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आयकर विभाग की ताबड़ तोड़ छापेमारी से प्रदेश में हड़कंप

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इनकम टैक्स ने हल्द्वानी के डहरिया क्षेत्र में पंचवटी की डायरेक्टर प्रिया शर्मा के घर में छापा मारा।पंचवटी की डायरेक्टर प्रिया शर्मा उधम सिंग नगर में एलाइंस बिल्डर की सहयोगी है।आयकर विभाग छानबीन में जुटी हुई है |इनकम टैक्स की हल्द्वानी, रुद्रपुर, काशीर व देहारादून में छापेमारी से सभी विभागों में हड़कंप। रुद्रपुर में पीसीएस दिनेश प्रताप सिंह के घर में पहला छापा पड़ा है। दिनेश प्रताप सिंह अपने एक खास पटवारी के जरिए घूस का पैसा लेते थे। पटवारी के यहां भी इनकम टैक्स की छापेमारी। काशीपुर में दिनेश प्रताप की सास के घर में भी इनकम टैक्स की टीम का छापा। घूस का पैसा पंचवटी रियल एस्टेट प्रोजेक्ट में इनवेस्ट किया जा रहा है। हल्द्वानी के जज फार्म में पंचवटी की डायरेक्टर प्रिया शर्मा के घर में भी इनकम टैक्स विभाग ने छापा मारा है। हल्द्वानी के रामपुर रोड, किच्छा, रुद्रपुर, काशीपुर व देहरादून में प्रोजेक्ट चल रहे हैं। देहरादून में भी पंचवटी के ऑफिस पर आटकर टीम मौजूद। हल्द्वानी, लखनऊ व देहरादून की टीमों की संयुक्त छापेमारी से पूरे प्रदेश में सनसनी।

लखनऊ कानपूर से आयकर विभाग की 22 टीमें पहुची रुद्रपुर और प्रदेश के अन्य जगह।भारी पुलिस बल के साथ आयकर विभाग के अधिकारी मौजूद।

बीजेपी और कांग्रेस के 15 बड़े नेता जांच के दायरे में

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2017 विधानसभा चुनाव में  पानी की तरह पैसा खर्च करने वाले बीस उम्मीदवारों की सूची निर्वाचन आयोग ने आयकर विभाग को जांच के लिए भेजी है। इन प्रत्याशियों की ओर से नामांकन के दौरान शपथ पत्र में घोषित आय का मिलान उनके इनकम टैक्स रिटर्न से किया जा रहा है। जांच के दायरे में आए उम्मीदवारों में बीजेपी और कांग्रेस के 15 बड़े नेता शामिल है। हालांकि विभाग ने जाँच पूरी होने तक इनके नामों का खुलासा करने से इनकार किया है।
निर्वाचन आयोग ऐसे प्रत्याशियों की जांच करा रहा है, जिनका चुनाव खर्च आयोग के आकलन में उनकी ओर से बताए गए खर्च से ज्यादा निकला है। ऐसे प्रत्याशियों के शपथ पत्र में दिए आय के विवरण की पड़ताल की जा रही है। गौरतलब है कि  31 मार्च से पहले चुनाव आयोग को विस्तार में जांच रिपोट देनी है
हर चुनाव में कैसे बढ़ रही आमदनी:
विधायक, मंत्री से लेकर हर नेताओ के पिछले रिकॉर्ड को भी जांचा जा रहा है, जिनकी आय और सम्पति हर चुनाव में कई गुना बढ़ गई है। बताया जा रहा है कि चुनाव आयोग ने ऐसे नेताओं को लेकर भी आयकर विभाग से रिपोर्ट मांगी है और इनका मिलान पुरानी आई टी आर से करने के लिए कहा है।
किस दल के कितने उम्मीदवार हैं दायरे में:
दल                  उम्मीदवार।
बीजेपी                   08
कांग्रेस                   07
बसपा                    02
निर्दलीय                 03
चुनाव के लिए खोले गए खातों पर नजर:
आयकर विभाग यह भी जांच कर रहा है कि चुनाव खर्च के लिए जो बैंक एकाउंट खोले गए थे, उससे हटकर प्रत्याशी ने कितना खर्च किया है। इन बैंक खातों में चुनाव के दौरान जमा और निकासी की भी पड़ताल की जा रही है। यहां तक की सम्बंधित बैंको से भी इसकी जानकारी भी मांगी गई है। चुनाव आयोग यह भी जांच कर रहा है कि चुनाव के लिए इतनी ज्यादा रकम कहां से लाई गई,क्योंकि कई उम्मीदवारों के चुनाव खर्च को निर्वाचन आयोग उनकी आय के आधार से ज्यादा मान रहा है।

