कोरोनाकाल में बढ़ते अपराध: राज्य की मातृशक्ति पर छाया कोरोना का साया

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कोरोना ने दुनिया के साथ साथ भारत को भी पूरी तरह हिला कर रख दिया है। लाखों परिवार कोरोना की मार से टूटें हैं और जीवन का कोई ऐसा पहलू नहीं है जो कोरोना के घावों से अछूता रहा हो। एक साल से ज्यादा से जारी कोरोना की मार के ने दीवन के हर पहलू पर चोट की है और इनमे एक पहलू है महिलाओं के प्रति घिनौने अपराध का। और महिलाओं के प्रति अपराधों की इस फेहरिस्त में सबसे आगे है ‘बलात्कार’। एक तरफ जहां दुनियाभर कोरोना से लड़ रही है, वहीं, महिलाओं को एक अलग तरह के दुश्मन का सामना करना पड़ रहा है। कोविड लाॅकडाउन और अन्य प्रतिबंधों के चलते महिलाओ के प्रति ये डराने वाले आंकडे कहीं और से नहीं बल्कि देवभूमि उत्तराखंड के हौं। यह आंकड़े राज्य की मातृशक्ति के खिलाफ हुए जुर्म की कहानी बयां करते हैं ।

दरअसल, एक आरटीआई से मिले आंकड़े सरकार और प्रशासन के साथ साथ जनता को जगाने के लिए भी काफी हैं। 2018 से लेकर दिसंबर 2020 तक के आंकड़ो पर नजर डालें तो उत्तराखंड मे बलात्कार के मामले काफी तेजी से बढ़े हैं। इन आंकड़ों के मुताबिक:

  • साल 2018 मे जहां बलात्कार के 506 मामले सामने आए थे वहीं, 2019 मे ये बढ़कर 545 हो गये।
  • 2020 मे यह आंकड़ा रिकार्ड तोड़कर 570 तक जा पहुंचा, जो 12% इजाफा है।
  • कुमाऊं की बात करें तो उधमसिंहनगर महिलाओं के प्रति अपराध मे पहले पायदान पर है जहां 2018 मे बलात्कार की 106 घटनाएं हुई। वहीं 2019 मे यह आंकड़ा 117 और 2020 में एक शर्मनाक स्तर 151 पर आ पहुंचा। दो सालों में यह 42% बढ़ा है।
  • 141 घटनाओं के साथ हरिद्वार दूसरे नंबर पर है और
  • 118 बलात्कार के मामलों के साथ देहरादून तीसरे नंबर पर है।

देवभूमि उत्तराखंड की महिलाएं अपने संघर्ष और अपनी मेहनत के लिए जानी जाती हैं। यह वही भूमि है जिसने चिपको आंदोलन की प्रणेता गौरा देवी जैसी महिलाओं को जन्म दिया। चिपको आंदोलन 70 के दशक में वन माफियाओं को रोकने और जंगलों को बचाने में मील का पत्थर साबित हुआ और आज भी इसे एक मिसाल के तौर पर देखा जाता है। यही नही, उत्तराखंड की महिलायें  राज्य के शराब माफिया के खिलाफ लगातार आवाज उठाती रही हैं।

लेकिन बलात्कार के यह आंकड़े कहते हैं कि उत्तराखंड की महिलाओं के साथ यह घोर अन्याय है। हमारे नेताओँ और समाज ते यह सोचना होगा कि आखिर क्यों महिला शक्ति और उसके हौसले के लिए  प्रसिद्ध उत्तराखंड आज महिलाओँ के लिये अुरक्षित होता जा रहा है? क्या लाॅकडाउन से घरों की चारदीवारी मे बंद होने से महिला सुरक्षा सवालो के घेरे मे आई है? क्या महिलाओं की सुरक्षा एक कम महत्वपूर्ण विषय बन गया है?

लाॅकडाउन में घरों मे रहकर मोर्चा संभालने की जिम्मेदारी तो महिलाओं पर है ही लेकिन, घर मे रहकर स्वयं की सुरक्षा करना भी महिलाओं के लिये चुनौती बन चुका है। ऐसे मे सरकार और कानून व्यवस्था भी सवालों के घेरे में है। आखिर क्यों महिला सुरक्षा एक प्राथमिकता नही बन पाया है? अगर राज्य में महिलाऐं ही सुरक्षित नहीं रहेंगी तो कैसे एक खुशहाल प्रदेश का सपना साकार किया जा सकते है? साथ ही कौन कौन से वो कारण हो सकते हैं कि लाॅकडाउन के ऐसे समय मे महिलाओ की सुरक्षा मे इतनी बड़ी सेंधमारी हुई? इसके पीछे मनोवैज्ञानिक औऱ सामाजिक ताना बाना भी बड़ा पहलू है। महिलाओं की सुरक्षा की पूरी जिम्मेदारी निभाते हुए इस पर सख्त से सख्त कदम उठाने की जरूरत है। उत्तराखंड मातृशक्ति की ताकत और हिम्मत के लिए ही जाना जाता है और हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि यह महिलाओ के प्रति बलात्कार जैसे जघन्य अपराधों का पर्याय न बन जाये।