मीणों ने कालागढ़ वन विभाग से की गिद्ध को अपने संरक्षण में लेने की मांग

0
1324

कालागढ़/ पौड़ी, लगभग 10 दिन पूर्व पेड़ में फंसे मिले घायल गिद्ध को सही उपचार ना मिल पाने व उत्तर प्रदेश वन विभाग की लापरवाही के चलते ग्रामीणों ने सिनेरियस प्रजाति के इस हिमालयन गिद्ध की देखरेख व उपचार की मांग कालागढ़ वन विभाग से की है ।

दस दिन पहले निकटवर्ती ग्राम कादराबाद मे एक दुर्लभ प्रजाति के गिद्ध को ग्रामीणो ने एक पेड़ से मरणासन्न हालत मे उतार कर उसका इलाज कराना शुरू किया। जब इस बारे मे वन विभाग को अवगत कराया तो किसी भी अधिकारी या कर्मचारी ने इस गिद्ध की सुध नही ली मजबूरन ग्रामीणों ने मुख्य वन संरक्षक मुरादाबाद को फोन कर शिकायत जी जिसके बाद गिद्ध को नगीना रेंज के वन कर्मियो ने पशु चिकित्सालय ले जाकर उपचार कराना शुरू किया। गिद्ध को बचाने मे आगे आए ग्रामीणो लोकेंद्र कुमार, रंजीत ,अशीष कुमार,शिवन राणा, प्रशांत राघव, मुकेेश कुमार,निरंजन राणा, अमित व अनुज ने कार्बेट टाइगर रिवर्ज के कालागढ़ स्थित उप प्रभागीय वनाधिकारी को पत्र लिख गिद्ध को कार्बेट टाइगर रिजर्व के संरक्षण लेकर उपचार कराने की मांग की है। ग्रामीणों का कहना है कि यहाँ इस गिद्ध की देखभाल व उपचार ठीक ढंग से नही हो रहा है हमे इस गिद्ध के मरने का डर है ।

देश मे गिनती के बचे हुए गिद्धों में यह गिद्ध मर जाता है तो पर्यावरण को काफी नुकसान भी होगा और हम जंगल के इस सफाईकर्मी को खो देंगे । इस पर उप प्रभागीय वनाधिकारी कालागढ़ आर के तिवारी ने कहा कि इन युवाओं का यह प्रयास बेकार नही जायेगा पत्र हमे प्राप्त हो गया है । हमने उप प्रभागीय वनाधिकारी बिजनौर से इस बारे में बात की है उनके सहमति के बाद हम इसे संरक्षण में लेकर नैनीताल में इसका विशेष उपचार कराएंगे।

“क्या होता है सिनेरियस वल्चर”
सिनेरियस वल्चर , सिनेरियस यानि राख के समान भूरा और वल्चर मतलब गिद्ध अर्थात राख के समान भूरा गिद्ध यही इसका नाम है। इसे ब्लैक वल्चर, मोंक वल्चर या यूरेशियाई ब्लैक वल्चर भी कहते है । यह गिद्धों की प्रजाति में दूसरा सबसे बड़ा गिद्ध होता है जिसका वजन लगभग 14 किलो तक हो जाता है व लंबाई 1.3 मीटर ओर पंखों की चौड़ाई लगभग 3 मीटर तक हो जाती है । सिनेरियस गिद्ध मुख्यतः भारत, स्पेन, पुर्तगाल व फ्रांस जैसे देशों में पाया जाता है आम गिद्धों की तरह यह भी मुर्दाखोर होते है परंतु अन्य गिद्धों के मुकाबले यह शिकार करने में भी बेहद निपुण होता है मछली, सरीसृप इसका मुख्य भोजन होता है । पक्षी प्रेमी व प्रकृतिवादी राजेश भट्ट की माने तो हिमालय की गोद मे रहने वाले इस वल्चर का स्वभाव है कि ठंड आते ही यह निचले कम पहाड़ी क्षेत्रों की तरफ रुख करते हैं और नदियों के किनारे को अपना बसेरा बना लेते है । इसमे सबसे चिंतनीय विषय यह है कि इस प्रजाति के गिद्ध दुनियाभर में 4500 से 5000 तक ही रह गए है।