देहरादून, भले ही मशीनी युग होने के कारण तमाम अच्छे सामान बाजार में हैं लेकिन हथकरघा की अपनी अलग पहचान है। एक बार फिर अब हथकरघा युग लौटता दिख रहा है। इसका प्रमाण परेड मैदान में चल रही प्रदर्शनी से लिया जा सकता है जहां लोग बड़ी संख्या में पहुंचकर सामान की खरीदारी कर रहे हैं। यह सामान चाहे हथकरघा के कपड़े हो या अन्य सामान जो दैनिक उपभोग के हैं।
देहरादून के परेड ग्राउंड में आयोजित हैंडलूम प्रदर्शनी में हस्तकला द्वारा बनाए गए कपड़े और अन्य घरेलू सामान विशिष्ट मात्रा में उपलब्ध हैं, जिनकी बड़ी संख्या में खरीदारी हो रही है। उत्तराखंड के चमोली जिले के भेड़ की ऊन व धागों से बने शॉल व साड़ियां लोगों को खूब भा रही हैं। उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु जैसे कई राज्यों से बनने वाली साड़ियां व अन्य कपड़ें लोगों को खूब आकर्षित कर रहे हैं।
अलग-अलग धागों के अनुसार डिजाइन तैयार की जाती है। हाथ से बनी हैंडलूम मशीन से 2 से 3 दिनों में साढ़े पांच मीटर तक की एक साड़ी, शॉल जैसे आइटम तैयार किए जाते हैं। उधर उत्तराखंड के अलग-अलग जिलों से हाथकला कारीगरों द्वारा सीधे सामान को ग्राहकों तक पहुंचाने का कार्य भी हिमाद्री संस्थान द्वारा किया जा रहा है।





















































