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मनरेगा के कार्यों में सामने आईं अनियमितताएं

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देहरादून। गौहरीमाफी ग्राम पंचायत में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के कार्यों में अनियमितता पकड़ी है। नियमों को दरकिनार भी किया गया और इस बात का भी संशय है कि काम हुए भी या नहीं। जांच कमेटी ने तत्कालीन ग्राम प्रधान के साथ ग्राम विकास अधिकारी और खंड विकास अधिकारी के साथ ही उप कार्यक्रम अधिकारी, अवर अभियंता के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की संस्तुति की है।

अक्टूबर 2017 में ग्रामीणों ने शिकायत की थी कि गीता कुटीर से प्राथमिक विद्यालय गौहरी प्लॉट तक तार जाल लगाने और सौंग नदी पर बाढ़ सुरक्षा कार्य के लिए 23 लाख रुपये खर्च करना दर्शाया गया है, जबकि तारजाल लगाने का कार्य हुआ ही नहीं। जिला विकास अधिकारी पीके पांडेय ने इसकी जांच सहायक परियोजना निदेशक विक्रम सिंह, खंड विकास अधिकारी देहरादून सुधा तोमर, सहायक अभियंता ग्रामीण निर्माण विभाग तारिक ज्याद को सौंपी। इसमें पाया गया कि वर्ष 2009-10 में इन कार्यों को एक ही कार्य के रूप में प्रस्तावित किया गया। लेकिन, इन्हें पांच अलग-अलग टुकड़ों में तोड़कर किया गया, जो मनरेगा के नियमों के विरुद्ध है। गीता कुटीर से प्राथमिक विद्यालय गौहरी प्लॉट और सौंग नदी में दूरी करीब डेढ़ किलोमीटर है। ऐसा कोई विभागीय आदेश भी नहीं मिला, जिसमें आदेश दिया गया हो कि ये कार्य सौंग नदी पर ही करा दिए जाएं। जांच टीम ने रिपोर्ट में कहा कि ऐसा लगता है कि ये कार्य दोनों स्थलों को एक साथ जोड़कर जानबूझकर प्रस्तावित किए गए। कमेटी ने ये भी आशंका जताई है कि नदी में बरसात के वक्त तेज बहाव और बाढ़ की स्थिति बनती है, जिसकी आड़ में इन कार्यों को करना दिखाया जाए और बाद में ये कहा जाए कि निर्माण बाढ़ में बह गया। मौके पर बाढ़ सुरक्षा कार्यों की क्षतिग्रस्त स्थिति ही देखने को मिली। लेकिन, तत्कालीन प्रधान और ग्राम विकास अधिकारी ने बाढ़ से नुकसान की कोई सूचना आपदा नियंत्रण कक्ष को दी गई और न ही इस संबंध में कोई अभिलेख प्राप्त हुआ। इससे यह आशंका और बलवती होती है। जिला विकास अधिकारी पीके पांडेय ने बताया कि जांच रिपोर्ट का अध्ययन कर दोषियों को नोटिस जारी किए जाएंगे और उनका स्पष्टीकरण आने के बाद आगे की कार्यवाही होगी। 

23 को आंदोलन करेंगे बिजलीकर्मी

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देहरादून। पे-मैट्रिक्स और पदोन्नत वेतनमान के मसले पर बिजली कार्मिकों ने 23 नवंबर को आंदोलन के कार्यक्रम का ऐलान करने का फैसला लिया है। शनिवार को पावर इंजीनियर्स एसोसिएशन, पावर जूनियर इंजीनियर एसोसिएशन, ऊर्जा कामगार संगठन, ऊर्जा आफीसर्स, सुपरवाइजर्स एंड स्टाफ एसोसिएशन की संयुक्त बैठक हुई।

