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राजाजी पार्क मे रह रहे वन गुर्जरो का सांकेतिक धरना

ऋषिकेश के गौहरी रेंज वन विभाग कार्यालय के समक्ष राजाजी पार्क मे रह रहे वन गुर्जरो ने सांकेतिक धरना दिया और अपनी मांग वन विभाग के अधिकारियों के समक्ष रखी।

राजाजी टाइगर रिजर्व की गोहरी रेंज के कुनाओ में सालों से रह रहे  वन गुज्जर अपनी विस्थापन की राह देख रहे हैं लेकिन पार्क प्रशासन इन लोगों को विस्थापन परिक्रिया के तहत विस्थापित नहीं कर पा रहा है जिसके चलते वन गुजरों के  छोटे से  परिवारों में पार्क प्रशासन के प्रति रोष है वन गुर्जरों का कहना है कि हमारे 70 परिवारों का विस्थापन अभी तक नहीं हो पाया है हम सरकार से लगातार विस्थापन की मांग कर रहे हैं लेकिन पार्क प्रशासन नीति का पालन नहीं कर रहा है जिसको लेकर वन गुज्जरो ने धरना दिया है

राजाजी पार्क के गौहरी रेंज मे रहने वाले वन गुर्जरो को वहां से जबरदस्ती हटाने से गुस्साए वन गुर्जरो ने आज पार्क प्रशासन कार्यालय के समक्ष शांति धरना प्रदर्शन किया और अपने विस्थापन की मांग की, वही वन विभाग के अधिकारीयो का कहना है कि पूर्ण विस्थापन के बाद भी वन गुर्जर पार्क मे अवैध रूप से रह रहे है।छुटे हुए वन गुर्जरों के पुनर्वास को लेकर दिया  धरना राजाजी नेशनल पार्क कर रहा नाइंसाफी .राजा जी राजाजी टाइगर रिजर्व पार्क में वर्षों से रह रहे वन गुर्जरों के पुनर्वास को लेकर लंबे समय से कार्यवाही चल रही है लेकिन अभी तक सफल नहीं हो पाए हैं वन गुर्जरों की और राजा जी नेशनल पार्क की समस्या लंबे समय से चलती आ रही है राजाजी नेशनल पार्क की तरफ से वन गुजरों के साथ नाइंसाफी को लेकर पथिक  सेना संगठन के बैनर तले राजा जी नेशनल टाइगर रिजर्व पार्क में रहने वाले वन गुर्जर उनके परिवार वालों ने पार्क प्रशासन की गोहरी रेंज पर धरना दिया है

वही पार्क प्रशासन का कहना है कि विस्थापन की परिक्रिया पार्क प्रशासन द्वारा समय पर ही कर दी गई थी लेकिन लगातार वन गुज्जरों के परिवार की  आबादी बढ़ने पर लगी है बावजूद इसके सभी को  जमीन उपलब्ध करा दी गई है लेकिन यह लोग पार्क की जमीन खाली  करने को तैयार नहीं है जिसके चलते पार्क प्रशासन ने इनको डेरे खाली करने के नोटिस दिए हैं ,  गुज्जरों के और पाक प्रशासन के बीच हमेशा से ही विस्थापन को लेकर आपसी खींचातानी चली आ रही है एक तरफ वन विभाग का कहना है कि गुर्जरों को पार्क प्रशासन ने भूमि आवंटित कर दी है लेकिन यह गुज्जर वहां ना रहकर पार्क की भूमि खाली नहीं करना चाहते जिसको लेकर दोनों पक्षों में लगातार मतभेद बना रहता है अब देखना यह होगा कि राजाजी टाइगर रिजर्व पार्क प्रशासन कितनी जल्दी पाक से इन गुर्जरों को विस्थापित कर पाता है।

राजाजी टाइगर रिजर्व पार्क छूटे हुए वन गुजरों का पुनर्वास को लेकर कुछ भी नहीं कर रही है जब तक छूटे भी गुज्जर और उनको पुनर्वासित नहीं किया जाता तब तक उन्हें पार्क म सेना हटाया जाए गुज्जरों के अध्यक्ष मोहम्मद अमीर हमजा ने कहा कि अगर गुज्जरों के घरों में तोड़फोड़ और बदसलूकी की गई तो 1 हफ्ते के बाद सभी गुर्जर परिवार समेत राजाजी टाइगर रिजर्व पार्क के निदेशक कार्यालय पर अनशन पर बैठ जाएंगे साथ ही चेतावनी दी की वन गुर्जरों पर किए जा रहे अत्याचार को किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

अगर आप दिल्ली-देहरादून सड़क से जा रहे हैं तो सावधान !!

