क्या खतरे की आहट दे रहा है हिमालय- सूखते जल स्रोत

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देहरादून, अतिक्रमण का शिकार शहर और महानगर ही नहीं बल्कि इसकी जद में पर्वतराज हिमालय भी धीरे-धीरे आता जा रहा है जिसका परिणाम हिमालय की आबोहवा में देखने को मिलने लगा है। लगातार हिमालय पर बढ़ रहे मानवीय हस्तक्षेप ने हिमालय की संपदा पर भी असर दिखाना शुरू कर दिया है जड़ी बूटी, बर्फ,इकोसिस्टम और हिमालय की सबसे बड़ी देन पानी और उसके जल स्रोत धीरे-धीरे सूखते जा रहे हैं, जिसके चलते पूरे देश पर इसका साफ असर देखा जा सकता है ।

मौसम चक्र गड़बड़ा गया है, किसानों के खेत बंजर होते जा रहे हैं, जीवनदायिनी जल पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं हो पा रहा है ।कहीं अतिवृष्टि हो रही है, तो कहीं पानी के लिए किसानों में हाहाकार मचा हुआ है। ऐसे में सोचने की बात है क्या हमने प्रकृति को अपनी बढ़ती आबादी और अपने लालच से इतना मजबूर कर दिया है कि वह खुलकर पनप भी नहीं पा रही है?

पहाड़ों से विकास के नाम पर पेड़ गायब हो रहे हैं, जड़ी बूटियों का और वनस्पतियों का अत्यधिक दोहन बड़े पैमाने पर किया जा रहा है। खनन के नाम पर पहाड़ों और नदियों के सीने चीरे जा रहे हैं, जिससे भविष्य के लिए खतरे की घंटी बजने शुरू हो गई है। वरिष्ठ वनस्पति वैज्ञानिक डॉ आर डी गोड का कहना है कि, “ऊंचे हिमालय क्षेत्र में मानवीय दखल लगातार बढ़ता जा रहा है जो वहां के इको सिस्टम पर असर दिखा रहा है।जड़ी बूटियों का अत्यधिक दोहन किया जा रहा है ।जल स्रोतों के पास पानी को बचाने वाले पारंपरिक पेड़ पौधों का लगातार कटान किया जा रहा है, जिसका नतीजा सबके सामने है पहाड़ों से दुर्लभ वनस्पतियां गायब हैं, जो अब मानवीय गतिविधियों के चलते दोबारा पनप नहीं पा रही हैं। बुग्यालों की हालत किसी से छिपी नहीं है जल्दी ही ठोस कदम नहीं उठाए गए तो आने वाले दिनों में स्थिति और बिगड़ जाएगी।

नीति आयोग के निर्देश पर देहरादून स्थित देश के सर्वोच्च संस्थान वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिकों ने गंभीरता से एक अध्ययन किया जिस के नतीजे चौकाने वाले आए हैं। पहाड़ों पर स्थित 45 फ़ीसदी जल स्रोतजल स्रोत सूखने के कगार पर हैं, झरनों पर अतिक्रमण हावी है जिसके चलते धीरे झरणों का अस्तित्व ही खत्म होते जा रहा है। वाडिया इंस्टीट्यूट के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉक्टर समीर तिवारी का कहना है कि “हिमालय क्षेत्रों में जल स्रोत सूख रहे हैं जिसका विस्तृत अध्ययन किया गया है और इसकी एक रिपोर्ट तैयार करके विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के जरिए नीति आयोग को भेजी जा रही है, अगर वक्त रहते जल स्रोतों की सुरक्षा को लेकर ठोस कदम नहीं उठाए गए तो आने वाले दिनों में एक बड़े क्षेत्रों में जल संकट सामने आएगा और भविष्य में यह संकट और भी गहराता जाएगा।

हर साल हिमालय दिवस एवं पर्यावरण दिवस पर लगातार चिंतन तो किया जाता है लेकिन राज्य सरकार हिमालय की सेहत के लिए कोई भी ठोस कदम नहीं उठा पा रही है जिसके चलते पहाड़ अपनी वन संपदा के दोहन से लगातार आहत होते जा रहे हैं और पहाड़ों से निकलने वाले नदियां झरने और जल स्रोत अपने मुहाने पर ही घटकर सीमित होते जा रहे हैं अगर वक्त रहते इसके लिए ठोस कदम नहीं उठाए गए तो आने वाले दिनों में इसका खामियाजा देश की बड़ी आबादी को उठाना पड़ेगा