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क्या कुछ हो सकता है सीएम रावत के पहले 15 अगस्त संबोधन में

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सुनने में अजीब लेकिन सच है कि मुख्यमंत्री कार्यालय (सीएमओ) स्वतंत्रता दिवस समारोह के लिए मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत के भाषण की तैयारी में व्यस्त है। जैसा कि हमें मालूम है कि, रावत के मुख्यमंत्री बनने के बाद यह पहला मौका होगा जब सीएम रावत तिरंगा फहराऐंगे जिसके लिए सीएमओ आॅफिस उनके भाषण को अंतिम रुप देने में व्यस्त है।

सूत्रों के अनुसार मुख्यमंत्री रावत अपने भाषण में कोई भी नई घोषणा नहीं करेंगे, लेकिन वह राज्य के लोगों के सामने आने वाले दिनों में राज्य को प्रगतिशील रास्ते पर लाने के लिए क्या काम किया गया उसका रोड मैप जरुर पेश करेंगे। चूंकि राज्य सरकार ने पहले ही एक घोषणा की थी कि 5 करोड़ रुपये तक की लागत वाले कार्यों के लिए अनुबंध केवल उत्तराखंड के निवासियों को दिया जाएगा, मुख्यमंत्री इस संबंध में कुछ निर्देश दे सकते हैं।

मुख्यमंत्री ने पहले ही घोषणा की है कि राज्य सरकार ने किसानों को दो लाख नकद सहायता देने के लिए एक प्रावधान तैयार किया है ताकि वे अपने कृषि उत्पाद के मूल्य में वृद्धि कर सकें। सूत्रों ने बताया कि यह कार्यक्रम सितंबर तक पंडित दीन दयाल उपाध्याय की जयंती के अवसर पर लॉन्च किया जाएगा।यही वजह है कि,राज्य के मुख्यमंत्री होने के कारण उन्होंने हाल ही में नागपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) मुख्यालय का दौरा किया। हाल में दिल्ली के दौरे पर वरिष्ठ नेताओं से मुलाकात की साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी मुलाकात की।

ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेलवे लाइन, ऑल वेदर रोड और राष्ट्रीय राजमार्ग जैसे कई परियोजनाएं को 2018 तक शुरु करने के लिए सीएम रावत आतुर हैं ताकि मुख्यमंत्री अपने कार्यकाल के दौरान इन योजनाओं की जांच कर सकें और  ऐसी परियोजनाओं के निष्पादन पर जोर दे सके। सीएम  रावत ने पहले ही महाराष्ट्र में उद्योगपतियों के सामने प्रस्तुति दी है और उन बिजनेसमैन ने राज्य में निवेश करने की अपनी इच्छा व्यक्त की है। इसी बीच, राजनीतिक दलों को मुख्यमंत्री से कुछ बड़ी घोषणाओं की उम्मीद होगी क्योंकि यह उनका पहला स्वतंत्रता दिवस होगा जब वह राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में तिरंगा फहराएंगे।

वहीं एक अधिकारी ने कहा कि मुख्यमंत्री ने सरकारी अधिकारियों को स्पष्ट रूप से बताया है कि वे अपने स्वतंत्रता दिवस के संबोधन में कोई लोकलुभावन घोषणा नहीं करना चाहते हैं,इसलिए उन्होंने कहा कि उन कार्यों का लेखा-जोखा दिया जाए जो जमीनी स्तर पर हो चुके है या जिनपर काम शुरु किया जा चुका हैं।

इन सब अटकलों के साथ सीएम रावत अपने भाषण में क्या बोलेंगे यह तो कल ही पता चलेगा फिलहाल स्वतंत्रा दिवस की तैयारियों में पूरा राज्य व्यस्त है।

1877 में अस्तित्व में आए लैंसडाउन का प्रतिबिंब है ‘कालौडांडा: ए मिस्ट्री इन द फाॅग’

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साहित्यिक व सामाजिक सरोकारों के लिए प्रतिबद्ध संगठन पदचिन्ह परिवार के तत्वाधान में कर्नल राम सिंह बिष्ट की पुस्तक ‘कालौडांडा: ए मिस्ट्री इन द फाग’ का भव्य लोकार्पण गढ़ी कैंट स्थित डीएसओआई क्लब में हुआ।
लोकार्पण समारोह के मुख्य अतिथि भाजपा के राष्ट्रीय सचिव व उत्तराखंड के पूर्व अध्यक्ष तीरथ सिंह रावत मुख्य ने कहा कि लैंसडाउन अपनी नैसर्गिक सुंदरता और मौसम की विविधता के रहते हमेशा देश का मुख्य पर्यटन स्थल बना रहेगा। ब्रिटिश काल में स्थापित यह नगर आज भी शिक्षा का केंद्र बना हुआ है और गढ़वाल की तमाम लोकप्रिय प्रतिभाओं का लैंसडाउन से गहरा रिश्ता रहा हैै। लैंसडौन के आसपास ताड़केश्वर धाम, रिखणीखाल, कालेश्वर, भैरवगढ़ी आदि हमेशा लोकप्रिय व कालजयी स्थल बने रहेंगे। भले ही आज मसूरी जैसे नगर अतिक्रमण के चलते अपना वैभव खोने लगे हैं।
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि, उत्तरांचल प्रेस क्लब के अध्यक्ष नवीन थलेड़ी ने सैन्य अधिकारियों का आह्वान किया कि वे अपने विशिष्ट अनुभव और सफलताओं का लोकहित में पुस्तक के रूप में योगदान करते रहें। समाज और युवाओं की प्रेरणा के लिए आर्मी अधिकारी अपनी सफलतायें अवश्य शेयर करें।
स्व. ब्रिगेडियर बलवंत सिंह बिष्ट की धर्मपत्नी सुशीला बिष्ट ने कर्नल राम सिंह बिष्ट की बहुमुखी प्रतिभा का परिचय कराया। संदीप एम खनवलकर ने कालोडांडा: ए मिस्ट्री इन द फाग का प्रभावी रिव्यू श्रोताओं के सामने प्रस्तुत किया। पदचिन्ह परिवार के संयोजक भूपत सिंह बिष्ट ने बताया कि 1877 में अस्तित्व में आए लैंसडौन (कालौडांडा ) ब्रिटिश गढ़वाल का अनुपम व श्रेष्ठतम नगर रहा है। इस नगर को जिस नजरिए से कर्नल राम सिंह बिष्ट ने देखा, समझा और परखा, उसी को उन्होंने एक रूपक के अंदाज में पुस्तक रूप में पेश किया है। उन्होंने कहा कि गढ़वाल राइफल रैजिमेंटल सेंटर के रूप में विख्यात इस नगर से कई मिथक जुड़े हैं और उस के अनेक अनछुए पहलुओं को बिष्ट ने इस पुस्तक में स्थान दिया है। उन्होंने कहा कि यह पुस्तक अध्येयताओं के लिए उपयोगी सिद्ध होगी। कार्यक्रम की अध्यक्षता रमेश पंत ने और संचालन विजय नेगी ने किया। पुस्तक का प्रकाशन विनसर पब्लिशिंग हाउस ने किया है। इस मोके पर जिला पंचायत सदस्य पौड़ी केशर सिंह नेगी, रतन असवाल आदि मौजूद रहे।

