियों में मकानों की दीवारों के खोल में घर बनाती है। लंबे शोध के बाद इसके व्यावसायिक पालन के लिए जरूरी संशाधन विकसित करने में सफलता मिली है।
                





















