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झबरेडा-दिल्ली देहरादून हाईवे मार्ग पर टिकौला गांव के समीप शीला खाले का पुल काफी खराब हालत में है, जिससे कभी भी बड़ा हादसा हो सकता है। पुल की हालत को लेकर किसान नेता कई बार विभाग के अधीक्षण अभियंता से गुहार लगा लगा चुके हैं, लेकिन लोक निर्माण विभाग शायद किसी बड़े हादसे के इंतजार में है।

रविवार को पुल की हालत को लेकर किसान नेताओं ने पुल पर प्रदर्शन किया और लोक निर्माण विभाग अधिकारियों पर लापरवाही का आरोप लगाते हुए चेतावनी दी है कि अगर अगले एक सप्ताह में पुल को ठीक नहीं कराया गया तो पुल पर जाम लगाने के बाद विभागीय अधिकारियों को बंधक बनाया जाएगा।

किसान नेता चौधरी सेठपाल सिंह, प्रधान विजय कुमार चौधरी मैनपाल सिंह, सुरेश शर्मा ने प्रदर्शन करते हुए बताया कि यह मार्ग दिल्ली देहरादून बाईपास हाईवे के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है, जिस पर टिकौला गांव के समीप शिला खाला का यह बड़ा पुल दयनीय हालत में है। यह पुल अंग्रेजी शासन काल में 80 वर्ष पहले बना था, जब पुल की भार क्षमता लगभग 200 कुंतल रही थी। आज दयनीय हालत में होने के बावजूद भी पुल से 500 से 1000 कुंतल के भारी वाहन हर समय गुजर रहे हैं, जिससे यह पुल नीचे लटक चुका है और कब टूट जाए इसका कुछ अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। इतना तय है कि इस पुल पर कोई बड़ा हादसा किसी भी समय हो सकता है और लोक निर्माण विभाग के अधिकारी को बार-बार सूचना देने के बावजूद भी विभाग पुल की अनदेखी कर रहा है।

किसान नेता सेठपाल सिंह ने चेतावनी दी है कि अगर अगले एक सप्ताह में पुल की मरम्मत के लिए विभाग ने कार्रवाई नहीं की तो पुल पर जाम लगाकर मार्ग को बंद कर दिया जाएगा और विभाग के अधिकारियों को बंधक बनाया जाएगा।

भारत के आखिरी गांव माणा के लोगों की आप बीती

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बद्रीनाथ धाम के कपाट आने वाले 6 महीने के लिए बंद हो चुके हैं, साथ ही बंद हो चुके हैं भारत के आखिरी गांव माणा के घर और लोगों की दुकानें।जी हां, बद्रीनाथ धाम से लगभग 3-4 किलोमीटर की दूरी पर स्थित भारत का आखिरी गांव माणा भी बंद हो चुका है।गांव के लोगों ने अपने-अपने घरों में ताले लगाकर निचले घरों का रुख करने लगे है। सुनने में तो यह बात आसान सी लगती है लेकिन असल में इस गांव के लोग छः महीन माणा और छः महीने जोशीमठ,कर्णप्रयाग,देहरादून और अलग-अलग जगहों पर विस्थापित हो जाते हैं।ठीक छः महीने बाद जब बद्रीनाथ के कपाट खुलते हैं, तब 4-5 दिन पहले से यह लोग अपने घरों और बद्री विशाल के प्रहरी घंटाकर्ण की सेवा में लग जाते हैं।

