पलायन का दर्द: अब तो सरकारी आंकड़ों में भी पलायन है बड़ी समस्या, क्या अब जागेगी सरकार?

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टिहरी

आखिरकार सरकारी रिपोर्ट और कमीशनों ने मान लिया है कि उत्तराखंड में हाल के सालों में में तेजी से पलायन हुआ है। पलायन आयोग कि सामने आी पहली रिपोर्ट के आंकड़ों की बात करें तो सात साल के अंदर 734 गांव खाली (गैरआबाद) हो गए हैं। रिपोर्ट के अनुसार 10 सालों में 3 लाख 83 हजार 726 लोगों ने अस्थायी रूप से पलायन किया है।

ग्राम विकास एवं पलायन आयोग ने अपनी पहली अंतरिम रिपोर्ट शनिवार को सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत को सौंपी, जिसमें ये आंकड़े दिये गये हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्तराखंड के ग्राम पंचायतों का सर्वेक्षण जनवरी एवं फरवरी में ग्रामीण विकास विभाग के माध्यम से किराया गया।

रिपोर्ट के अनुसार

  • पिछले 10 सालों में 6338 ग्राम पंचायतों से तीन लाख 83 हजार 726 व्यक्ति अस्थायी रूप से पलायन कर चुके हैं। यह लोग घर में आते-जाते रहते हैं, लेकिन अस्थायी रूप से रोजगार के लिए बाहर रहते हैं।
  • इसी समय में 3946 ग्राम पंचायतों से एक लाख 18 हजार 981 लोग स्थायी रूप से पलायन कर चुके हैं।
  • ग्राम पंचायतों से 50 फीसदी लोगों ने आजीविका और रोजगार की समस्या के कारण पलायन किया।
  • 15 फीसदी लोगों ने शिक्षा सुविधा और आठ फीसदी ने चिकित्सा सुविधा के अभाव में पलायन किया है।
  • पलायन करने वालों में सबसे ज्यादा संख्या युवाओं की है।
  • 26 से 25 आयु वर्ग के 42 फीसदी लोगों ने पलायन किया।
  • 35 से अधिक आयु वर्ग के 29 फीसदी और 25 वर्ष से कम आयु वर्ग के 28 फीसदी लोग पलायन कर चुके हैं।
  • ग्राम पंचायतों से 70 फीसदी लोग प्रवासित होकर राज्य के अन्य स्थानों पर गए, 29 फीसदी राज्य से बाहर और 1 फीसदी देश से बाहर गए।

उत्तराखंड में लगभग 734 राजस्व ग्राम 2011 की जनगणना के बाद गैरआबाद हो गए हैं। इनमें से 14 अंतरराष्ट्रीय चीन सीमा के निकट हैं। राज्य में 580 ऐसे गांव हैं, जहां पिछले 10 वर्षों में अन्य गांव, शहर, कस्बों से पलायन कर लोग बसे हैं। राज्य में 565 ऐसे राजस्व गांव, तोक, मजरा है, जिनकी आबादी 2011 के बाद 50 फीसदी घटी है। इनमें छह गांव अंतरराष्ट्रीय सीमा से हवाई दूरी के 5 किमी भीतर हैं।

बहरहाल सरकार ने जोर शोर से पलायन रोकने के लिये जो आयोग बनाया था उसने भी मान लिया है कि राज्य में पलायन एक बड़ी समस्या है। अब देखना ये है कि सरपकार अब अपनी नींद से जागकर इन आंकड़ों पर काबू पाने के लिये कब कुछ करती है।