दुर्गम क्षेत्र गंगी ग्राम में जड़ी बूटी उगाने का सपना हुआ साकार

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टिहरी , हिमालय क्षेत्र के उत्तराखंड राज्य की भौगोलिक परिस्थिति की तथा जलवायु में दुर्लभ एवं मूल्यवान जड़ी बूटियां प्राकृतिक रूप से पाई जाती रही है| अंधाधुंध दोहन एवं समुचित संरक्षण के अभाव मे इन में से बहुत सारी प्रजातियां अपने क्षेत्र में लुप्तप्राय हो गई है|

राज्य के टिहरी गढ़वाल जनपद की भिलंगना वैली में लगभग 8500 से 9000 फीट की ऊंचाई पर स्थित 700 की आबादी वाला गंगी देश का आखिरी ग्राम है| मौसम की विषमता, जंगली जानवर तथा लगभग 6 माह की बर्फबारी की वजह से यहां की खेती में मात्र आलू तथा चौलाई ही पैदा हो पाती है| यातायात के साधन ना होने के कारण इन की ढुलाई खर्चीली है, यहां के ज्यादातर लोग कृषि के साथ भेड़ पशुपालन कर विषम परिस्थितियों में जीवन यापन करते हैं|

लगभग 20 वर्ष पूर्व ट्रैकिंग के दौरान वैद्य बालेंदु प्रकाश ने उक्त क्षेत्र में कुदरती तौर पर बहुमूल्य जड़ी बूटियों को उगते देखा| परंतु जानकारी तथा प्रोत्साहन के अभाव में यहां के निवासियों ने उनका उत्पादन कर अपनी आजीविका बढ़ाने का कोई प्रयास नहीं किया| ध्रुव एवं दुर्गम क्षेत्र होने के कारण उत्तराखंड को जड़ी बूटी राज्य बनाने का सपना मात्र राज्य औषधि पादप बोर्ड, जड़ी बूटी शोध संस्थान सदृश्य इकाइयां बनाने तथा बैठकों और योजनाएं में ही सीमित रह गया|

आखिरकार लंबी जद्दोजहद के बाद वैद्य बालेंदु प्रकाश ने अपने संसाधनों एवं प्रयासों से गंगी निवासी भेड़ पालक युवावीर सिंह को प्रेरित कर वर्ष 2015 के नवंबर माह में एक स्थानीय कृषक की निजी भूमि में 7.5 नाली जड़ी बूटी नर्सरी लगाने का कार्य प्रारंभ किया|

तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत जी ने वैद्य जी के प्रयासों की सराहना की, परंतु किसी भी प्रकार की सरकारी सहायता दिलाने में विफल रहे| गोपेश्वर स्थित जड़ी बूटी शोध एवं विकास संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ धनसिंह बिष्ट के सहयोग से 200 ग्राम अतीस, 3 किलो कूठ तथा कुटकी के पौधों को बमुश्किल प्राप्त किया गया| अन्य दुर्लभ प्रजाति की जड़ी बूटियां जैसे जदवार एवं वत्थ्नाभ के बीज एवं पौध चाह कर भी संबंधित विभाग अभी तक उपलब्ध नहीं करा सके|

उपरोक्त क्रम में इस वर्ष अक्टूबर माह में लगभग 300 किलो कूठ की जड़ तथा 3 किलो ग्राम कुटकी का उत्पादन इस पौधशाला में हुआ है, जिनकी अनुमानित बाजार मूल्य लगभग ₹33000 है जो की तुलनात्मक दृष्टिकोण से गंगी में होने वाले आलू और चौलाई की खेती से लगभग 10-15 प्रतिशत अधिक है|

वैद्य जी ने कहा, ‘मैं आशावादी व्यक्ति हूं, मैं बड़ी प्रसन्नता के साथ आपको बताना चाहता हूं कि मेरे द्वारा गंगी में जो भूमि किराए पर ली गई थी और उसमें जो जड़ी बूटी उगाई गई थी, वह मेरी निर्माणशाला में आ चुकी है। इस निजी अनुभव के आधार पर मैं कह सकता हूं की जड़ी -बूटी और वानिकी उत्तराखंड की रीढ़ हो सकती है। किसान संपन्न हो सकता है और मानव मात्र की सेवा करने के लिए उत्तराखंड की भूमि प्रचुर मात्रा में जड़ी बूटी का उत्पादन कर सकती है।