महिला दिवस पर चन्दना की कहानी उनकी जुबानी

कभी फर्श पर और कभी अर्श पर कुछ ऐसा ही रहा है ऋषिकेश की चन्दना का जीवन ऋषिकेश के त्रिवेणी संगम पर गरीबी ,अशिक्षा और दो वक्त की रोटी की तलाश ने उनके जज्बे को कभी डिगने नहीं दिया।जंहा एक बड़ा वर्ग बंगाली बस्ती का अपने जीवन की जदोजहद में पेट भरने के लिए सिर्फ धार्मिक आस्था और दान पुण्य की भीख पर निर्भर रहता है, वही इन गरीब महिलाओं का जीवन रोज़ लड़ाई झगड़ो ,पारिवारिक हिंसा और भीख मांगने में गुजरता था।चन्दना ने इस बस्ती की महिलाओं को जीवन जीने का रास्ता दिखाया है,आज त्रिवेणी घाट पर कई महिलाएं फूलों के व्यवसाय से जुड़ कर अपनी रोज़ी रोटी कमा रही हैं। वेडिंग और बड़े आयोजन में फ्लावर डेकोरेशन का काम रही है लगभग 100 परिवारों की महिलायें चन्दना फ्लावर्स एंड डेकोरेटर्स के साथ जुड़ कर अपने अपने परिवारों को पाल रही है।इसके साथ ही गंगा घाटों पर आवारागर्दी करने वाले इनके बच्चे आज अच्छी शिक्षा वाले पब्लिक स्कूलों में पढ़ रहे हैं। चन्दना इन सबको अपने मार्गदर्शन में स्कॉलरशिप और पढ़ने में मदद करती हैं। चन्दना का कहना है कि उनके जीवन में बड़े उतार चढ़ाव आये हैं, बंगाल में अच्छे घर में शादी हुई अचानक पति की मौत ने सब कुछ बदल कर रख दिया।

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ससुराल ने बच्चे सहित चन्दना को घर से निकाल दिया और चंदना बच्चे को साथ लेकर रोते -बिलखते हुए ऋषिकेश पहुंच गयी।गंगा घाट पर बिना घरबार के पड़ी रहीं ,गंगा में जीवन समाप्त करने की सोची लेकिन तभी कुछ ऐसा हुआ की गंगा माँ ने जीवन की दिशा ही बदल दी मछलियों को आटे की गोली बना कर बेचना शुरू किया। कुछ पैसे आये,खाना मिलना शुरू हुआ धीरे धीरे फूलों को इकठ्ठा कर पूजा के लिए बेचना शुरू किया। फूल के एक दोने से शुरू हुआ काम आज एक बड़ा स्वरुप ले चूका है। ऋषिकेश के सभी मंदिरों ,शादी ब्याह और बड़े इवेंट में साथ ही बद्रीनाथ -केदारनाथ की सजावट में चन्दना फ्लावर के फूलों की सुगंध महकती है साथ ही कई शहरों में इनका बिजनेस फैल चुका है।कल की बेसहारा असहाय चंदना आज ऋषिकेश की बिजनेस वुमेन बन चुकी है जो हजारों लोगों के लिए प्रेरणा का काम कर रही हैं। जो समय की मार,जीवन के उतार-चढ़ाव से घबरा कर अपने जीवन को दिशा नहीं दे पाते।चन्दना कहती हैं कि माँ गंगा ने उनका जीवन बदल दिया दुःख तकलीफ तो बहुत आए लेकिन हिम्मत और हौसले ने जीवन को आगे बढ़ा दिया।चन्दना कहती हैं कि अब इस इज्जत और सम्मान से अपने जैसी महिलाओ की मदद का जज्बा ही उनकी जिंदगी का मकसद बन गया है।

 

दुनियाभर में मशहूर है उत्तराखंड की पारंपरिक नथ

देवभूमि उत्तराखंड का पहनावा पूरे देश में मशहूर है।अपनी परंपरागत वेशभूषा के लिए उत्तराखंड दुनिया भर में मशहूर है।आभूषण हर महिला के श्रृंगार का अभिन्न हिस्सा है। महिलाएं रूप निखारने के लिए तरह-तरह के आभूषण शुरु से ही पहनती आई हैं।उत्तराखंड की महिलाओं को अलग पहचान दिलाने वाला और उनका रूप निखारने वाला , ऐसा ही एक आभूषण है उत्तराखंडी नथ, पहाड़ी नथ/नथूली  जिसकी अपनी अलग ही पहचान है।