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इसी कड़ी में भारत की आखिरी दुकान के मालिक भूपेंद्र सिंह टकोला से बातचीत में बताया कि, “यह साल उनके और उनके जैसे सभी व्यापारियों के लिए काफी अच्छा रहा। 2013 की आपदा के बाद मानो यात्रा पर विराम लग गया था लेकिन साल 2017 में सालों बाद एक बार फिर रौनक देखने को मिली है।” भूपेंद्र बताते हैं कि, “यह छः महीने माणा के गांव के लोगों के लिए ना केवल अच्छे समय होते हैं बल्कि उनके कमाने का जरिया भी यही छः महीने होते हैं।” माणा गांव के लोग भेड़ों से निकाले गए ऊन की टोपियों,शॉल,र्स्काफ,जैकेट,स्वेटर आदि चीजें अपने हाथों से बनाकर बेचते हैं।भूपेंद्र जिनके परिवार में उनके अवाला उनकी पत्नी और दो बच्चें हैं वह गोपेश्वर के रहने वाले हैं लेकिन छः महीने हिदुस्तान की आखिरी दुकान चलाते हैं।भूपेंद्र बताते हैं कि, “माणा से विदाई लेने के समय पूजा-पाठ और ढ़ोल दमाउं के साथ भगवान बद्री विशाल के प्रहरी घंटाकर्ण की पुजा की जाती है और उनकी देख-रेख का जिम्मा क्षेत्रपाल को सौपा जाता है।”

बद्री विशाल के कपाट खुलने के साथ ही माणा के निवासी घंटाकर्ण की देखरेख में लग जाते हैं।आपको बतादें कि माणा के लोगों के जीवन में उतार-चढ़ाव होने के बाद भी यहां के 90 प्रतिशत लोग ग्रेजुएट है, 80 प्रतिशत लोग नौकरी कर रहे हैं और 20 प्रतिशत लोग छोट-मोटे व्यापार से अपना जीवनयापन कर रहे हैं।

यह लोग अपने जीवन को लेकर सकारात्मक है और अपनी परंपरा और संस्कृति के लिए पूरे देश में जाने जाते हैं।माणा की निवासी से बातचीत में बताया कि, “यह कोई आसान बात नहीं कि हमें अपना घर छोड़कर जाना पड़ता है लेकिन हम खुशी-खुशी इस रस्म को निभाते हैं और अगले साल की प्रतिक्षा में रहते हैं।”

क्या विडंबना है जीवन की प्रकृति के आगे घुटने टेक कर माणा के लोग छः महीनों के लिए यहां से पलायन कर देते हैं? लेकिन किसी ने क्या खूब कहा है अगर अंत खूबसूरत नहीं तो वह किसी नए शुरुआत का परिचायक है और माणा के लोगो के लिए छः महीने के पलायन करने से बढ़कर आने वाले साल का इंतजार करना होता है।

फिल्म ‘पद्मावती’ की रिलीज की प्रस्तावित तारीख टली

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‘वायकॉम 18 मोशन पिक्चर्स’ ने फिल्म पद्मावती की प्रस्तावित तारीख को स्थगित करने का आधिकारिक रूप से एलान कर दिया है। वायकॉम ने यह निर्णय फिल्म को लेकर हो रहे विरोध को देखते हुए किया है।

वायकॉम ने अपने अधिकारिक बयान में कहा है कि फिल्म पर हो रहे विवाद को देखते हुए वायकॉम मोशन पिक्चर्स फिल्म की प्रस्तावित तारीख को स्थगित करता है। हमने प्रतिभाशाली फिल्म निर्माता संजय लीला भंसाली के साथ मिलकर एक अच्छी फिल्म ‘पद्मावती’ बनाई है जो कि राजपूतों की वीरता, परंपरा और गरिमा को दर्शाता है। इस फिल्म की कहानी भारत के लोगों को गर्व से भर देगी।

हम कानून का पालन करने वाले एक जिम्मेदार नागरिक हैं। हम कानून और उसके अन्तर्गत स्थापित संस्थानों जिसमें सेंसर बोर्ड भी शामिल है का सम्मान करते हैं। हम उस स्थापित प्रक्रिया के लिए प्रतिबद्ध हैं। हमें इस बात का पूरा विश्वास है कि हम जल्द ही फिल्म को प्रस्तावित करने की अपेक्षित मंजूरी और प्रस्तावित करने की अगले तारीख की घोषणा करेंगे।

उल्लेखनीय है कि शनिवार को सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष प्रसून जोशी ने संजय लीला भंसाली द्वारा निर्देशित विवादित फिल्म ‘पद्मावती’ कुछ चुनिंदा मीडियाकर्मियों को दिखाए जाने पर आपत्ति प्रकट की थी। उन्होंने कहा कि सेंसर बोर्ड ने अभी तक फिल्म देखी नहीं है और न ही फिल्म प्रमाणन दिया है ऐसे में फिल्म निर्माता द्वारा प्राइवेट स्क्रिनिंग करना निराशाजनक है।

