उत्तराखंड सरकार ने खेला अब विकास प्राधिकरणों का दांव

0
660
विकास प्राधिकरणों
भाजपा के शासनकाल में अस्तित्व में आए जिला विकास प्राधिकरणों से जुड़े नियमों में जल्द ही ऐसे बदलाव होने जा रहे हैं, जो लोगों को सुकून दे सकते हैं। राज्य स्थापना दिवस पर गैरसैंण-भराड़ीसैंण की धरती से इस संबंध में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने जो संकेत दिए हैं, उनके खास मायने हैं। विधानसभा चुनाव में अब ज्यादा वक्त नहीं है और सरकार को प्राधिकरणों को लेकर लोगों की नाराजगी का अहसास है। इससे पहले विपक्ष इस मामले को अच्छे से लपक ले, सरकार ने अपनी तरफ से दांव चल दिया है।
– लोगों की नाराजगी का अहसास, चुनाव का भी है दबाव
– मुख्यमंत्री के गैरसैंण जाकर संकेत देने के खास मायने 
दरअसल, यह भी सच्चाई है कि जिला विकास प्राधिकरणों की कार्यशैली को लेकर भाजपा सरकार और संगठन दोनों के भीतर असहजता की स्थिति है। अभी ज्यादा दिन नहीं हुए, जबकि खुद प्रदेश अध्यक्ष बंशीधर भगत मुख्यमंत्री से इस संबंध में मिले थे और राहत का अनुरोध किया था। इससे पहले, विधानसभा के कई सत्रों में जब-जब प्राधिकरणों का मामला उठा, विपक्ष के साथ भाजपा के विधायक भी मुखर दिखे थे। भाजपा शासनकाल में ही जिला विकास प्राधिकरणों का गठन हुआ है। इससे पहले, पूरे प्रदेश में मसूरी देहरादून विकास प्राधिकरण, हरिद्वार विकास प्राधिकरण, दून घाटी विशेष क्षेत्र प्राधिकरण, नैनीताल झील विकास प्राधिकरण आदि ही थे और बहुत कम इलाका प्राधिकरणों से कवर होता था।
त्रिवेंद्र रावत सरकार से पहले हरीश रावत सरकार ने विकास प्राधिकरणोें को लेकर नया प्रयोग करने की कोशिश की थी। तब हरीश रावत सरकार नेे सभी 19 विनियमित क्षेेत्रोें को प्राधिकरण का दर्जा देने का आदेश जाारी किया था। इससे पहले, वह इस पर अमल कर पाती, तब तक चुनाव में कांग्रेस सरकार का तख्ता पलट हो गया। त्रिवेंद्र सरकार ने सभी जिलों में विकास प्राधिकरण का निर्णय लिया और इसे अमल में भी ले आई। सरकार के तर्क थे कि नियोजित विकास के लिए ज्यादा से ज्यादा इलाकों को प्राधिकरण के दायरे मेें लाना जरूरी है। प्राधिकरण गठन का खास तौर पर पर्वतीय क्षेत्रों में दुष्परिणाम दिखने लगे, जहां पर विकास तो कम हुआ लेकिन मानचित्र के नाम पर लोगों का उत्पीड़न जरूर शुरू हो गया। विधायकों ने इस मामले को सदन में उठाया था, तो इस पर कमेटी बना दी गई थी।
राज्य स्थापना दिवस के मौके पर गैरसैण भराड़ीसैंण पहुंचकर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने प्राधिकरणों के नियमोें में छूट का जिक्र किया है। अब यह छूट किस रूप में सामने आती है, यह कुछ समय बाद साफ हो पाएगी लेकिन इतना तय है कि सरकार नेे चुनाव की करीब सुनाई देती दस्तक के बीच प्राधिकरणों के मसले पर गंभीरता जताने केे प्रयास किए हैं। हालांकि यह भी तय है कि विकास प्राधिकरणोें को खत्म करने जैसी मांग को सरकार ने नजरअंदाज कर दिया है।