बारिश, भूकंप और भूस्खलन से उत्तराखंड को लगातार भारी नुकसान उठाना पड़ता है। इस पर लगाम लगाने के लिए अब जापान की तकनीक अपनाई जाएगी। इसके लिए जापान में इस क्षेत्र में कार्य कर रही जापान इंटरनेशल काॅपरेशन एजेंसी (जायका) ने अपनी तकनीक उत्तराखंड से साझा करने पर सहमति भी दे दी है।
जापान इंटरनेशल काॅपरेशन एजेंसी (जायका) के आमंत्रण पर जापान पहुंचे प्रदेश के वन एवं पर्यावरण मंत्री डाॅ़ हरक सिंह रावत ने जायका के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बैठक कर भूस्खलन के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण जानकारियां प्राप्त कीं। जापान दौरे के पहले दिन ही वन एवं पर्यावरण मंत्री डाॅ़ रावत के साथ गए उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल ने जायका की सीनियर वाइस प्रेजीडेंट सुजुकी नोरिको के नेतृत्व में जायका के प्रतिनिधिमंडल से जापान में भूस्खलन एवं उसके ट्रीटमेंट की तकनीक पर विस्तृत वार्ता की।
उत्तराखंड में 71 प्रतिशत भू-भाग वन क्षेत्र में आता है। इसी से समानता रखते हुए जापान में भी 67 प्रतिशत वनाच्छादित क्षेत्र है। जापान में भू-स्खलन के बाद उसके ट्रीटमेंट के लिए ही जायका की स्थापना की गई है। जायका ने भू-स्खलन प्रभावी क्षेत्रों का व्यापक ट्रीटमेंट करते हुए पूरी दुनिया के सामने अपनी तकनीक की मिसाल पेश की। अब जायका ने उत्तराखंड के साथ अपनी तकनीक को साझा करने पर भी सहमति जताई है। डॉ़ रावत ने जापान की फारेस्ट्री एजेंसी के महानिदेशक ओकी से भी मुलाकात कर भूस्खलन को रोकने की तकनीक के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की। इस मौके पर उत्तराखंड की ओर से वन मंत्री के साथ मुख्य सचिव एस रामास्वामी, पीसीसीएफ ( मानव संशाधन) मोनिश मलिक, जायका के मुख्य परियोजना अधिकारी अनूप मलिक एवं उप निदेशक राजाजी पार्क किशन चन्द आदि शामिल रहे।