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फिल्म पद्मावती के खिलाफ करणी सेना 01 दिसम्बर को ‘भारत बंद’ करेगी

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संजय लीला भंसाली की विवादस्पद फिल्म पद्मावती का विरोध कर रही करणी सेना ने फिल्म के जारी होने के खिलाफ आगामी 01 दिसम्बर को ‘भारत बंद’ का आह्वान किया है। इस बीच फिल्म के खिलाफ बढ़ रहे देशव्यापी विरोध में फिल्म निर्माता भंसाली के साथ ही पद्मावती की भूमिका निभा रही अभिनेत्री दीपिका पादुकोण को भी आलोचना का सामना करना पड़ रहा है।

करणी सेना के प्रमुख लोकेन्द्र सिह ने कहा कि अब हम फिल्म जारी होने के पहले उसे उन्हें दिखाए जाने की मांग नहीं कर रहे हैं। अब हमारी मांग की है फिल्म पर प्रतिबन्ध लगाया जाय।

फिल्म के खिलाफ हो रहे विरोध राजस्थान गुजरात के अलावा अन्य राज्यों में फैल गया है। कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु में राजपूत समुदाय के लोगों ने प्रदर्शन कर फिल्म पर रोक लगाए जाने की मांग की है। फिल्म के खिलाफ हो रहा विरोध हिंसक रूप ले रहा है। राजस्थान के कोटा नगर में कल एक सिनेमा हाल में तोड़फोड़ की गई| कई अन्य स्थानों पर फिल्म को पोस्टर उतार दिए गए।

अभिनेत्री दीपिका पादुकोण के इस बयान पर कि फिल्म का विरोध भारत में हो रही गिरावट का परिचायक है, तीखी प्रतिक्रिया हुई है। भारतीय जनता पार्टी सांसद सुब्रम्णयम स्वामी ने इस बयान पर दीपिका को खरी-खोटी सुनाते हुए उनकी राष्ट्रीयता पर सवालिया निशान लगाया है। उनके अनुसार दीपिका भारत नहीं बल्कि हॉलैंड की नागरिक हैं औऱ वह विदेशी नजरिए से भारत को देख रही हैं।

फिल्म की रिलीज को लेकर बढ़ते विरोध को देखते हुए महाराष्ट्र सरकार ने फिल्म निर्माता संजय लीला भंसाली को सुरक्षा प्रदान की है| इस संबंध में फिल्म निर्माता, सामाजिक कार्यकर्ता और टीवी निर्देशक आशोक पंडित ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस को पत्र लिखा था।

