गीता ठाकुर: उत्तराखंड के दुर्गम इलाकों में मातृ शक्ति की पहचान

Paving the way forward

धारचूला, एक तस्वीर हजारों बाते बयां करती है, और मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ जब मैनें सोशल मीङिया पर गीता ठाकुर की फोटो देखी। एक बड़ी सी मुस्कान के पीछे एक मजबूत महिला की कहानी छिपी हुई थी जिसने एक गरिमापूर्ण जिंदगी जीने के लिए बहुत कठिनाइयों का सामना किया है।

29 साल की गीता ठाकुर पहली महिला कुली है जो ओम पर्वत और आदि कैलाश यात्रा पर जाने वाले यात्रियों का सामान उठाती हैं।

आठ भाई-बहनों में दूसरे नंबर की बहन गीता ने देखा की किस तरह से उनके माता-पिता उनके भाई-बहनों को पालने के लिए धारचूला के एक कमरे के घर में संर्घष करते थे। आठवीं पास गीता ठाकुर ने हर हालत में अपने परिवार की जिम्मेदारी संभालने की ठान ली। गीता के पास बहुत सारे विकल्प नहीं थे। उसने ओम पर्वत और आदि कैलाश यात्रा पर ट्रेकिंग के लिए हजारों लोगों को हर रोज अपने गांव जुप्ती से जाते देखा। इसी के चलते गीता ने पोर्टर का काम शुरु कर दिया।

शुरुआत में गीता के लिए भी यह आसान नहीं था। इस काम के रास्ते में उन्हें बहुत सारी परेशानियों औऱ आलोचनाओं का सामना करना पड़ा। लेकिन इन सबका गीता पर कोई असर नहीं हुआ और उनका केवल एक ही जवाब रहा, “अगर तुम्हें खाने की जरुरत नहीं है इसका मतलब ये नहीं है कि हमें भी नहीं है,” और इस जवाब के साथ वह आगे बढ़ती रहीं।

गीता पहाड़ की एक सच्ची बेटी है जो पहाड़ों को ही अपना घर कहती है और विश्वास रखती हैं कि कोई भी काम बड़ा या छोटा नहीं होता। जब एक आदमी और औरत एक जैसा खाना खा सकते हैं, तो वह एक जैसा काम क्यों नही कर सकते? मैं कुछ भी कर सकती हूं, और वह केवल बोलती नहीं करती भी हैं वो भी चेहरे पर एख मुस्कान के साथ।

बीती 12 जुलाई को गीता ठाकुर बैंगलोर के पिता-बेटी के साथ ओम पर्वत और आदि कैलाश यात्रा पर गई थी, और उन्होंने 50 किलो सामान के साथ 140 किलोमीटर का सफर 11 दिनों में तय किया था। इस यात्रा के बाद वह थोड़ी टैन जरुर हुई लेकिन वह आगे और भी ऐसी यात्राएं करने के लिए बिल्कुल तैयार हैं।

गीता अपने आप में समानता और महिला सशक्तिकरण का उदाहरण हैं वो भी उत्तराखंड के एक दूरस्थ क्षेत्र में। वह अपने साथ-साथ सभी को प्रेरित करती हैं कि अगर किसी भी काम में सफलता पानी है तो आज नहीं बल्कि अभी से उसपर काम करना शुरु करें।