जिस तरह से उत्तराखंड प्रदेश दो भाग गढ़वाल और कुमाऊं में बंटा हुआ है ठीक उसी तरह से उत्तराखंडी नथ भी मुख्यतः दो प्रकार की होती हैं।वैसे तो पहाड़ी क्षेत्र में नथ ही मशहूर है लेकिन टिहरी की नथ उत्तराखंड में सबसे ज्यादा मशहूर है।ऐसा माना जाता है कि नथ का इतिहास तब से है जब से टिहरी में राजा रजवाड़ों का राज्य था और राजाओं की रानियां सोने की नथ पहनती थी।ऐसी मान्यता रही है कि परिवार जितना सम्पन्न होगा महिला की नथ उतनी ही भारी और बड़ी होगी। जैसे-जैसे परिवार में पैसे और धनःधान्य की वृद्धि होती थी नथ का वज़न भी बढ़ता जाता था। हालांकि बदलते वक्त के साथ युवतियों की पसंद भी बदल रही है और भारी नथ की जगह अब स्टाइलिश और छोटी नथों ने ले ली है ।लगभग दो दशक पहले तक नथ का वज़न तीन तोले से शुरु होकर पांच तोले और कभी कभी 6 तोला तक रहता था। नथ की गोलाई भी 35 से 40 सेमी तक रहती थी।

उत्तराखंड की पारंपरिक नथ महिलाओं के श्रृगांर के लिए सबसे महत्तवपूर्ण है।टिहरी गढ़वाल की नथ सोने की बनती है और उस पर की गई चित्रकारी उसे दुनिया भर में मशहूर करती हैं।नथ की महत्ता इतनी ज्यादा है कि नथ पहाड़ के किसी भी जरुरी और पवित्र उत्सव में पहना ही जाता है जैसे कि पुजा पाठ,शादी आदि।नथ का वजन और उसमें लगे हुए मोती परिवार और नथ पहनने वाली और उसके धन धान्य और स्टेटस को दर्शाता है।आजकल नथ का आकार मार्डन कर दिया गया है लेकिन पारंपरिक नथ की बात और शान अलग ही होती है।उत्तराखंडी महिलाओं के लिए पांरपरिक नथ एक पूंजी की तरह है जिसको महिला पीढी दर पीढ़ी संजोती हैं और उत्तराखंड की लगभग हर शादी-शुदा महिला के पास नथ जरुर होती ही है।

हहहगढ़वाल क्षेत्र में टिहरी जिले की नथ सबसे ज्यादा मशहूर है।यह आकार में बड़ी होती है और इसमें बहुमूल्य रुबी और मोती की सजावट होती है।‘’देहरादून के सोनार राजेंद्र रावत कहते हैं कि उत्तराखंड के लोग अपनी संस्कृति और परंपरा को आज भी मानते हैं और नथ को एक शुभ गहने की तरह इस्तेमाल करते हैं खासकर के शादियों में,पहाड़ की शादियों में दुल्हन शादी के दिन पारंपरिक नथ पहन कर ही शादी करती है’’।हालांकि आकार में काफी बड़ी यह नथ किसी के लिए भी परेशानी का सबब नहीं बनती और पारंपरिक नथ के लिए लोग 10,000 से लेकर 25,000 तक या उससे ज्यादा भी खर्च करने के लिए तैयार रहते हैं।गढ़वाल की संस्कृति के अनुसार लड़की के मामा लड़की को शादी के दिन नथ देते हैं, जिसको पहन कर लड़की शादी करती है।

ठीक ऐसे ही कुमाऊंनी नथ/नथुली भी लोगों के बीच बहुत पसंद की जाती है।यह नथ सोने की होती है और महिलाएं और लड़कियां इसे बाईं नाक में पहनती है।कुमाऊंनी नथ आकार में काफी बड़ी होती है लेकिन इसपर डिजाइन कम होता है।गढ़वाली नथ की तरह कुमांऊनी नथ पर ज्यादा काम नहीं होता लेकिन यह बहुत खूबसूरत होती है।पहले की औरतें हर रोज इस नथ को निकालती और पहनती थी क्योंकि इसका आकार इतना बड़ा होता था कि इसकी वजह से महिलाओं को परेशानी होती थी, लेकिन आज की पीढ़ी ने बड़ी नथ को छोटी नथ और नोज़ पिन से बदल दिया है। जिसको पहनना और उतारना आसान होता है।लेकिन नथ का डिजाइन बदलने से यहां कि परंपरा नहीं बदली है और आज भी कुमाऊंनी औरतें शादियों और अन्य उत्सवों में पारंपरिक नथ में दिख ही जाती हैं।

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समय के साथ नथ की डिजाइन में बहुत बदलाव आया है और आज लगभग 50 डिजाइन बाजार में उपलब्ध हैं।जैसे कि आजकल की युवतियां पुराने समय के बड़े बड़े नथ पहनने में असहज महसूस करती हैं उनके लिए बाजार में नए प्रकार के छोटे आकार में अलग अलग डिजाइन के नथ उपलब्ध हैं।गढ़वाली नथ का क्रेज़ ना केवल पहाड़ों में है बल्कि पारंपरिक गहनों के प्रेमी दूर दूर से उत्तराखंड में आकर अपनी बेटियों के लिए यह पारंपरिक नथ लेते हैं।

 

