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बिजली कार्मिकों के तेवर तल्ख, पांच बजते ही विभागीय मोबाइल ऑफ

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देहरादून। अपनी मांगों को लेकर बिजली कार्मिकों के तेवर ज्यों के त्यों बने हुए हैं। मंगलवार को भी चार प्रमुख संगठनों से जुड़े कार्मिकों ने शाम पांच बजते ही विभागीय मोबाइल नंबर स्विच ऑफ कर दिए। इससे बिजली आपूर्ति की व्यवस्था पर प्रभाव पड़ रहा है। विभिन्न कारणों से बिजली आपूर्ति बाधित होने की स्थिति में आपूर्ति बहाल करने में वक्त लग रहा है। क्योंकि, अधिकांश उपभोक्ता कॉल सेंटर पर सूचना देने के बजाय जेई, एसडीओ और अधिशासी अभियंताओं को मोबाइल से सूचना देते हैं।

उत्तरांचल पावर इंजीनियर्स एसोसिएशन, पावर जूनियर इंजीनियर एसोसिएशन, ऊर्जा कामगार संगठन, ऊर्जा ऑफीसर्स, सुपरवाइजर्स एंड स्टाफ एसोसिएशन पे-मैट्रिक्स और पदोन्नत वेतनमान के मुद्दे पर संयुक्त रूप से आंदोलनरत हैं। सोमवार को सचिव ऊर्जा राधिका झा के साथ प्रतिनिधि मंडल की वार्ता भी हुई, जो कि विफल रही। चारों संगठनों ने स्पष्ट कर दिया है कि मांगों के संबंध में शासनादेश जारी होने के बाद ही आंदोलन स्थगित किया जाएगा। साथ ही आंदोलन के दौरान अगर किसी भी कार्मिक का प्रबंधन और शासन ने उत्पीडऩ किया तो उसी वक्त से हड़ताल शुरू कर दी जाएगी। संयुक्त मोर्चे के गढ़वाल मंडल प्रवक्ता दीपक बेनीवाल ने कहा कि सातवें वेतनमान में पे-मैट्रिक्स का निर्धारण गलत हुआ है और पदोन्नत वेतनमान की नई व्यवस्था भी अव्यवहारिक है। इसमें संशोधन का प्रस्ताव तीनों निगम प्रबंधन शासन को भेज चुके हैं, लेकिन शासन स्तर से कोई कार्रवाई नहीं की जा रही। जिससे कर्मिकों में भारी आक्रोश है। 

संचार कंपनियों के जेसीबी इस्तेमाल पर लगाई रोक

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पिथौरागढ़। जिलाधिकारी रविशंकर की अध्यक्षता में विभागीय और विभिन्न संचार कंपनियों के अधिकारियों के संग मंगलवार को बैठक हुई। इस दौरान डीएम ने लोनिवि को दो दिन के भीतर रिलायंस जियो की सड़क किनारे खड़ी जेसीबी मशीनों को हटाने को निर्देश देते हुए कहा कि कोई भी संचार कंपनी जेसीबी मशीनों का इस्तेमाल करती पाई गई तो उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी।

बैठक में डीएम सी रविशंकर ने जिले में सड़क किनारे बिछाई जा रही ओएफसी लाइन में जेसीबी मशीन के इस्तेमाल के खिलाफ कड़ा तेवर दिखाया। इस दौरान जिलाधिकारी ने रिलायंस जियो संचार कंपनी की जेसीबी मशीन को सीज करने के आदेश देते हुए ओएफसी लाइन बिछाने के काम पर रोक लगा दी है। डीएम ने रिलायंस जियो कंपनी की जेसीबी मशीनों को सीज करने के साथ ही एक करोड़ रुपये की रायल्टी नहीं देने पर काम पर पूरी तरह रोक लगा दी है। डीएम ने सड़क निर्माण से जुड़े सभी विभागों, एसडीएम, थाना प्रभारियों को ओएफसी लाइन बिछाने के लिए इस्तेमाल हो रही जेसीबी मशीनों को तत्काल सीज करने के निर्देश दिए हैं। साथ ही संबंधित कंपनियों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराने को कहा है। जिलाधिकारी ने कहा कि कोई भी संचार कंपनी ओएफसी लाइन बिछाने में जेसीबी मशीन का इस्तेमान नहीं करेगी। इस मौके पर अधीक्षण अभियंता लोनिवि वाईएस शैल, एडीबी, जल संस्थान, बीएसएनएल के अधिकारी मौजूद रहे।

