नए जिले, नए ब्लाक, भूल गई सरकार

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देहरादून,  उत्तराखंड में नए जिले और नए ब्लाकों के गठन को लेकर सरकार का दूर-दूर तक कोई इरादा नजर नहीं आ रहा। और तो और सरकार उन चार जिलों के मामले को भी नहीं छेड़ना चाहती, जिसका उसकी पूर्ववर्ती सरकार ने न सिर्फ ऐलान किया था, बल्कि शासनादेश जारी कर दिया था। मौजूदा सरकार का मानना है कि जिलों या ब्लाक के गठन की बात यदि शुरू की जाती है, तो फिर मांगों का सिलसिला थमने का नाम नही लेगा। राजस्व के अलावा जनदबाव से जुडे़ पहलु को देखते हुए सरकार इस मामले पर विचार करने को जोखिम नहीं लेना चाहती।
उत्तराखंड राज्य निर्माण के बाद कोई भी सरकार एक भी नया जिला बनाने का निर्णय नहीं ले पाई है। यूपी के जमाने में तत्कालीन मायावती सरकार ने जरूर रुद्रप्रयाग, यूएसनगर, चंपावत और बागेश्वर जैसे जिले बना दिए थे। उत्तराखंड राज्य 13 जिलों और 95 ब्लाकों के साथ अस्तित्व में आया। तब से ये स्थिति जस की तस बनी हुई है, जबकि नई प्रशासनिक इकाइयों की जरूरत लगातार महसूस की जा रही है।
भाजपा की निशंक सरकार ने 15 अगस्त 2011 को चार नए जिले कोटद्वार, यमुनोत्री, रानीखेत और द्वाराहाट बनाने की घोषणा की थी। इसका शासनादेश भी हो गया था, लेकिन 2012 में कांग्रेस सरकार ने एक आयोग का गठन कर नई प्रशासनिक इकाइयों के गठन के मामले को उसके सुपुर्द कर दिया। तब से इस मामले में कोई प्रगति नहीं हुई है। भाजपा की त्रिवेंद्र सरकार ने नए जिलों और ब्लाकों के मामले को ठीक उसी तरह टाला हुआ है, जैसा कैबिनेट में दो मंत्रियों की खाली कुर्सी का मसला नहीं निपट पाया है।
सरकार के एक मंत्री ने स्पष्ट तौर पर स्वीकार  किया है कि हाल फिलहाल नई प्रशासनिक इकाइयों के गठन का कोई इरादा नहीं है। इसकी बड़ी वजह राज्य की आर्थिक स्थिति है, जो इसका भार सहन करने की इजाजत नहीं दे रही है। इसके अलावा, जिलों और ब्लाकों को लेकर आंदोलनों का सिलसिला शुरू होेने की तय स्थिति भी सरकार के ध्यान में है।