आरटीई के तहत प्रदेश में पढ़ रहे लाखों बच्चों का भविष्य अधर में

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(देहरादून), आरटीई के तहत बजट न मिलने से नाराज पब्लिक स्कूल अब आर-पार की लड़ाई के मूड में है। निजी स्कूलो ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए 31 दिसंबर की डेडलाइन तय करते हुए बजट न मिलने पर नोटिस देने और अगले सत्र से बच्चों को न लेने की चेतावनी दी है। जिससे प्रदेश के करीब 3 हजार से ज्यादा स्कूलों में आरटीई के तहत पढ़ने वाले लाखों बच्चों का भविष्य केन्द्र से बजट न मिलने की वजह से अधर में लटक गया है।
केन्द्र से शिक्षा विभाग को आरटीई के तहत मिलने वाले बजट का भुगतान न होने की वजह से पब्लिक स्कूलों ने भी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। प्रिंसीपल प्रोगेसिव स्कूल एसोसिएशन ने सरकार को बजट दिलाने के लिए 31 दिसंबर की डेडलाइन तय की है। जिसके लिए अगले 15 दिनों में सभी स्कूल बैठक भी करेंगे। स्कूलों का कहना है कि पहले भी कई बार केन्द्र की ओर से बजट को रोका गया था। लेकिन जब बार-बार विरोध दर्ज कराया गया तो केन्द्र की ओर से बजट जारी हुआ लेकिन 2015 के बाद से पूरा ही बजट रोक दिया गया।
पीपीएसए के अध्यक्ष प्रेम कश्यप ने बताया कि सरकार ने तो नर्सरी के बच्चों से लेकर भी आरटीई के तहत फायदा देने की बात की थी। लेकिन, सरकार पुराने नियमों के तहत भी बजट नहीं दिया। उन्होंने बताया कि अब तक स्कूलों का सरकार पर करोड़ो रूपए का बजट हो चुका है। जिसको वे अब किसी भी सूरत मेंं बरदाश्त नहीं करेंगे।
उन्होंने बताया कि 30 नवम्बर तक वे सरकार को एक बार फिर नोटिस भेजेंगे। इसके बाद 31 दिसम्बर तक पैसा न मिलने की सूरत में वे अगले सेशन से बच्चों को पढ़ाना भी बंद कर देंगे। इसके साथ ही उन्होंने मामले को लेकर कोर्ट तक जाने की भी बात कही है।
बयान
“2 साल से स्कूलों को बजट नहीं मिला है। जिससे स्कूलों की आर्थिक स्थिति भी खराब होने लगी है। हम अगले 15 दिनों में निर्णायक फैसला लेंगें। अगर 31 दिसंबर तक पैसा नहीं मिला तो बच्चों को अगले सेशन में पढ़ाना बंद करने को मजबूर हो जाएंगे।” यह कहना है प्रेम कश्यप, अध्यक्ष, पीपीसीए का।