वक्ताओं ने कहा कि सातवें वेतनमान के शासनादेश से तमाम विसंगतियां पैदा हो गई हैं, जिनका निस्तारण नहीं होने से कार्मिकों में गुस्सा है। ऊर्जा के तीनों निगम प्रबंधन ने पे-मैट्रिक्स की रिपोर्ट 27 अक्टूबर और पदोन्नत वेतनमान की रिपोर्ट 15 नवंबर को शासन के समक्ष प्रेषित कर दी है। वहीं, पिछले महीने शासन में हुई वार्ता में सहमति बनी थी कि एक महीने के भीतर विसंगतियों को दूर कर दिया जाएगा। लेकिन, अभी तक कोई शासनादेश इन संबंध में जारी नहीं हुआ।
कहा कि पदोन्नत वेतन ऊर्जा निगमों में क्रमश: 9, 14, 19 वर्ष की सेवा पर मिलता था। लेकिन, सातवें वेतनमान के आदेश के बाद इसे 10, 20, 30 वर्ष कर दिया, जो अव्यवहारिक है। साथ ही पे-मैट्रिक्स का निर्धारण भी गलत किया गया है। बैठक में निर्णय हुआ कि 20 नवंबर को तीनों निगमों के प्रबंध निदेशकों से वार्ता की जाएगी और 23 नवंबर तक आदेश जारी नहीं हुआ तो आंदोलन का कार्यक्रम जारी कर दिया जाएगा। बैठक में पावर इंजीनियर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष एमसी गुप्ता, ऊर्जा कामगार संगठन के अध्यक्ष राकेश शर्मा, कार्यवाहक अध्यक्ष दीपक बेनीवाल, पावर जूनियर इंजीनियर एसोसिएशन के यूपीसीएल अध्यक्ष संदीप शर्मा, सुपरवाइजर्स एंड स्टाफ एसोसिएशन के महासचिव दीपक पांडे आदि मौजूद रहे। 

वैली ऑफ वर्डस में ‘खाकी में इंसान’ किताब पर हुई चर्चा

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देहरादून के मधुबन होटल में आयोजित इंटरनेशनल लिटरेचर एंड आर्ट फेस्टिवल में उत्तराखंड पुलिस के एडीजी अशोक कुमार कि किताब ‘खाकी में इंसान’ पर चर्चा की गई।इस किताब कि कहानी एक ऐसे आईपीएस अधिकारी के भावनाओं को व्यक्त करता है जिसने अपना कैरियर हमारी पुलिस को और अधिक मानवीय और संवेदनशील बनाने में लगा दिया और आज भी वह इसके लिए प्रयासरत हैं। अशोक कुमार का जन्म 9 नवंबर 1964 को हरियाणा के पानीपत जिले के गांव कुराना में हुआ है।शुरुआती शिक्षा गांव के सरकारी स्कूल में संपन्न हुई और बी.टेक आई.आई.टी दिल्ली और एम.टेक की उच्च शिक्षा प्राप्त की। 1989 में भारतीय पुलिस सेवा में आए और अपने दो दशक के समय में उन्होंने इलाहाबाद, अलीगढ़, रुद्रपुर, चमोली, हरिद्वार, शाहजहांपुर, मैनपुरी, नैनीताल, रामपुर, मथुरा, पुलिस मुख्यालय देहरादून,गढ़वाल परिक्षेत्र तथा पुलिस महानिरिक्षक,कुमायूं परिक्षेत्र के पद पर रहे हैं।

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यह किताब सूचनापरक तो है पर अशोक कुमार द्वारा किए गए कार्यों का सरकारी लेखा-जोखा, आत्मकथा या अनुसंधान नहीं है। इलाहाबाद से लेकर कुमाऊँ और गढ़वाल परिक्षेत्र के तराई इलाकों तक विभिन्न पदों पर कर्त्तव्यपालन करते हुए इस आईपीएस अधिकारी ने अपने प्रशंसनीय और बेदाग करियर में जो अनुभव बटोरे हैं उसे उसने ‘लीग से हटकर – इंसाफ की डगर’, ‘पंच परमेश्वर या…’ ‘भू- माफिया’ ‘तराई में आतंक की दस्तक’, ‘जेलर जेल में’, ‘अंधी दौड़’, ‘दहेज और कानून’ और ‘पुलिस: मिथक और यथार्थ’ जैसे 16 शीर्षकों के तहत व्यक्त किया है।

पुलिस की कार्य प्रणाली, मित्र पुलिस के श्लोगन, विवेचनाओं में सुधार,पुलिस जवानो के लिए विभाग द्वारा सुधार हेतु कार्य, उत्तराखंड पुलिस के कार्य करने के तरीक़ों के बारे में  व पुस्तक से सम्बंधित सवाल किए गए, जिनका उत्तर देते हुए  अशोक कुमार द्वारा कहा कि अच्छी पुलिस व्यवस्था से सचमुच गरीब व असहाय लोगों की जिन्दगी में फर्क लाया जा सकता है।हालांकि वर्तमान व्यवस्था में कुछ खामियाँ आ गई हैं फिर भी यदि ऊँचे पदों पर बैठे लोगों में  दृढ़ इच्छाशक्ति हो, इंसानियत के नजरिए से सोचने की क्षमता हो और कुछ कर दिखाने का जज्बा हो तो यही व्यवस्था, यही सिस्टम लोगों की मदद करने में बहुत ही कारगर सिद्ध हो सकता है। साथ ही कहा कि यदि हम काम न करने के 50 तरीके अपना सकते हैं तो काम करने के भी 50 रास्ते खोज सकते हैं। बस जरूरत है अपने को साहब न समझकर जनसेवक समझने की ।और पीड़ित की दृष्टि से काम करने की।

