कोरोना ने अमेरिकी डॉलर को मजबूत किया

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नई दिल्ली, अमेरिकी डॉलर तीन साल के उच्च स्तर पर पहुंच गया है। कोरोना वायरस की वैश्विक महामारी से चिंतित निवेशक अपने पैसे के सबसे सुरक्षित ठिकाने के रूप में डॉलर पर भरोसा कर रहे हैं। बाजार की उथल-पुथल के समय में सुरक्षित माने जाने वाले निवेश अमेरिकी शेयर बाजार मे सबसे तेजी से बढ़ रहे हैं। वैश्विक स्तर पर कोरोना वायरस के मामलों का बढ़ना जारी है। हालांकि महामारी को कारण होने वाले पूरे वित्तीय और आर्थिक नुकसान का अनुमान लगाना असंभव है।

अमेरिका के साथ ही डॉलर को भी इस प्रकोप के प्रभाव से कुछ हद तक सुरक्षित माना जा रहा है। अमेरिका की अर्थव्यवस्था दूसरे देशों की तुलना में व्यापार और निर्यात पर कम निर्भर है। इसका मतलब है कि पहली तिमाही में चीन की आर्थिक वृद्धि की गति धीमी होने से अन्य देशों की तुलना में अमेरिका पर कम असर होगा। इस समय अमेरिकी अर्थव्यवस्था मजबूत हो रही है और इतिहास में अपने सबसे ज्यादा विस्तार के क्रम में है। अनुमान है कि अमेरिकी जीडीपी पहली तिमाही में 2.6 प्रतिशत तक बढ़ जाएगी। कठोर श्रम बाजार और मजदूरी के मामूली बढ़ने, अमेरिकी अर्थव्यवस्था की रीढ़ अमेरिकी उपभोक्ताओं की अच्छी आर्थिक स्थिति के कारण डॉलर में तेजी रही। इस समय बाजार में डॉलर के मुकाबले कोई दूसरी मुद्रा नहीं है।

आईसीई यूएस (ICE US) डॉलर इंडेक्स अप्रैल 2017 के बाद से अपने उच्चतम स्तर पर बंद हुआ। यह व्यापक रूप से इस्तेमाल होने वाला इंडेक्स 6 अन्य मुद्राओं के मुकाबले डॉलर को मापता है। इस सूचकांक में यूरो का वजन सबसे अधिक होता है। साझा यूरोपीय मुद्रा यूरो में कमजोरी ने भी डॉलर की मदद की है। इस हफ्ते यूरो 34 महीनों में डॉलर के मुकाबले अपने सबसे निचले स्तर पर आ गया।

हालांकि डॉलर की मजबूती अमेरिका के बहुराष्ट्रीय निगमों के लिए ठीक नहीं होती है। जब वे अपनी विदेशी कमाई को डॉलर में बदलते हैं तो उनकी कमाई घट जाती है। कोरोना वायरस के प्रकोप की लागत के साथ जोड़कर देखा जाए तो यह अमेरिका की बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए एक दोहरा झटका हो सकता है। एप्पल कंपनी ने घोषणा की थी कि महामारी के असर के कारण वह अपनी पहली तिमाही के राजस्व अनुमान को पूरा नहीं कर पाएगी। दूसरी कंपनियों से भी अगली तिमाही से पहले ऐसी ही घोषणाओं की आशंका जताई जा रही है।