हिमनदों के बिना कैसे बचेंगी गंगा-यमुना

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देश के दर्जन भर पहाड़ी राज्यों में प्राकृतिक आपदा सबसे अधिक तबाही उत्तराखंड में ही मचा रही हैं। जवानी की दहलीज पर खड़े इस राज्य को भूकंप और बाढ़ दोनों से ही खासा खतरा है। उपर से भूस्खलन तो आए दिन की बात है। इससे बचने का एकमात्र उपाय पर्यावरणविदों की निगाह में राज्य के संवेदनशील इलाकों में मनुष्य की घुसपैठ को सीमित करना, नदी-नालों, जंगलों से छेड़छाड़ पर लगाम लगाना ही है। मनुष्य के हस्तक्षेप को हिमनदों वाले इलाके में रोकने की यह राय देसी और विदेशी दोनों ही पर्यावरणविद और हिमालयी भूगोल के विषेशज्ञ दे रहे हैं। जीवनदायी और पुण्य पावन गंगा नदी का स्रोत गंगोत्री ग्लेशियर वैज्ञानिकों के अनुसार तेजी से सिकुड़़ रहा है। उत्तराखंड के तहत अन्य प्रमुख ग्लेशियर यमुनोत्री, पिंडारी और शिखर कामेट, काफिनी, मैकटोली, मिलम, नमिक, रालम, सुदरढूंगा, बंदर पूंछ, चैराबाड़ी बमक, डोकरियानी, दूनागिरि,, खटलिंग, नंदा देवी समूह, सतोपंथ और भागीरथी खर्क, टिपरा बामक का भी कमोबेश यही हाल है। उनमें मानव दखल बढ़ने से उनके आसपास कचरे के ढेर साफ करने के लिए भी सेना को विषेस अभियान चलाने पड़ते हैं। इन ग्लेषियरों के लिए केदारनाथ आपदा सबसे बड़ा संकेत है। इसके बावजूद धार्मिक पर्यटन बढ़ाने के नाम पर चारधाम यात्रा रूट पर सदाबहार सड़क बनाने की महत्वाकांक्षी परियोजना षुरू कर दी गई है।
मानव दखल और जलवायु में गर्मी बढ़ने के कारण गंगोत्री ग्लेशियर में नई झील बन गई है जिससे उसके नीचे के क्षेत्रों में बाढ़ आने पर केदारनाथ जैसी किसी आपदा की चेतावनी वैज्ञानिक दे रहे हैं। यह चेतावनी वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों ने वहां के सर्वेक्षण के आधार पर दी है। उनके अनुसार केदारनाथ आपदा भी उसके उपर स्थित चैराबाड़ी ग्लेशियर में विशाल झील बनने और फिर उसके फट जाने से ही आई थी। गंगोत्री ग्लेशियर में इस झील के कारण गौमुख के बजाए अब भागीरथी उसके दाएं से निकलने लगी है। हिमालयी क्षेत्र में ग्लेशियर टूट कर झील बनने की यह अकेली घटना नहीं है। बगल के राज्य हिमाचल प्रदेश में पिछले दो साल में प्राकृतिक झीलों की संख्या 596 से बढ़कर 705 हो गई है। इस तरह समूचे मध्य हिमालय के ग्लेशियरों के अस्तित्व पर खतरे की तलवार लटक रही है। मध्य हिमालयी क्षेत्र महाहिमालय के दक्षिण में फैली पर्वत श्रृंखला है। इसकी चोड़ाई 40 से 60 किमी ओर उंचाई औसतन 3500 मीटर है। इसके दोनों तरफ गहरी घाटियां और ढलानों पर घने जंगल हैं। दुनिया की खाक छान चुका प्रकृति प्रेमी सैलानी लगभग सन 1846 में इस क्षेत्र में पहुंचा तो उसने गढ़वाल के उत्तुंग पर्वत शिखरों को सबसे खूबसूरत पाया। उसने बताया है कि तक यहां के हिमनद मीलों दूर तक फैले हुए थे और मनुश्य के वहां तक फटकने का दूर-दूर तक कोई निषान नहीं था।
उस सैलानी ने इस अपार हिमराशि के अनन्त काल तक अखंड रहने की भविश्यवाणी की थी। दुर्भाग्य यह है कि उसकी यात्रा के पौने दो सौ साल बाद ही यह हिमनद सिकुड़ कर आधे रह गए और अब इनके अस्तित्व के साथ ही साथ मानव जाति के सिर पर भी खतरा मंडरा रहा है। इन हिमनदों के पिघलते ही गंगा और यमुना दोनों ही नदियां सूख जाएंगी जिससे मनुश्य जाति का अस्तत्व ही खतरे में पड़ जाएगा। याद रहे कि सरस्वती नदी सूखने से ही सिंधु घाटी की समृद्ध सभ्यता नश्ट हुई थी। यह बात दीगर कि हमारी सिंघु घाटी के पार बसे निवासियों को आज भी दुनिया हिंदु के रूप में ही जानती है जो सिंघु का ही अपभ्रंश है। मैदान में सैकड़ों किलोमीटर तक जो सदानीरा गंगा मनुष्यों के पाप धोने से लेकर उनका पेट भरने के काम आती है उसमें पानी की धार बरकरार रखने के लिए उत्तराखंड के 968 छोटे बड़े हिमनदों को पिघल कर बूंद-बूंद पानी टपकाना पड़ता है। यह ग्लेषियर करीब 2850 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले हुए हैं। इसके अलावा भी सैकड़ों पहाड़ी सोतों, नालों और झीलों का पानी मिलकर गंगा को उसका पावन स्वरूप प्रदान करते हैं।
गंगा में प्रदूशण खत्म करके उसके अस्तित्व को बचाने के लिए मोदी सरकार ने नमाममि गंगे परियोजना तो चला रखी है मगर उत्तराखंड हाईकोर्ट की ऐतिहासिक कोशिश को वह नाकाम करने में जुटी हुई है। उत्तराखंड हाईकोर्ट ने गंगा को मानव का दर्जा देकर उसे भी मानवाधिकारों से लैस और मानवों को उपलब्ध सारे कानूनों का हकदार घोशित किया हुआ है। इसके बाद गंगा से किसी भी प्रकार की मनमानी संज्ञेय अपराध हो जाता। उसी से घबरा कर भारतीय संस्कृति की झंडबरदार भाजपा सरकार सुप्रीम कोर्ट में हाईकोर्ट के आदेष को पलटवाने के लिए पहुंची हुई है। इससे साफ है कि देष के नागरिकों द्वारा निर्वाचित सरकार भी उन नागरिकों के अस्तित्व की रक्षा के बजाए प्रकृति के मनमाने दोहन को तवज्जो दे रही हैं क्योंकि उसमें स्याह-सफेद की खासी गुंजाइष रहती है।
हिमनदों के छीजने और जंगलों के कटने से पिछले पचास साल में पानी बरसाने वाले बादलों का घनत्व भी छीज रहा है। इसी वजह से माॅनसून में भी खूब उतार-चढ़ाव होने लगा है और बारिष की मात्रा घटने लगी है। बादलों के कमजोर पड़ने से ही उत्तराखंड में तो दो-तिहाई से भी अधिक क्षेत्र में फकत जंगल होने के बावजूद बादल फटने की आपदा बढ़ती जा रही है। ऐसे विकट हालात के बावजूद राज्य और केंद्र सरकार द्वारा जलवायु परिवर्तन से उत्तराखंड जैसे महत्वपूर्ण राज्य को बचाने के ठोस उपाय न करना अंततः राज्य के बाशिंदों पर ही भारी पड़ेगा।