कछुओं की तस्करी करने वाले दो युवक गिरफ्तार

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हरिद्वार। वन विभाग की टीम दुर्लभ प्रजाति की कुछुओं की तस्करी करने वाले दो आरोपियों को धर दबोचने का दावा किया। हालांकि देर शाम तक वन विभाग की इन दुर्लभ कछुओं की प्रजाति के विषय में विभिन्न जानकारियां जुटाती रही। साथ ही दोनों कछुओं को बेचने वाले दोनों आरोपियों की जांच पड़ताल में वन विभाग की टीम लगी रही।

दुर्लभ प्रजापतियों के कछुये बेचने के आरोपियों की जांच पड़ताल देर शाम तक वन विभाग की टीम करती रही। क्षेत्र में भी कछुओं की तस्करी करने वाले दोनों आरोपियों की चर्चायें लगातार होती रही। वन क्षेत्राधिकारी विपिन नोडियाल ने जानकारी देते हुए बताया कि कछुआ तस्करों से पूछताछ की जा रही हैं जो कछुये बरामद किये गये है उन कछुओं की प्रजापति को पता करने के लिए उच्च अधिकारियों से वार्ता की जा रही है। पकड़े गये आरोपी कनखल क्षेत्र के हैं एक आरोपी गंगा सफाई अभियान से भी जुड़ा हुआ है। आरोपी अपनी दुकान पर कछुये के बेचने की जानकारियां स्थानीय लोगों द्वारा दी जा रही है। एनजीओ के वोलेन्टियर के द्वारा दोनों आरोपी की शिकायत पर आरोपियों को पकड़ा गया है। वन विभाग की टीम कछुओं की प्रजातियांे एवं इन कछुओं को बेचने के अधिनियमों की जानकारियों में जुटे हुए हैं।
पकड़े गये आरोपियों का कहना है कि यह उन दुर्लभ प्रजापतियों के कछुये नहीं हैं जिनको रखने पर किसी भी प्रकार का प्रतिबन्ध हैं। कुछ लोग अपने घरों में कछुओं को पालने का काम करते हैं। वन विभाग की टीम गलत रूप से हमें फंसाने का प्रयास कर रही है।
आरोपियों का कहना है कि जो प्रजाति के कछुये वन विभाग की टीम को मिले हैं उनकी बिक्री पर किसी भी प्रकार का कोई प्रतिबन्ध नहीं होता है। गंगा सफाई से जुड़े कई सदस्य वन विभाग के कार्यालय पर आरोपियों के पकड़े जाने से कार्यालय पर कई घंटे जमे रहे गंगा सफाई अभियान से जुड़े गंगा भक्तों ने भी पकड़े गये युवकों को गलत तरीके से फंसाने के आरोप लगाये।

यूपी को उत्तराखंड में मिलाना चाह रही भाजपा सरकार: किशोर उपाध्याय

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देहरादून। कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय ने एक बार फिर त्रिवेंद्र सिंह रावत की सरकार पर एक बड़ा आरोप लगाते हुए कहा कि राज्य सरकार उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्से उत्तराखंड में मिलाने का षड्यंत्र कर रही है।

शनिवार को पूर्व प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय ने राजीव भवन में आयोजित पत्रकार वार्ता में भाजपा सरकार पर हमला बोलते हुए कहा कि पिछले दिनों प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत तथा उत्तर प्रदेश के मुख्य योगी आदित्यनाथ की भेंट में उत्तर प्रदेश के कुछ क्षेत्र राज्य की सीमा में मिलाए जाने के संदर्भ में भी चर्चा हुई है, इसे आगे बढ़ाने को लेकर दोनों मुख्यमंत्रियों में बातचीत भी हो गई है।
किशोर उपाध्याय ने कहा कि यह स्थिति उत्तराखंड के लिए सुखद नहीं होगी। त्रिवेंद्र रावत बताएं कि उन्होंने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी के साथ मिलकर किन मुद्दों पर चर्चा की। एक बार फिर उत्तराखंड की स्थाई राजधानी का मुद्दा स्पष्ट किया जाना चाहिए। इस छोटे से प्रदेश में दो-दो राजधानियों का कोई औचित्य नहीं है। उन्होंने कहा कि गैरसैंण हमारी भावनाओं से जुड़ा है तथा यह मांग राज्य आंदोलनकारियों की रही है। इस संदर्भ में प्रदेश सरकार को त्वरित निर्णय लेना चाहिए। उन्होंने केन्द्र सरकार पर भी इस वार्ता में प्रहार किया। उन्होंने कि प्रधानमंत्री ने उत्तराखंड में सर्व मौसमी सड़क 2018 तक पूरी हो जाने का वादा किया था, लेकिन अब तक इस संदर्भ में कोई कार्रवाई भी नहीं हुई, क्या एक साल में यह सड़क तैयार हो जाएगी। उन्होंने प्रश्न उठाते हुए कहा कि लगता है कि केन्द्र और प्रदेश सरकार के पास आलादीन का चिराग है, जो पलक झपकाते इन कामों को पूरा कर देगा। उन्होंने राज्य को प्रदूषण के मसले पर भी पर कठघरे में खड़ा किया है। उन्होंने कहा कि प्रदेश में लगातार प्रदूषण बढ़ा है और सरकार लगातार हाथ पर हाथ धरे बैठी है, जो इस बात का संकेत है कि सरकार कुछ करना नहीं चाहती, केवल जुमलों से ही काम करना चाहती है। पत्रकार वार्ता में मुख्य प्रवक्ता मथुरा दत्त समेत अन्य नेता उपस्थित रहे।

