अफवाहों का माध्यम बनता सोशल मीडिया

वर्तमान दौर सूचनाओं के त्वरित प्रवाह का है। सूचनाएं बिजली की चलपता से एक स्थान से अन्यत्र हवाओं में तैरती हुई हमारे माध्यमों के मार्फत सभी तक पहुंच रही हैं। सूचना समर के इस दौर में अफवाहों का तंत्र भी इसके समानांतर गतिशील है। अफवाहें कब सूचनाओं का रूप धरकर समाचार में तब्दील हो जाएं, कुछ कहा नहीं जा सकता है। वहीं, अफवाहें कब सामूहिक उन्माद में तब्दील हो कर किसी बड़ी घटना का अंजाम दे जायें, इसका भी कोई समय निश्चित नहीं है। समय विशेष में यही घटनाएं मात्र घटनाएं न होकर ‘मास हीस्टीरिया’ या जन भ्रम की घटनाएं होती हैं जो अफवाहों के पंख लगने के बाद सामूहिक उन्माद का रूप ले लेती होती हैं। देश में ‘मास हीस्टीरिया’ जन भ्रम का अपना इतिहास रहा है। 90 के दशक के मध्य में 21 सितंबर की सुबह एकाएक अफवाह फैली की भगवान गणेश की मूर्ति चम्मच से दूध पी रही है। देखते ही देखते मंदिरों में लाइनें लग गईं। तब इस अफवाह को सुदूर तक फैलाने का काम टेलीफोन ने किया था। इसी तरह 2001 में देश की राजधानी दिल्ली में ‘मंकी मैन’ की अफ़वाह फैली। मंकी मैन ने कथित रूप से कई लोगों पर हमला किया। इसके बाद सन् 2002 में देश की जनसंख्या के मामले में सबसे बड़े सूबे में मुंहनोचवा का प्रकरण सामने आया। सन् 2006 में हज़ारों की तादाद में लोग मुंबई के एक समुद्र तट में इसीलिए पहुंचने लगे क्योंकि उन्होंने सुना कि समुद्र का पानी अचानक मीठा होने लग गया है। इन जैसे कई उदाहरण हैं जिन्हें मीडिया ने समाचार बनाकर लोगों को परोसा। हालांकि बाद में घटनाएं अफवाह मात्र निकलीं। इन मामलों में मीडिया की किरकिरी होने के बाद मुख्य धारा का मीडिया अब इस तरह की घटनाओं को सोच समझकर ही स्थान देता है। भला हो इस व्हाट्अप और फेसबुक युनिवर्सिटी का, जिसमें शामिल सभी लोग खुद को समाज विज्ञानी होने का दम भरते हैं। साथ ही अपने और अपने समाज को भलीभांति जानने की तकरीरें करते हैं। उन्हें शायद पता ही होगा कि जब भी कहीं दंगे- फसाद होते हैं तो वहां के प्रशासन का पहला लक्ष्य सूचना सेवाओं को बाधित करने का होता है। न जाने कब अफवाहें सूचना के रूप में लोगों के दिल में घर कर जाएं।

हाल ही में उत्तरी भारत के कई राज्यों जैसे हरियाणा, उत्तरप्रदेश, दिल्ली और राजस्थान में महिलाओं की चोटी कटने की घटनाओं का बाजार गर्म है। कई मामले दर्ज किये जा चुके हैं लेकिन न तो पुलिस और न ही इसकी शिकार महिलाएं इसके कारणों की तह तक पहुंच पायें हैं। जब घटना की शिकार महिलाओं से पूछा जाता है कि किसी ने हमलावर को देखा है..इस प्रश्न पर रहस्य औऱ ही गहरा जाता है। कई महिलाओं ने शिकायत की है कि किसी ने उन्हें बेहोश करके रहस्यमयी तरीके से उनके बाल काट लिए। जितनी महिलाओं ने अपनी चोटी कटने की शिकायते थानों में दर्ज कराई हैं सबकी अपनी- अपनी आपबीती है। चोटी कटने की पहली खबर राजस्थान से आयी थी लेकिन अब इसने हरियाणा और दिल्ली समेत उत्तर प्रदेश को भी अपनी चपेट में ले लिया है। इन घटनाओं और उसके बाद इसके गहराते रहस्य की कई कहानियां हैं। कइयों का मानना है कि इस तरह की घटनाएं तांत्रिकों द्वारा अंजाम दी जा रही हैं जबकि कई इनके पीछे अदृश्य शैतानी ताकतों का होना मानते हैं। हालांकि इस तरह की घटनाओं को वैज्ञानिक तथ्यों की कसौटी पर कसने पर यह ‘मास हिस्टीरिया’ की घटना समझ पड़ती है। इनके पीछे कोई चमत्कार, दैवीय या शैतानी शक्ति नहीं है बल्कि यह एक विशेष मन: स्थिति का परिणाम है। इस