यादों का सफर: अपूर्वा डी कर्नाटिक

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The young poet reciting her composition at an Open Mic Session

नैनीताल: 22 साल की युवा कवयित्री, अपूर्वा डी कर्नाटिक की जड़ें नैनीताल के मुक्तेशवर जुड़ी हैं। पहाड़ों में बसे अपने इस घर से ही अपूर्वा को कविता के क्षेत्र में अपने रुझान का अहसास हुआ।

एक निजी विश्वविद्यालय से मास कम्यूनिकेशन में स्नातक की पढ़ाई कर रही अपूर्वा ने 2007 में अपनी दादी के देहांत के बाद पहली बार अपनी भावनाओं को शब्दों का रूप दिया और अपनी पहली कविता लिखी।

फोन पर बात करते हुए अपूर्वा कहती हैं कि, “जब कभी भी मुझे किसी मुद्दे या घटना से गहरा नाता लगता है तो मैं कागज पर शब्दों के जरिये अपनी भावनाओं को उतार देती हूं। कई बार ऐसा करने में मुझे आधा घंटा लगता है।” पिछले कई सालो से अपूर्वा पहाड़ों से जुड़ें मुद्दों पर अपनी भावनाओं को काग़ज़ पर कविताओं का रूप देती आ रही हैं।

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अपूर्वा द्वारा कविता और कहानियाँ संस्थान द्वारा आयोजित एक सम्मेलन में,  कहानी पलायन की, हिट मयार  पहाड़, को प्रस्तुत किया गया और इसे लोगों के बीच ख़ासा पसंद भी किया गया। इन कविताओं को सुनने वाले श्रोता रमन सैली कहते हैं कि,”ये कविताएँ, कवियित्री द्वारा कही जाने वाली भावनाओं को सटीक तरह से पेश करते हैं और लोगों के बीच अपनी अलग जगह बना लेती हैं। 

हर साल पहाड़ों में अपने घर आते आते अपूर्वा को पहाड़ के लोगों के कठिन जीवन को क़रीब से देखने और समझने का मौक़ा मिला।अपूर्वा ने यह जाना कि पहाड़ के लोग तमाम मुश्किलों के बावजूद एक ख़ास इच्छाशक्ति और चेहरे पर मुस्कुराहट लिये आगे बढ़ते रहते हैं। अपूर्वा की अगली रचना ‘हैप्पी प्रधान’ इसी के बारे में है।

आने वाले समय में भी अपूर्वा अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद कविता के अपने शौक़ क पूरा करने के साथ-साथ और ज़मीनी मुद्दों को भी उठाना चाहती है। अपूर्वा कहती हैं की वो आने वाले समय में महिलाओं में साफ सफाई के मसले पर काम करना चाहती हैं। वो कहती है कि वैसे भी अपने लोगों के बीच रहने से उन्हें और अच्छा लिखने के प्रेरणा और प्रोत्साहन मिलता है।