मजबूत की जाएंगी वन पंचायतें: हरक सिंह

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देहरादून। वन पंचायतों के सशक्तीकरण, वन पंचायतों के प्रबन्धन और वन क्षेत्र के निवासियों की आजीविका सुनिश्चित करने को लेकर आयोजित कार्यशाला में विस्तार से मंथन किया गया। कार्यशाला में वन पंचायतों के सदस्यों ने वन पंचायत नियमावली के क्रियान्वयन में आ रही बाधाओं और वन प्रबन्धन के कुशल संचालन के सम्बन्ध में सुझाव भी दिए गए।

शनिवार को राजपुर रोड स्थित मंथन सभागार में वन, वन्यजीव एवं पर्यावरण मंत्री डॉ. हरक सिंह रावत की अध्यक्षता और संसदीय कार्य, विधायी, वित्त एवं पेयजल मंत्री प्रकाश पंत की उपस्थिति में आतिथ्य में वन पंचायतों की गोष्ठी और प्रशिक्षण कार्यक्रम विषय पर कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यशाला में वन मंत्री डॉ. हरक सिंह रावत ने कहा कि वर्तमान वन पंचायत नियमावली अत्यधिक जटिल है, जिससे इसके क्रियान्वयन में व्यवहारिक दिक्कतें सामने आ रही हैं। उन्होने वर्तमान नियमावली को बेहतर बनाने और क्रियान्वयन में सरलता लाने के लिए इसमें संशोधन की बात कही। उन्होंने कहा कि हमारा प्रयास रहेगा कि वन पंचायतें मात्र संख्याबल के अधार पर ना दिखें, बल्कि वन पंचायतें सक्रिय होनी चाहिए। उन्होने बड़ी वन पंचायतों को प्रत्येक वर्ष कम से कम दो लाख रुपये के कार्य अनिवार्य रूप से देने, आरक्षित वनों को छोड़कर शेष सभी प्रकार के वनों का प्रबन्धन वन पंचायतों को सौंपने, वनों में अग्नि सुरक्षा के लिए स्थानीय वन पंचायतों को भागीदार बनाने, मनरेगा के बजट का 20 प्रतिशत हिस्सा प्रत्येक वर्ष वन पंचायतों को अनिवार्य रूप से आंवटित करने, वन पंचायतों के प्रबन्धन में महिलाओं की भागीदारी को अधिक करने, वन पंचायतों का प्रशासनिक नियंत्रण राजस्व विभाग से हटाकर वन विभाग के अधीन करने तथा जंगल में विभिन्न प्रकार की वनस्पति और वन्यजीवों की संख्या को संतुलित करने वाली नीतियों को नियमावली में सम्मिलित करने की बात कही। उन्होने राज्य में महिला नर्सरी के लिए 2 लाख रुपये की धनराशि और बड़ी वन पंचायतों को प्रत्येक वर्ष कम से कम दो लाख रुपये के कार्य अनिवार्य रूप से सौंपने या देने की घोषणा की। उन्होंने कहा कि वन पंचायतों का एक महा सम्मेलन गढंवाल मंडल का कोटद्वार और कुमाऊं मण्डल का पिथौरागढ में आयोजित किया जाएगा।
कार्यशाला में संसदीय कार्य, विधायी, वित्त एवं पेयजल मंत्री प्रकाश पंत ने कहा कि उत्तराखण्ड की वन पंचायतें भारत ही नही विश्व में भी एक अनूठा प्रयोग है। इनकी स्थापना का मुख्य उद्देश्य स्थानीय समुदाय के जरिये वनों के कुशल प्रबन्धन व वन और वन उत्पादों के माध्यम से अपनी जीविका को मजबूत करना था। उन्होंने कहा कि समय के साथ-साथ आवश्यकता के अनुसार नियमावली में परिवर्तन होता आया है। वर्तमान में भी अगर कुछ ऐसे बिन्दु सामने आ रहे हैं, जो इसके कुशल क्रियान्वयन में बाधा उत्पन्न करते हैं तो इसमें अवश्य संषोधन किया जाना चाहिए। उन्होने कहा कि सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कैम्पा, जायका, केन्द्र तथा राज्य सेक्टर जैसी विभिन्न एजेंसियों के माध्यम से प्राप्त होने वाले फण्ड का व्यवस्थित तरीके से सदुपयोग किया जाए और वित्त का इस प्रकार आवंटन किया जाए ताकि सभी वन पंचायतों को समान रूप से वित्त की आपूर्ति होती रहे। उन्होने उपस्थित अधिकारियों कहा कि ऐसे स्थानीय तथा बाहरी स्थानों का भ्रमण करते हुए नवनमेशी और प्रेरणादायी उदाहरणों को अमल में लाया जाए, जहां उत्कृष्ट कार्य हुए हैं। उन्होने इस बात पर भी जोर दिया कि वन प्रबन्धन व पर्यावरण संरक्षण के तहत वन पंचायतों को स्वतः संसाधन निर्मित सक्षम बनाने के प्रयास किए जाने चाहिए।
कार्यशाला में वन पंचायतों के सरपचों/सदस्यों ने वन पंचातयों के प्रबन्धन में आ रही बाधाओं तथा उसके समाधान के बारे में महत्वपूर्ण सुझाव दिए। उनके द्वारा वन पंचायतों को आरक्षित वनों को छोड़कर बाकी सभी प्रकार के वनों का प्रबन्धन करने, विभिन्न योजनाओं के तहत मिलने वाला फण्ड समय से व पर्याप्त रूप मे देने, प्रत्येक वर्ष मनरेगा के तहत मिलने वाले बजट का 20 प्रतिशत हिस्सा वन पंचयतों के लिए आरक्षित करने, सम्पूर्ण 11 वन पंचायतों वाले जनपदों में वन पंचायतों के सशक्तीकरण के लिए अलग-2 वन प्रभाग बनाने, राज्य की सभी वन पंचायतों को कम से कम प्रतिवर्ष 50 करोड़ का बजट अनिवार्य रूप से आरक्षित करने, विभिन्न प्रकार की वित्तीय एजेंसियों के फंड को खर्च करने वन पंचायतों की भागीदारी सुनिष्चित करने इत्यादि सुझाव दिए गए। कार्यशाला में प्रमुख वन संरक्षक राजेन्द्र कुमार महाजन, प्रमुख वन संरक्षक वन पंचायत रेखा, अपर प्रमुख वन संरक्षक उत्तराखण्ड कैम्पा समित सिन्हा, अपर वन संरक्षक जायका उत्तराखण्ड अनूप मलिक, विभिन्न जनपदों के वनाधिकारी, राज्य भर से वन पंचायत सरपंच/सदस्य उपस्थित थे।

