सड़क के गड्ढे ने नहीं “एडजस्टमेंट” ने ली दो युवतियों की जान

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देहरादून में दो युवतियों की सड़क हादसे में दर्दनाक मौत के बाद की सवाल खड़े हो गये हैं। सबसे बड़ा सवाल है कि क्या देहरादून की सड़के लगातार बढ़ते ट्रैफिक को संभालने के लिये काफी है। राज्य बनने के बाद से ही प्रदेशभर में गाड़ियों की संख्या में भारी इजाफा हुआ है। इसे राज्य की बढ़ती अर्थ व्यवस्था के अलावा और राज्यों के मुकाबले उत्तराखंड में सड़क कर की दरें कम होना भी है। राजधानी देहरादून की ही बात करें तो शहर की सड़कों पर लगातार गाड़ियों का बोझ बढ़ता जा रहा है। इसके साथ साथ बारिशों ने एक बार फिर सरकारी काम की पोल खोल के रख दी है।

हादसे का संज्ञान लेते हुए सीएम रावत ने सोमवार को लोक निर्माण विभाग के प्रमुख अभियन्ता को निर्देश दिये कि प्रदेश भर में सड़कों पर हुए गड्डो को तुरंत भरें। उन्होंने अभी तक इस दिशा में लोक निर्माण विभाग की कार्यशैली पर नाराजगी व्यक्त भी की।इसके लिए जिला प्रशासन और स्थानीय निकायों से तालमेल कर इस समस्या का निवारण करें। पहाड़ो में भारी बारिश को देखते हुए आपदा से निपटने के लिये जिलाधिकारियों को और एसडीआरएफ की टीमों को अलर्ट पर रहने के निर्देश भी दिए हैं।

सीएम का ये एक्शन पर रियेक्शन काबिले तारीफ तो है पर सवाल ये है कि कब तक सरकार को जगाने के लिये आम लोगों को अपनी जान की कुर्बानियां देनी पड़ेगी। इस हादसे की ही बात करें तो क्यों नहीं सरकार ने सड़क बनाने वाले ठेकेदार या उसे पास कर रख ऱखाव का ध्यान रखने वाले सरकारी अधिकारी पर आपराधिक मामला दर्ज कराया। क्यों हम किसी आपदा का इंतजार करते हैं पर्यावरण बचाव संबंधी कदम उठाने के लिये। क्यों किसी हत्या होने का इंतजार किया जाता है जिसके बाद पुलिस महकमा हरकत में आये कानून की रक्षा करने के लिये।

हमारी राजनैतिक और सामाजिक जीवनशैली का एक ढर्रा सा बन गया है। जो जैसा है उसे वैसा ही चलने दिया जाये। अंग्रेजी में इसके लिये सब्द है “एडजस्ट” करना। जब तक पानी सर के ऊपर से न निकल जाये तब तक जनाब एडजस्ट करते रहिये। इस एडजस्टमेंट की नींद से जागने के लिये हमें कम सेकम एक हादसे की जरूरत पड़ती है। इसके बाद भी कोई गारंटी नही है कि हमारा सिस्टम कुछ बदलेगा। पर हां ये तय है कि कुछ नये एडजस्टमेंट के लिये तैयारी जरूर कर ली जायेगी।

बहरहाल इस हादसे ने सवाल तो कई खड़े कर दिये हैं लेकिन इन सवालों के जवाब भी हमें ही तलाशने होंगे। क्योंकि जिन हुक्मरानों से हम जवाबों की उम्मीद कर रहे हैं वो भी शायद कोई और हादसा होने का इंतजार कर रहे हैं।