फूलों की घाटी के लिए भस्मासुर बनता पॉलीगोनम घास

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फूलों की घाटी

विश्व प्रसिद्ध फूलों की घाटी के लिए पाॅलीगोनम नाम की घास जिस पर फूल भी उगते है, यहां के अन्य फूलों के लिए भस्मासुर साबित हो रहा है। एक दशक पूर्व उपजे इस घास नुमा झाड़ी ने दो किमी क्षेत्र तक अपना फैलाव कर फूलों के अस्तित्व के लिए खतरा पैदा कर दिया है। हालांकि नंदादेवी वायोस्फियर ने पाॅलीगोनम को हटाने का काम तो कर रही है परंतु रक्त बीज की तरह यह फिर से उग आता है।

पाॅलीगोनम नामक पौध अपने आसपास वनस्पतियों को खत्म कर देता है, जिससे चलते यह पौध राष्ट्रीय उद्यान के लिए खतरे का सबब बन सकती है। पिछले आठ साल से वन विभाग इससे पार पाने की कोशिशों में जुटा है लेकिन अभी तक सफलता नहीं मिल पाई है। चमोली जिले में सिखों के धार्मिक स्थल हेमकुंड साहिब जाने वाले रास्ते पर घांघरिया से पांच किमी की दूरी पर 87.50 वर्ग किमी में फैली है फूलों की घाटी। उच्च हिमालयी क्षेत्र में स्थित इस घाटी में फूलों की 525 से अधिक प्रजातियांे के फूल खिलते है। रंग-बिरंगे फूलों की बिखरी छटा के बीच घाटी में खिले पॉलीगोनम ने चिंता बढ़ा दी है। पॉलीगोनम को अमेला अथवा नटग्रास भी कहते हैं। घाटी से लौटे पर्यटक बताते हैं कि वर्तमान में पुष्पगंगा से आगे प्रियदर्शनी तोक तक करीब दो किलोमीटर के दायरे में पॉलीगोनम पसरा हुआ है।
नंदादेवी बायोस्फियर रिजर्व के डीएफओ चंद्रशेखर जोशी बताते हैं कि भले ही पॉलीगोनम झाड़ीनुमा फूल प्रजाति है लेकिन इसका विस्तार तेजी से होता है। दो मीटर तक की लंबाई वाला इसका झाड़ दूसरे पौधों को पनपने नहीं देता। कहते हैं कि इसका फैलाव रोकने के लिए कार्ययोजना बनाकर वर्ष 2008 से इसे उखाड़ने का काम चल रहा है। हर साल 40-50 हेक्टेयर क्षेत्र में पॉलीगोनम को नष्ट किया जाता है लेकिन यह कहीं न कहीं रह जाता है। इस बार भी हम कोशिश करेंगे।