आखिर दिखने ही लगी सरकार में दरारें

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राज्य की भाजपा सरकार में यूं तो लंबे समय से अंदरुनी खींचतान चल रही है, लेकिन अब यह सतह पर आनी शुरू हो गई है। भाजपा में कांग्रेस छोड़कर शामिल हुए तमाम दिग्गज सरकार में मंत्री तो बने, लेकिन मनमाफिक विभाग नहीं मिलने और सत्ता में तवज्जो नहीं मिलने के कारण लंबे समय से असहज महसूस कर रहे हैं। काफी समय से लेकर इनको लेकर चर्चाओं का बाजार भी गर्म रहा। खासतौर पर पूर्व केंद्रीय मंत्री और मौजूदा सरकार में कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज लगातार कैबिनेट बैठकों से नदारद दिखे।

मंत्रिमंडल की बैठक में सतपाल महाराज शामिल तो हुए, लेकिन कुछ मामलों को लेकर उनका दर्द बाहर आ गया। इस मामले को दबाने की कोशिश भी की गई, लेकिन चर्चाएं शुरू हुई तो सब बाहर आ गया। दरअसल, बदरीनाथ, केदारनाथ समेत राज्य के प्रमुख मंदिरों की व्यवस्थाओं व प्रबंधन के लिए प्राधिकरण के गठन के मामले में पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज और वन मंत्री हरक सिंह रावत के बीच जमकर बहस हुई और इस प्रस्ताव पर सहमति नहीं बन पाई। सूत्रों के मुताबिक इस प्रस्ताव से वन मंत्री हरक सिंह रावत सहमत नहीं हुए। इस मामले में पर्यटन मंत्री के साथ उनकी बहस हुई। सूत्रों के मुताबिक बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति उक्त दोनों मंदिरों के संचालन का जिम्मा उठा रही है। समिति में वर्तमान में कांग्रेस से जुड़े प्रतिनिधियों का दबदबा है।

प्रदेश में भाजपा सरकार बनते ही समिति को भंग किया गया था, लेकिन हाईकोर्ट सरकार के आदेश को रद कर चुका है। प्राधिकरण का गठन होने की सूरत में समिति का अस्तित्व पर खतरा पैदा होना स्वाभाविक माना जा रहा है। कभी महाराज के करीबियों में शुमार पूर्व विधायक गणेश गोदियाल समिति के अध्यक्ष हैं। गोदियाल और महाराज में अब छत्तीस का आंकड़ा है। सूत्रों की मानें तो महाराज के उक्त प्रस्ताव पर हरक के अलावा कुछ मंत्रियों की सहमति भी नहीं रही। फिलहाल दोनों मंत्रियों के उलझने से सियासी गलियारों में कई तरह की चर्चाएं गर्म हो गई हैं। पिछली कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में गठित इस प्राधिकरण में एक भी पद सृजित नहीं किया गया था। कुल मिलाकर इस पूरे मामले को सियासी नजर से देखें तो आने वाले वक्त में मंत्रियों की दबी हुई कुंठा और बाहर आ सकती है। हाल ही में कृषि मंत्री सुबोध उनियाल भी किसानों की मौत को लेकर बयानबाजी कर सरकार के सुरों से अलग सुर में अपनी आवाज उठा चुके हैं।