प्रसून जोशी ने कहा कि फिल्म को प्रमाण पत्र देने की एक प्रणाली है तथा प्राइवेट स्क्रिनिंग से यह व्यवस्था कमजोर होती है। उन्होंने कहा कि भंसाली ने सेंसर बोर्ड को जो फिल्म और कागजात सौंपे थे वह अधूरे थे। फिल्म का कथानक ऐतिहासिक है या काल्पनिक, इसकी उद्घोषणा करने वाले कॉलम को खाली छोड़ दिया गया था। इस कारण इसे फिल्म निर्माता के पास दोबारा भेज दिया गया। 

जीनत अमान का आज 66वां जन्मदिन

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हिन्दी सिनेमा की पहली ‘बोल्ड’ अभिनेत्री जीनत अमान आज 19 नवम्बर को अपना 66 वां जन्मदिन बनाया। 70 औऱ 80 के दशक की इस मशहूर अभिनेत्री ने भारतीय हिन्दी सिनेमा को कई हिट फिल्में दी जिसमें से उन्हें मुख्य रूप से ‘दम मारो दम’ और ‘सत्यम शिवम सुदंरम’ के लिए याद किया जाता है।

‘हरे रामा हरे कृष्णा’ में जीनत ने देवानंद की बिछड़ी हुई बहन की भूमिका निभाई थी वहीं राजकपूर की फिल्म ‘सत्यम शिवम सुंदरम’ में शशि कपूर की प्रेमिका के किरदार में अपने जबरदस्त अभिनय का परिचय दिया था। जीनत ने अपने फिल्मी करियर की शुरूआत एक छोटे से रोल से सन 1971 में ओ.पी रल्हन की फिल्म हलचल से की थी।

जीनत अमान को 1972 में फिल्म ‘हरे रामा हरे कृष्णा’ के लिए फिल्म फेयर अवार्ड बेस्ट सपोर्टिंग रोल के लिए मिला।
जीनत अमान का जन्म 19 नवम्बर 1951 को मुंबई में हुआ था। जीनत अमान के पिता अमानुउल्लाह लेखक थे| उन्होंने मुगले आजम और पाकीजा के लिए बतौर लेखक काम किया था। जीनत जब तेरह साल की थीं तभी उनके सिर से पिता का साया उठ गया जिसके बाद उनकी मां उन्हें जर्मनी लेकर चली गईं।

जीनत ने अपने करियर की शुरूआत बतौर पत्रकार किया था लेकिन कुछ दिन बाद ही उनका मन इसमें नहीं लगा। इसके बाद उन्होंने मॉलिंग की तरफ रुख किया। अब जीनत अमान के जीवन पर फिल्म बनने की भी चर्चा है| इसके लिए प्रियंका चोपड़ा का नाम लिया जा रहा है। 

गोल्फा गांव की सभ्यता पता लगाने के लिए खुदाई की मांग

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देहरादून कुमाऊं मंडल के पिथौरागढ़ जिले के सुदूरवर्ती गोल्फा गांव के नीचे एक सभ्यता के दफन होने का दावा किया गया है। यह दावा कुमाऊं यूनिवर्सिटी के इतिहास विभाग के अध्यक्ष प्रो. जीएस नेगी ने किया है। उन्होंने बताया कि नौ हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित गोल्फा गांव में मिले अवशेष के आधार पर वह इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं।
रविवार को उत्तरांचल प्रेस क्लब में पत्रकारों से रूबरू प्रो.जीएस नेगी ने गोल्फा गांव में नाक की नथ, हाथ के कड़े, गगरी, कुदाल, फावड़ा, सिर के अवशेष आदि मिले हैं। इन अवशेषों से गांव के प्रधान बाला सिंह ने एक संग्रहालय बनाया है। प्रो. नेगी ने राज्य सरकार व भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण से मांग उठाई कि वह इस गांव में खुदाई कर उस सभ्यता का पता लगाए, जिनके अवशेष यहां मिले हैं। उन्होंने यह भी बताया कि गांव में एक तालाब भी मिला, जो अब पूरी तरह सूखा है। इस बात से यह पता चलता है कि कभी इस तालाब में पानी रहा होगा। इसके अलावा प्रो. जीएस नेगी ने जानकारी दी कि गोल्फा क्षेत्र उच्च हिमालयी संसाधनों जैसे-जड़ी-बूटी से लकदक है, लेकिन जिला मुख्यालय पिथौरागढ़ से 130 किलोमीटर व दुर्गम राह वाले इस गांव से विकास कोसों दूर है। स्कूल भी गांव से 18 किलोमीटर की दूरी पर है। यदि गोल्फा गांव के गर्भ में समा चुकी सभ्यता की पड़ताल के प्रयास शुरू किए गए तो यह पूरा क्षेत्र विश्व फलक पर पहचान बना सकता है।