फूलों की घाटी का दीदार करने पहुंचे ब्रिटेन के उच्चायुक्त

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british high commissioner visits valley of flowers

ब्रिटेन के उच्च आयुक्त डोमिनिक एजी एसक्वैथ अपनी पत्नी लुसी एलिजाबेथ के साथ रविवार को जोशीमठ पहुंचे। वे मंगलवार को विश्व प्रसिद्घ फूलों की घाटी की सैर करेंगे। बताया जा रहा है कि पंद्रह किलोमीटर तक पैदल चलकर वे फूलों की घाटी में पहुंचेंगे। सोमवार को वे रात्रि प्रवास के लिए घाटी के मुख्य पड़ाव घांघरिया पहुंचेंगे।

रविवार को ब्रिटेन के उच्चायुक्त रात्रि प्रवास के लिए जोशीमठ पहुंच गये है। उनके भ्रमण कार्यक्रम को देखते हुए जोशीमठ में पुलिस प्रशासन की ओर से कड़े सुरक्षा इंतजाम किये गये हैं। जोशीमठ में वे एक निजी होटल में ठहरे हुए हैं। उन्होंने जोशीमठ में प्रकृति के नजारों का लुत्फ भी उठाया। साथ ही जोशीमठ के धार्मिक और पर्यटन के बारे में जानकारी भी हासिल की।

सोमवार को वे सुबह छह बजे फूलों की घाटी के लिए प्रस्थान करेंगे। गोविंदघाट से पुलना तक तीन किलोमीटर वाहन से और यहां से घांघरिया तक दस किलोमटर के ट्रेक पर पैदल ही सफर करेंगे। जोशीमठ थाने के एसआई आशीष रवियान ने बताया कि कार्यक्रम के मुताबिक ब्रिटेन के उच्चायुक्त मंगलवार को फूलों की घाटी का दीदार करेंगे। वे पैदल ही घाटी तक पहुंचेंगे।

खाद्य सुरक्षा योजना के राशन कार्डों पर बैठी जांच

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केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी खाद्य सुरक्षा योजना एक बार फिर सवालों के घेरे में आ खड़ी हुई है। राशन डीलर एसोसिएशन की मांग के बाद जिला आपूर्ति विभाग ने जिले में बने खाद्य सुरक्षा योजना के राशन कार्डों पर जांच बैठा दी है। विभाग ने जांच के लिए दो-दो पूर्ति निरीक्षकों की टीम का गठन किया है, जो अपने से अलग क्षेत्र के राशन कार्डों की जांच करेंगे। जांच करने से पहले विभाग ने उन लोगों से अपने राशन कार्ड सरेंडर करने की अपील की है, जिनके परिवार की मासिक आय 15 हजार रुपये से अधिक है।

दो दिन पहले उत्तराखंड सरकारी गल्ला विक्रेता परिषद के प्रतिनिधिमंडल ने जिला पूर्ति अधिकारी विपिन कुमार से मुलाकात की थी। इस दौरान परिषद ने आरोप लगाया था कि जिले के कई राशन डीलरों के पास खाद्य सुरक्षा योजना के फर्जी राशन कार्ड हैं, जिन्हें डीलरों ने पूर्ति निरीक्षकों से सांठगांठ कर बनवाए हैं। परिषद के आरोप के बाद आपूर्ति विभाग हरकत में आता नजर आ रहा है। जिला पूर्ति अधिकारी विपिन कुमार का कहना है कि ऐसा हो सकता है कि कुछ अपात्रों के राशन कार्ड बने हों, इसके लिए विभाग सबसे पहले ऐसे लोगों खुद कार्ड सरेंडर करने की अपील करेगा। यदि इसके बाद भी जो अपात्र लोग कार्ड सरेंडर नहीं करेंगे, विभाग जांच कर उनके कार्ड निरस्त करेगा।

ग्रामीण क्षेत्रों की भी जांच
शहर के अलावा आपूर्ति विभाग ने जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में भी खाद्य सुरक्षा योजना के राशन कार्डों की जांच बैठा दी है। हालांकि, पहले शहरी क्षेत्र की जांच पूरी की जाएगी, इसके बाद टीम ग्रामीण क्षेत्र में जुटेगी।