आखिर कब खुलेगा आढ़त बाजार का बॉटल-नेक

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वर्ष 2013 में चकराता रोड चौड़ीकरण के बाद उम्मीद जगी थी कि अब शायद देहरादून शहर को आढ़त बाजार के बॉटल-नेक से भी निजात मिल जाएगी, लेकिन चार साल बीतने के बाद भी मामला जस का तस बना हुआ है। आज भी शहरवासियों को इस बॉटल-नेक में दिनभर में एक बार तो फंसना ही पड़ता है। उधर, एमडीडीए में लगातार आला पदों पर अधिकारियों की बदली की वजह से यह प्रोजेक्ट लगातार पीछे खिसकता जा रहा है जिसका खामियाजा कहीं न कहीं आम लोगों को भुगतना पड़ रहा है।
एमडीडीए में आर मीनाक्षी सुंदरम के वीसी रहते समय आढ़त बाजार चौड़ीकरण एवं शिफ्टिंग के प्रोजेक्ट पर तेजी से काम हुआ। यहां तक की इसके प्रथम चरण में यहां सिंह गुरूद्धारा के सामने वाली कुछ दुकानों का अतिक्रमण तोडक़र उन्हें पीछे भी किया गया। जबकि रेलवे स्टेशन चौक से लेकर सहारनपुर चौक तक उन दुकानों पर भी लाल निशान लगाने का काम कर लिया गया था जिनके कारण यहां पर जाम की समस्या पैदा होती है लेकिन मसूरी देहरादून विकास प्राधिकरण में लगातार अधिकारियों की बदली के कारण यह प्रोजैक्ट पीछे खिसकता चला गया। मीनाक्षी सुंदरम के बाद आए अधिकारियों ने इस प्रोजैक्ट में अब तक बहुत ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाई है जिस कारण यह मामले आगे बढ़ता नहीं दिख रहा है। करीब एक माह पूर्व वीसी का कार्यभार संभाल चुके डॉ.आशीष श्रीवास्तव का भी कहना है कि उनकी कोशिश होगी कि शहर की इस ज्वलंत समस्या के निदान के लिए तेजी से काम किया जाए। इसके लिए उन्होंने संबंधित फाइलें भी तलब की हैं।
एमडीडीए की प्रोजैक्ट मैनेजमैंट यूनिट ने बकायदा आढ़त बाजार का सर्वे कर यहां से कितने दुकानदारों का विस्थापन किया जाना है इसकी पूरी सूची तैयार कर रखी है। यहां तक की आढ़त बाजार के दुकानदारों से इसे लेकर कई दौर की वार्ताएं भी की चुकी हैं। यहां तक की व्यापारियों ने भी उस समय काफी हद तक शिफ्टिंग का मन बना लिया था। भाजपा नेता विनय गोयल के अनुसार अगर एमडीडीए प्रोजैक्ट को सही तरह से आगे बढ़ाता तो व्यापारी क्यों नहीं उसका साथ देंगे।
एमडीडीए की योजना थी कि आढ़त बाजार को शहर से बाहर किसी स्थान पर शिफ्ट किया जाए। पूर्व में तक इसे निरंजनपुर मंडी परिसर में शिफ्ट करने की योजना था लेकिन मंडी परिसर में स्थान कम होने के कारण बाद में इसे शिमला बाईपास रोड पर कहीं जमीन लेकर बसाने की योजना थी। इसके पीछे मकसद यही था कि आढ़त सरीखी जगह पर अक्सर ही भारी वाहनों का आवागमन होता रहता है, ऐसे में शहर के बाहर ही अगर इस बाजार को बसाया जाएगा तो शहर में जाम की समस्या भी कम से कम उत्पन्न होगी।

