उत्तराखंडः 22 साल के सफर में विकास से ज्यादा सियासत के लिए प्रयोग

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उत्तराखंड

उत्तराखंड राज्य नौ नवंबर को अपना 22 साल का सफर पूरा करने जा रहा है। जाहिर तौर पर यह समय उत्सव मनाने का है लेकिन इसके बीच में कहीं चुनौतियां और सवाल भी मजबूती से खडे़ हैं। उत्तराखंड बनने से पहले जिस पर्यटन और ऊर्जा प्रदेश की परिकल्पना पर सबसे ज्यादा जोर देकर तमाम सारी बातें कही-सुनी गईं, 22 सालों में राज्य उसके करीब नहीं पहुंच पाया। उत्तराखंड में नए प्रयोग तो हुए लेकिन यह विकास के वास्ते कम और सियासत के लिए ज्यादा रहे।

उत्तराखंड में इन 22 सालों में भाजपा और कांग्रेस ने ही राज किया है। किसी तीसरे विकल्प के लिए कभी कोई गुंजाइश नहीं बनी। 22 सालों में सिर्फ एनडी तिवारी का कार्यकाल छोड़ दिया जाए, तो कोई मुख्यमंत्री अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया। 2017 से लेकर 2022 तक के भाजपा शासनकाल में तो तीन-तीन मुख्यमंत्री बदले गए। मुख्यमंत्री बदलने के मामले में कोई पीछे नहीं रहा, चाहे भाजपा हो या फिर कांग्रेस। राजकाज भाजपा के हिस्से ज्यादा आया, तो कांग्रेस के मुकाबले उसने मुख्यमंत्री भी ज्यादा बदले। कांग्रेस ने अपने 2012 से 2017 के कार्यकाल में पहले विजय बहुगुणा, तो फिर हरीश रावत को मुख्यमंत्री बनाया। इन 22 सालों में भाजपा ने यह इतिहास जरूर रच दिया कि 2022 के विधानसभा चुनाव में वह लगातार दूसरी बार सरकार बनाने में सफल रही। इससे पहले, कभी ऐसा नहीं हुआ था। मेजर जनरल भुवन चंद्र खंडूरी, हरीश रावत और पुष्कर सिंह धामी ऐसे मुख्यमंत्री रहे हैं, जिन्हें एक बार कुर्सी से हटने के बाद दोबारा मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला।

उत्तराखंड राज्य निर्माण के बाद नीति नियंताओं ने कागजों पर जितने चाहे घोडे़ दौड़ाए हों लेकिन धरातल पर विकास इधर-उधर छिटका हुआ ही दिखाई दिया। राज्य निर्माण के दौरान जिन दो सेक्टर पर सबसे ज्यादा भरोसा प्रकट करते हुए पर्यटन-ऊर्जा प्रदेश की बड़ी बड़ी बातें हुई थीं, वे 22 सालों में बहुत तेजी से आगे बढ़ती नहीं दिखी हैं। पहले पर्यटन सेक्टर की बात कर लेते हैं। हाल ही में चार धाम यात्रा के समाप्त होने के बाद सामने आए यात्रियों की संख्या के आंकडे़ पर भी चर्चा कर लेते हैं। करीब 40 लाख यात्रियों के उत्तराखंड आने की जानकारी सरकार ने दी है। यह संख्या उत्साह जगाती है लेकिन यह भी सच्चाई है कि चार धाम से इतर पर्यटन के नए इलाके विकसित करने में कामयाबी नहीं मिल पाई है। पर्यटन के पूर्व से स्थापित डेस्टिनेशन के अलावा इस दिशा में बहुत बड़ा काम अभी नहीं हो पाया है। जानकारों के अनुसार पर्यटन के लिहाज से 75 फीसदी संभावनाओं का दोहन करना अभी शेष है। राज्य की अर्थव्यवस्था में पर्यटन अभी सिर्फ 35 फीसदी का योगदान कर रहा है जबकि इसे कम से कम 50 फीसदी तो होना ही चाहिए। कोरोना के कहर ने भी पर्यटन को नुकसान पहुंचाया है लेकिन ठोस नीतियों और क्रियान्वयन के अभाव ने सबसे ज्यादा काम बिगाड़ा है।

ऊर्जा प्रदेश की सच्चाई जानें तो पूरे प्रदेश के लिए करीब 2600 मेगावाट बिजली की आवश्यकता है। इसके मुकाबले अपनी परियोजनाओं से उत्तराखंड को अधिकतम 1300 मेगावाट बिजली उपलब्ध हो रही है। बाकी सारी बिजली अन्य प्रदेशों से मोटे-मोटे दाम देकर खरीदनी पड़ रही है। हालांकि सरकार का कहना है कि उत्तराखंड को हर क्षेत्र में बेहतर बनाने के लिए सरकार पूरी ताकत से काम रही है। ठोस योजनाएं बनाकर उनका क्रियान्वयन किया जा रहा है।