उत्तराखंड विधानसभा की दीवार पर नंदा राजजात यात्रा के भिखरेंगे रंग

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देहरादून, उत्तराखंड की लोक संस्कृति को बढ़ावा देने एवं विरासत को संजोने के उद्देश्य से उत्तराखंड विधानसभा परिसर की बाहरी दीवार पर नंदा देवी राजजात यात्रा को भित्ति चित्र (म्यूरल) के रूप में प्रदर्शित किया गया है। सोमवार को  उत्तराखंड विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल एवं कार्यक्रम में उपस्थित विधायकों द्वारा विधिवत पूजा-अर्चना के साथ नारियल फोड़कर इसका अनावरण किया गया। इस अवसर पर अग्रवाल ने कहा कि उत्तराखंड की खूबसूरती यहां की लोक संस्कृति में है। यहां की समृद्ध व गौरवशाली संस्कृति का संरक्षण करने की जिम्मेदारी हम सबकी है।
उत्तराखंड विधानसभा परिसर की चारदीवारी पर गढ़वाल एवं कुमाऊं की संस्कृति को जोड़े हुए नंदा राजजात यात्रा को 10 भित्ति चित्र के माध्यम से दिखाने का अनूठा प्रयास स्पीकर की पहल पर किया गया है। यात्रा के सभी पड़ावों को भित्ति चित्र के रूप में उकेरा गया है। ये भित्ति चित्र इतने आकर्षक व सजीव  हैं कि बरबस ही लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर रहे हैं।
इस अवसर पर विधानसभा अध्यक्ष ने कहा कि एशिया की सबसे लंबी पैदल यात्रा और गढ़वाल-कुमाऊं की सांस्कृतिक विरासत श्रीनंदा राजजात अपने में कई रहस्य और रोमांच को संजोए है। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड के लोग अपनी लोक संस्कृति को शालीनता के साथ सहेजे हुए हैं। यहां के लोक वाद्य, लोक गीत, लोक गायन शैली, लोक नृत्य, चित्र अथवा शिल्प उत्तराखंड को एक अलग पहचान देते हैं। हमें अपनी संस्कृति, मूल्यों तथा परम्पराओं को कभी नहीं भूलना चाहिए। अग्रवाल ने कहा कि हमारी विधानसभा उत्तराखंडी विधानसभा दिखे, इसके लिए वह लगातार प्रयास भी करते रहते हैं।
विधानसभा अध्यक्ष का कहना है कि बाहर से आने वाले आगंतुकों एवं सड़क पर आवागमन करने वाले लोगों को यह भित्ति चित्र आकर्षण का केंद्र होगा। साथ ही हमारी लोक संस्कृति की जानकारी भी इसके माध्यम से आमजन एवं हमारी भावी पीढ़ी को प्राप्त होगी। इस अवसर पर विधानसभा अध्यक्ष ने भित्ति चित्र लगे स्थान पर एक सेल्फी प्वाइंट बनाने की भी घोषणा की। उन्होंने कहा कि लोग यहां पर अपनी फोटो खींचकर कर  संस्कृति के साथ जुड़ सकते हैं।
उल्लेखनीय है कि मां नंदा देवी को उनकी ससुराल भेजने की यात्रा है राजजात। मान्यता है कि एक बार नंदा अपने मायके आई थीं।
किन्हीं कारणों से वह 12 वर्ष तक ससुराल नहीं जा सकीं। बाद में उन्हें आदर-सत्कार के साथ ससुराल भेजा गया। चमोली के नौटी से यात्रा उच्च हिमालयी क्षेत्र होमकुंड पहुंचती है। 20 दिन में राजजात  280 किलोमीटर की यात्रा कई निर्जन पड़ावों से होकर गुजरती है। हर 12 वर्ष में आयोजित होने वाली इस यात्रा को हिमालयी महाकुंभ के नाम से भी जानते हैं। राजजात गढ़वाल-कुमाऊं के सांस्कृतिक मिलन का भी प्रतीक है। जगह-जगह से डोलियां आकर इस यात्रा में शामिल होती हैं। 7वीं शताब्दी में गढ़वाल के राजा शालिपाल ने राजधानी चांदपुर गढ़ी से देवी श्रीनंदा को 12वें वर्ष में मायके से कैलाश भेजने की परंपरा शुरू की। चौसिंगा खाडू (काले रंग का भेड़) श्रीनंदा राजजात की अगुवाई करता है। मनौती के बाद पैदा हुए चौसिंगा खाडू को ही यात्रा में शामिल किया जाता है। होमकुंड में इस खाडू को पोटली के साथ हिमालय के लिए विदा किया जाता है।
इस अवसर पर पूर्व विधानसभा अध्यक्ष एवं विधायक हरबंस कपूर, पूर्व मंत्री एवं विधायक खजान दास, विधायक गणेश जोशी, विधायक विनोद चमोली, विधायक उमेश शर्मा काऊ, विधायक देशराज कर्णवाल, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रांत प्रचारक युद्धवीर, विधानसभा के सचिव जगदीश चंद, उप सचिव मुकेश सिंघल आदि लोग उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन भारत चौहान ने किया।
कार्यक्रम में शारीरिक दूरी के नियमों की उड़ीं धज्जियां
विधानसभा की दीवार बनाए गए इन भित्ति चित्रों के अनावरण कार्यक्रम के दौरान  विधिवत पूजा अर्चना की गई। इस दौरान कोरोना से बचाव एवं रोकथाम के लिए निर्धारित दो गज की दूरी का मखौल उड़ा । विधानसभा अध्यक्ष समेत कई गण्यमान्य लोग एक -दूसरे से कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हुए थे। इस तरह कोरोना के लिए निर्धारित दिशा-निर्देश का इन माननीयों ने मखौल उड़ाया।