तरह की मन: स्थिति में पीड़ित खुद पर ऐसा होते हुए अहसास करता है। यह कभी – कभार अवचेतनावस्था में भी होता है। इस तरह की घटनाओं की शिकार महिलाओं में इस बात की समानता है कि तकरीबन सभी की आर्थिक- सामाजिक स्थिति कमोवेश एक जैसी होने के साथ ही वे कम पढ़ी-लिखी हैं। लेकिन शिक्षा के प्रसार और बढ़ती जागरूकता से इसमें काफी कमी आई है। बावजूद इसके ऐसी घटनाएं यदा-कदा होती रहती हैं। कई बार इस तरह की अफवाहें दहशत फैलाने के उद्देश्य से भी फैलाई जा सकती हैं। मेडिकल साइंस इसे ‘आईडेंटिटी डिसऑर्डर’ मानता है, जिसके पीड़ित लोग इस तरह की अजीबोगरीब घटनाओं के शिकार पाए जाते हैं। इससे पीड़ित व्यकित कुछ समय के लिए स्वयं पर नियंत्रण खो देते हैं। उसके बाद वे क्या करते हैं या फिर उनके साथ क्या होता है, इसकी उन्हें कोई समझ नहीं होती। ऐसी घटनाओं की मनगढ़त खबरें कमजोर सामाजिक और आर्थिक स्थिति के लोगों को ज्यादा प्रभावित करती हैं। जीवन की कठिनाइयों से त्रस्त, हैरान- परेशान लोग मानसिक दबाव या तनाव में भ्रम का शिकार आसानी से हो जाते हैं।
मंगलवार की ही घटना है, जब हरियाणा के पिछड़े जिले मेवात के नगीना ब्लॉक में एक बिल्ली को भीड़ ने इस लिए मार दिया क्योंकि गांव में एक महिला की कटी चोटी पाई गई तो परिजनों ने देखा वहां एक बिल्ली बैठी हुई है। बिल्ली को लोगों ने पकड़ लिया और उसकी हत्या की गई। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि इस इलाके में ऐसी अफवाहों का जोर था कि बिल्ली के रूप में कोई औरत आकर महिलाओं की चोटी काट जाती है। जब इस घटना को अंजाम दिया जा रहा था तो कई लोग इसका वीडियो बना रहे थे। सोशल मीडिया के माध्यम से यह खबर गोली की रफ्तार से भी तेज अन्य लोगों तक पहुंच गई होगी। परिणाम क्या होंगे ? यह समय बताएगा। इस तरह की अफवाहों के समय में कई सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं की मन: स्थिति निष्क्रिय श्रोता की तरह होती है। आगरा में एक बुजुर्ग महिला को भीड़ ने चोटी काटने वाली समझकर पीट-पीटकर मौत के घाट उतार दिया। इसी साल झारखंड में बच्चा चोरी की अफवाह के चलते भीड़ ने दो लोगों को मार डाला। ऐसी घटनाएं सामूहिक उन्माद का ही नतीजा है। इसी तरह मुंहनोचवा की अफवाहों के चलते फैले सामूहिक उन्माद में दो लोगों की मौत हो गई थी। मुज्जफरपुर की घटना तो सभी को याद होगी जब फेसबुक पर आपत्तीजनक कंटेट अपलोड करने पर दंगे भड़क गए थे। हालांकि बाद में पता चला कि संबंधित वीडियो देश का है ही नहीं। उपरोक्त उदाहरणों से स्पष्ट है कि मीडिया एक खास परिस्थिति में अत्यंत ही शक्तिशाली रुख अख्तियार कर लेता है, जब एक विशेष मन: स्थिति वाले लोगों तक जनभ्रम या मास हीस्टीरिया के संदेश पहुंचते हैं और इसी खास मीडिया इफेक्ट के चलते ही जनभ्रम सामूहिक उन्माद का रूप ले लेता है। सोशल मीडिया आज इन्हीं सब का टूल बना हुआ है। ऐसे में सोशल मीडिया का सोच-समझकर इस्तेमाल करना चाहिए। माना कि आप इस तरह की सूचनाओं को खबर बनाकर आगे नहीं बढ़ाते लेकिन इस बात को भी सुनिश्चित करना होगा कि कहीं आप इनके झांसे में तो नहीं आ रहे। सूचना क्रांति के इस दौर में सोशल मीडिया के उपयोगकर्ताओं को विशेष एहतियात बरतने की आवश्यकता है। वरना जनभ्रम के संदेशों से लोगों के दिलों दिमाग में घर कर गया शैतान कब अपने वास्तविक भयावह आकार, उन्माद का रूप लेकर हमारे उस सामाजिक ताने-बाने को तगड़ा अपूर्णीय आघात पहुंचा जाए जिसे बनाने में न जाने कितनी ही पीढ़ियां मर-खप गई।