वजीफे के लिए छात्रों को नहीं भा रहा ऑनलाइन सिस्टम

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अल्पसंख्यक छात्रवृत्ति के लिए ऑनलाइन व्यवस्था हुए तीन साल होने वाले हैं, लेकिन अब तक इस सिस्टम में छात्रों की रुचि नहीं बढ़ी है। इसी का परिणाम है कि इस साल प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति के लिए चार जिलों से महज चार अल्पसंख्यक छात्रों ने ऑनलाइन आवेदन दाखिल किए हैं, जबकि पांच जनपदों से एक भी आवेदन प्राप्त नहीं हुआ है। इस आंकड़े से महकमा भी हैरान है। अब अल्पसंख्यक विभाग ने शिक्षा विभाग से संपर्क कर शैक्षिक संस्थाओं को यूजर आईडी तैयार करने और छात्रों के शत-प्रतिशत आवेदन कराने के निर्देश दिए हैं।
उत्तराखंड अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष नरेंद्रजीत सिंह बिंद्रा की ओर से की गई जनपदवार समीक्षा में इसका खुलासा हुआ। आयोग के अध्यक्ष के अनुसार प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति के लिए आवेदन करने की अंतिम तिथि 30 नवंबर है। लेकिन, अब तक अल्मोड़ा, चमोली, पौड़ी, रुद्रप्रयाग व उत्तरकाशी जिले से छात्रवृत्ति के लिए एक भी आवेदन नहीं आया है। जबकि, बागेश्वर, चंपावत, पिथौरागढ़ व टिहरी गढ़वाल ऐसे जिले हैं जहां से मात्र एक-एक आवेदन प्राप्त हुए। इसके अलावा देहरादून से 1874, हरिद्वार से 1899, नैनीताल से 513 व ऊधमसिंह नगर से 1182 आवेदन जमा किए गए। हालांकि, बैठक में यह दावा किया गया कि नई व्यवस्था से छात्रवृत्ति फर्जीवाड़े पर लगाम लगी है, लेकिन आवेदनों की संख्या नाममात्र की रहने पर भी चर्चा की गई। जिसमें सामने आया कि पर्वतीय क्षेत्रों में नेटवर्किंग की दिक्कत के कारण अधिकांश छात्र आवेदन नहीं कर पा रहे हैं। इस पर फैसला लिया गया कि अब सभी शैक्षिक संस्थाएं अपने स्तर से संबंधित विभाग से संपर्क कर यूजर आइडी तैयार करेंगे और इसके बाद अपने स्तर से ही छात्र-छात्राओं के ऑनलाइन आवेदन कराएंगे। आयोग के अध्यक्ष ने सभी संस्थाओं को 25 नवंबर तक सभी अल्पसंख्यक छात्र-छात्राओं के ऑनलाइन छात्रवृत्ति आवेदन कराने के निर्देश दिए हैं।

दुष्कर्म के आरोपी को आजीवन कारावास

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नैनीताल, जिला एवं सत्र न्यायाधीश कुमकुम रानी की कोर्ट ने फौजी की बीवी के साथ दुष्कर्म के दोषी युवक को आजीवन कारावास व 25 हजार जुर्माने की सजा सुनाई है। जुर्माने की राशि में से 10 हजार पीड़िता की दी जाएगी। इसके लिए उसे जिला विधिक सेवा प्राधिकरण में आवेदन देना होगा।