डीलरों में होगा समान कार्ड वितरण
राशन वितरकों की अन्य मांग सभी डीलरों को एक समान कार्ड वितरण की मांग पर भी पूर्ति विभाग विचार कर रहा है। डीएसओ ने बताया कि डीलरों की मांग जायज है। इसके लिए भी योजना तैयार की जा रही है।

एक महीने में जमा करें बैंक खाता
राज्य सरकार के राशन की सब्सिडी बैंक खाते में भेजने के निर्देश के बाद आपूर्ति विभाग ने कसरत शुरू कर दी है। विभाग ने डीलरों की मदद से उपभोक्ताओं के बैंक खाते एकत्रित करना शुरू कर दिया है। विभाग ने एक महीने में बैंक खाते राशन कार्ड से जोडऩे का लक्ष्य रखा है।

प्रबंधन के वैश्विक गुरु श्रीकृष्ण

युग परिवर्तन और बदले संदर्भों में भारतीय धर्मग्रंथों की जितनी व्याख्याएं हुई हैं, उतनी शायद दुनिया के अन्य धर्मग्रंथों की नहीं हुई है। इन ग्रंथों में श्रीमद्भागवद्गीता सबसे अग्रणी ग्रंथ है। इसका महत्व धर्मग्रंथ के रूप में तो है ही, प्रशासकीय प्रबंधन के ज्ञान भंडार के रूप में भी इसे पढ़ा व समझा जा रहा है। इसके व्यावहारिक ज्ञान को न केवल भारत में, बल्कि विदेशों में भी कुशल प्रबंधन का अचूक मंत्र माना जा रहा है। इसी रूप में इसे सबसे ज्यादा समझने की कोशिश की जा रही है। महाभारत की यौद्धिक पृष्ठभूमि में श्रीकृष्ण ने युद्ध से पलायन को तत्पर अर्जुन को जो ज्ञान दिया था, उसे आज विश्व के कई विश्वविद्यालय अपने पाठ्यक्रमों का हिस्सा बना रहे हैं।

वर्ष 2008 से अमेरिका के न्यू जर्सी में स्थित सैटॉन हॉल विश्वविद्यालय में हरेक छात्र को गीता का अंग्रेजी अनुवाद पढऩा अनिवार्य कर दिया गया है। 1856 में स्थापित हुआ यह कैथोलिक विश्वविद्यालय पूरी तरह से स्वायत्त है। इसमें बड़ी संख्या में क्रिश्चियन एवं भारतीय छात्र हैं। राजस्थान विश्वविद्यालय ने भी वाणिज्य और प्रबंधन महाविद्यालयों में स्नातकोत्तर कक्षाओं की पढ़ाई में गीता और रामायण में प्रबंधन से जुड़े सूत्रों को पाठों में शामिल किया है। भारत की सबसे धनी मुंबई नगरपालिका ने अपने विद्यालयों में गीता की पढ़ाई शुरू कर दी है। ग्लोबल एकेडमी फॉर कारपोरेट ट्रेनिंग ने पिछले साल से गीता में दर्शाए गए सिद्धांतों को जोड़ते हुए एक डीवीडी तैयार की है। इस संस्था के संस्थापक विवेक बिंद्रा का मानना है कि इससे कंपनियों की उत्पादकता व कर्मचारियों की कार्यक्षमता बढ़ाने में मदद मिलेगी। गीता में दृष्टिकोण, नेतृत्व, प्रेरणा, कार्यदक्षता व योजना निर्माण जैसे प्रबंधन के अनेक आधुनिक सिद्धांतों की चर्चा संवाद शैली में दर्ज है। साथ ही प्रबंधन की समस्याओं के समाधान भी बताए गए हैं। तय है कि ये पाठ व्यक्ति और छात्रों में जहां दक्षता विकसित करेंगे, वहीं तेजी से निर्णय लेने की क्षमता भी विकसित करेंगे।

जीवनपर्यंत सामााजिक न्याय की स्थापना और असमानता को दूर करने के लिए कृष्ण बाल जीवन से ही दानवों और राजसत्ता से लड़ते रहे। वे गरीब की चिंता करते हुए खेतिहर संस्कृति और दुग्ध क्रांति के माध्यम से ठेठ देशज अर्थ व्यवस्था की स्थापना और विस्तार में लगे रहे। सामरिक दृष्टि से उनका श्रेष्ठ योगदान भारतीय अखण्डता के लिए उल्लेखनीय रहा। इसीलिए कृष्ण के किसान और गोपालक कहीं भी फसल व गायों के क्रय-विक्रय के लिए मंडियों में पहुंचकर शोषणकारी व्यवस्थाओं के शिकार होते दिखाई नहीं देते? कृष्ण जड़ हो चुकी उस राज और देव सत्ता को भी चुनौती देते हैं, जो जन विरोधी नीतियां अपनाकर लूट-तंत्र और अनाचार का हिस्सा बन गये थे ? भारतीय लोक के कृष्ण ऐसे परमार्थी थे, जो चरित्र भारतीय अवतारों के किसी अन्य पात्र में नहीं मिलता। कृष्ण की विकास गाथा अनवरत साधारण, लेकिन उल्लेखनीय मनुष्य बने रहने में निहित रही।