रियल एस्टेट एक्ट में चालू प्रोजेक्ट परिभाषित न होने से लटका बिल्डरों पर राहत मामला

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देहरादून। रियल एस्टेट (रेगुलेशन एंड डेवलपमेंट) एक्ट 2016 में चालू (ऑनगोइंग) प्रोजेक्ट के परिभाषित न होने के कारण ही अब तक बिल्डरों के लिए रेरा में राहत का फॉर्मूला निकालने में अधिकारियों के पसीने छूट रहे हैं। लिहाजा, 31 जुलाई के बाद रेरा (रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी) में पंजीकरण को आवेदन करने वाले बिल्डरों व प्रॉपर्टी डीलरों को पेनल्टी से राहत देने की दारोमदार अब अन्य राज्यों की व्यवस्था और कैबिनेट के निर्णय पर टिकी है।

इस दौरान सचिव आवास अमित नेगी ने बताया कि बिल्डरों को पेनल्टी में राहत देने के लिए रेरा ने शासन को जो प्रस्ताव भेजा था उसमे स्पष्ट तौर पर लिखा गया है कि चालू परियोजनाओं को एक्ट में परिभाषित नहीं किया गया है। हालांकि उत्तर प्रदेश, हरियाणा, छत्तीसगढ़, गुजरात व राजस्थान राज्यों की ओर से अपनाए गए फॉर्मूले का हवाला भी दिया गया है। इन सभी राज्यों की व्यवस्था में एक समान बात यह है कि सभी ने 60 फीसद तक बिक चुके प्रोजेक्ट को पेनल्टी में राहत दी है। हालांकि इन राज्यों ने 60 फीसद का फॉर्मूला कहां से निकाला, इससे राज्य के अफसर पूरी तरह अनभिज्ञ हैं। अब देखने वाली बात यह है कि उत्तराखंड की कैबिनेट भी इन राज्यों के नक्शेकदम पर आगे बढ़ती है और बिल्डरों व प्रॉपर्टी डीलरों को राहत देने के लिए कोई और उपाय खोजे जाते हैं।
एक्ट में कंप्लीशन सर्टिफिकेट को बनाया आधार
रियल एस्टेट एक्ट में सिर्फ इतना स्पष्ट किया गया है कि जिन परियोजनाओं में एक मई 2017 से पहले कंप्लीशन सर्टिफिकेट (कार्यपूर्ति प्रमाण पत्र) नहीं लिया गया है, उन्हें रेरा में पंजीकरण कराना जरूरी है। इसके लिए समयसीमा 31 जुलाई भी तय कर दी गई थी। जबकि इसके बाद पंजीकरण कराने वाले प्रोजेक्ट को कुल परियोजना लागत के 10 फीसद तक पेनल्टी के दायरे में रखा गया। राज्य सरकार ने इतना जरूर किया कि 31 अक्तूबर तक के समय को एक, दो, पांच फीसद की पेनल्टी में बांट दिया और इसके बाद 10 फीसद पेनल्टी लागू की गई। हालांकि राज्य के बिल्डर यह मांग कर रहे हैं कि अन्य राज्यों की दर परियोजना लागत के प्रतिशत में पेनल्टी की जगह कुछ निश्चित शुल्क लगा दिया जाए। 

628 विद्यालयों में लटके रहे ताले, देहरादून में गरजे शिक्षक

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विकासनगर। मंगलवार को जौनसार-बावर परगने सहित पछवादून के सभी प्राथमिक विद्यालयों में ताले लटके रहे। शिक्षकों ने सामूहिक अवकाश लेकर डीएलएड के विरोध में निदेशालय ने धरना प्रदर्शन किया।