अभियोजन पक्ष के अनुसार पिछले साल 22 अक्टूबर क्षेत्र निवासी जम्मू कश्मीर में तैनात फौजी की पत्नी रात को डेढ़ बजे शौच को गई तो 28 वर्षीय अभियुक्त राकेश कुनियाल ने बुरी नियत से उस दबोच लिया। अश्लील हरकत करने के बाद उसके साथ दुष्‍कर्म किया।शोर मचाने पर फौजी की मां जाग गई और आरोपी विवाहिता को खींचकर ले जा रहा था तो सास ने उसे छुड़ा लिया। इसके बाद आरोपी धमकी देकर फरार हो गया। लोकलाज व डर की वजह से विवाहिता ने रिपोर्ट नहीं लिखाई। जब दिसंबर में फौजी अवकाश पर घर आया तो विवाहिता ने उसे आपबीती बताई।

इसके बाद धारा-376 व 506 के तहत केस दर्ज किया गया। अभियोजन की ओर से डीजीसी सुशील कुमार शर्मा द्वारा आरोप साबित करने के लिए आधा दर्जन गवाह पेश किए, जबकि बचाव पक्ष द्वारा भी गवाह पेश किए गए। गुरुवार को कोर्ट ने दोषी को सजा सुनाई।

एनएच मुआवजा घोटाले की जांच सीबीआई करेःबेहड

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रुद्रपुर, एनएच 74 घोटाले की जांच कर रही एसआइटी की जांच को महज खानापूर्ति करार देते हुए कांग्रेसियो ने पूर्व कैबिनेट मंत्री तिलक राज बेहद की अगुआई में एसएसपी कार्यालय के बाहर धरना दिया।

कांग्रेसियो ने एसआइटी के बजाय मामले की सीबीआई से जांच की मांग की। कहा कि एसआइटी सिर्फ जसपुर व काशीपुर में जांच कर रही है। बड़े घोटाले तो बाजपुर, गदरपुर, रुद्रपुर व किच्छा में हुआ है। 15 दिन में एसएसपी यदि इन तहसीलों से डॉबल लॉक से प्रपत्र निकाल जांच शुरू नहीं करते तो कांग्रेसी एसएसपी दफ्तर में स्थायी रूप से धरना शुरू कर देंगे।

नई तकनीक से जुडकर करें शोधःराज्यपाल 

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रुद्रपुर, देश में समग्र भौतिक के लिए खेती-किसानी को सरसब्ज़ बनाना होगा, जिसमें युवा वैज्ञानिकों को मुख्य भूमिका निभानी होगी। यह संदेश विवि के गांधी हॉल में आयोजित पंतनगर विवि के 31 दीक्षांत समारोह में बतौर मुख्य अतिथि प्रदेश के राज्यपाल एवं विवि के कुलाधिपति डॉ. कृष्णकांत पॉल ने दिया।

