तेल भवन देहरादून में बन रहा सूखे पत्तों से आर्गेनिक खाद,पढ़ें

Leaf manure packaged in 500 gms packages

देहरादून में गर्मियों का मौसम शुरु होते ही सड़क के किनारे पड़े सूखे पत्तों का ढ़ेर दिखना एक आम बात है।लेकिन परेशानी की बात यह है कि यह सूखे पत्ते जो ज्यादातर पेड़ की टहनियों के पास प्लास्टिक और दूसरे कचरों के साथ जलाए जाते है। इस पूरी प्रक्रिया की वजह से ना केवल पेड़ को नुकसान पहुंचता है बल्कि इससे निकलने वाला धुंआ पूरे शहर को प्रदूषित करता हैं।अब भले ही यह कानूनन जुर्म है लेकिन फिर भी जगह-जगह यह दृश्य देखन को मिल ही जाता है।

साल 2012 में जब आशीष गर्ग की पोस्टिग देहरादून के तेल भवन में जनरल मैनेजर के तौर पर हुई, तबसे उन्हें सड़क के किनारे या पेड़ के नीचे पड़े हुए सूखे पत्ते परेशान करते थे और वह कुछ करना चाहते थे। इसके बारे में और बताते हुए आशीष कहते हैं कि, “पेड़ के सूखे पत्तों को प्लास्टिक कचरे के साथ जलाने से वातावरण में पीएम 2.5 और पीएम 10 का कॉंस्ट्रेशन हवा में बढ़ जाता है साथ ही जहरीली गैस जैसे कि सल्फर,नाइट्रोजन ऑक्साइड और कार्बन मोनोऑक्साइड हवा और वातावरण में इस कदर मिल जाते हैं कि यह फेफड़ों और सांस की बीमारियां पैदा करते हैं।”

Lichi leaves carpeting the ground

यह “बायो-डिग्रेडेबल पत्तियां धीरे-धीरे जहाँ कहीं भी गिरेंगी, वहाँ की मिट्टी की गुणवत्ता बढ़ाऐंगी और मिट्टी में नमी बरकरार रखने में योगदान देती है, और इसी सोच पर काम करने के लिए आशीष ने वेस्ट-वॉरियर्स एनजीओ के साथ हाथ मिलाया जो इसी क्षेत्र में काम कर रहा है।

पिछले कुछ महीनों में, वेस्ट वॉरियर्स की मदद से, तेल भवन कैंपस के अंदर दस कम्पोस्ट प्लांट लगाए गए हैं जो पेड़ के पत्तों को जैविक खाद में बदलते हैं। लगभग 30 एकड़ के क्षेत्र में लगाए गए सौ से अधिक लीची के पेड़ों की पत्तियों को अब हर मौसम में 250 किलोग्राम खाद में बदल दिया जाता है, जिससे कैंपस, याने कि तेल भवन के इन-हाउस बागवानी की जरुरतें पूरी की जाती है।

आशीष ने हमें बताया कि, “तकनीकी रूप से, लीची के पत्तों को सड़ने में सबसे ज्यादा मुश्किल और समय लगता है क्योंकि वे पूरी तरह से डिजनरेट होने में 3-4 महीने लगाते हैं। मूल रूप से एक इन पत्तों के साथ एक नेचुरल कैटालिस्ट का इस्तेमाल किया जाता है, साथ ही इसमें नमी रखने के लिए समय-समय पर पानी का छिड़काव किया जाता है।”

Compost, Organic, Leaves
Compost heaps at Tel Bhawan, Dehradun

हमें उम्मीद है की दून घाटी में कई और संस्थान इस तरह की पहल की शुरुआत करेंगे जोकि न केवल यह सुनिश्चित करेगी कि पत्तों के कचरे को जलाना हानिकारक है, बल्कि इसकी मदद से जैविक खाद भी पैदा किया जा सकता है, जो लंबे समय तक गर्मियों के महीनों में पौैधों के लिये नमी बनाए रखने में मदद करेगा।