श्रीनगर से मुंबई तक शाईनिंग लाइक ए स्टार- तान्या पुरोहित

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उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र की तान्या क्षेत्रीय और बालीवुड फिल्मों में काम कर चुकीं हैं। महिला दिवस के अवसर पर न्यूज़पोस्ट की एक कोशिश राज्य की कुछ ऐसी शख्सियत से जुड़ने का जिनके बारें में आप सब जानना चाहते हैं।

तान्या बताती हैं कि उनके दिमाग में इस बात को लेकर कभी कोई संदेह नहीं रहा कि उन्हें एक्टिंग से प्यार है,बहुत छोटी उम्र से ही शीशे के सामने खड़े होकर रोने का अभ्यास करती थीं क्योंकि तब उन्हें लगता था कि एक्टिंग का मतलब केवल रोना ही होता है।समय के साथ तान्या का लगाव एक्टिंग से ज्यादा होने लगा और इसका श्रेय वो अपने पापा को देती हैं,जो खुद एक थियेटर में आर्टिस्ट थे और अलग अलग नाटक को निर्देशित करते थे।तान्या बताती हैं कि जब वह छोटी थी तो अपने पिता जी के साथ उनके रिर्हसल में जाया करती थी और इस तरह से वह एक्टिंग के साथ जुड़ती गई।

तान्या को बतौर एक्टर पहला रोल मिला धर्मवीर भारती के नाटक अंधा युग में जिसमें तान्या ने उल्लू का किरदार निभाया था।जिस उम्र में तान्या को इस नाटक में रोल प्ले करने को मिला उनके लिए यह बहुत बड़ी उपलब्धि थी।तान्या कहती हैं उस एक रोल के बाद मुझे मेरे कालोनी के लोग पहचानने लगे और मेरे लिए रोल मायने नहीं रखता की मैंने उल्लू का किरदार निभाया या पेड़ का मुझे बस स्टेज पर रहना पसंद था।

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यह तो हो गई बात बचपन कि,जब तान्या 11 साल की थी तब उन्हें ऐसा रोल मिला जिसमें उन्हें लाईन भी बोलनी थी और उनके इस किरदार को बहुत सराहना मिली और पहली बार तान्या का नाम अखबार में भी आया। इस सराहना के बाद सही मायनों मे तान्या का थियेटर और फिल्मी कैरियर शुरु हुआ।तान्या कहती हैं कि “एक छोटे से शहर की लड़की के लिए यह एक दूर का सपना था,लेकिन फिर भी उन्होंने निर्णय कर लिया कि उन्हें एक्टिंग ही करनी है।हालांकि यह उनके लिए आसान नहीं था कि एक छोटे से पहाड़ी क्षेत्र से वह एक्टिंग की लाईन में आएं,लेकिन एक बार अगर आप सोच लेते हो कि आपको अपनी जिंदगी में क्या चाहिए तब कोई भी राह मुश्किल नहीं होती और हिम्मत खुद ही आ जाती है।” उन्होंने बहुत से क्षेत्रीय प्रोडक्शन हाउस में काम किया और गढ़वाली फोल्क डांस और नाटक के गुण सीखे,जिसके लिए तान्या के पिता हमेशा से ही उनके प्रेरणास्त्रोत रहे और आज भी उनके पिता गढ़वाल की संस्कृति को बढ़ाने और उसको जिंदा रखने में प्रयासरत हैं।

इतना ही नहीं पहले ही कोशिश में तान्या ने नेशनल स्कूल आफ ड्रामा के वार्षिक सेलेक्शन राउंड में अपनी जगह बना ली थी जिसकी वजह से तान्या का कांफिडेन्स और बढ़ गया।शुरु से ही तान्या को पता था कि उनको जिंदगी में क्या करना है और धीरे धीरे वह रास्ता तान्या को साफ दिखाई दे रहा था।

2013 में तान्या ने अपना रुख दिल्ली की तरफ मोड़ा,और यह उनकी जिंदगी के लिए परीक्षा का समय था। लगभग डेढ़ साल तक तान्या के पास कोई काम नहीं था।शायद इसका कारण था तान्या का दिल्ली से बाहर एक छोटे से शहर से होना,और वैसे भी दिल्ली में छोटे रोल मिलना भी मुश्किल होता है और उसपर जब आप किसी जाने माने कालेज या थियेटर से संबंद्ध ना रखते हो।

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तान्या कहती हैं कि “मुझे इस बात को समझने में थोड़ा समय लगा कि चाहे कुछ भी हो जाए मुझे अपना बेस्ट देना है,और इस दौरान बहुत से लोगों ने मेरे काम की बुराई भी कि और मैं उनको गलत नहीं मानती क्योंकि उसके बाद मैंने अपने आप को सुधारा भी। बहुत से लोगों ने मेरे काम की प्रशंसा भी की जिसकी वजह से एक बैलेंस बना रहा।” तान्या कहती हैं कि मेरे परिवार और मेरे दोस्तों ने मेरे बुरे वक्त में हमेशा मुझे सर्पोट किया और मैं उनकी शुक्रगुजार हूं।

