स्मृति शेष: पहाड़ों से 64 वर्ष पुराना रिश्ता था लता दीदी का

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लता

भारत रत्न और स्वर कोकिला लता मंगेशकर का रविवार को 92 वर्ष की आयु में देहावसान हो गया। पहाड़ी पगडंडियों जैसी बलखाती मखमली आवाज की मल्लिका लता की सुमधुर आवाज पहाड़ी गीतों पर कुछ अधिक ही फबती थी।

नैनीताल में सबसे पहले 1958 में फिल्माई गई पहली फिल्म ‘मधुमती’ के सुप्रसिद्ध गीत ‘चढ़ गयो पापी बिछुवा’ व ‘आ जा रे परदेशी’ सहित कई गीतों को लता की आवाज पहाड़ी धुनों पर चार चांद लगा देती थी। इस तरह देखें तो नैनीताल व पहाड़ों से लता मंगेशकर का 64 वर्ष पुराना रिश्ता था और यहां के लोग तब से उनकी सुरमई आवाज के दीवाने थे। राम तेरी गंगा मैली के सुप्रसिद्ध गीत ‘हुस्न पहाड़ों का’ से भी लता ने अपनी सुरमई आवाज से पहाड़ों की खूबसूरती को जीवंत कर दिया था।

नगर के वयोवृद्ध रंगकर्मी सुरेश गुरुरानी ने बताया कि लता मंगेशकर का गाया गीत ‘ना कोई उमंग हैं, ना कोई तरंग है मेरी जिंदगी है क्या, एक कटी हुई पतंग है’ नैनीताल के बोट हाउस क्लब में आशा पारिख पर फिल्माया गया था। इसके अलावा भी कम ही लोग जानते होंगे कि लता मंगेशकर ने उत्तराखंड की लोकभाषा गढ़वाली में भी एक गीत गाया था। इस गीत के बोल थे, ‘मन भरमैगै’। यह गीत मूल रूप से गढ़वाली फिल्म रैबार फिल्म के लिए तैयार किया गया था। इसके निर्माता किशन पटेल व निर्देशक सोनू पंवार थे। बाद में इस गीत को दोबारा नए कलाकारों व नई टीम के साथ रीशूट किया गया। देवी प्रसाद सेमवाल द्वारा लिखे गए इस गीत को बीना रावत व शिवेंद्र रावत पर फिल्माया गया है।