16 कलाओं में निपुण इस महानायक के बहुआयामी चरित्र में वे सब चालाकियां बालपन से ही थीं, जो किसी चरित्र को वाक्पटु और थोड़ी उद्दण्डता के साथ निर्भीक नायक बनाती हैं। फिर भी बाल कृष्ण जब माखन चुराते हैं तो अकेले नहीं खाते, अपने सब सखाओं को खिलाते हैं और जब यशोदा मैया चोरी पकड़े जाने पर दण्ड देती हैं तो उस दण्ड को अकेले कृष्ण झेलते हैं। वे दण्ड का भागीदार उन सखाओं को नहीं बनाते, जो चाव से माखन खाने में भागीदार थे। चरित्र की यह विलक्षणता किसी उदात्त नायक की ही हो सकती है।
कृष्ण का पूरा जीवन समृद्धि के उन उपायों के विरूद्ध था, जिनका आधार लूट और शोषण रहा। शोषण से मुक्ति, समता व सामाजिक समरसता से मानव को सुखी और संपन्न बनाने के गुर गढऩे में कृष्ण का चिंतन लगा रहा। इसीलिए कृष्ण जब चोरी करते हैं, स्नान करती स्त्रियों के वस्त्र चुराते हैं, खेल-खेल में यमुना नदी को प्रदूषण मुक्त करने के लिए कालिया नाग का मान-मर्दन करते हैं, उनकी यह सब चंचलताएं रूपी हरकतें अथवा संघर्ष उत्सवप्रिय हो जाते हैं। नकारात्मकता को भी उत्सवधर्मिता में बदल देने का गुरूमंत्र कृष्ण चरित्र के अलावा दुनिया के किसी अन्य इतिहास नायक के चरित्र में विद्यमान नहीं है ?

भारतीय मिथकों में कृष्ण के अलावा कोई दूसरी ईश्वरीय शक्ति ऐसी नहीं है, जो राजसत्ता से ही नहीं, उस पारलौकिक सत्ता के प्रतिनिधि इन्द्र से विरोध ले सकती हो, जिसका जीवनदायी जल पर नियंत्रण था? यदि हम इन्द्र के चरित्र को देवतुल्य अथवा मिथक पात्र से परे मनुष्य रूप में देखें तो वे जल प्रबंधन के विशेषज्ञ थे। कृष्ण ने रूढ़, भ्रष्ट व अनियमित हो चुकी उस देवसत्ता से विरोध लिया, जिस सत्ता ने इन्द्र को जल प्रबंधन की जिम्मेदारी सौंपी हुई थी और इन्द्र जल निकासी में पक्षपात बरतने लगे थे। किसान को तो समय पर जल चाहिए, अन्यथा फसल चौपट हो जाने का संकट उसका चैन हराम कर देता है। कृष्ण के नेतृत्व में कृषक और गोपालकों के हित में यह शायद दुनिया का पहला आंदोलन था, जिसके आगे प्रशासकीय प्रबंधन नतमस्तक हुआ और जल वर्षा की शुरूआत किसान हितों को दृष्टिगत रखते हुए शुरू हुई।
पुरुषवादी वर्चस्ववाद ने धर्म के आधार पर स्त्री का मिथकीकरण किया। इन्द्र जैसे कामी पुरुषों ने स्त्री को स्त्री होने की सजा उसके स्त्रीत्व को भंग करके दी। देवी अहिल्या के साथ छलपूर्वक किया गया दुराचार इसका शास्त्र सम्मत उदाहरण है। आज नारी नर के समान स्वतंत्रता और अधिकारों की मांग कर रही है, लेकिन कृष्ण ने तो औरत को पुरुष की बराबरी का दर्जा द्वापर युग में ही दे दिया था। राधा विवाहित थी, लेकिन कृष्ण की मुखर दीवानी थी। ब्रज भूमि में स्त्री स्वतंत्रता का परचम कृष्ण ने फहराया। जब स्त्री चीर हरण (द्रौपदी प्रसंग) के अवसर पर आए, तो कृष्ण ने चुनरी को अनंत लंबाई दी। स्त्री संरक्षण का ऐसा कोई दूसरा उदाहरण दुनिया के किसी अन्य साहित्य में नहीं है ? इसीलिए वृंदावन में यमुना किनारे आज भी पेड़ से चुनरी बांधने की परंपरा है, जिससे आबरू संकट की घड़ी में कृष्ण रक्षा करें। आज बाजारवादी व्यवस्था ने स्त्री की अर्ध निर्वस्त्र देह को विज्ञापनों का एक ऐसा माल बनाकर बाजार में छोड दिया है, जो उपभोक्तावादी संस्कृति का पोषण करती हुई लिप्साओं में उफान ला रही है। स्त्री खुद की देह को बाजार में उपभोग के लिए परोस रही हैं। स्त्री शुचिता की ऐसी निर्लज्जता के प्रदर्शन, कृष्ण साहित्य में देखने को नहीं मिलते।

कृष्ण युद्ध कौशल के महारथी होने के साथ देश की सीमाओं की सुरक्षा संबंधी सामरिक महत्व के जानकार थे। इसीलिए कृष्ण पूरब से पश्चिम अर्थात मणिपुर से द्वारका तक सत्ता विस्तार के साथ उसके संरक्षण में भी सफल रहे। मणिपुर की पर्वत श्रृंखलाओं पर और द्वारका के समुद्र तट पर कृष्ण ने सामरिक महत्व के अड्ढे स्थापित किए, जिससे कालांतर में संभावित आक्रांताओं यूनानियों, हूणों, पठानों, तुर्कों, शकों और मुगलों से लोहा लिया जा सके। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में हमारे यही सीमांत प्रदेश आतंकवादी घुसपैठ और हिसंक वारदात का हिस्सा बने हुए हैं। कृष्ण के इसी प्रभाव के चलते आज भी मणिपुर के मूल निवासी कृष्ण दर्शन से प्रभावित भक्ति के निष्ठावान अनुयायी हैं। इससे पता चलता है कि कृष्ण की द्वारका से पूर्वोत्तर तक की यात्रा एक सांस्कृतिक यात्रा भी थी। इसी यात्रा के परिणामस्वरूप आज भारत पूरब से पश्चिम तक अखंडता के एक सूत्र में बंधा हुआ है। यह अचरज भरा वैभव कोई अद्वितीय मानव ही कर सकता है।