मुश्किल दौर गुजरा और तब तान्या ने दिल्ली में एक्ट-वन एक जाना माना थियेटर ग्रुप ज्वाइन किया जिसके फाउंडर पियूष मिश्रा,मनोज बाजपेयी और एन.के शर्मा जी हैं।एन.के शर्मा एक्टिंग की दुनिया के जाने माने गुरु हैं और उन्होंने बहुत से फिल्मी सितारे जैसे कि अनुष्का शर्मा,इमरान खान आदि को भी एक्टिंग के गुर सिखाएं हैं।

यहां एक्टिंग सीखने के दौरान तान्या ने कुछ अच्छे दोस्त बनाएं,जिसमें से एक दोस्त ने उन्हें आने वाली फिल्म के आडिशन में भाग लेने को कहा। तान्या बताती हैं कि जब वह पहली बार आॅडिशन रुम में घुसी तो कास्टिंग डायरेक्टर ने उनसे एक दूसरे रोल के लिए तैयार होकर आॅडिशन देने को कहा।मैं तैयार हो गई और अगले दिन आॅडिशन के लिए पहुंच गई।

आॅडिशन के लगभग एक महीने बाद तान्या को वह फोन भी आ गया जिसका इंतजार उन्हें बेसब्री से था,तान्या को अनुष्का शर्मा के प्रोडक्शन हाउस की फिल्म एनएच 10 में काम करने का फोन आ चुका था,जो उनकी पहली बालीवुड फिल्म थी।

“एक वो दिन था और एक आज का दिन है, मेरी जिंदगी पहले से थोड़ी व्यस्त जरुर हो गई है लेकिन मैं चाहती भी यही थी।तबसे आज तक मुझे अच्छे प्रोजेक्ट में काम मिला और मैं अपनी जिंदगी से खुश हूं।” तान्या कहती हैं कि “मैं सबसे यही कहना चाहती हूं कि एक बात जो मैंने अपनी जिंदगी से सीखी है वो यह है कि कोई भी स्थिति स्थायी नहीं होती अगर आप कोशिश करते रहें तो हर मुश्किल राह आसान हो जाती है। जिंदगी में हर उस इंसान का शुक्रगुजार होना चाहिए जिसने आपको हमेशा सर्पोट किया हो।” तान्या के मुताबिक सफलता का एक ही मंत्र है अपने आप में कभी भी विश्वास ना खोना और अपने सपनों को पाने के लिए कोशिश करते रहना।

देहरादून एयरपोर्ट पर जल्द उतरेंगी अंतर्राष्ट्रीय उड़ानें

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देहरादून के जाॅली ग्रांट हवाई अड्डे को अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के रूप में विकसित करने के लिए राज्य सरकार ने ड्राफ्ट मास्टर प्लान बना लिया है।इसके तहत रनवे की लम्बाई बढ़ाकर 9000 फीट किया जाना है। गोइंग वे की संख्या 4 से बढ़ाकर 8 की जानी है। इसके अलावा अन्य बुनियादी सुविधाएं विकसित की जानी है। 348 करोड़ रूपये की लागत से 30,200 वर्ग मीटर भवन का विस्तार किया जाना है। सात वर्षों से लम्बित 40 एकड़ भूमि को भारतीय विमान पत्तन प्राधिकरण को देने के निर्देश दे दिए गये हैं। लोनिवि, राजस्व, वन विभाग के अधिकारियों ने मौके का संयुक्त निरीक्षण कर भूमि ट्रांस्फर के काम को भी जस्कद किया जाये। उड़ानों में वन्य जीव को प्रभाव न पडे, इसके लिए कारगर कदम उठाये गये है। जिसमे कूड़े के समुचित निस्तारण, आस-पास के बडे पेड़ों को काटने, मोबाईल टावर हटाने, शादी या अन्य उत्सव में लेजर के उत्सर्जन पर रोक लगाने, आस-पास के मकानों से पतंग न उड़ाने और हवाई अड्डे से सार्वजनिक परिवहन संचालित करने की ज़रूरत है।

जौलीग्रांट एयरपोर्ट से वर्ष 2011-12 में सालभर में 80,000 यात्री जाते थे। अब इनकी संख्या बढ़कर 8 लाख हो गयी है। एक दिन में 12 फ्लाईट आती-जाती है। यहां से मुम्बई, बंगलूरू, लखनऊ, हैदराबाद, दिल्ली की नियमित हवाई सेवा शुरू हो गई है। जौलीग्रांट एयरपोर्ट को क्लीनेस्ट एयरपोर्ट के रूप में नामित किया गया है। रन वे 4000 फीट से बढ़ाकर 7021 फीट किया गया है।