 उन्होंने कहा कि पंतनगर विवि ने खाद्य सुरक्षा में अग्रणीय भूमिका निभाई है, लेकिन अब बदलते व अनिश्चित मौसम, संसाधनों की कमी, मिट्टी की खराब होती सेहत और कृषि के लाभप्रद नहीं रहने के रूप में खेती-किसानी की राह में नई चुनौतियां सामने आ रही हैं। वैज्ञानिकों, खास तौर पर युवा वैज्ञानिकों एवं किसानों को मिलकर इन चुनौतियों का सामना करना होगा। डॉ. पॉल ने कहा कि कृषि को लाभकारी बनाए बिना देश में भौतिक विकास संभव नहीं है। अगर इस दिशा में अभी नहीं संभले तो देश के 130 करोड़ लोगों का जीवन खाद्य एवं पोषण की समस्या से घिर जाएगा। उन्होंने सूबे में प्राकृतिक संसाधनों को खोजने के लिए जीआईसी के माध्यम से सर्वे करने ज़रूरत बताते हुए वैज्ञानिकों का आह्वान किया कि वे कम पानी में पैदा हो सकने वाली गेहूं, धान, गन्ना और कपास की प्रजाति खोजें। साथ ही उन्होंने बूंद-बूंद सिंचाई तकनीक को बढ़ावा दिए जाने की बात की।
महामहिम ने कहा कि सूबे में करीब 13 प्रतिशत ही पर्वतीय खेती है और किसानों के पास एक हैक्टेयर से भी कम भूमि है और वो भी वर्षा आधारित है। ऐसे में वहां पैदावार बहुत कम होने के कारण मनुष्य और पशुओं के लिए खाद्य समस्या बनी रहती है, जोकि पलायन का भी एक मुख्य कारण है। इस परिप्रेक्ष्य में उन्होंने पर्वतीय क्षेत्रों में औषधीय एवं सगंधी फसलों, मोटे अनाज, फल, फूल व सब्ज़ी आदि की खेती को बढ़ावा दिए जाने, उनके उत्पादों की प्रसंस्करण से गुणवत्ता बढ़ाने, किसान समूह बनाए जाने व ग्रामीण विकास को मुख्य फोकस बनाने का सुझाव दिया।
डॉ. पॉल ने कहा कि पर्वतीय क्षेत्रों में राज्य की पंजीकृत देसी बदरी गाय पर शोध से दूध बढ़ाकर दूध की समस्या से निजात पाई जा सकती है। इसके लिए जेनेटिक इंजीनियरिंग के माध्यम से बद्री गाय के दुग्ध उत्पादन को बढ़ाने, उसके पालन को बढ़ावा देने तथा पर्वतीय पशुपालकों को प्रशिक्षित किए जाने पर ज़ोर दिया। राज्यपाल डॉ. पॉल ने कहा कि खेती के माध्यम से देश में भौतिक विकास की जिम्मेदारी युवा वैज्ञानिकों के कंधों पर है। उन्हें इस संबंध में न केवल सतत रूप से जागरुक रहना होगा, बल्कि नई-नई तकनीकों से अपने आपको जोड़े रखते हुए नए शोध को सामने लाना होगा।

खसरा-रूबेला टीकाकरण अभियान का डीएम ने लिया जायजा

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डोईवाला ब्लाक के सुनार गांव में स्थित राजकीय कन्या उच्चत्तर माध्यमिक विद्यालय एवं राजकीय प्राथमिक विद्यालय में बच्चों को लगाये जा रहे खसरा-रूबेला टीकाकरण का डीएम ने औचक निरीक्षण कर जायजा लिया।

इस अवसर पर जिलाधिकारी द्वारा उच्चत्तर माध्यमिक विद्यालय एवं राजकीय प्राथमिक विद्यालय में किये जा रहे टीकाकरण के सम्बन्ध में स्वास्थ्य विभाग की टीम एवं स्कूल के प्रधानाध्यापक से जानकारी ली। बताया गया कि दोनों विद्यालयों में छ़ात्र/छात्राओं को टीकाकरण हो चुका है। डीएम ने छात्रों की उपस्थिति के बारे में पूछा तो कक्षा 9 में कुल 11 छात्राएं अध्ययनरत हैं जिनमें 10 छात्राएं उपस्थित मिली। जबकि कक्षा 10 में कुल 23 छात्राएं अध्ययनरत है जिनमें 19 उपस्थित मिली।

जिलाधिकारी ने मुख्य चिकित्सा अधिकारी डाॅ वाई.एस थपलियाल एवं स्वास्थ्य विभाग की टीम को निर्देश दिये कि जो बच्चे स्कूल में अनुपस्थित हैं उनके लिए अलग से कैम्प लगाकर उनका अनिवार्य रूप से टीकाकरण किया जाये ताकि कोई भी बच्चा इस टीके से वंचित न रहने पाये।

