शिव के मंदिर में मजार, सावन में उमड़ती है लाखों श्रद्धालुओं की भीड़

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(हरिद्वार)। भगवान शिव का ससुराल कहे जाने वाले कनखल में शमशान घाट के समीप दरिद्र भंजन महादेव का मंदिर स्थित है। इस मंदिर को लेकर अलग ही पौराणिक मान्यताएं हैं। कहा जाता है कि यहां 40 दिनों तक लगातार दीप जलाने और जलाभिषेक करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
कनखल राजघाट पर स्थित इस मंदिर को लेकर माना जाता है कि ये मंदिर 200 साल पुराना है। मंदिर में स्थित शिवलिंग के बारे में कहा जाता है कि ये शिवलिंग स्वयंभू है जो कि पीपल के वृक्ष के नीचे अपने आप प्रकट हुआ था। बताया जाता है कि वर्तमान समय में जहां शिव मंदिर स्थित है वहां पहले सर्पों का वास हुआ करता था। यही कारण है कि आज भी कभी-कभार मंदिर में सर्प दिख जाते हैं। सावन के महीने में दरिद्र भंजन महादेव मंदिर की खूबसूरती देखने लायक होती है। शिव भक्त दूर दूर से यहां दर्शनों के लिए पहुंचते हैं। दक्ष मंदिर और शमशान घाट के समीप बने दरिद्र भंजन मंदिर में सावन में भगवान शिव के दर्शन करने के लिए आस्था को सैलाब उमड़ता है। सावन के सोमवार के अवसर पर सुबह तड़के से ही मंदिर में श्रद्धालुओं की कतार लगनी शुरू हो जाती है। श्रद्धालु भगवान शिव का जलाभिषेक कर सुख समृद्धि की कामना करते हैं। यूं तो मंदिर को अक्सर सजाया जाता है लेकिन सावन के सोमवार को मंदिर की साज सज्जा श्रद्धालुओं का मन मोह लेती है।
दरिद्र भंजन महादेव मंदिर की एक और खासियत है जो उसे और शिवालयों से अलग बनाती है। स्वयंभू दरिद्र भंजन महादेव मंदिर में पीर की एक मजार भी है। मंदिर में भगवान भोले के दर्शन करने आने वाले भक्त मजार पर भी मत्था टेकते हैं। इस मजार को लेकर अभी तक सही जानकारी किसी को भी नहीं है। लेकिन लोगों का मानना है कि जिन फकीर बाबा को सबसे पहले स्वयंभू शिवलिंग के दर्शन हुए थे ये उनकी ही मजार है। मंदिर के साथ पीर की मजार अपने आप में विशेष है। मंदिर के पुजारी कृष्ण शर्मा के अनुसार मंदिर के साथ यह मजार बहुत पहले से ही मौजूद है। यहां पहुंचने वाले लोग पूरी श्रद्धा से मंदिर के साथ मजार पर भी मत्था टेकते हैं, जिससे भक्तों को भोले के साथ फकीर बाबा का आशीर्वाद प्राप्त होता है।