चारा वाला पत्ता अब बनाएगा रेशम

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मूल रूप से खर्सू चारा प्रजाति का पेड़ है, जिसकी चौड़ी पत्ति्तयां जानवरों को खूब भाती हैं। जानवरों के लिए इन पत्ति्तयों का चारा सबसे पौष्टिक माना जाता है। पशुपालकों के अनुसार खर्सू की पत्तियों का चारा खिलाने से दुधारू जानवरों का दूध बढ़ जाता है। जंगलों में काफी अधिक संख्या में पाए जाने वाले इस वृक्ष की लकड़ी जलाने के काम आती है। इसके कोयले भी बनाए जाते हैं। जिनका प्रयोग ऊंचाई पर रहने वाले लोग शीतकाल में आग सेंकने के प्रयोग में लाते हैं। जिस कारण इनका कटान भी काफी होता है।

इस खर्सू के दिन अब फिरने जा रहे हैं। शोध के बाद शहतूत और बांज की पत्तियों की तरह रेशम पैदा होने की पुष्टि हुई । जिसे देखते हुए अब अब खर्सू से रेशम पैदा करने की कवायद चल चुकी है। सर्वप्रथम तो खर्चू जंगलों में काफी अधिक होता है। इसके लिए अलग से जंगल तैयार करने की आवश्यकता नहीं हैं। मुनस्यारी के ऊंचाई वाले कालामुनि, बिटलीधार से लेकर मुनस्यारी के आसपास के जंगलों में यह बहुतायत में है। अब तक जानवरों के लिए पौष्टिक आहार मानी जाने वाली पत्तियों को रेशम के कीट भी अपना आहार बनाने जा रहे हैं। आने वाले दिनों में स्थानीय लोगों के लिए खर्सू आमदनी का प्रमुख साधन बनने जा रहा है। खर्सू की पत्ति्तयां खाकर कीट टसर बनाएगा।

डेढ़ लाख कीट पहुंचे

मुनस्यारी: खर्सू की पत्ति्तयो से रेशम उत्पादन के लिए मुनस्यारी में ग्रामीण विकास समिति डेढ़ लाख रेशम के कीट ला चुकी है। जिन्हें खर्सू के पेड़ों पर छोड़ा जा रहा है। इसके विशेषज्ञ बलवंत सिंह कोरंगा का कहना है कि खर्सू की प्रचुरता के चलते यहां पर रेशम उत्पादन की अपार संभावनाएं हैं। इस समय दर्जनों युवा और युवतियां इससे जुड़ चुकी हैं। आने वाले समय में मुनस्यारी में व्यापक रेशम उत्पादन होगा।