शिक्षकों ने आरोप लगाया कि सरकार की गलती का खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ रहा है। कहा कि शिक्षकों के हितों की अनदेखी बर्दाश्त नहीं की जाएगी। सत्रह वर्षों बाद शिक्षकों को अप्रशिक्षित मानना तर्कसंगत नहीं है जबकि कई शिक्षक सेवानिवृत्ति के कगार पर हैं। शिक्षकों के सामूहिक अवकाश के चलते जौनसार-बावर परगने सहित पछवादून के कुल 628 विद्यालयों में ताले लटके रहे। बताते चलें कि मानव संसाधन मंत्रालय द्वारा सभी प्राथमिक शिक्षकों के लिए डीएलएड अनिवार्य कर दिया गया है। सूबे में प्रदेश सरकार ने बीएड डिग्री धारक शिक्षकों को छह माह का विशिष्ट बीटीसी प्रशिक्षण कराया लेकिन मानव संसाधन मंत्रालय द्वारा मान्यता नहीं लिए जाने से शिक्षकों के छह माह के प्रशिक्षण को केंद्र सरकार ने अमान्य घोषित करते हुए उसे सेवारत प्रशिक्षण करार दिया है। ऐसे में प्रदेश के कई शिक्षकों पर तलवार लटक रही है। प्राथमिक शिक्षक विशिष्ट बीटीसी को मान्यता प्राप्त प्रशिक्षण की श्रेणी में लाने व उन्हें डीएलएड की अनिवार्यता से वंचित रखने की मांग कर रहे हैं। इसी मांग के तहत उत्तराखंड राज्य प्राथमिक शिक्षक संघ शिक्षा निदेशालय पर धरना प्रदर्शन कर रहा है। मंगलवार को जौनसार-बावर व पछवादून के शिक्षकों ने भी सामूहिक अवकाश लेकर निदेशालय में प्रदर्शन किया जिसके चलते चकराता ब्लाक के 216, कालसी ब्लाक के 194, विकासनगर ब्लाक के 105 व सहसपुर ब्लाक के 113 प्राथमिक विद्यालयों में ताले लटके रहे।

अब मदरसे भी होंगे हाईटेक, कवायद शुरू

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देहरादून। मदरसा बोर्ड ने राज्य के मदरसों को हाईटक बनाने की कवायद शुरु कर दी हैं। इस कड़ी में अब अगले शिक्षण सत्र से छात्रों को परीक्षा के लिए ऑनलाइन नामांकन करना होगा। इसके लिए उत्तराखंड मदरसा बोर्ड ने सॉफ्टवेयर तैयार कर लिया है।

राज्य में मदरसों की हालत सुधारने और यहां शिक्षा ग्रहण करने वाले बच्चों को अन्य बोर्ड के समकक्ष लाने को मदरसा बोर्ड लगातार नए प्लान पर काम कर रहा है। मदरसों में हाईटेक शिक्षा देने के लिए भी मदरसा बोर्ड ने आवेदन के लिए भी ऑनलाइन सिस्टम तैयार कर लिया है। इतना ही नहीं अब नामांकन करने के लिए बच्चे मदरसा बोर्ड की वेबसाइट पर जाकर घर से ही सीधे आवेदन कर सकेंगे। अगले सत्र से पूरी तरह से इसी प्रक्रिया पर काम किया जाएगा। फिलहाल इस सत्र के लिए पुरानी प्रक्रिया पर ही काम चलेगा।
इस दौरान मदरसा बोर्ड के उप रजिस्ट्रार अखलाक अहमद ने बताया मदरसा बोर्ड ने परीक्षा के लिए नामांकन प्रक्रिया को ऑनलाइन करने का निर्णय लिया है। इसके लिए सॉफ्टवेयर तैयार हो चुका है। साथ ही अब छात्रों को दस के बजाए मात्र छह एग्जाम देने होंगे।

अब होंगे सिर्फ छह पेपर:
मदरसा बोर्ड ने मदरसों का एग्जाम पैटर्न भी बदला है। अब मदरसों में पढऩे वाले बच्चों को दस की जगह छह ही पेपर देने होंगे। बोर्ड को उत्तराखंड बोर्ड के समकक्ष लाने के लिए एग्जाम पैटर्न बदला है। वर्तमान में मदरसों में दो प्रकार का सलेबस पढ़ाया जाता है पहला धार्मिक और दूसरा मॉडर्न। धार्मिक सलेबस की अब सिर्फ दो परीक्षाएं होंगी। जबकि मॉडर्न सलेबस में हिंदी, गणित, सामाजिक विज्ञान, विज्ञान, कंप्यूटर विज्ञान में से छात्र को कोई भी चार विषय चुनने होंगे।