विश्व सुंदरी बनना हर युवती का ख्वाब : उर्वशी

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(देहरादून) अभिनेत्री उर्वशी रौतेला ने कहा कि भारत की मानुषी छिल्लर के मिस वर्ल्ड बनने से वह बेहद खुश हैं। उर्वशी ने कहा कि विश्व सुंदरी बनना हर युवती का ख्वाब होता है। उन्होंने भी मिस यूनिवर्स के लिए कोशिश की थी, लेकिन वह एक कदम से रह गई थी। खैर, वह नहीं तो मानुषी ही सही। आखिर किसी भारतीय बेटी ने देश का नाम तो रोशन किया।
रविवार को हरिद्वार रोड स्थित एक होटल में अभिनेत्री उर्वशी रौतेला पत्रकारों से मुखातिब हुई। उर्वशी ने कहा कि आज उत्तराखंड की बेटी अभिनय के क्षेत्र में प्रदेश ही नहीं, देश का नाम भी रोशन कर रही है। उन्होंने कहा कि अनुकृति गुसाईं समेत अन्य युवा पीढ़ी बालीवुड में प्रवेश करने के लिए तैयार हैं। इससे यह साफ है कि आने वाले समय में बालीवुड में उत्तराखंड के कलाकारों की भागीदारी तेजी से बढऩे वाली है। उर्वशी ने मानुषी छिल्लर के मिस वर्ल्ड बनने के पूछे गए सवाल पर कहा कि किसी के लिए भी विश्व सुंदरी बनना गर्व की बात होता है। मानुषी छिल्लर ने मिस-वर्ल्ड का खिताब जीतकर विश्व पटल पर देश का परचम लहराया है। उर्वशी ने कहा कि उन्होंने भी मिस यूनिवर्स के लिए प्रयास किया, लेकिन वह सफल नहीं हो सकी थी। इस सवाल का जवाब देते हुए उर्वशी के चेहरे पर कहीं न कहीं कसक भी झलकी। हालांकि वह यह भी कह गई कि आखिर किसी भारतीय बेटी ने विश्व का बड़ा खिताब जीता है। देश के लिए इससे बढ़कर बात क्या हो सकती है। वह मानुषी छिल्लर के उज्जवल भविष्य की कामना करती हैं।
आकर्षक लुक में दिखी उर्वशी
रविवार को उर्वशी रौतेला के कजन भाई की शादी थी। इसलिए शादी में जाने से पहले उर्वशी पत्रकारों से मुखातिब हुई थी। उर्वशी ने क्रीम कलर का आकर्षक लांग गाउन पहना हुआ था। साथ ही हैवी ज्वैलरी भी आकर्षित कर रही थी। उर्वशी ने कहा कि उन्होंने भाई की शादी के लिए खास कास्ट्यूम डिजाइन कराया है।

