भू बैकुंठ धाम श्री बद्रीनाथ धाम के कपाट श्रद्धालुओं के लिए खुले

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देहरादून, 30 अप्रैल, बुद्ध पूर्णिमा का दिन, सुबह 4:30 बजे का ब्रह्म मुहूर्त, यह वह समय है जब भू बैकुंठ धाम श्री बद्रीनाथ धाम के कपाट श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए गए। पांडुकेश्वर से कुबेर जी और उद्धव जी आदि गुरु शंकराचार्य की गद्दी और गाड़ी घड़ी रविवार को बद्रीनाथ धाम पहुंच चुकी थी। सुबह विधि विधान के साथ मंत्रोचार और वैदिक रीति रिवाज के साथ कपाट खोलने की प्रक्रिया शुरू हो गई थी और देश विदेश से आए 12 हजार से ज्यादा तीर्थ यात्रियों ने अखंड ज्योति के दर्शन किये।

पूरे बद्रीनाथ धाम को फूलों के साथ सजाया गया है, माना गांव से आई महिलाओं ने पारंपरिक नृत्य के साथ भगवान के द्वार खुलने की परंपरा पर नृत्य और भजन कीर्तन किया, श्रद्धालुओं ने जय बद्री विशाल के घोष के साथ भगवान के दर्शन किए।

क्या है बद्रीनाथ धाम का इतिहास और क्यों इसे भू बैकुंठ के नाम से जाना जाता है
उत्तराखंड चमोली जिले में और अलकनंदा नदी के किनारे पर स्थित भगवान विष्णु का एक धार्मिक स्थान है। मंदिर समुद्र तल से 3133 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। बद्रीनाथ धाम “चार धाम” में से एक है और वैष्णवों के सबसे पवित्र मंदिरों में से एक है।

भगवान विष्णु की मूर्ति

बद्रीनाथ धाम भगवान विष्णु के तीर्थस्थलों में एक अलग स्थान तो रखता ही है साथ ही यहां स्थापित भगवान बद्री की मूर्ति भी अनोखी है। आमतौर पर दुनिया के सारे विष्णु मंदिरों में भगवान की आराधना उनके खड़े रूप में की जाती है, मगर बद्रीनाथ धाम में भगवान का विग्रह पद्मासन की मुद्रा में है।

क्यों पड़ा बद्रीनाथ नाम

मान्‍यता है, एक बार जब भगवान विष्णु तपस्या में लीन थे, तो उन्हें कड़ी धूप से बचाने के लिए मां लक्ष्मी बेर के वृक्ष के रूप में उनपर तब तक झुकी रहीं जब तक वो तपस्या करते रहे। बाद में भगवान विष्णु ने उनके प्रेम और समर्पण का सम्मान करते हुए इस स्थान को बद्रीनाथ का नाम दिया, क्योंकि संस्कृत भाषा में बेर को बद्री कहा जाता है। आज भी जब कोई बद्रीनाथ धाम का उच्चारण करता है तो पहले ‘बद्री’ यानी मां लक्ष्मी का नाम आता है और बाद में ‘नाथ’ यानी भगवान विष्णु का।

तप्त कुंड में स्नान का महत्व
भगवान बद्रीनाथ के दर्शन करना इतना आसान नहीं है। इसने दर्शन से पहले श्रद्धालु तप्त कुंड में स्नान कर देहशुद्धि करते हैं और फिर लक्ष्मी जी की पूजा करके सुख शांति की कामना करते हैं। तप्त कुंड के पास ही कई गर्म जल की धाराएं हैं, जिनमें औषधीय गुण बताए जाते हैं। मान्यता यह भी है कि यह स्नान जन्म जन्मांतरण के पापों से छुटकारा दिला देता है।

क्यों होती है छह माह पूजा

इस पवित्र धाम के दर्शन भक्त केवल गर्मियों के छह महीने में कर सकते हैं, क्योंकि बाकी के 6 महीने देवता नारायण की पूजा करते हैं। इसके पीछे की कहानी बड़ी दिलचस्प है, कहते हैं सतयुग में नारायण बद्रिकाश्रम में साक्षात निवास करते थे, त्रेतायुग में कठोर तपस्या करने वाले ऋषि मुनि ही विष्णु के दर्शन कर पाते थे, लेकिन द्वापर युग आने पर जब भगवान कृष्णावतार लेने के लिए जाने लगे तो न केवल ऋषि मुनि बल्कि देवताओं को भी उनके दर्शन दुर्लभ हो गए। जब लंबे वक्त तक देवताओं को नारायण के दर्शन नहीं मिले तो वो घबरा गए और विष्णु से दर्शन देने के लिए प्रार्थना करने लगे। तब विष्णु ने एक ऐसा तरीका निकाला जिससे वो देवताओं और मनुष्यों को समान रुप से दर्शन दे सकें, उन्हें पूजा और आराधना करने का मौका दे सकें।

विष्णु ने कहा कि कलियुग में जब इंसान धर्म-कर्म हीन हो जाएगा और उसके अंदर अभिमान समा जाएगा तब वो इंसानों के सामने साक्षात रुप में नहीं रह पायेंगे। ऐसी स्थिति में नारद शिला के नीचे अलकनंदा में समाई हुए उनकी एक मूर्ति के जरिए वो भक्तों को दर्शन देंगे। उनकी बातें सुनकर देवताओं ने नारदकुंड से मूर्ति निकाल कर विश्वकर्मा से एक मंदिर में मूर्ति की स्थापना करा दी। इस मंदिर का नाम बदरीनाथ पड़ा और नारद को प्रधान अर्चक नियुक्त किया गया। तब यह भी प्रावधान रखा गया कि बदरीनाथ में नारायण की पूजा का अधिकार 6 महीने के लिए मनुष्यों को होगा और बाकी के छह महीने देवता पूजा अर्चना कर सकेंगे