9-5 जाॅब छोड़ माउंटेन हाई हुई माधवी शर्मा

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पर्वता रोहण में राज्य का नाम ऊंचा करने वाली माधवी शर्मा के लिये ये सफर बहुत आसान नही रहा। सेट ज़िंदगी और नौकरी को छोड़ पर्वतारोहण को अपना जुनून और पेशा दोनों बनाने के सफर का यादें माधवी ने हमसे साझा की।

माधवी कहती हैं कि “आॅफिस के कम्प्यूटर के सामने सुबह से शाम तक काम की वो नौकरी करते-करते मैं लगभग ऊब सी गयी थी। मेरे मन में द्वन्द सा चलता रहता था कि क्या मेरा जीवन यूं ही कट जाएगा? फिर एक दिन निर्णय लिया कि जीवन में कुछ करना है, कुछ ऐसा काम कि लोगों के लिए एक उद्धारण बन सके।” माधवी कहती है कि “आजकल के समय में अक्सर बच्चों को क्या करना है, पहले से ही पता होता हैं लेकिन मैं उन लोगों में से थी जो 27 साल की उम्र में भी अपने जीवन का लक्ष्य नहीं जान पायी थी। बचपन से प्रकृति से जुड़ाव और खेल में सक्रिय होने की प्रवृत्ति ने मुझे माउन्टेन्रिंग कोर्स की ओर आर्कषित किया और 2014 के जून महीने में मैने नेहरू इंस्टीट्यूट आफ माउन्टेनंनियरिंग से बेसिक कोर्स पुरा किया।”

माधवी को सन् 2014 के सितम्बर महीने में ही भारत की पहली महिला एवरेस्टर सुश्री बछेन्द्री पाल के तत्वाधान में टाटा स्टील एंडेवन्चर फाउन्डेशन के सौजन्य से आल इंन्डिया वुमेन एक्सपीडिशन टू खार्ता वैली तिब्बत के सबसे ऊंचे पास (लांग-मा-ला) (5200 मीटर) (17,160) को पार करने का मौका मिला। इसके बाद की राह थोड़ी आसान हो गई और 2015 में लगन व जज्बे व माउन्टेरिंग के प्रति रूझान को देखकर टाटा स्टील फाउन्डेशन की ओर से बछेन्द्री पाल ने नेहरू पर्वतोराहण संस्थान उत्तरकाशी से ही एडंवास कोर्स के लिए स्पोन्सरशिप प्रदान कर दी गयी। जिसमें उन्होनें उत्तरकाशी जिले में ही स्थित दौपदी का डांडा पीक (5670 मीटर) 18,749 फीट को, फतह किया।
इसके अलावा जून 2016 में उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री हरीश रावत जी ने माधवी को पर्वतारोहण के क्षेत्र में बेहतर प्रयास करने के लिए सम्मानित किया।

unnamed (13)सितम्बर 2016 में ही इंडियन माउन्टेनरिंग फाउन्डेशन, दिल्ली में माधवी का चयन अरूणाचंल प्रदेश की ऊंची चोटी ‘‘गोरीचिन‘‘ जिसकी ऊंचाई लगभग 22500 फीट है,और एक अनाम चोटी जो लगभग 23,500 फीट थी, को स्केल करने के लिये किया गया।गोरीचिन पीक व अनाम पीक के दोनों टेक्निकल पीक थी और अभी तक यह पहला महिला दल था जिन्होंने इन चोटियों को फतह किया था। इस अभियान दल के सदस्यों में कुल 10 महिला सदस्य सम्मिलित थे। जिसमें 5 लड़कियां अरूणाचंल प्रदेश, 2 पश्चिम बंगाल, 1 महराष्ट्र, 1 सिक्किम और 1 (माधवी शर्मा) उत्तराखण्ड से प्रतिभाग कर रही थीं।

माधवी कहती हैं कि “एक किस्सा है जो मेरे उत्तराखण्डी होने पर मुझे गर्व महसूस करवाता है। माउन्ट गोरीचिन पीक अभियान के दौरान हमें सेना की कई छावनियां में सेना के जवानों से मिलने का मौका मिला। इतने सूदूर इलाकों में कठिन जीवन यापन में भी अपने कार्य के प्रति जो कर्मठता सेना के जवानों में दिखायी देती थी इन सब के कारण उनके प्रति आदर व सम्मान और बढ़ जाता है। अक्सर सेना के जवान हमारे कैम्प में आकर हमारी लीडर व सदस्यों से एक सवाल करते थे कि आपके इस अभियान दल में कोई उत्तराखण्ड़ से भी है? उत्तराखण्ड से किसी सदस्य की उपस्थिति उनके चेहरे पर गौरान्वित मुस्कान लाती थी जिसे मैनें बहुत करीब से महसूस किया था। वह क्षण मेरे लिए किसी अवार्ड से कम नहीं होता था। जब अभियान का शुभांरभ हुआ था, तो अरूणांचल प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री पेमा खांडू के साथ बातचीत के दौरान भी उत्तराखण्ड़ राज्य की प्रशंसा सुन कर स्वंय को गौरान्वित महसूस कर रही थी।”