ये है मदरसों की स्थिति:
प्रदेश में फिलहाल 297 मदरसे हैं। इनमें से 42 मदरसे ऐसे हैं जो बोर्ड परीक्षा कराते हैं। साथ ही इन मदरसों में करीब तीस हजार बच्चे शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं, जिनमें से इस साल छह हजार से ज्यादा छात्रों के बोर्ड परीक्षा में शामिल होने की उम्मीद है। 

एनजीटी की 31 दिसंबर की डेडलाइन के बावजूद अब तक 784 प्रतिष्ठानों ने ही किया आवेदन

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देहरादून। एनजीटी की ओर से भूजल दोहन करने वाले प्रतिष्ठानों के लिए 31 दिसंबर डेडलाइन दिए जाने के बावजूद अब तक केंद्रीय भूजल बोर्ड को 784 आवेदन ही प्राप्त हुए हैं। यह स्थिति तब है, जब एनजीटी के निर्देश के दायरे में आने वाले प्रतिष्ठानों की संख्या जनगणना 2011 के अनुसार ही 68 हजार के पार है।

एनजीटी को भूजल दोहन के लिए आवेदन करने वाले प्रतिष्ठानों की सूची भेजने की जिम्मेदारी जल संसाधन मंत्रालय को सौंपी गई है। इसको लेकर केंद्रीय भूजल बोर्ड के सभी क्षेत्रीय कार्यालय नियमित तौर पर रिपोर्ट भेज रहे हैं।
मंगलवार को केंद्रीय भूजल बोर्ड देहरादून से भेजी गई रिपोर्ट के मुताबिक जनगणना 2011 के अनुसार दायरे में आने वाले कुल प्रतिष्ठानों में से महज 1.15 फीसद प्रतिष्ठानों ने ही भूजल दोहन के लिए आवेदन किया है। सबसे अधिक भूजल का दोहन देहरादून, हरिद्वार, ऊधमसिंहनगर व नैनीताल जिले में किया जाता है और यहां एनजीटी के निर्देश के दायरे वाले प्रतिष्ठानों की संख्या 31 हजार 500 से अधिक है। मैदानी क्षेत्रों में ही भूजल दोहन की बात स्वीकार की जाए और यह माना जाए कि यहां के 25 फीसद प्रतिष्ठान ही भूजल का दोहन कर रहे हैं, तब भी यह आंकड़ा 7800 से अधिक होना चाहिए। 

इस श्रेणी के लिए भूजल दोहन का आवेदन जरूरी:
यदि उद्योग (फैक्ट्री, वर्कशॉप आदि) स्कूल, कॉलेज, यूनिवर्सिटी, होटल, लॉज, गेस्ट हाउस आदि भूजल दोहन कर रहे हैं तो उन्हें इससे पहले केंद्रीय भूजल बोर्ड में आवेदन करने की अनिवार्यता की गई है।
भूजल दोहन को 70 से भी कम अधिकृत
वर्ष 2003 से अब तक की बात करें तो अब तक भूजल बोर्ड के दोहन के लिए राज्य में 70 से भी कम कमर्शियल श्रेणी के प्रतिष्ठान अधिकृत हैं।
दायरे में आने वाले प्रतिष्ठानों की स्थिति
(जनगणना 2011 के अनुसार)
शैक्षणिक, होटल आदि, हॉस्पिटल, उद्योग
जिला
देहरादून, 3113, 1634, 1097, 2728
हरिद्वार, 2233, 2149, 1136, 3634
ऊधमसिंहनगर, 2269, 823, 1074, 3658
नैनीताल, 2502, 1284, 667, 1545
प्रदेश, 29949, 12346, 7676, 18096
इस दौरान केंद्रीय भूजल बोर्ड के क्षेत्रीय निदेशक अनुराग खन्ना ने कहा कि भूजल दोहन के लिए आए आवेदनों की संख्या बेहद कम है, जो कि वास्तविकता से कोसों दूर भी है। हालांकि यह आवेदन भी पिछले कुछ माह में भी प्राप्त हुए हैं। आगे की कार्रवाई डेडलाइन पूरी होने के बाद एनजीटी के निर्देश पर की जाएगी।

