देहरादून, उत्तराखंड की राजधानी देहरादून अतिक्रमण से कराह रही है। उच्च न्यायालय नैनीताल के आदेश के बाद गत वर्ष अतिक्रमण अभियान जोर-शोर से चला लेकिन एक बार फिर वही स्थिति हो गई है और अतिक्रमण पुनः अपना रंग दिखाने लगा है।
अतिक्रमण हटने के बाद आम आदमी को राहत मिली थी, लेकिन अतिक्रमण हटाने के दौरान बिजली के जो खंभे सड़क किनारे थे वे अब सड़क के बीच में आ गए हैं। इससे दुर्घटनाओं की लगातार संभावना बनी हुई है। कभी भी कोई बड़ी घटना हो सकती है लेकिन सरकारी विभाग आदर्श आचार संहिता का बहाना कर टाल-मटोल करने पर आमादा है। उच्च न्यायालय नैनीताल के आदेश पर 28 जून 2018 से अतिक्रमण अभियान चलाया गया था। इस अभियान की आख्या उच्च न्यायालय को निरंतर भेजी जाती रही। आज भी खंभे इस व्यवस्था को मुंह चिढ़ा रहे हैं।
उत्तराखंड आंदोलनकारी प्रभात डंडरियाल कहते हैं कि इन खंभों से वास्तव में दुर्घटना का खतरा बना हुआ है। दूसरी ओर उत्तराखंड ऊर्जा निगम के अधिकारी आर्थिक तंगी का बहाना कर रहे हैं। उत्तराखंड ऊर्जा निगम के प्रबंध निदेशक बीसीके मिश्र का कहना है कि इस व्यवस्था को ठीक करने के लिए सरकार से बजट मांगा गया है। बजट आने पर प्राथमिकता के आधार पर खंभों को दूसरी जगह स्थापित कर दिया जायेगा।
देहरादून के महापौर सुनील उनियाल गामा कहते हैं कि, “अभी तक तो सब चुनाव में व्यस्त थे और अभी भी चुनाव आचार संहिता लगी हुई है। इसके कारण हम अभी बिजली के खंभों का स्थानान्तरण नहीं कर सकते हैं। आचार संहिता हटते ही बिजली के खंभे भी हट जाएंगे और अतिक्रमण हटाओ अभियान चलाया जाएगा।”





















