माधवी कहती हैं कि “हर पर्वतारोही की तरह मेरा सपना भी माउन्ट एवरेस्ट पर भारत का तिरंगा फतह करने का है। साथ ही भारत व अन्र्तराष्ट्रीय देशों की चोटियों को फतह कर जीत हासिल करना भी है। जिसके लिए मैं निरन्तर प्रयास कर रही हूं।”

काशी की तर्ज पर उत्तरकाशी में होगी गंगा आरती, चैनलों पर होगा सीधा प्रसारण

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काशी की तर्ज पर अब उत्तरकाशी में भी गंगा आरती होगी और इसका सीधा प्रसारण भी टेलीविजन चैनलों पर किया जाएगा। जी हां यह पहल गंगा सफाई अभियान को बढ़ावा देने के उद्देश्य से जिला प्रशासन करने जा रहा है।

जिला प्रशासन के अनुसार गंगोत्री से गंगा आरती लोगों को अब टीवी पर दिखने लगेगी।
अगर सीधे प्रसारण की व्यवस्था गंगोत्री में नहीं हुई तो डी-लाइन (दूसरे आरती प्रसारण) कराया जाएगा। जिले के जिलाधिकारी ने इस बारे में बताते हुए कहा कि गंगा की स्वच्छता व निर्मलता के लिए शुरू की जा रही आरती के लिए जल्द ही चैनल का चयन भी किया जाएगा। उन्होंने गंगोत्री मंदिर समिति से कहा कि जो आरती 15 मिनट की होती हैं, उस आरती में भजन व अन्य गंगा स्तुति शामिल कर करीब 45 मिनट का करें।
जिला सभागार में गंगोत्री मंदिर समिति, यमुनोत्री मंदिर समिति, होटल एसोसिएशन तथा विभिन्न विभागों के अधिकारियों के साथ जिलाधिकारी डॉ. आशीष श्रीवास्तव ने बैठक ली। बैठक में जिलाधिकारी ने कहा कि गंगोत्री मंदिर समिति अपने स्तर से भी गंगा आरती का प्रसारण करने वाले चैनल से बातचीत कर सकती है साथ ही गंगोत्री व यमुनोत्री मंदिर समिति अपनी वेबसाइट भी तैयार करें। अगर तैयार करने में कोई परेशानी है तो जिला प्रशासन वेबसाइट को अच्छा बनाने में मदद करेगा।
उन्होंने कहा कि इस वेबसाइट के माध्यम से श्रद्धालु धामों में पूजा करने की एडवांस बुकिंग करा सकेंगे तथा ऑनलाइन के जरिए भी कर सकेंगे। गंगोत्री मंदिर समिति की मांग पर जिलाधिकारी ने कहा कि गंगोत्री मंदिर के परिसर को वाईफाई से जोड़ने का प्रयास किया जाएगा। इसके लिए उन्होंने सभी मोबाइल व इंटरनेट की सेवा देने वाली कंपनियों के साथ बैठक करने की बात कही।
जिलाधिकारी डॉ. आशीष श्रीवास्तव ने कहा कि गंगोत्री व यमुनोत्री धाम में पॉलीथिन पर प्रसाद नहीं दिया जाएगा। इस पर रोक लगाने के लिए जिलाधिकारी ने गंगोत्री व यमुनोत्री मंदिर समिति के सचिव को निर्देश जारी किए। पॉलीथिन के स्थान पर गत्ते का बॉक्स व स्थानीय रंगाल से बनी टोकरियों में प्रसाद देने का सुझाव दिया। प्रसाद में भी स्थानीय उत्पादों को शामिल करने को कहा।
इसके साथ ही उन्होंने यमुनोत्री पैदल मार्ग पर घोड़ा, खच्चर, डंडी-कंडी की व्यवस्था को संचालित करने के लिए प्रीपेड व्यवस्था लागू करने के निर्देश जिला पंचायत के मुख्य अधिकारी को दिए। जिलाधिकारी ने कहा कि वैष्णोदेवी में जिस तरह से घोड़े-खच्चर व अन्य व्यवस्थाएं हैं उसी तर्ज को अपनाएं। जिससे घोड़ा, खच्चर, डंडी-कंडी संचालक यात्रियों से अधिक पैसा न वसूल सके तथा मनमानी न कर सके।
बैठक में पुलिस अधीक्षक ददनपाल, एडीएम पीएल शाह, नितिका खंडेलवाल, पीएस पंवार, जिला आपदा प्रबन्धन अधिकारी देवेन्द्र पटवाल, शैलेन्द्र मटूड़ा, दीपेन्द्र पंवार आदि मौजूद थे।

