नतीजे का इंतजार, राय-मशविरा, वार-प्रतिवार

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उत्तराखंड

विधानसभा चुनाव में पूरी ताकत झोंकने के बावजूद दलों के दिग्गज अभी थके नहीं है। या यूं कह सकते हैं कि चाहकर भी वह थककर बैठना नहीं चाहते। इसलिए एक-एक सीट पर कई-कई बार का गुणा भाग जारी है। राय-मशविरा चल रहा है। साथ ही, वार-प्रतिवार के खेल से माहौल में गर्माहट भरने का काम जारी है।

भाजपा-कांग्रेस के लिए इस चुनाव में भी सब कुछ दांव पर लगा है। कांग्रेस यदि हारती है, तो फिर दस साल सत्ता से बाहर रहने के नुकसान उसे बहुत भारी पड़ेंगे। यदि ऐसा भाजपा के साथ होता है, तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रति लोगों के क्रेज के बावजूद ऐसा होना उसे बहुत अंदर तक तोड़ जाएगा। आम आदमी पार्टी(आप) के नेता भले ही बडे़-बडे़ दावे कर लें, लेकिन अंदरखाने एक दबाव से वह भी जूझ रहे हैं। यह दबाव चुनाव में अच्छा प्रदर्शन करने को लेकर है। आप यदि इस चुनाव में थोड़ा बहुत भी अच्छा कर लेती है, तो भविष्य के लिए उत्तराखंड में वह उम्मीद कर सकती है। यदि आप प्रभावहीन साबित होती है, तो यह उसके लिए बड़ा झटका होगा। पार्टी ने 2014 का लोकसभा चुनाव भी उत्तराखंड में लड़ा था, लेकिन कुछ खास नहीं कर पाई थी। इस बार वह 70 सीटों पर चुनाव लड़ने उतरी है, उसे क्या मिलता है, यह देखने वाली बात होगी?

इन स्थितियों के बीच, चाहे मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी हों या फिर कांग्रेस के सबसे बडे़ चेहरे हरीश रावत, दोनों लगातार सक्रियता बनाए हुए हैं। कांग्रेस की तरफ से रोज नए आरोप भाजपा पर लगाए जा रहे हैं। भाजपा भी मजबूती से उसका पलटवार कर रही है। ईवीएम से लेकर पोस्टल बैलेट तक में गड़बड़ी की बातें उठ रही हैं। कुछ उम्मीदवार ऐसे भी हैं, जो खाली वक्त में अपने क्षेत्र में फिर से पहुंच रहे हैं। इस बार मकसद वोट मांगना नहीं, बल्कि आभार प्रकट करना है।