सही मायनों में बलराम और कृष्ण का मानव सभ्यता के विकास में अद्भुत योगदान है। बलराम के कंधों पर रखा हल इस बात का प्रतीक है कि मनुष्य कृषि आधारित अर्थव्यवस्था की ओर अग्रसर हैं। वहीं कृष्ण मानव सभ्यता व प्रगति के ऐसे प्रतिनिधि हैं, जो गायों के पालन से लेकर दूध व उसके उत्पादनों से अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाते हैं। ग्रामीण व पशु आधारित अर्थव्यवस्था को गतिशीलता का वाहक बनाए रखने के कारण ही कृष्ण का नेतृत्व एक बड़ी उत्पादक जनसंख्या स्वीकारती रही। भूमंडलीकरण के वर्तमान दौर में हमने कृष्ण के उस मूल्यवान योगदान को नकार दिया, जो किसान और कृषि के हित तथा गाय और दूध के व्यापार से जुड़ा था। बावजूद पूरे ब्रज-मण्डल और कृष्ण साहित्य में कहीं भी शोषणकारी व्यवस्था की प्रतीक मंडियों और उनके कर्णधार दलालों का जिक्र नहीं है। जीवित गाय को आहारी मांस में बदलने वाले कत्लखानों का जिक्र नहीं है। शोषण मुक्त इस अर्थव्यवस्था का क्या आधार था, हमारे आधुनिक कथावाचक पंडितों और प्रबंधन का गुर सिखाने वाले गुरुओं को इसकी पड़ताल करनी चाहिए ? कृष्ण ही थे, जो उन्होंने उन प्राकृतिक संसाधनों की चिंता की जिसके उत्पादन तंत्र को विकसित करने में भू-मण्डल को लाखों-करोड़ों साल लगे। कृष्ण तो इस जैव-विविधता रूपी सौंदर्य के उपासक व संरक्षक थे, जिससे ग्रामीण जीवन व्यवस्था को प्राकृतिक तत्वों से जीवन संजीवनी मिलती रहे। गोया कि, कृष्ण पौराणिक युग के काल्पनिक पात्र कतई नहीं थे, वे मानव थे और उनमें मानवजन्य तमाम खूबियां और खामियां थीं। इन सबके बावजूद वे एक ऐसे उदात्त नायक थे, जो अपने गुणों के कारण महाभारत युद्ध के नेता और प्रणेता बने। कारण यही है कि उन्हें राजसत्ता विरासत से नहीं मिली थी।

