अब धारचूला की कहानी कहेंगी सृष्टि लखेड़ा

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लखेड़ा

अपनी डाक्यूमेंट्री फिल्म ”एक था गांव” के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार जीतने वाली फिल्म निदेशक सृष्टि लखेड़ा अब धारचूला पर रिसर्च कर अपनी अगली डाक्यूमेंट्री बनाएंगी।

हिन्दुस्थान समाचार के साथ बातचीत में उत्तराखंड की महिला निर्देशक सृष्टि लखेड़ा ने अपनी भविष्य की योजना का खुलासा किया। उन्होंने बताया कि धारचूला जाकर वह जल्द ही प्रस्तावित फिल्म के लिए रिसर्च करेंगी। उन्होंने कहा कि ”एक था गांव” फिल्म चार वर्ष में तैयार हो पाई। धारचूला को केंद्र में रखकर जिस फिल्म को वह बनाएंगी, उसमें भी इतना ही समय लगेगा। इसके अलावा ”एक था गांव” 61 मिनट की थी, वहीं उनकी अगली फिल्म 80 से 90 मिनट की रहेगी। सृष्टि लखेड़ा का कहना है कि ”एक था गांव” उन्होंने पूरे मनोयोग से बनाई है। जब फिल्म बनकर तैयार हुई, तो उन्हें एक अजब तरीके का सुकून हासिल हुआ। हालांकि यह उम्मीद नहीं थी कि उन्हें उनके पहले ही प्रयास में राष्ट्रपति के हाथों राष्ट्रीय पुरस्कार हासिल हो जाएगा।

उल्लेखनीय है कि उत्तराखंड के पलायन पर यूं तो अलग-अलग स्तरों से प्रभावी आवाज उठती रही है, लेकिन राष्ट्रीय पुरस्कार जीतने वाली सृष्टि लखेड़ा ने इस विषय को बडे़ फलक तक ले गई हैं। उन्होंने अपनी डाक्यूमेन्ट्री फिल्म ”एक था गांव” में गढ़वाल केे टिहरी जिले के सेमला गांव के जरिये पूरे पहाड़ की कहानी को बयान किया था। इस फिल्म को पिछले दिनों राष्ट्रीय पुरस्कार मिला है। सृष्टि लखेड़ा के अनुसार-एक था गांव की कहानी उनकी खुद की कहानी है। टिहरी जिले के सेमला में उनका गांव है, जहां के अधिकांश लोगों ने पलायन कर दिया है। जो लोग मजबूरी में पलायन नहीं कर पाए हैं, उनमें महिलाएं ज्यादा हैं। अपने गांव की उन्होंने जैसी स्थिति देखी, उसके आधार पर उन्होंने एक था गांव फिल्म का निर्माण कर दिया। फिल्म एक बुजुर्ग महिला लीला देवी और एक किशोरी गोलू की कहानी है, उनको ही केंद्र में रखकर सृष्टि लखेड़ा ने एक था गांव की कहानी को बुना है।