मुआवजे के मामले में उत्तराखंड मुख्य सचिव को सुप्रीम कोर्ट का नोटिस

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सुप्रीम कोर्ट
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देहरादून,  उच्च न्यायालय ने वर्ष 2013 में उत्तराखंड में आई आपदा में श्रीनगर बांध के कारण प्रभावित हुए परिवारों की ओर से अलकनंदा हाइड्रो पावर कंपनी लिमिटेड पर दाखिल मुआवजे के लिए चल रहे केस में उत्तराखंड के मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह को समुचित शपथ पत्र दाखिल करने के लिए कहा है, मामले की अगली सुनवाई छह हफ्ते बाद होगी।

2013 में आई आपदा में अलकनंदा गंगा पर बने श्रीनगर बांध कंपनी ‘अलकनंदा हाइड्रो पावर कंपनी लिमिटेड कंपनी’ का नदी किनारे रखा मलबा अलकनंदा नदी में बह गया। इस लाखों टन मलबे के कारण श्रीनगर शहर के निचले हिस्सों में जब पानी भरा तो यह मलवा भी घरों में गैर-सरकारी और सरकारी इमारतों में घुस गया। पानी धीरे-धीरे नीचे उतरा तो पूरा क्षेत्र समाधिस्त हो चुका था,

घरों में आठ फिट मिट्टी भर गई थी। बांध कंपनी द्वारा इस आपदा पर ‘श्रीनगर बांध आपदा संघर्ष समिति’ और ‘माटू जन संगठन’ ने 2013 में राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण में ‘अलकनंदा हाइड्रो पावर कंपनी’ पर मुआवजे के लिए दावा दायर किया। राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण ने 19 अगस्त 2016 में अपने आदेश में वादियों को सही ठहराते हुए 9 करोड़ 27 लाख का मुआवजा मंजूर किया था। मामले में बांध कंपनी उसके खिलाफ उच्चतम न्यायालय में अपील दाखिल की थी। जिसके बाद उच्चतम न्यायालय ने अपने तीन अक्टू्ूबर 2016 के आदेश में प्रभावितों को अपने दावे उप जिलाधिकारी के पास जमा करने के लिए और उप जिलाधिकारी द्वारा उस पर अपनी रिपोर्ट न्यायालय में दाखिल करने का आदेश दिया था।

प्रभावितों के वकील संजय पारीख ने अदालत को बताया की प्रभावितों ने 2016 में अपने विस्तृत दावे उप जिला अधिकारी के समक्ष दायर किए लेकिन एक साल बीत जाने के बाद भी राज्य सरकार ने अभी तक उस पर अपनी रिपोर्ट दाखिल नहीं की है। इसी को लेकर न्यायाधीश मदन लोकुर व न्यायाधीश दीपक गुप्ता की बेंच ने सरकार को फटकार लगाते हुए शपथ पत्र दाखिल करने के लिए कहा । बेंच छह हफ्ते बाद दोबारा केस की सुनवाई करेगी।

माटू जनसंगठन के अध्यक्ष चंद्र मोहन भट्ट ने कहा कि, “राज्य सरकार इस मसले पर गंभीर होती तो तीन महीने में जांच पूरा करने अपनी रिपोर्ट दाखिल कर सकती थी लेकिन ऐसा नहीं हुआ। मामले में संघर्ष समिति कई बार उप जिलाधिकारी व जिलाधिकारी महोदय को मिली और उन्हें एनजीटी के आदेश की प्रतियां, उच्चतम न्यायालय के आदेश की प्रतियां भी दी गई लेकिन सरकार की ओर से इसके बाद भी बेहद धीमी गति से कार्य किया जाता रहा। उन्होंने कहा कि अब उच्चतम न्यायालय से ही उन्हें उम्मीद है। न्यायालय के आदेश के बाद संभवत सरकार व स्थानीय प्रशासन मामले की गंभीरता को समझेंगे और तुरंत कार्रवाई करके शपथ पत्र समय से दाखिल करेंगे, ताकि प्रभावितों को न्याय मिल सके।”