पलायन की मार: टिहरी पर भारी गुजरे दस साल

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टिहरी
उत्तराखंड के टिहरी जिले पर पिछले दस साल बहुत बुरे गुजरे हैं। इन दस सालों में टिहरी जिले से जबरदस्त पलायन हुआ है। 2011 तक के जनगणना के आंकडे़ उठाकर देखें तो अच्छी तस्वीर दिखाई देती है लेकिन पिछले दस सालों ने इस जिले के माथे पर भारी पलायन का दाग लगा दिया है। पलायन आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले दस सालों में करीब 90 हजार लोगों ने टिहरी जिले से पलायन किया है। यह पलायन स्थायी और अस्थायी दोनों तरह का है।
-पलायन आयोग की रिपोर्ट में दिखे थौलदार ब्लाक के सबसे बुरे हाल
-1911 से लेकर 2011 तक की जनगणना में हमेशा दिखी अच्छी तस्वीर
पलायन आयोग की रिपोर्ट में जो जानकारी दी गई है, वह चौंकाने वाली है। 934 ग्रामों व तोकों से कुल 71,509 लोगों ने अस्थायी रूप से पलायन किया है। 585 ग्राम पंचायतों में स्थायी पलायन करने वालों की संख्या 18,830 है। आयोग की रिपोर्ट में 1911 से लेकर 2011 तक की जनगणना के आंकडे़ सामने रखकर हर बार जनसंख्या बढ़ने की जानकारी दी गई है। मगर 2011 के बाद स्थिति एकदम बदलने लगी है। आयोग की रिपोर्ट में बताया गया है कि सबसे ज्यादा बुरी स्थिति टिहरी के थौलदार ब्लाक की है, जहां पर 3754 लोगों ने स्थायी तौर पर पलायन कर लिया है। यानी ये लोग अब इस जिले का रुख करते ही नहीं हैं। देवप्रयाग ब्लाक में 3,436 लोगों का पलायन स्थायी प्रकृति का है। इसके अलावा, भिलंगना-1,796, चंबा-2,169, जाखनीधार-1,947, जौनपुर-857, कीर्तिनगर-1,249, नरेंद्रनगर -1,845, प्रतापनगर में 777 लोगों का पलायन हुआ है।
1981 में सवा दो फीसदी बढ़ गई थी आबादी
टिहरी जिले में पलायन की मौजूदा स्थिति भले ही खराब हो, लेकिन 1981 की जनगणना में तो यहां आबादी सवा दो फीसदी बढ़ गई थी। पलायन आयोग की रिपोर्ट में जो आंकडे़ दिए गए हैं, उसके अनुसार, 1911 में 1.13, 1921 में 0.57, 1931 में 0.94, 1941 में 1.29, 1951 में 0.37, 1961 में 1.23, 1971 में 1.35, 1981 2.23, 1991 में 1.54, 2001 में 1.52 और 2011 में 0.23 फीसदी आबादी टिहरी जिले में बढ़ी थी। पलायन आयोग के उपाध्यक्ष एसएस नेगी के अनुसार सरकार को पलायन की समस्या पर काबू पाने के लिए कई सुझाव दिए गए हैं। टिहरी जिले में पलायन की समस्या को ठोस प्रयासों से दूर किया जा सकता है।