क्या इतिहास रचेंगे शिक्षा मंत्री अरविंद पांडेय या बना रहेगा मिथक?

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अरविंद
Arvind Pandey

इस बार का विधानसभा चुनाव बेहद दिलचस्प होने जा रहा है। पिछली बार भाजपा ने 57 सीट पर जीत दर्ज इतिहास रच दिया था। भाजपा सत्ता में वापसी कर क्या फिर से नया इतिहास बना पाएगी? इस पर तो सबकी नजरें हैं ही। साथ ही यह चुनाव कई और नया इतिहास गढ़ने या बरकरार रखने का मौका देने वाला है। वर्तमान शिक्षा मंत्री अरविंद पांडेय के पास भी मौका है, अपने नाम रिकॉर्ड बनाने का।

दरअसल, उत्तराखंड राज्य का गठन होने से अब तक प्रदेश का कोई भी शिक्षा मंत्री दोबारा चुनाव नहीं जीत पाया है। इसलिए इस बार शिक्षा मंत्री अरविंद पांडेय के पास इस मिथक को तोड़ने का मौका है। यदि वे ऐसा कर पाने में कामयाब होते हैं तो उनका नाम इतिहास में दर्ज हो जाएगा। अन्यथा शिक्षा मंत्री के चुनाव हारने का मिथक यूं ही बना रहेगा। इसलिए शिक्षा मंत्री अरविंद पांडेय के लिए यह चुनाव चुनौतीपूर्ण होने वाला है।

पिछला चुनाव अरविंद पांडेय ने गदरपुर सीट से लड़ा था। यह विधानसभा सीट 2008 के परिसीमन के बाद बना था और 2012 में इस सीट पर पहला चुनाव हुआ। यहां के पहले चुनाव में अरविंद पांडेय ने निर्दलीय जरनैल सिंह को 5000 से ज्यादा वोटों से हराकर जीत दर्ज की थी। पिछले चुनाव में इन्होंने कांग्रेस के राजेंद्र पाल सिंह को करीब 15 हजार वोटों से हराया था। उस चुनाव में अरविंद पांडेय को करीब 46 फीसदी (41530 मत) वोट मिले थे। वहीं कांग्रेस के राजेंद्र पाल को केवल 28 फीसदी (27424) मत मिले थे। बसपा के जरनैल सिंह काली करीब 26000 वोट लेकर तीसरे स्थान पर रहे थे।

अरविंद पांडेय पिछले विधानसभा चुनाव में जीत का चौका लगा चुके हैं। दो बार गदरपुर तो दो बार बाजपुर से चुनाव जीते हैं। विधानसभा चुनाव में अरविंद पांडेय अब तक अजेय रहे हैं। इन्होंने पहला और दूसरा विधानसभा चुनाव बाजपुर से लड़ा था। दोनों ही बार इन्होंने बड़े अंतर से अपने प्रतिद्वंदियों को चुनावी पटखनी दिया था। 2012 में बाजपुर विधानसभा सीट आरक्षित होने के कारण ये गदरपुर से चुनाव लड़ा और यहां भी अभी तक विजयी पताका लहरा रहे हैं। अब देखना बड़ा दिलचस्प होगा कि शिक्षा मंत्री के चुनाव हारने का मिथक इनके अजेय रथ को रोक लेता है या वे इस अवरोध को भी पार कर लेते हैं।

इस बार इनका मुकाबला बसपा से दो बार विधायक रह चुके प्रेमानंद महाजन से है। महाजन 2002 और 2007 का विधानसभा चुनाव पंतनगर-गदरपुर विधानसभा सीट से बसपा टिकट पर जीते हैं। 2013 महाजन बसपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए थे। वे बंगाली समुदाय से आते हैं। गदरपुर सीट पर बंगाली समुदाय का अच्छा ख़ास वोट है। इसलिए कांग्रेस से इस बार यहां प्रेमानंद महाजन पर दांव खेला है।

अनुमान के मुताबिक गदरपुर में लगभग 1.43 लाख मतदाता हैं। इनमें सिख मतदाता लगभग 50,000, मुस्लिम 30,000, बंगाली 27,000 और 15,000 के करीब पहाड़ी मतदाता हैं। शिक्षा मंत्री अरविंद पांडेय का मानना है की वे आसानी से चुनाव जीत रहे हैं। उन्होंने कहा कि यहां भाजपा भारी बहुमत से चुनाव जीत रही है। मिथक पर वे कहते हैं, ‘अब तक तो ऐसा मिथक रहा है, लेकिन इस बार मैं इस मिथक को तोड़ रहा हूं। इस बार रिकॉर्ड बनेगा।’

हालांकि उत्तराखंड राज्य गठन से अब तक शिक्षा मंत्री को लेकर बना यह मिथक बरकरार है। परंपरा है कि उत्तराखंड में जो भी विधायक शिक्षा मंत्री बने, वो दोबारा विधानसभा नहीं पहुंच पाए। 2000 में प्रदेश की पहली सरकार में तीरथ सिंह रावत शिक्षा मंत्री बने। वे 2002 का चुनाव पौड़ी से हार गए। उन्हें कांग्रेस के नरेंद्र सिंह भंडारी ने हराया। भंडारी को इसका इनाम तत्कालीन मुख्यमंत्री एनडी तिवारी ने शिक्षा मंत्री बनाकर दिया। वे 2007 का विधानसभा चुनाव पौड़ी से ही एक निर्दलीय उम्मीदवार यशपाल बेनाम से हार गए। इस हार के साथ ही उनका राजनीतिक करियर भी खत्म हो गया।

2007 में भाजपा सत्ता में आई तो पांच साल के कार्यकाल में गोविंद सिंह बिष्ट और खजान दास दो शिक्षा मंत्री बने। दोनों ही शिक्षा मंत्री 2012 के विधानसभा चुनाव बाद विधायक नहीं बन पाए। गोविंद सिंह विष्ट लालकुआं सीट से हार गए तो खजान दास को पार्टी ने टिकट ही नहीं दिया। फिर 2012 में कांग्रेस सत्ता में वापसी की। देवप्रयाग से निर्दलीय विधायक जीते मंत्री प्रसाद नैथानी शिक्षा मंत्री बनाया गया। वह पूरे पांच साल शिक्षा मंत्री रहे, लेकिन जब 2017 में कांग्रेस ने उन्हें टिकट देकर देवप्रयाग से फिर से मैदान में उतरा तो वे चुनाव हार गए। उन्हें पहली बार चुनाव लड़ रहे युवा विनोद कंडारी ने हरा दिया।

इसलिए शिक्षा मंत्री अरविंद पांडेय के लिए यह चुनाव चुनौतीपूर्ण है। यदि वे जीत जाते हैं तो ये मिथक टूटेगा अन्यथा नए शिक्षा मंत्री की धड़कन अगले चुनाव तक यह बढ़ाए रखेगा।