किस्से-कहानियों को लेखन से जीवंत करते हैं लेखक: राज्यपाल

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देहरादून। देहरादून में चल रहे अंतर्राष्ट्रीय कला एवं साहित्य उत्सव ‘वैली आॅफ वर्ड्स’ में स्वर्गीय डाॅ. आनंद स्वरूप गुप्ता के जीवन पर आधारित पुस्तक ‘काॅट बाय द पुलिस’ पर परिचर्चा का आयोजन किया गया। प्रदेश के राज्यपाल डा. कृष्ण कांत पॉल ने परिचर्चा का शुभारंभ किया।
कार्यक्रम में राज्यपाल ने कहा कि पुस्तक पुलिस अधिकारी रहे स्व डाॅ. आंनद स्वरूप गुप्ता के जीवन के बारे में बहुत ही बेहतरीन तरीके से जानकारी प्रदान करती है। यह पुस्तक जरूर पढ़ी जानी चाहिए। डाॅ. गुप्ता एक ईमानदार, कार्यकुशल व विचारशील पुलिस अधिकारी थे। पुलिस सुधार में उनका महत्वपूर्ण योदान रहा है। पुलिस से संबंधित कई महत्वपूर्ण संस्थाओं की स्थापना में उनकी भूमिका रही। उन्होंने कहा कि पुलिस अधिकारी होते हुए भी वे दार्शनिक, कवि, रचनाकार थे और उनकी आध्यात्किता में भी रुचि थीे। इस अवसर पर उत्तराखंड के पूर्व पुलिस महानिदेशक सुभाष जोशी, डाॅ. आनंद स्वरूप गुप्ता के पुत्र व वरिष्ठ अधिकारी रहे मधुकर गुप्ता, दीपक गुप्ता, रणजीत गुप्ता, हर्ष गुप्ता सहित अन्य गणमान्य उपस्थित रहे।
रस्किन बांड पर आधारित पुस्तक का भी किया विमोचन
दूसरी ओर वरिष्ठ पत्रकार व लेखिका डाॅ. जसकिरण चोपड़ा द्वारा लिखित पुस्तक ‘फिक्शन एंड फिल्म: रस्किन बॉन्ड्स रोमेंटिक इमेजिनेशन’ का विमोचन किया गया। पुस्तक का विमोचन राज्यपाल डा. केके पॉल ने किया। राज्यपाल ने कहा कि इस पुस्तक में रस्किन बांड के लेखन के विविध पहलुओं को अच्छे तरीके से प्रस्तुत किया गया है। इसमें रस्किन के बचपन के साथ ही उनके युवा जीवन व लेखक के तौर पर जीवन को वर्णित किया गया है। रस्किन बांड का लेखन हम सभी को आकर्षित करता रहा है। दून व मसूरी को उन्होंने अपने लेखन में जीवंत किया है। डाॅ. जसकिरण की इस पुस्तक से रस्किन बांड के साहित्य पर आधरित फिल्म व टीवी सीरियल की विस्तार से जानकारी मिलती है। राज्यपाल ने विश्वास व्यक्त किया कि यह पुस्तक आम पाठकों के साथ ही रिसर्च स्काॅलरों के लिए उपयोगी होगी।

परमार्थ निकेतन में विराट हिन्दुस्तान संगम का आगाज

ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन में शनिवार को विराट हिन्दुस्तान संगम का राष्ट्रीय सम्मेलन का शुभारंभ परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती महाराज, डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी एवं अन्य गणमान्य अतिथियों ने दीप प्रज्जवलित कर किया।