जिलाधिकारी द्वारा बच्चों से सवाल-जवाब भी किये, जिसमें जिलाधिकारी द्वारा बच्चों से भविष्य में किस क्षेत्र में कार्य करने की रूचि है सम्बन्ध में भी जानकारी ली। जिलाधिकारी ने उपस्थित छात्राओं को भविष्य में कुछ हासिल करने के लिए दंगल फिल्म को देखने को कहा जिसके माध्यम से उन्होने कहा कि लड़की, लड़कों से किसी भी क्षेत्र में कम नही है वह अगर मन इच्छा दृढ हो तो लड़की लड़कों से आगे निकलकर उचांईयों की बुलन्दिया छू सकती है।

उन्होंने कहा कि लड़के एवं लड़कियों में कोई फर्क नही है आज लड़किया प्रत्येक क्षेत्र में लड़को के समकक्ष है। जिलाधिकारी ने मुख्य चिकित्सा अधिकारी को जनपद में अब-तक किये गये टीकाकरण के सम्बन्ध में पूर्ण विवरण उपलब्ध कराने के निर्देश दिये।

रिस्पना नदी के पुनर्जीवीकरण के लिए विशेषज्ञों की समिति बनाई जाएगी: मुख्य सचिव

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रिस्पना नदी के पुनर्जीवीकरण के लिए विशेषज्ञ और इस क्षेत्र में कार्य करने वाले लोगों की एक समिति बनाई जाएगी। अगले 10 दिनों में इको टास्क फोर्स एफआरआई, एनआईएच (नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ हाइड्रोलॉजी), एमडीडीए, जिला प्रशासन, सिंचाई विभाग, जल संस्थान और विभिन्न संस्थाओं के साथ बैठक कर कार्य योजना बनाएगा।
इस बारे में मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह ने बुधवार को सचिवालय में संबंधित विभागों, विशेषज्ञों के साथ बैठक की। निर्देश दिए कि इस महत्वपूर्ण कार्य को जन सहभागिता से चलाया जाए। मीडिया, स्कूल, धार्मिक और सामाजिक संगठनों का भी सहयोग लिया जाए। एक ही दिन में एक करोड़ पौधे लगाने की योजना बनाई जाए।
मुख्य सचिव ने जिलाधिकारी देहरादून को निर्देश दिए कि रिस्पना नदी के पुनर्जीवन की कार्य योजना लागू करने के पहले नगर निगम सफाई अभियान चलाएं। एमडीडीए नदी क्षेत्र में चल रहे अवैध निर्माण कार्य पर प्रभावी रोक लगायें। परमार्थ आश्रम के स्वामी चिदानंद मुनि ने बताया कि पहले ग्रैंड और ग्राउंड प्लान बनाया जाए।
रिस्पना नदी के सूखने से स्वास्थ्य और बाढ़ की हानियों को लोगों को बताया जाए। नदी की गाद को साफ करने के बाद फल, फूल, जड़ वाले अलग-अलग तरह के पौधों को लगाया जाए। ईको टास्क फोर्स के कर्नल एच.आर.एस.राना ने जीरो डिस्चार्ज पालिसी, जीरो गारबेज डम्पिंग, चेक डैम, मछली पालन और जन जागरूकता की जरूरत बताई।
मैड संस्था के अभिजय नेगी ने एनआईएच रूड़की के अध्ययन और जीआरसी विलियम्स के विचारों से अवगत कराया। उन्होंने इस अभियान में सरकार को सहयोग देने का भरोसा दिलाया। एनआईएच के वैज्ञानिक डॉ.आर.पी.पांडे ने भूमि जल प्रबंधन के विकास और हस्तक्षेप का प्रस्तुतीकरण किया। बताया कि इसके लिए डीपीआर बनाई जाए और योजना लागू करने के बाद मूल्यांकन किया जाए।
एमडीडीए के उपाध्यक्ष आशीष श्रीवास्तव ने वेबकास द्वारा नदी पुनर्जीवन के बारे में किए गए अध्ययन की जानकारी दी। वन संरक्षक शिवालिक मीनाक्षी जोशी ने वन विभाग द्वारा किए गए अध्ययन के बारे में बताया।