सीवर लाइन के मेनहोल पर डाल दी पेयजल लाइन

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सैकड़ों करोड़ रुपये़ के बजट के एडीबी का सीवर व पेयजल लाइन प्रोजेक्ट कछुआ चाल से चल रहा है। इतना ही नहीं तय मानकों व कार्य की गुणवत्ता को भी ताक पर रखा जा रहा है। इसका परिणाम है कि कहीं नई डाली गई सीवर लाइन के चैम्बर अभी से टूटने शुरू हो गए हैं, तो कहीं बिना कनेक्शन ही पानी आना शुरू हो गया है। सीवर लाइन के बाद डाली जाने वाली पेयजल लाइन में भी इसी तरह की खामियों को छोड़ा जा रहा है।
नगर में एडीबी चार वर्षों से सीवर व पेयजल लाइन बिछाने का कार्य कर रहा है। अधिकांश गलियों में सीवर लाइन का कार्य 10 माह बाद भी पूरा नहीं किया जा सका। सड़कें ज्यों की त्यों खुदी पडी हैं। कुछ गलियों में सीवर लाईन डालने के बाद पेयजल लाईन पर कार्य चल रहा है। सीवर का कार्य में एडीबी के कार्यों की गुणवत्ता पर सवाल उठे। कई स्थानों पर बहते पानी के बीच ही सीवर के मेनहोल बना डाले तो अधिकांश चैम्बर बिना प्लास्टर किए ही मिट्टी में दबा दिए गए। बावजूद इसके एडीबी के अवर अभियंता पवन टोलिया, गुणवत्ता और मानको की अनदेखी पर जांच और सख्त कार्यवाही करने के साथ ही कमियों को दूर करने के दावे मात्र कर रहे है।
सडक से डेढ़ से दो ईंच नीचे डाली पेयजल लाईन
पुरानी तहसील में सीवर के बाद अब डाली जा रही पानी की लाईन में अनियमितताओं की सारी हदें पार कर दी। यहां ए.डी.बी. प्रोजेक्ट प्रबंधको द्वारा मानकों की धज्जियां उडाई जा रही हैं। पेयजल लाईन कई स्थनों पर सडक से मात्र डे़ढ से दो ईंच की गहराई पर डाली जा रही है। इतना ही नहीं यह लाईन नई डाली गई सीवर लाईन के मेन चैम्बर के ढक्कन के उपर से ही डाल दी गईं। गली के श्याम सुंदर, संजय चौहान, कुलदीप आदि ने इसकी शिकायत जब प्रोजेक्ट मैनेजर संजीव कुमार से की तो उन्होंने अवर अभियंता जीतेन्द्र को मौके पर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर दी। अवर अभियंता लाईन की गहराई बढाने और दिशा बदलने के निर्देश देकर मौके से चलते बने। अवर अभियंता के जाते ही बिना कोई परिवर्तन किय पूर्व की भांति ही लाईन डाल दी गई।
जनता के पैसे की हो रही बर्बादी
ठेकेदार की मिलीभगत और भ्रष्टाचार का प्रमाण बताते हुए क्षेत्रवासियों ने कहा कि इसके बाद एडीबी के प्रोजेक्ट मैनेजर से लेकर सभी अधिकारियों ने जनता के फोन उठाने ही बंद कर दिये। लोगो का कहना है कि सब कुछ एडीबी अधिकारियों की मिलीभगत से हो रहा है। उन्होंने आरोप लगाया कि जनता के पैसे से कराये जा रहे पैसे की बर्बादी में अधिकारी भी शामिल हैं

