बॉलीवुड: संकीर्ण मानसिकता और रूढ़िवादी सोच पर प्रहार करती पैडमैन

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देहरादून, मनोरंजन के मसाले और नाच गाने के लड़के के साथ भारतीय फिल्मों का असर हमेशा से ही आम जनजीवन पर हावी रहा है। समय-समय पर सामाजिक समस्याओं पर अपने सौ साल के इतिहास में भारतीय सिनेमा ने देश की सोच पर प्रहार करके आधुनिक भारत का निर्माण किया है। लेकिन आज भी कई राज्यों में सामाजिक चेतना जगाने में स्वयंसेवी संस्थाओं को काफी मशक्कत करनी पड़ती है।

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फिर भी स्थिति जस की तस बनी रहती है, ऐसे में सिनेमा का रोल ओर भी महत्वपूर्ण हो जाता है, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश अभी सामाजिक रुप से पूरी तरह से उबर नहीं पाए हैं, ऐसे में सामाजिक चेतना को जगाए जाने के लिए बनी फिल्मों के सहारे यहां के रूढ़िवादी सोच को बदला जा सकता है।

उत्तराखंड में सरकार के प्रयास फिल्मों के प्रति अब नरम होते जा रहे हैं रेखा आर्य के साथ सिनेमाघर में बैठकर लड़कियों का ‘पैडमैन’ देखना और अपनी सोच को बदलना इसका ताजा उदाहरण है। शारीरिक बदलाव और मासिक धर्म एक प्राकृतिक चीज है जिससे हर महिला को गुजरना पड़ता है, फिर भी उसे अपने ही परिवार में इन दिनों अछूत बनाकर रख दिया जाता है।

ऐसे में अक्षय कुमार और ट्विंकल खन्ना के प्रयास को निदेशक आर. बाल्की ने गंभीरता से रुपहले पर्दे पर दिखा कर तमिलनाडु निवासी पदमश्री अरुणाचलम मुरुनाथन के जीवन को बड़ी ही खूबसूरती से भारतीय जनमानस के सामने परोस दिया, जिसका असर आने वाले दिनों में गांव कस्बों के साथ -साथ अर्बन क्षेत्र में भी देखने को मिलेगा।

पिछले साल आई टॉयलेट एक प्रेम कथा ने खुले में शौच जाने वालों को एक नया संदेश दिया था जिसका नतीजा धीरे धीरे पूरे देश में देखने को मिल रहा है। ऐसे में पैडमैन की कहानी कई लड़कियों और महिलाओं के जीवन में सकारात्मक पहलू लेकर आएगी शर्मा और संकोच के चलते परेशानियों का बोझ उठाने वाली महिलाओं को अब रूढ़िवादी सोच को दरकिनार कर के नहीं सामाजिक चेतना से आगे कदम बढ़ाने की एक नई ताकत मिलेगी, जिसका समाज भी स्वागत करेगा भारत जैसे ग्रामीण परिवेश वाले देश को सच में इस तरह के सिनेमा की जरूरत है , जो यहां के बड़े जनमानस को मनोरंजन के साथ साथ एक नई दिशा दे सके।