सीमांत जनपद में बढ़ी जीओ की मुश्किल, खुदाई पर लगी रोक

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पिथौरागढ़- जीओ मोबाईल सेवाओं को पहाडों तक पहुंचाने के लिए नगर और ग्रामीण क्षेत्रों में जेसीबी से भारी नुकसान पहुंचाया जा रहा है, जेसीबी से सडकों को खोद कर ओफसी लाईने बिछाई जा रही है, जिसका विरोध करते हुए स्थानीय लोगों ने कार्यवाही की मांग की तो जिलाधिकारी ने भी जेसीबी से खुदाई को मानकों की अनदेखी बताते हुए मेनुअल तरीके से लाईनें बिछाने के निर्देश दिये हैं जबकि रिलायन्स ग्रुप को इस क्षतिपूर्ति के लिए जो धनराशि जमा करनी थी वो आज तक नहीं की गयी है।
आपको बतादें की सीमांत जनपद पिथोरागढ में रिलायंस जियो नेटवर्क कंपनी द्वारा सड़क किनारे बिछाई जा रही ओएफसी लाइन में मानकों की अनदेखी की जा रही है जिसको लेकर जिलाधिकारी सख्त हो गए हैं उनका कहना है कि जेसीबी से सड़क काटे जाने पर उसको सीज किया जाएगा साथ ही कंपनी के खिलाफ प्राथमिकी की जाएगी। वहीं लोनिवि को दो दिन के भीतर सड़कों से ओएफसी लाइन काटने के लिए तैनात की गई जेसीबी हटाने के निर्देश दे दिए हैं। डीएम सी रविशंकर ने ओएफसी लाइन बिछाने के लिए जेसीबी से सड़क काटे जाने को गंभीर बताया और सड़क से जुड़े विभागों, उपजिलाधिकारियों और थाना प्रभारियों को जेसीबी सीज करते हुए कंपनी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने के सख्त निर्देश दिए। इस मौके पर रिलायंस कंपनी द्वारा क्षतिपूर्ति एक करोड़ की धनराशि जमा नहीं करने पर सड़क काट कर ओएफसी लाइन बिछाने का कार्य पूरी तरह बंद करने को कहा है।

मुख्यमंत्री ने दी अधिकारियों को सोशल मीडिया पर एक्टिव रहने की हिदायत

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सूचना क्रांति के इस दौर में उत्तराखंड के अधिकारियों की सोशल मीडिया से दूरी मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को नहीं भा रही है। रावत ने बकायदा आधिकारिक आदेश जारी कर सभी अधिकारियों को सोशल मीडिया पर सक्रिय रहने और लोगों से जुड़ने के आदेश दिये हैं। मंगलवार को जारी किये इस आदेश में कहा गया है कि मुख्यमंत्री के तमाम सोशल मीडिया हैंडल्स पर आने वाली शिकायतों, सुझावों और जानकारियों को संबंधित विभाग और अधिकारियों को भेजा जाता है। पर वहां से इन पर एक्शन न होने से ये संवाद अधूरा रह जाता है। इसलिये आने वाले समय में सभी विभागों और अधिकारियों को इन संदेशों और शिकायतों पर तुरंत एक्शन लेकर उन लोगों को सूचित करना होगा जिन्होंने ये पोस्ट करे हैं।

गौरतलब है कि केंद्र में पीएम और अन्य नेताओं की देखा-देखी राज्य में भी क नेताओं और अधिकारियों ने अपनी सोशल मीडिया अटेंडेंस के लिये अकाउंट तो बना लिये हैं पर अलग-अलग कारणों से इनमें लोगों से संवाद और एक्शन न के बराबर ही है। ज्यादातर हैंडलस पर नेताओं के बधाी और सरकारी प्रोग्रामों की जानकारी दी जाती है। वहीं अधिकतर अधिकारी और विभागों ने तो सोशल मीडिया से काफी दूरी बना रखी है।

वहीं मसूरी में रहने वाले लेखक गणेश सैली का मानना है कि, “हालांकि सोशल मीडिया कई मायनों में एक वरदान है, फिर भी इसकी सीमाएं और शॉर्ट-कॉमिंग हैं, यह आपको जनता की आंखों में हाईलाइट करता है और कभी-कभी अच्छे इरादे रखने वालों के खिलाफ भी यह बैकफायर हो जाता है। लेकिन स्क्रीन के जमाने में जितने भी लोग आज पब्लिक फेस में है वह इस डिजीटल क्रांति का हिस्सा बिना बने नहीं रह सकते,” सैली कहते हैं कि यह, “हॉबसन चॉइस ” है।