देश को भी है ऑक्सीजन की जरूरत

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gorakhpur tragedy

गोरखपुर की घटना शांतिकाल में हुआ सबसे भीषण जन-संहार कहा जाएगा। दरअसल ये तस्वीर लोकतंत्र बहाली के सत्तर सालों में हमारी कमाई और बनाई हुई व्यवस्था का एक हिस्सा मात्र है। विडंबना देखिए कि पैसों का भुगतान नहीं होने पर जीवनरक्षक ऑक्सीजन की आड़ में इंसानों की सांसे रोकी जाने लगी हैं। पिछले सत्तर वर्ष की आजादी में हम हिंदुस्तानियों ने यही तो कमाया है। बीआरडी कांड सामाजिक उपेक्षा की उस दर्दनाक कहानी का प्रचार मात्र है जो असहाय-गरीबों के हिस्से में आती है। घटना हमारी सूखती संवेदनाओं का परिचय दे रही है। अगर हम में जरा भी शर्म बची है तो एक बार जरूर सोचना होगा कि क्या ऐसी ही आजादी और लोकतंत्र की कल्पना हमने की थी। गरीब अपने अधिकारों से सदैव वंचित रहा है। अगर आजादी के मायने यही हैं, तो इससे बेहतर तो गुलामी ही थी? नौनिहालों की ऑक्सीजन की कमी के नाम पर उनसे उनका जीवन छीनने का हक ऑक्सीजन सप्लाई करने वाली पुष्पा सेल्स को किसने दी। घटना में जिन्होंने अपनी औलादें खोई हैं, क्या उनकी पीड़ा का अहसास भी पुष्पा सेल्स कंपनी को या सरकार को है। तुम्हारे इन कुकृत्यों को शायद ही ईश्वर भी माफ करेे? गोरखपुर बाल संहार घटना को घटित करने में ऑक्सीजन सप्लाई करने वाली कंपनी पुष्पा सेल्स और बीआरडी प्रशासन दोनों प्रत्यक्ष रूप से दोषी हैं।
पुष्पा सेल्स कंपनी ने बकाया भुगतान नहीं होने पर ऑक्सीजन रोकने की धमकी को अस्पताल को हल्के में लेना भारी पड़ा। अस्पताल की इस घोर लापरवाही ने बच्चों को मौत के आगोश में धकेल दिया। इस बाल संहार की घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया है। पूरा हिंदुस्तान विचलित और दुखी है। लोग पीडि़त परिवारजन के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त कर रहे हैं। घटना ने कई परिवारों के आंगनों की किलकारी हमेशा-हमेशा के लिए बंद कर दी है। जिले में अफरा-तफरी का माहौल उत्पन्न हो गया है। जिन-जिन के बच्चे मौत के आगोश में समाए हैं, उनके घरों से निकलने वाली चीखें हम सबको रूला रही हैं। घरो में मातम मचा हुआ है। 48 घंटे के भीतर प्रत्येक घंटे में एक बच्चे ने दम तोड़ा यानी 48 घंटे में 48 नौनिहालों की जिंदगी खत्म। इस घटना को लापरवाही नहीं बल्कि मर्डर कहा जाए। मामला इसलिए भी ज्यादा गंभीर माना जा रहा है कि हादसा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गृह जनपद में हुआ है। जिले से ताल्लुक रखने के चलते वहां का प्रशासनिक अमला हमेशा सतर्क रहता है।
बीआरडी में पिछले दो साल से पुष्पा सेल्स नाम की कंपनी जीवनरक्षक ऑक्सीजन गैस सप्लाई कर रही है। कंपनी का पिछले एक साल का करीब 69 लाख रुपये बकाया था। इसे चुकाने में बीआरडी प्रशासन आनाकानी कर रहा था। कंपनी ने इस बावत कई बार खत लिखा, जिसका उन्होंने कोई जबाव नहीं दिया। इसके बाद कंपनी ने अस्पताल के भीतर लिक्विड ऑक्सीजन रोकने का फैसला किया। कंपनी को यह बात ठीक से पता थी कि इसके बाद क्या हो सकता है? मौतों का अंबार लग जाएगा? पर, विडंबना देखिए किसी की परवाह न करते हुए आखिर में कंपनी ने वही किया जो नहीं करना चाहिए था। उसका नजीता हमारे सामने है। कंपनी अस्पताल में इंसेफेलाइटिस वार्ड समेत करीब तीन सौ मरीजों को पाइप के जरिए ऑक्सीजन दे रही थी, जिसे घटना के दिन देना बंद कर दिया था। मरीजों ने ऑक्सीजन नहीं मिलने से दम तोड़ना शुरू कर दिया। अस्पताल प्रशासन को कुछ दिन पहले ही पेमेंट भुगतान नहीं होने पर कंपनी ऑक्सीजन सप्लाई न देने की धमकी दे चुकी थी। अस्पताल ने उसकी धमकी को गंभीरता से नहीं लिया। घटना के पीछे ऑक्सीजन सप्लाई करने वाली पुष्पा सेल्स कंपनी अस्पताल प्रत्यक्ष रूप से दोषी हैं। हालांकि घटना पर अब सियासत शुरू हो गई है। मामला अब मुख्य मुद्दे से हटकर राजनीतिक रूप धारण कर लेगा। इसके बाद घटना को जांच के सहारे छोड़ दिया जाएगा। पीडि़तों को मुआवजा बांटा जाएगा। कुछ दिन बाद मामला एकदम शांत हो जाएगा। पीडि़तों को ताउम्र असहनीय दर्द झेलने के लिए छोड़ दिया जाएगा।
सवाल उठता है कि फिर इतनी बड़ी घटना कैसे घटी। इसके पीछे कोई साजिश तो नहीं? खैर इन मौतों के आंकड़े को स्वाभाविक बताना संवेदनहीनता के अलावा और कुछ नहीं। हम पीडि़त परिवारों के दुख का अंदाजा नहीं लगा सकते कि उन पर क्या बीत रही होगी। दरकार इस बात की है कि मामले की लीपापोती नहीं होनी चाहिए, दोषियों को कठोर से कठोर दंड मिलना चाहिए। सूबे की सरकार इस बात को फिलहाल नकार रही है कि गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन की कमी से हादसा हुआ। सरकार के इस दावे की सच्चाई की पोल खोलने के लिए ताजा उदाहरण एक यह भी है। दरअसल ऑक्सीजन सप्लाई करने वाली कंपनी ने पिछले साल जुलाई में भी ऑक्सीजन की सप्लाई पैमेंट नहीं होने पर रोक दी थी। फिर भी सरकार सचेत नहीं हुई। ऑक्सीजन कंपनी ने जो असंवेदनहीनता का परिचय दिया है उसका सभ्य समाज में कोई स्थान नहीं। इस कृत्य में सरकार, प्रशासन व कंपनी बराबर की भागीदार हैं।
गोरखपुर के जिस अस्पताल बाबा राघव दास मेडिकल कालेज में अमानवीय घटना घटी है, वह सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की कर्मभूमि में आता है। ताज्जुब इस बात का है कि विगत 9 व 10 तारीख को खुद मुख्यमंत्री ने इस अस्पताल का औचक निरीक्षण कर स्वास्थ्य व्यवस्था का जायजा लिया था। उन्होंने अस्पताल के प्राचार्य, सीएमओ के अलावा चिकित्सकों आदि से बात की थी। तब उन्हें कहीं कोई चूक नहीं दिखाई दी। बावजूद इसके इतनी घोर किस्म की लापरवाही सामने आई है। इस घटना से पूरा देश परेशान है। दुखी होकर लोग तरह-तरह की नकारात्मक प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहे हैं। केंद्र की मोदी सरकार व राज्य की योगी सरकार स्वास्थ्य व्यवस्था पर सबसे ज्यादा जोर देने का दावा करती है, पर गोरखपुर की मौजूदा घटना उनके दावों की कलई खोलने के लिए पर्याप्त है।
उत्तर प्रदेश के कई जिले इस समय घातक बीमारी इनसेफेलाइटिस की चपेट में हैं। इसको देखते हुए मुख्यमंत्री योगी ने इनसेफेलाइटिस रोग को रोकने के लिए और उसके उन्मूलन के लिए एक अभियान छेड़ रखा है। इस बीमारी से सबसे ज्यादा रोगी उनके गृह जनपद गोरखपुर के ही हैं। आंकड़ों पर गौर करें तो इस रोग से उत्तर प्रदेश में हर साल सैकड़ों बच्चों की जान जाती है। योगी ने इस रोग पर काबू पाने के लिए पोलियो अभियान की तरह प्रण कर रखा है। पिछले दिनों उन्होंने कहा था कि इनसेफेलाइटिस का उन्मूलन हमारा लक्ष्य है। योगी ने अभियान की सफलता के लिए जागरूकता और जनता की सहभागिता पर जोर दिया था। अभियान राज्य के सबसे बुरी तरह प्रभावित पूर्वी क्षेत्र के 38 जिलों में शुरू किया गया है। क्षेत्र में पिछले चार दशक में इस रोग की वजह से लगभग 40 हजार बच्चों की मौत हो गयी।
गोरखपुर की घटना के बाद पूरे देश की स्वास्थ्य व्यवस्था एक बार सवालों के घेरे में आ गई है। अगर व्यवस्था चरमराती हो तो सवाल उठाना लाजिमी हो जाता है। ऑक्सीजन की कुंद मौत-काल के आगोश में समाए साठ बच्चों के परिवारों के दुख में सभी लोग खड़े हो गए हैं। भले ही घटना हिंदुस्तान में घटी हो पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में भी दर्द महसूस किया गया है। वहां के अखबारों में ये खबर प्रमुखता से छापी गई है। लोग बच्चों को श्रद्धांजलि अर्पित कर उनकी आत्मा की शांति के लिए दुआ मांग रहे हैं। शनिवार को सुबह देश के तकरीबन सभी स्कूलों में गोरखपुर के बाल संहार में मारे गए बच्चों को श्रद्धांजलि अर्पित की गई। दिल्ली के कई स्कूलों में शांति अरदास की गई, सभा के दौरान कई बच्चे भावुक हो गए और उनकी आंखों से आंसू छलक पड़े। 

उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में बादल फटने से 7 की मौत, सेना के सात जवान समेत 11 लोग लापता

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cloud burst in pithoragarh

उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के तहसील धारचूला में कैलाश मानसरोवर यात्रा मार्ग में बादल फटने से मालपा नाला उफान पर है।
नाले के किनारे स्थित तीन होटल भी बह गए हैं। होटलों में कितने लोग थे ये पता नहीं चल पाया है। वहीं तीन लोगों के शव मिले हैं और दो पुलिस जवान घायल हुए हैं। सेना के सात जवान समेत कुल 11 लोग लापता बताए जा रहे हैं। तहसील मुख्यालय से एसडीएम के नेतृत्व में राजस्व दल पुलिस मालपा को रवाना हो चुकी है।

पिथौरागढ़ में कैलाश मानसरोवर मार्ग पर रविवार दे रात मालती गाँव में टेंट लगाकर आर्मी के जवान रुके थे। तेज बारिश के कारण आर्मी के 4 जवानों समेत तीन पोर्टर भूस्खलन की चपेट में आ गये और लापता बताये जा रहे हैं। इस घटना के पीछे बादल फटने और उसके कारण हुए भूस्खलन को माना जा रहा है। इसके अलावा मालपा क्षेत्र में भी बादल फटने के कारण तीन दुकानें बह गयी है और वहां मलवे में दबे हुए तीन शव भी देखें गए हैं।

मालपा भारत नेपाल सीमा पर मालपा नाले के किनारे है जिससे मात्र 50 मीटर दूर काली नदी बहती है। मालपा में बीती रात की घटना में तीन शव निकाले गए हैं, शव सेना के जवानों के हैं ये नहीं पता चल सका है। एक महिला का शव काली नदी पार नेपाल में नजर आया है।
धारचूला क्षेत्र में हुई दैवीय आपदा की घटना के अंतर्गत जिलाधिकारी द्वारा घटना स्थल पर तुरंत राहत बचाव व अन्य कार्य किए जाने के निर्देशानुसार प्रशासनिक अधिकारियों के साथ ही एस.एस.बी, आई.टी.बी.पी आदि की टीमें भी मौके पर पहुंच गई हैं।
क्षेत्र में लगातार हो रही भारी वर्षा के कारण काली नदी का जल स्तर बढ़ गया है जिसके चलते नदी के नजदीक रह रहे लोगों को प्रशाशन द्वारा अलर्ट जारी कर दिया गया है। जिलाधिकारी द्वारा आई.आर. एस प्रणाली के अंतर्गत कार्यरत सभी अधिकारियों को त्वरित कार्यवाही करने के निर्देश दिए हैं तथा राहत एवं बचाव कार्यों को युद्ध स्तर पर करने के निर्देश दिए गए हैं।
घटना में चार दुकानें टूटने की सूचना है, इसके अतिरिक्त स्थानीय लोगों के 16 खच्चर भी लापता बताए जा रहे हैं। अभी तक रेस्क्यू अभियान के द्वारा मांगती नाला से एक बुजुर्ग व्यक्ति का शव एस.एस.बी द्वारा निकाला गया है। राहत और बचाव का कार्य जारी हैं।

सीमांत इलाके में तैनात आईटीबीपी के मिर्थी कैंप से मिली जानकारी के अनुसार बादल फटने की घटना मांगती नाले और मालपा के बीच हुई । इस घटना में लगभग सात लोग जिसमें चार कुमाऊ सकाउट और तीन पोर्टर समेत वाहन लापता हैं । तीन की मौत हो गई है जबकि एक को बचाया गया है । हालात की गंभीरता का अंदेशा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मांगती में दो और सिमखोला में एक पुल भी ध्वस्त हो गया है जिसके कारण कैलाश मानसरोवर यात्रा को रोक दिया गया है । इसके अलावा स्थानीय काली नदी का बहाव खतरे के निशान से ऊपर बह रहा है । ऐलागाड समेत कुछ जगहों पर सड़कें भी प्रभावित हो गई हैं । स्थानीय रैस्क्यू टीम ने एक जूनियर कमीशन्ड अफसर समेत तीन जवानों को सुरक्षित बचा लिया है। एसडीआरएफ, आईटीबीपी औऱ प्रशासन के लोग राहत और बचाव के कामों में लग गये हैं। हांलाकि अभी आसंका जताी जा रही है कि इस हादसे में कई और लोग लापता हो सकते हैं।