इस अवसर पर परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती महाराज ने कहा कि भारत की महान, विशाल और गौरवशाली सभ्यता और विरासत है, उससे जो खोया उसका गम नहीं जो बचा है, वह किसी से कम नहीं, अभी भी इस देश के पास देने के लिये बहुत कुछ है। हमें इस देश की विशालता, विरासत में मिली है। परन्तु उस विरासत को हमने सियासत में खो दिया अब समय आ गया है, हम सियासत को भूलें और विरासत को सम्भालें। हमें इस देश की माटी से संस्कृति और संस्कार मिले हैं, जिससे हम समृद्ध हैं। इसलिए हम स्वयं को भी विराट समझें। हमें सर्वे भवन्तु सुखिनः, वसुधैव कुटुम्बकम की संस्कृति और संस्कार मिले हैं, इसके साथ आगे बढ़ें। उन्होंने कहा कि दुनिया के अन्य देशों ने विश्व को बाजार बना दिया, परन्तु भारत में कहां विश्व बाजार नहीं है, विश्व तो एक परिवार है, उस परिवार को एक-दूसरे के साथ जोड़ते हुए, जुड़ते हुए अपने देश की महान विरासत को सबके साथ बांटे। उन्होंने कहा कि चारों ओर व्याप्त समस्याओं का समाधान कहीं और नहीं है बल्कि ’हम हैं समाधान’।
स्वामी चिदानंद ने सुन्दर पंक्तियों में इस विराट हिन्दुस्तान संगम को परिभाषित करते हुए कहा कि आज गंगा तट पर समानता और समरसता पर संगम हो रहा है, जिसमें विभिन्न धर्मों के धर्मगुरु ’मानव-मानव एक समान सबके भीतर है भगवान’ का संदेश प्रेषित करेंगे। उन्होंने कहा कि सबके भीतर एक ही भगवान विराजमान हैं तो फिर क्यों किसी के साथ द्वेष, विरोध, जातिवाद, परिवारवाद, नक्सलवाद और अनेक वाद खड़े कर लिए हैं, इन सब वाद-विवादों का मिटाते हुए, हटाते हुए शान्तिपूर्ण संवाद की स्थापना हो यही है, इस सम्मेलन का उद्देश्य।
स्वामी ने सम्मेलन में समरसता और स्वच्छता का संदेश देते हुए कहा कि सद्भाव एवं समरसता के विचार ही इस देश का संगम निर्माण करता है, हम जब तक इस विराटता और विशालता को बनाएं रखेंगे, तो ये देश का संगम बना रहेगा। भारत ने सदैव समाधान का संदेश दिया है और आगे भी देता रहेगा। उन्होंने कहा कि वर्तमान समय की यही मांग है कि हम सब मिलकर कार्य करें, मिलकर चले ,संगच्छध्वं संवदध्वं सं वो मनांसि जानताम्।
इस दो दिवसीय सम्मेलन का दूसरा सत्र सायं 4ः30 बजे से आरम्भ हुआ, जिसमें विभिन्न धर्मों यथा हिन्दु, मुस्लिम, सिक्ख, जैन, ईसाई एवं अन्य धर्मों के धर्मगुरु एवं भारत के प्रबुद्ध वक्ताओं ने शिरकत की। शनिवार को इस सत्र में बीजेपी के वरिष्ठ नेता डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी ने मुख्य वक्ता के रूप में सहभाग किया। इसके अलावा सत्र में मंत्री प्रकाश पंत, कृषि मंत्री, सुबोध उनियाल, विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचन्द्र अग्रवाल, चेयरमेन नगर पालिका दीप शर्मा, हांगकांग के योग में गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड होल्डरयोगराज सी पूवेन्द्रण, दातुक सेरी आर एस थिनेन्थिरण जी, संस्थापक अध्यक्ष शान्ति फाउंडेशन मलेशिया, प्रोफेसर डॉ. केतुक विध्न्या, महासचिव बिमस हिन्दु, इंडोनेशिया, अगस इंद्र उदायना, संस्थापक, अध्यक्ष गांधी पुरी आश्रम, इंडोनेशिया सहित अन्य अतिथियों ने सहभाग किया।