बिना इसके नहीं होगा गाडियों का रजिस्ट्रेशन और कट सकता है चालान भी

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राज्य सरकार उत्तराखंड मोटर वाहन विनियम में बदलाव कर सकती है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि प्राइवेट और कर्मशियल कामों के लिए इस्तेमाल होने वाली गाड़ियों में डस्टबिन हो। आपको बतादें कि यह पहल राज्य सरकार के वेस्ट मैनेजमेंट ड्राइव के अंतर्गत होगी।

मुख्यमंत्री टीएस रावत ने अधिकारियों को निर्देश दिया कि यह सुनिश्चित किया जाए कि चार पहिया गाड़ियों में कूड़ेदान रखना अनिवार्य है।आपको बतादें कि उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री  हरीश रावत ने पहले इसी तरह के निर्देश जारी किए थे लेकिन यह कभी लागू नहीं किया गया।

हालांकि, अधिकारियों का कहना है कि वह गाड़ियों में डस्टबिन फिट करवाने के लिए उत्सुक हैं, जिसके लिए मोटर वेहिकल नियमों में संशोधन की संभावना है। राज्य परिवहन सचिव डी.सेंथिल पांडियन, ने कहा कि “पहले हम लोगों को इसे स्वेच्छा से करने के लिए कहेंगे। इसके लिए, हम कार और अन्य वाहन डीलरों के साथ भी बात करेंगे।”

उन्होंने बताया कि, “नए (वाहन) पंजीकरण में डस्टबिन लगाए बिना गाड़ियों को रजिस्टर नहीं किया जाएगा,जिसके लिए हम राज्य के नियमों में संशोधन करने की सोच रहे हैं।”उन्होंने कहा कि, “परिवहन विभाग पहले अपनी बसों में कूड़ेदान स्थापित करना शुरू करेगा। उत्तराखंड में लगभग 60% परिवहन सार्वजनिक है।”

कूड़ेदान की स्थापना चरणों में की जाएगी और पहले चरण में, इंट्रा-स्टेट, इंटर स्टेट और सिटी बसों को कूड़ेदान फिट किया जाएगा। दूसरे चरण में, प्राइवेट कर्मशियल गाड़ियों जैसे कैब और बसों में कूड़ेदान फिट किया जाएगा और आगे हम प्राइवेट वाहनों में भी इस ड्राइव को बढ़ावा देंगे।

जहां एक तरफ, सरकार पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए उत्सुक है; वहीं दूसरी तरफ वेस्ट मैनेजमेंट अभी भी दूर का सपना है। राज्य के शहरी विकास मंत्री मदन कौशिक ने अधिकारियों को निर्देश दिया है कि यह सुनिश्चित करें कि कचरा संग्रह केन्द्रों की स्थापना की जाए ताकि डोर-टू-डोर कचरे को उठाया जाए और कचरे को अलग किया जा सके जिसमें से नॉन-बायोडिग्रेडेबल कचरे का रिसाइकिल किया जा सके।

देहरादून रेजिडेंट वेलफेयर सोसाइटी के अध्यक्ष महेश भंडारी ने कहा कि, “समस्या सफाई की नहीं लेकिन बड़ी समस्या सेंसीटाइजेशन यानि की संवेदीकरण की है। शहर में जगह-जगह कचरे के डिब्बे के बावजूद, लोग अभी भी खुले प्लॉट में और सड़क के किनारे पर कचरा फेंक देते हैं। यह रोके जाने की जरूरत है।”

उन्होंने आगे कहा कि जिन लोगों को डस्टबिन के अलावा कूड़ा फेकते हुआ पाया जाए उनपर फाईन लगना चाहिए और उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए। “जब तक लोग अपने इलाकों को प्रदूषित करने के लिए भुगतान नहीं करते, तब तक वेस्ट मैनेजमेंट एक दूर का सपना होगा।”

अंर्तराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल गोवा का समापन, अमिताभ ‘सर्वश्रेष्ठ भारतीय फिल्म व्यक्तित्व’