उत्तराखंड में लगातार हो रही बारिश राज्य के लिये आफत का सबब बन गी है। पिछले की दिनों से राज्य के अलग अलग हिस्सों से बादल फटने और भूस्खलन की खबरें आ कही हैं। इसमे जान और माल का भी खासा नुकसान हो रहा है। हांलाकि राज्य सरकार और एसडीआरएफ हासात से निपटने की पूरी कोशिश कर रही हैं लेकिन प्रकृति के आगे किसी का बस कहां चल पाता है।

सिमरन के किरदार को खुद के जैसा अल्हड़ मानती हैं कंगना

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अपनी नई फिल्म ‘सिमरन’ के ट्रेलर लॉन्च समारोह में मीडिया से बात करते हुए कंगना ने इस किरदार को लेकर कहा कि सिमरन की जिंदगी मेरी अपनी जिंदगी की तरह अल्हड़पन से भरी हुई है, जिसकी वजह से न जाने कितने लोगों को परेशानी होती है, लेकिन सिमरन अपनी जिंदगी में मस्त है और मैं अपनी जिंदगी में मस्त रहती हूं।

कंगना ने कहा कि यही वजह है कि वे खुद को सिमरन जैसा ही महसूस करती हैं। कंगना ने हाल ही के विवादों को लेकर ज्यादा कुछ नहीं कहा, लेकिन सिमरन के लेखन क्रेडिट को लेकर कंगना ने जरूर कहा कि इसे जरूरत से ज्यादा तूल दी गई। कंगना का कहना था कि जब जानबूझकर कोई मुद्दे की बात से भटककर पब्लिसिटी हासिल करने के लिए बातें करने लगता है, तो बेहतर है कि उस इंसान को अकेला छोड़ देना चाहिए।

उन्होंने सिमरन के लेखक अपूर्वा असरानी पर आरोप लगाया कि वे अपनी पब्लिसिटी के लिए मीडिया में जो कुछ कहते रहे, उसे लेकर कोई सफाई की जरूरत नहीं। चंडीगढ़ में एक लड़की का पीछा करने वाले राजनेता के बेटे के विवाद पर कंगना ने कहा कि ये दुर्भाग्य है और दोषी पाए जाने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। कंगना की इस फिल्म का निर्देशन हंसल मेहता ने किया है, जिनके साथ उनकी ये पहली फिल्म है और 15 सितम्बर को ये फिल्म रिलीज होने वाली है।
हिन्दुस्थान समाचार/अनुज/सुप्रभा/श्रीराम

दोबारा पापा बने फरदीन खान

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अभिनेता फरदीन खान एक बार फिर पापा बन गए हैं। उनकी पत्नी नताशा ने एक बेटे को जन्म दिया है, जिसका नाम अजारुस रखा गया है। नताशा और फरदीन इससे पहले एक बेटी के मां-बाप बन चुके हैं, जिसका नाम डियानी इसाबेला खान है और वो तीन साल की है।

घर में नए मेहमान के आने की खुशी फरदीन खान ने सोशल मीडिया पर शेयर करते हुए लिखा कि घर में नया मेहमान आया है। फरदीन की पत्नी नताशा अपने दौर की मशहूर अभिनेत्री मुमताज की बेटी हैं। फरदीन और नताशा के फिर से माता-पिता बनने पर बॉलीवुड के सितारों ने उनको बधाई संदेश दिए हैं। सोशल मीडिया पर ही रितेश देशमुख, ऋतिक रोशन, सुनील शेट्टी, रवीना टंडन, जरीन खान, रिया सेन, नेहा धूपिया, शिल्पा शेट्टी, वरुण धवन, अर्जुन कपूर और निर्देशक अनीस बज्मी ने खान परिवार को बधाई दी है।

फरदीन खान कई सालों से फिल्मो से दूर है। उनकी अंतिम फिल्म ‘दुल्हा मिल गया’ 2010 में रिलीज हुई थी। कुछ दिनों पहले चर्चा थी कि वे अपने पिता स्व. फिरोज खान की फिल्म ‘कुर्बानी’ का रीमेक करने की योजना बना रहे हैं, लेकिन कुछ दिनों बाद फरदीन की ओर से ही इस खबर का खंडन कर दिया गया। हाल ही में फरदीन खान अपने शरीर के वजन को लेकर चर्चा में रहे थे। 

सुशांत सिंह राजपूत के खिलाफ धमकी देने की शिकायत

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मुंबई में आज देर शाम अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत और एक व्यक्ति के बीच गोरेगांव के फिल्मसिटी स्टूडियो के करीब एक व्यक्ति से कहा-सुनी हो गई और मामला पुलिस तक जा पंहुचा। पुलिस अधिकारियों के हवाले से मिली जानकारी के अनुसार, सुशांत सिंह की कार के ड्राइवर द्वारा ओवरटेक किए जाने की घटना से दूसरी कार का ड्राइवर नाराज हो गया और दोनों बहस में उलझ पड़े।

काफी देर तक अपनी कार में ही बैठे रहे सुशांत सिंह ने जब मामले को शांत कराने के लिए मध्यस्थता करने की कोशिश की, तो वो ड्राइवर ज्यादा भड़क गया। सुशांत ने किसी तरह से अपने ड्राइवर को समझाया और तब कहीं जाकर मामला शांत हुआ।

सुशांत के ड्राइवर पर गुस्साए ड्राइवर ने गोरेगांव पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराते हुए सुशांत सिंह पर उनको धमकाने का आरोप लगाया। इस आदमी का नाम प्रेम सिंह बताया जाता है। पुलिस का कहना है कि वे मामले की जांच करेंगे। सुशांत सिंह और उनकी टीम ने इस मामले पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।