क्रिसमस से पहले मसूरी में शुरु हुआ ”केक मिक्सिंग फेस्टिवल” का दौर

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त्योहार आते हैं और साथ में सबको करीब लाते हैं, चाहे वो महीनों दूर ही क्यों न हो।हर साल की तरह इस साल भी केक मिक्सिंग सेरेमनी, जो मसूरी के सवॉय होटल के ग्रेंड डाइनिंग रुम में मनाई  गई। केक मिक्सिंग सेरेमेनी, क्रिसमस से 3-4  हफ्ते पहले पहाड़ों की रानी मसूरी के कई होटलों में मनाई  जाती है, इस साल सवॉय होटल मसूरी ने यह पहल करी।

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करीब 20 मिनट के इस समारोह में एक्जिक्यूटिव शेफ सभ्या साची दासमहापात्रा ने मेहमानों को बताया कि किस तरह से अलग-अलग व्यंजनों को मिलाकर यह केक हफ्तों पहले तैयार किया जाता है:  ब्लैक करंट, सुनहरा खुमानी, रम में भीगे अंजीर, किशमिश, खजूर, चीनी में भिगाई हुई नारंगी, अदरक,कद्दू , सूखी चैरी, टूटी-फ्रूटी, से एक उत्तम केक बनता है जिसे एक महीने तक रम और ब्रांडी में भिगा के रखने से बाद एक परफेक्ट, स्वादिष्ट,परंपरागत केक के रुप में तैयार किया जाता है।”

क्रिसमस का मज़ा परंपरागत केक के बिना अधूरा है, इसको बनाने में जल्दबाजी नहीं करी जा सकती और आसानी से नही बनाया जा सकता है। इसकी तैयारियाँ एक महीने पहले से शुरु हो जाती हैं, इस परंपरागत समारोह के दौरान सभी लोग बङ-चङ के भाग लेते है जिनको वहाँ पर मौजूद शेफ र्निदेष देते हैं।  परंपरागत केक मिक्सिंग पार्टी में लेखक बिल एटकन, गणेश सैली,आभा सैली और कुछ खास दोस्त उपस्तिथ हुये।

और जिन्होंने अभी तक इस परंपरागत केक मिक्सिंग सेरेमनी में अपना हाथ नहीं आजमाया है,उनके लिए खुशखबरी है, “इस समारोह के फल का आनंद- यानि की क्रिसमस केक का लुत्फ उठाने के लिये आप भी साल खत्म होने से पहले पहाड़ों की रानी मसूरी, में सवॉय होटल का रुख जरूर करे,” कहना है अमित कुमार, जेनरल मैनेजर, सवॉय होटल का।

संबद्धता का ‘खेल’ खेल रहा आयुर्वेद विवि

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देहरादून। उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय विवादों से अपना नाता छुड़ाने में लगातार असफल हो रहा है। एक के बाद एक नए विवाद विवि में जन्म ले रहे हैं। नया विवाद नियमों की खानापूर्ती करने के लिए ‘जुगाड़’ की फैकल्टी को संबद्ध करने से जुड़ा है। मान्यता के लिए विवि प्रदेशभर के आयुर्वेद चिकित्सकों को अपने परिसरों से अटैच करता है। मान्यता मिलने के बाद उन्हें वापस मूल तैनाती स्थल भेज दिया जाता है लेकिन अब सीसीआईएम से मान्यता बरकरार रखने के लिए विवि की यह तकनीक अब अटैच हुए चिकित्सकों को नागवार गुजर रही है।

