इंद्रियों को पवित्र और पापों के लिए क्षमा मांगने का पर्व है श्रावणी पर्व

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हरिद्वार,  ब्राह्मणों के पर्व श्रावणी पर्व को श्रावण उपाकर्म भी कहा जाता है। सनातन धर्म चार वर्ण, वार वर्ग और चार पर्वों का खासा महत्व है। सनातन धर्म में यूं तो सभी पर्वों का अपना खासा महत्व है, किन्तु चार पर्वों को प्रमुख बताया गया है। जिनमें होली, रक्षाबंधन, दशहरा और दीपावली प्रमुख हैं। होली को शुद्र वर्ण रक्षाबंधन को ब्राह्मण, दशहरा पर्व को क्षत्रिय और दीपावली को वैश्य वर्ण से जोड़ा गया है। श्रावणी अर्थात श्रावण उपाकर्म पर्व ब्राह्मणों के  लिए खासा महत्व का पर्व है। इस बार यह पर्व स्वतंत्रता दिवस के दिन मनाया जाएगा। पंचाग के मुताबिक श्रावण मास की पूर्णिमा को यह पर्व मनाया जाता है। इसी दिन रक्षाबंधन का पर्व भी मनाया जाता है।
पं. देवेन्द्र शुकल शास्त्री के मुताबिक सनातन धर्म में ब्राम्हणों के लिए यह पर्व कई मायनों में खास है। यह साल का एकमात्र दिन है, जो मानवशरीर की इंद्रियों को पवित्र करने, अपनी सभी गलतियों, पापों के लिए क्षमा मांगने का मौका देता है। बताया कि, “वैदिक काल से ही यह माना जाता है। श्रावणी पर्व वह दिन है, जब ईश्वर हमें अपनी समस्त इंद्रियों को जागृत करने और पवित्र करने का मौका देते हैं। शास्त्रों के अनुसार श्रावणी पर्व सबसे शुभ मुहूर्त होता है जब इंद्रियों को पवित्र किया सकता है। वेदों के अनुसार उपाकर्म का अर्थ है प्रारंभ करना और उपाकरण का अर्थ है आरंभ करने के लिए निमंत्रण करना। इस दिन विप्रजन यज्ञोपवीत को संधान करने के साथ नवीन यज्ञोपवीत धारण करते हैं।” 
बताया कि श्रावण की पूर्णिमा को प्रातः ही श्रुति-स्मृति विधानानुसार स्नानादि  करे। यह आत्मशोधन का पुण्य पर्व है। यह प्रायश्चित संकल्प है। श्रावण उपाकर्म के तीन पक्ष हैं। पहला पक्ष प्रायश्चित्त संकल्प, दूसरा संस्कार और तीसरा पक्ष  स्वाध्याय कहलाता है। उपाकर्म के पहले पक्ष में प्रायश्चित्त करने के लिए हेमाद्रि स्नान का संकल्प लिया जाता है। जिसके अनुसार विधि सम्पन्न कराने के लिए गुरू का होना अनिवार्य है। उनकी आज्ञा लेकर दूध, दही, घृत, गोबर और गोमूत्र के साथ पवित्र कुशा हाथ में लेकर मंत्रोच्चार किया जाता है। इसके बाद नदी में स्नान किया जाता है। संस्कार के तहत गुरू से आर्शीवाद लेकर हवन और यज्ञ किया जाता है। इसके पश्चात जनेऊ धारण करने का विधान है। बताया कि यदि पहले से जनेउ धारण किया है, तो इस दिन पुराने जनेउ को नदी के प्रवाहित करके नए यज्ञोपवीत को धारण किया जाता है।
उपाकर्म का तीसरा सबसे महत्वपूर्ण पक्ष है स्वाध्याय है। जिसकी शुरुआत में पवित्र यज्ञ अग्नि में सावित्री, ब्रह्मा, श्रद्धा, मेधा, प्रज्ञा, स्मृति, सदसस्पति, अनुमति, छंद और ऋषि के नाम से घी की आहूति दी जाती है। इसके बाद जौ के आटे में दही मिलाकर ऋग्वेद के मंत्रों से आहुतियां दी जाती हैं। सामवेदी भाद्रपद की पूर्णिमा को उपाकर्म करते हैं। श्रावण शुक्ल पूर्णिमा को मनाया जाने वाला श्रावण उपाकर्म ब्राह्मणों का प्रमुख पर्व है। इसलिए हर ब्राम्हण अपने जीवन में कम से कम एक बार तो यह उपाकर्म जरूर करना चाहिए।