3.5 क्षमता के प्लांट पर मात्र 0.5 एमएलडी सीवरेज

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(टिहरी)  केंद्र सरकार के महत्वाकांक्षी नमामि गंगे प्रोजेक्ट के प्रति सरकारी एजेंसी किस कदर लापरवाही बरत रही है, इसका प्रमाण ऋषिकेश के तपोवन (टिहरी जिला) में देखने को मिल रहा है। पेयजल निगम ने यहां 15.85 करोड़ रुपये खर्च कर यहां 3.5 एमएलडी का सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट तो खड़ा कर दिया, लेकिन ट्रीटमेंट के लिए यहां सिर्फ 0.5 एमएलडी सीवरेज ही पहुंच पा रहा है। लापरवाही का खुलासा तब हुआ, जब प्रोजेक्ट के निरीक्षण के नमामि गंगे की टीम उत्तराखंड आई और उनके सामने जल संस्थान के अधिकारियों ने प्लांट की हकीकत बयां की।
वर्ष 2016 में नमामि गंगे के तहत निर्माण एवं अनुरक्षण इकाई गंगा पेयजल निगम ने 3.5 एमएलडी क्षमता का एसटीपी तैयार किया। पेयजल निगम ने इस प्लांट के लिए न ही पर्याप्त नेटवर्किंग की और न अन्य माध्यमों से आवश्यक सीवरेज की व्यवस्था। इस प्लांट से निगम सिर्फ 274 कनेक्शनों को ही जोड़ पाया, जिस कारण 3.5 एमएलडी क्षमता वाले इस प्लांट में मात्र 0.5 एमएलडी सीवरेज ही पहुंच रहा है। हैरत की बात यह है कि बिना पूरे सीवरेज की व्यवस्था ही पेयजल निगम ने इस प्लांट को जल संस्थान को हैंडओवर भी कर दिया। हैंडओवर होने के बाद जब जल संस्थान ने प्लांट का निरीक्षण किया तो हकीकत का पता चला। इसके बाद तीन दिन पहले नमामि गंगे के एग्जीक्यूटिव डॉयरेक्टर रोजी अग्रवाल टीम के साथ उत्तराखंड पहुंचे, जहां अधिकारियों के साथ बैठक के दौरान जल संस्थान के अधिशासी अभियंता अजय कुमार टीम के सामने प्लांट की मौजूद स्थिति की तस्वीर साफ की। मामला सामने आने के बाद टीम ने कड़ी नाराजगी जाहिर की और प्लांट पर सीवरेज की मात्र बढ़ाने के निर्देश दिए। इसके बाद अधिकारियों ने प्लांट पर 300 नए कनेक्शन जोडऩे की तैयारी शुरू करने का दावा किया है।
पेयजल निगम के प्रबंध निदेशक भजन सिंह ने बताया कि यह प्लांट कुंभ व अद्र्धकुंभ मेले को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है। मेले के दौरान यहां लोगों की संख्या काफी बढ़ जाती है। यदि प्लांट की क्षमता अधिक नहीं होगी तो उस समय सारा सीवरेज गंगा को दूषित करेगा।
ड्रेनेज सिस्टम जोड़ने की तैयारी
लापरवाही सामने आने के बाद पेयजल निगम ने जहां इस प्लांट से नए सीवरेज कनेक्शन जोडऩे की तैयारी शुरू की है। वहीं, अधिकारी अब ड्रेनेज सिस्टम को भी जोडऩे पर विचार कर रहे हैं, जिससे कि आवश्यकता के अनुसार सीवरेज यहां पहुंच सके।

मैड संस्था ने रिस्पना नदी पर चलाया स्वच्छता अभियान

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देहरादून के शिक्षित छात्रों के संगठन मेकिंग ए डिफ्फेरेंस बाय बीइंग दी डिफ्फेरेंस (मैड) ने रविवार को राजपुर में रिस्पना नदी पर ट्रैकिंग की और आस पास के इलाके में एक सफाई अभियान चलाया।
देहरादून की नदियों के पुनर्जीवन के लिए मैड सदस्यों ने राजपुर में रिस्पना नदी पर ट्रैकिंग के साथ साथ आस पास के इलाके में एक सफाई अभियान भी चलाया। जहां उन्हें भारी मात्रा में शराब की बोतलें, चिप्स के पैकेट और इसी प्रकार का कूड़ा नदी में मिला।
मैड सदस्यों ने यह भी कहा कि हालांकि सरकारी एजेंसियों को नदियों के पुनर्जीवन के लिए मिलकर काम करने की ज़रुरत है, लेकिन इसके साथ ही नागरिकों के लिए उनके प्राकृतिक संसाधनों का स्वामित्व लेना और नीति निर्माण प्रकिया में शामिल रहने का प्रयास करना भी समान रूप से महत्वपूर्ण है। नदियों का पुनर्जीवन सिर्फ देहरादून के सौंदर्य निर्माण ही नहीं, बल्कि शहर की दैनिक जीवन शैली में सुधार करने में सहायता करेगा। हाल ही में राज्य सरकार ने सचिवालय में आयोजित एक बैठक में मैड की एनआईएच रिपोर्ट को स्वीकार कर उसके आधार पर रिस्पना के पुनर्जीवन के लिए कदम बढ़ाने की मांग को स्वीकार किया था। मुख्य सचिव की अध्यक्षता में हुई इस बैठक में मैड संस्था ने जमीन तथा नीति के स्तर पर सहयोग का आश्वासन दिया था। नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ हाइड्रोलॉजी, रुड़की ने अपनी तीन साल पुरानी रिपोर्ट में विशेष रूप से एक संक्षिप्त जल सर्वेंक्षण के बाद कहा था कि रिस्पाना एक बारहमासी नदी है और इसे पुनर्जीवित किया जा सकता है, जो मुख्य सचिव को दी गई बैठक में एनआईएच वैज्ञानिकों द्वारा दोहराया गया था। अभियान में विजय प्रताप सिंह, अक्षत चंदेल, शुभम, आदर्श त्रिपाठी, हरिता, राहुल गुरु, रजत, हृदयेश आदि शामिल रहे।