सेंट्रल काउंसिल फोर इंडियन मेडिसन (सीसीआईएम) के संबऋता मानकों को पूरा करने के लिए विवि ने प्रदेश भर के आयुर्वेद डॉक्टरों को एकत्र कर संबद्धता हासिल कर ली। संबद्धता मिलने के बाद फिर उन्हें वापस तैनाती स्थल भेज दिया गया। ऐसा एक नहीं कई कई बार किया जा रहा है। इसी क्रम में अब एक बार फिर विवि से अटैच डॉक्टरों की संबद्धता विवि से समाप्त करते हुए उन्हें मूल तैनाती की जगह भेज दिया गया है। जबकि विवि में अभी तक पर्याप्त फैकल्टी की कोई व्यवस्था नहीं है। आलम यह है कि अब नए सत्र में दाखिला लेने वाले छात्रों को पढ़ाने के लिए विवि के पास फैकल्टी उपलब नहीं हैं। दरअसल विश्वविद्यालय के तीन कैंपस है। हर्रावाला स्थित मुख्य परिसर सबद्धता के मामले में सबसे ज्यादा बुरे हाल है। इसके अलावा बाकी दो परिसरों गुरुकुल और ऋषिकुल परिसरों के हालात भी कुछ जुदा नहीं है। यहां फैकल्टी को लेकर हमेशा कमी बनी रहती है। जिस कारण छात्रों को भारी परेशानियां झेलनी पड़ती है।

मान्यता के लिए डॉक्टरों को किया जा रहा अटैच
पिछले काफी वक्त से विवि द्वारा संबद्धता हासिल करने के लिए प्रदेश भर के आयुर्वेद चिकित्सकों को बतौर फैकल्टी विवि से अटैच कर दिया गया लेकिन नई सरकार में आयुष मंत्री डॉ हरक सिंह रावत ने सभी अटैच किए गए चिकित्सकों को वापस मूल तैनाती स्थल भेजे जाने के निर्देश दिए। जिसके बाद चिकित्सकों को वापस भेज दिया गया। इसके बाद विवि में नए सत्र के लिए काउंसिलिंग और सीसीआईएम के निरीक्षण और संबद्धता हासिल करने के लिए एक बार फिर चिकित्सकों को वापस अटैच कर दिया गया लेकिन काउंसिलिंग प्रक्रिया पूरी होने के साथ ही शासन ने फिर से चिकित्सकों को मूल तैनाती स्थलों पर भेज दिया।

चिकित्सकों में रोष व्याप्त
चिकित्सकों की माने तो बार बार विवि और मूल तैनाती स्थलों के बीच चक्कर काटते काटते अब वे भी परेशान हो गए है। चिकित्सकों का कहना है कि विवि में लंबे वक्त तक अटैच रहने के कारण ज्यादातर चिकित्सकों के बच्चों ने भी दून के स्कूलों में दाखिले ले लिए। परिवार भी यही रहने लगे। जिस कारण अब उनके लिए भी बार बार मूल तैनाती और विवि अटैच करने की प्रक्रिया बोझिल हो रही है।

पढ़ाई हो रही चौपट
मान्यता हासिल करने के लिए विवि भले ही इधर-उधर के चिकित्सकों के जरिए सीसीआईएम से अनुमति हासिल करता आ रहा है लेकिन इस पूरे खेल में बच्चों को भारी नुकसान का सामना करना पड़ रहा है। फैकल्टी की संख्या पर्याप्त न होने के कारण छात्र-छात्राओं पढ़ाई चौपट हो रही है। हालांकि विवि ने साल की शुरूआत में आयोजित हुए विधानसभा चुनावों के बाद फैकल्टी के लिए नियुक्ति प्रक्रिया शुरू की थी लेकिन उस प्रक्रिया को लेकर भी अब तक कोई सकरात्मक पहल होती दिखाई नहीं दी है। मामले में विवि के कुलचसिव अनूप कुमार गक्खड़ का कहना है कि फैकल्टी संबद्धता मामले में शासन से अनुरोध किया जाएगा कि जब तक नियुक्ति प्रक्रिया पूरी नहीं होती तब तक के लिए चिकित्सकों को विवि से ही अटैच रखा जाए। इसके अलावा नियुक्ति प्रक्रिया में शासन की ओर से कुछ आपत्तियां हैं, उनका भी निस्तारण किया जा रहा है।