अंग्रेजी शराब की 600 पेटी के साथ हरियाणा के दंपति गिरफ्तार

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जिले की बेरीनाग पुलिस ने हनीमून मनाने जा रहे नव दंपति की कार से 600 बोतल अवैध अंग्रेजी शराब बरामद की है। पकड़े गए दंपति का कहना है कि उनकी तीन माह पहले शादी हुई थी और वे हनीमून मनाने उत्तराखंड के रास्ते नेपाल जा रहे थे। उनके पास इतनी बड़ी मात्रा में शराब होने संबंधित किसी कागजात के न होने पर पुलिस ने अवैध शराब रखने के जुर्म दोनों दंपतियों का चालान कर दिया है।

प्राप्त जानकारी के अनुसार बेरीनाग पुलिस मंगलवार को यहां बना बैंड के पास वाहनों की चेकिंग कर रही थी। इसी दौरान अल्मोड़ा की तरफ से आ रही टोयटा कोरोला कार को पुलिस ने जब रोका तो चालक तेजी से कार चला कर भागने लगा।
कार के इस तरह भागने से पुलिस को शक हुआ। पुलिस ने अपने वाहन से कार का पीछा किया और एक किमी दूर उसे पकड़ लिया। कार की तलाशी लेने पर उसमें अंग्रेजी शराब की 600 बोतलें बरामद हुई।
कार में अनिल कुमार निवासी बहादुरगढ़ हरियाणा और उसकी पत्नी सोनिया थीं। पूछताछ में दोनों के दंपति होने का पता चला। पुलिस ने कार को सीज कर दिया है।
दंपति के खिलाफ आबकारी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया है। पुलिस से पूछताछ में आरोपी अनिल कुमार ने बताया कि उनकी शादी तीन माह पूर्व हुई थी। इस बार उन्होंने होली से पूर्व मुनस्यारी और नेपाल में हनीमून मनाने का इरादा था। इसके लिए वाहन में शराब भी रख ली थी।

प्लास्टिक से एलपीजी बनाने वाले पिथौरागढ़ के दीपक को मिलेगा राष्ट्रपति पुरस्कार

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उत्तराखंड के बेटों और बेटियों ने सभी स्तरों पर अपने हुनर का जलवा बिखेरा है। इसी कड़ी में एक और नाम जुड़ गया है डाॅक्टर दीपक पंत का। डाॅक्टर दीपक पंत ने विश्व के पर्यावरण के लिए खतरा बन चुके प्लास्टिक का इस्तेमाल कर एलपीजी (गैस) तैयार किया है। उनके इस आविष्कार के लिए उन्हें विजिटर-2017 के राष्ट्रपति पुरस्कार से नवाजा जाएगा। इस पुरस्कार में एक लाख रुपये और एक ट्राॅफी दी जाती है।

आपको बता दें कि डाॅक्टर पंत मूल रूप से पिथौरागढ़ के रहने वाले हैं और फिलहाल हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला स्थित केंद्रीय विवि में पर्यावरण विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष एवं डीन हैं। डाॅक्टर दीपक पंत ने इसे प्लास्टिक के कचरे को एलपीजी में बदलने में कामयाबी मिली है। प्लास्टिक के कचरे से एलपीजी बनाने के तरीके का आविष्कार करने के चलते उन्हें विजिटर-2017 का राष्ट्रपति पुरस्कार दिए जाने की घोषणा की गई है।

गौरतलब है कि प्लास्टिक आज हमारे दिनचर्या में इस तरह शामिल हो गया है कि हम चाहकर भी इससे पीछा नहीं छुड़ा पा रहे और नतीजन बिना जाने हम बहुत सी बीमारियों को न्यौता दे रहे। इसके बचने के लिए कोई उपाय न होने से यह पर्यावरण के लिए एक बड़ा खतरा बन गया है।आपको बता दें कि एक आम इंसान रोजाना 120 ग्राम प्लास्टिक का इस्तेमाल करता है जिससे 100 ग्राम एलपीजी बनाया जा सकता है। डॉ. पंत को विज्ञान एवं पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए अभी तक 20 से अधिक राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुके हैं। उनकी 10 किताबें भी प्रकाशित हो चुकी है।

प्लास्टिक कचरे के निपटारे के लिए आमतौर पर ठोस एसिड उत्प्रेरक विधि का प्रयोग किया जाता है। डॉ. पंत ने आरंभिक प्रयोगों में ठोस एसिड के स्थान पर एलुमिनिया की तरह कुछ अक्रिय मृदा पदार्थ एवं द्रव एसिड का प्रयोग किया। इसके बाद बेकार प्लास्टिक को 125-130 डिग्री सेल्सियस तापमान पर उबालने पर तेल प्राप्त हुआ। इस प्रक्रिया में संशोधन कर एलपीजी तैयार किया गया।