अब मसूरी की ऐतिहासिक लाइब्रेरी की शामें होंगी कुछ अलग

(मसूरी) मसूरी आने वाले पर्यटकों के लिये अब एक नया आकर्षण इंतजार कर रहा है। मसूरी की सबसे पुरानी जीवंत पहचान है ऐतिहासिक मसूरी लाईब्रेरी जिसे किताबघर के नाम से भी जाना जाता है। ये किताबघर अपने स्थापना का 175वां साल मना रही है और इसके जश्न के लिये यहां लेजर लाइट और बेहतरीन आर्किटेक्चरल लाइटिंग का इंतजाम किया गया है।

ब्रिटिश काल की ये इमारत आज भी अपने पूरे शबाब के साथ मसूरी शहर में अपनी पहचान बनाये हुए है। इसके पीछे एक ब्रिटिश व्यापारी, मिशनरी और लंडौर कैंट में रहने वाली मिलिट्री का हाथ है। इन सब ने मिलकर इस किताबघर की स्थापना की थी। औपर इस बार राज्य सरकार ने एमडीडीए और सीपीडब्लूडी के जरिये किताबघर के बाहरी दीवारों को रौशन कर दिया है। इसके लिये इस्तेमाल की गई लाइट फिलिप्स इंडिया ने मुहैया कराई हैं। कंपनी इससे पहले राष्ट्रपति भवन, बनारस के घाटों, हावड़ा ब्रिज और संसद भवन में ऐसे काम कर चुकी है।

मसूरी किताबघर को अपनी रंगबिरंगी रौशनी से चकाचौंध करने वाली ये लाइट, सूरज ढलने के साथ ही शुरू हो जाती हैं। किताबघर के सचिव, गणेश सैली का कहना है कि “ये जानकर खुशी होती है कि इतने सालों के बाद राज्य सरकार ने इस ऐतिहासिक धरोहर की तरफ ध्यान दिया है। मसूरी में ये एक मात्र चौक है जो किसी इमारत के नाम पर रखा गया है।”

मसूरी निवासी नितिन गुप्ता का कहना है कि “इस तरह के कार्यक्रम के लिये मसूरी किताबघर और शहीद स्थल का चुना जाना सभी मसूरी वासियों के लिये गर्व की बात है।”

1843 में देहरादून के सुपरिटेंडेंट, वंसीटार्ट की अध्यक्षता में लाइब्रेरी कमेटी का घठन हुआ था। सुपरिटेंडेंट ने उस समय इस लाइब्रेरी को बनाने के लिये अपने निजि पैसे दिये थे। आगे चलकर इस लाइब्रेरी को एक ट्रस्ट के हवाले कर दिया गया।

मसूरी लाईब्रेरी की एक झलक पाने के लिये यहां क्लिक करें।

https://youtu.be/EF45jaoeEAo