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गोवा में आयोजित 9 दिवसीय भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह (आईएफएफआई) 2017 मंगलवार को एक रंगारंग समापन समारोह के साथ संपन्न हो गया। इस वर्ष के आईएफएफआई की थीम ‘कहानियों के जरिए विश्व से जुड़ाव’ थी। सितारों से सुसज्जित समारोह के दौरान स्वर्ण मयूर, रजत मयूर, लाइफटाईम अचीवमेंट पुरस्कार एवं वर्ष के सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार समेत विभिन्न सम्मानजनक पुरस्कार प्रदान किए गए।

रोबिन केम्पिलो द्वारा निर्देशित फ्रांस की फिल्म ‘120 बिट्स पर मिनट’ ने आईएफएफआई 2017 में सर्वश्रेष्ठ फिल्म का पुरस्कार हासिल किया। इस पुरस्कार में स्वर्ण मयूर ट्रॉफी, प्रमाण पत्र एवं 40,00,000 रुपये का नकद पुरस्कार, जिसे निर्देशक एवं निर्माता में समान रूप से विभाजित किया गया, शामिल हैं। नहुएल पेरेज बिक्सायार्ट को ‘120 बिट्स पर मिनट’ के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार मिला और उन्हें रजत मयूर प्रदान किया गया। ‘120 बिट्स पर मिनट’ 1990 के दशक में पेरिस में कार्यकर्ताओं के एक समूह की कहानी है, जो एचआईवी/एड्स मरीजों के पक्ष में संघर्ष करने के दौरान सरकारी एजेंसियों एवं फॉर्मास्यूटिकल क्षेत्र की बड़ी कंपनियों का मुकाबला करते हैं।

सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का पुरस्कार फिल्म ‘एंजेल्स वियर व्हाइट’, के लिए विवियन क्यू को प्रदान किया गया, जिन्हें स्वर्ण मयूर ट्रॉफी एवं 15 लाख रुपये के नकद पुरस्कार से सम्मानित किया गया। पार्वती थिरुवथू कोट्टूवता को मलयाली फिल्म ‘टेक ऑफ’ के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के पुरस्कार से सम्मानित किया गया, जबकि नहुएल पेरेज बिक्सायार्ट को ‘120 बिट्स पर मिनट’ के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार मिला। दोनों को रजत मयूर ट्रॉफी एवं 10-10 लाख रुपये का नकद पुरस्कार प्रदान किया गया। विशेष ज्यूरी पुरस्कार, जिसमें रजत मयूर पुरस्कार एवं 15 लाख रुपये का नकद पुरस्कार शामिल हैं, महेश नारायणन को उनकी मलयाली फिल्म ‘टेक ऑफ’ के लिए प्रदान किया गया। कीरो रोशो को उनकी स्पैनिश फिल्म ‘डार्क स्कल’ के लिए ‘किसी निर्देशक की पहली सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म’ का पुरस्कार मिला।

विख्यात अभिनेता अमिताभ बच्चन को भारतीय सिनेमा में उनके योगदान के लिए वर्ष के सर्वश्रेष्ठ भारतीय फिल्म व्यक्तित्व का पुरस्कार प्रदान किया गया। कनाडा के विख्यात फिल्मकार एटम इगोयान को भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह (आईएफएफआई) 2017 के समापन समारोह के दौरान लाइफटाईम अचीवमेंट पुरस्कार प्रदान किया गया। लाइफटाईम अचीवमेंट पुरस्कार में 10 लाख रुपये का नकद पुरस्कार शामिल है जो सिनेमा में असाधारण योगदान के लिए किसी उत्कृष्ट फिल्मकार को प्रदान किया जाता है।

मराठी फिल्म ‘क्षितिज-ए होराईजन’ को आईसीएफटी-यूनेस्को गांधी मेडल मिला, जिसका निर्देशन फिल्मकार मनौज कदम्ह ने किया है। इस पुरस्कार का गठन अंतर्राष्ट्रीय फिल्म एवं टेलीविजन परिषद, पेरिस एवं यूनेस्को द्वारा किया गया है तथा यह वैसी फिल्म को दिया जाता है जो शांति एवं सद्भाव के गांधीवादी मूल्यों को प्रदर्शित करता है।